यथार्थवादी शिक्षा की विधियाँ, अनुशासन एवं शिक्षक-शिक्षार्थी सम्बन्ध पर नोट लिखिए।
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यथार्थवादी शिक्षा की शिक्षण विधियाँ
यथार्थवादी ज्ञानेन्द्रियों को ज्ञान का द्वार मानते हैं इसलिए बच्चों की ज्ञानेन्द्रियों के प्रशिक्षण पर बल देते हैं। इसके लिए कमेनियस ने शिशुओं की शिक्षा में ज्ञानेन्द्रियों के प्रशिक्षण पर बल दिया, मिल्टन ने भ्रमण एवं यात्रा को महत्त्वपूर्ण बताया और लॉक ने निरीक्षण, देशाटन एवं अनुभव द्वारा सीखने की बात कही। ये बच्चों के मनोविज्ञान से भी परिचित हैं इसलिए भिन्न-भिन्न आयु वर्ग के बच्चों को भिन्न-भिन्न शिक्षण विधियों से पढ़ाने पर बल देते हैं ।
यथार्थवादी वस्तुओं को अनुभूति का आधार मानते हैं इसलिए इन्होंने वस्तुओं को शिक्षण साधन के रूप में प्रयोग करना प्रारम्भ किया इनका स्पष्टीकरण है कि पदार्थ वास्तविक होते हैं। और उनके प्रतीक शब्द और पदार्थ को संयुक्त करने से ही अर्थ की उत्पत्ति होती है, इसलिए पहले पदार्थ दिखाना चाहिए और फिर उसके लिए शब्द देना चाहिए। परिणामस्वरूप शिक्षा में दृश्य-श्रव्य साधनों का प्रयोग होने लगा, भ्रमण को स्थान मिला और सहपाठ्यचारी क्रियाओं का महत्त्व बढ़ा।
यथार्थवादी सम्पूर्ण ज्ञान को एक इकाई के रूप में देखते हैं, इसलिए ये सभी विषयों को एक-दूसरे से सम्बन्धित करके पढ़ाने पर बल देते हैं। इनके इस विचार ने सहसम्बन्ध विधि को बढ़ावा दिया ।
यथार्थवादियों ने हमें शिक्षण के अनेक सूत्र दिए हैं। रटके द्वारा विकसित शिक्षण सूत्रों में तीन सूत्रों का महत्त्व आज भी माना जाता है। ये सूत्र हैं-शब्द ज्ञान से पहले वस्तु ज्ञान दिया जाए, एक तथ्य स्पष्ट करने के बाद दूसरा तथ्य स्पष्ट किया जाए और आवृत्ति द्वारा ज्ञान अथवा क्रिया को सुदृढ़ किया जाए। कमेनियस ने इस क्षेत्र में विशेष योगदान दिया है। उनके द्वारा विकसित शिक्षण सूत्र हैं- ज्ञानेन्द्रियों द्वारा ज्ञान दिया जाए, शिक्षा मातृभाषा ज्ञान को रटाया न जाए अपितु बच्चों के अपने अनुभवों के आधार पर उसे विकसित किया जाए, माध्यम से हो, मूर्त से अमूर्त की ओर बढ़ा जाए, जो कुछ पढ़ाना हो उसका व्यावहारिक महत्त्व स्पष्ट हो और बच्चों को उसका प्रयोजन बता दिया जाए, और बालकों को अभ्यास का अवसर दिया जाए। यथार्थवाद ने शिक्षण विधियों को बहुत अधिक प्रभावित किया है और अब रटने के स्थान पर करके सीखने एवं स्वानुभव द्वारा सीखने पर बल दिया जाने लगा है।
अनुशासन
यथार्थवादी शिक्षा को व्यवस्थित रूप से देने पक्ष में हैं और इसके लिए विद्यालय में अनुशासन को आवश्यकता समझते हैं। अनुशासन से इनका तात्पर्य वस्तुनिष्ठता के प्रति समायोजन से है। इनके अनुसार वह छात्र अनुशासित हैं जो विद्यालय के नियमों का पालन करता है और कठिनाइयों से भागकर पलायन नहीं करता अपितु अपने को उस योग्य बनाता है कि कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर सके। परन्तु बाहर से किसी प्रकार के दण्ड आदि के भय द्वारा अनुशासन स्थापित करने का ये विरोध करते हैं। ये बच्चों को ऐसा भौतिक पर्यावरण देना चाहते हैं कि उसमें रहते हुए वे एक व्यवस्था कायम रखना सीखें और वैसा करना उनका स्वभाव बन जाए और वैसा करने के लिए वे स्वयं सोचने लगें।
शिक्षक-शिक्षार्थी
यथार्थवादी शिक्षा की प्रक्रिया में शिक्षक के महत्त्व को तो स्वीकार करते हैं प आदर्शवादियों की भाँति उसे मुख्य स्थान नहीं देते। ये आदर्शवादियों की भाँति शिक्षक को पूर्ण व्यक्तित्व न मानकर किन्हीं एक-दो विषयों में निष्णान्त अथवा क्रियाओं में दक्ष व्यक्ति मानते हैं। यथार्थवादी शिक्षकों से यह आशा करते हैं कि वे बच्चों के सामने वस्तुओं एवं क्रियाओं को उनके वास्तविक रूप में प्रस्तुत करें और उन्हें निरीक्षण एवं अनुभव करने तथा निर्णय लेने के अवसर प्रदान करें। इनके अनुसार इस प्रकार से विकसित ज्ञान ही वास्तविक ज्ञान होता है। आचरण आदि की शिक्षा देने के लिए ये पर्यावरण के महत्त्व को स्वीकार करते हैं। इसके लिए ये सबसे पहले शिक्षक की बात करते हैं। इनके अनुसार प्रत्येक शिक्षक को यह जानना चाहिए कि बच्चों को किस समय, क्या, कितना और कैसे पढ़ाना है। इसके लिए ये शिक्षकों के प्रशिक्षण पर बल देते हैं।
यथार्थवादी विचारक लॉक बच्चे को जन्म ‘कोरी स्लेट मानते थे। उनका विचार था कि बच्चों को जैसा पर्यावरण दिया जाएगा वे वैसे ही बनेंगे। कमेनियस ने इस बात पर बल दिया कि बालकों के साथ प्रेम एवं सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार किया जाना चाहिए और उनकी शारीरिक एवं मानसिक क्षमताओं एवं रुचियों के अनुकूल उनसे कार्य कराए जाने चाहिए। इस प्रकार यथार्थवादी बच्चे के प्रति सजग हैं और उसकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ही उसकी शिक्षा का विधान करते हैं। इनकी दृष्टि से शिक्षार्थी ही शिक्षा की प्रक्रिया का केन्द्र होना चाहिए।
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