राष्ट्रीय ज्ञान आयोग की मुख्य सिफारिशों (संस्तुतियों) का वर्णन कीजिए ।
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राष्ट्रीय ज्ञान आयोग की संस्तुतियाँ (Recommendations of National Knowledge Commission)
राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (NKC) के द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे पत्रों तथा राष्ट्र के नाम प्रतिवेदनों में किये गये विश्लेषणों तथा प्रस्तुत की गई संस्तुतियों के विहंगावलोकन है कि इस आयोग की संस्तुतियों का केन्द्रबिन्दु (Core) मुख्यतः उच्चशिक्षा के संस्थानों से स्पष्ट होता सम्बन्धित है। नवीन ज्ञान के सृजन तथा वर्तमान में उपलब्ध ज्ञान के प्रचार-प्रसार, सुलभता तथा अनुप्रयोग को बढ़ावा देने में निःसन्देह उच्चशिक्षा संस्थानों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है एवं इस परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय ज्ञान आयोग का दृष्टिकोण सम्यक् प्रतीत होता है। इस कोर को सम्पूरित करने के लिए राष्ट्रीय ज्ञान आयोग के द्वारा पुस्तकालयों तथा अनुसंधान व शिक्षा के सभी संस्थानों को परस्पर जोड़ने वाले डिजिटल ब्रॉडबैण्ड नैटवर्क को सृजित करने एवं सभी समूहों के लिए बेहतर सुलभता उत्पन्न करने के लिए गतिशील अनुवाद उद्योग को बढ़ावा देने जैसे सम्बद्ध क्षेत्रों में प्राण फूँकने के लिए अनेक संस्तुतियाँ की गई हैं। इसके साथ-साथ राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (NKC) ने ज्ञान सृजन की प्रणालियों के संवर्द्धन के लिए भी अनेक महत्त्वपूर्ण संस्तुतियाँ प्रस्तुत की हैं। इसके अन्तर्गत नवाचार के लिए बेहतर माहौल बनाने, सुदृढ़ बौद्धिक सम्पदा अधि कार व्यवस्था को सृजित करने, विश्वविद्यालयों में अनुसंधान को प्रोत्साहित करने, परम्परागत स्वास्थ्य प्रणालियों को बढ़ावा देने तथा जनकेन्द्रित ई-अभिशासन, कार्यक्रम के द्वारा नागरिकों व सरकारी सेवाओं की आपूर्ति के लिए एक बेहतर तन्त्र का सृजन करने जैसे सुझाव सम्मिलित हैं। राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (NKC) के द्वारा की गई संस्तुतियों को विभिन्न प्रकरणों के अन्तर्गत रखा जा सकता है। राष्ट्रीय ज्ञान आयोग की प्रमुख संस्तुतियाँ निम्नवत् प्रस्तुत हैं-
1. शिक्षा का अधिकार (Right to Education)
- 86वें संविधान संशोधन का अनुसरण करते हुए केन्द्रीय सरकार को शिक्षा के अधिकार संबंधी कानून को अवश्य लागू करना चाहिए।
- शिक्षा के अधिकार की पूर्ति के लिए अपेक्षित अतिरिक्त निधियों का अधिकांश हिस्सा केन्द्रीय सरकार के द्वारा उपलब्ध कराना चाहिए।
- शिक्षा के अधिकार सम्बन्धी केन्द्रीय कानून में इस कार्य के लिए आवश्यक वित्तीय प्रावधान किया जाना चाहिए।
2. स्कूल शिक्षा (School Education)
1. सर्वशिक्षा अभियान (S.S.A.) तथा अन्य केन्द्रीय स्कीमों के भीतर संस्थागत सुधार, जिसे राज्यों के लिए और अधिक लचीलापन उपलब्ध कराया जाना चाहिए और अधिगम परिणाम इष्टतम बनाया जाना चाहिए।
2. डाटा संग्रह की प्रविधि को सुचारु बनाया जाना चाहिए जिससे स्कूलों के वास्तविक कवरेज का पता लगाने के लिए डाटा सहित विश्वसनीय डाटा की सामयिक सुलभता सुनिश्चित की जा सके T
3. सभी स्कूलों के लिए न्यूनतम अपेक्षाओं मानदण्डों और मानकों का एक समुच्चय (Set) निर्धारित किया जाना चाहिए।
4. अध्यापक प्रशिक्षण संस्थानों का सुधार और विनियमन, सेवाकालीन अध्यापक प्रशिक्षण का विस्तार और सुधार तथा विश्वविद्यालय प्रणाली के साथ तालमेल स्थापित करना चाहिए।
5. व्यवसाय के रूप में स्कूल शिक्षक की प्रतिष्ठता बहाल करना और इसके साथ-साथ स्कूल अध्यापकों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के वास्ते पारदर्शी प्रणालियाँ तैयार करना चाहिए।
6. विचारों, सूचना और अनुभव का आदान-प्रदान करने के लिए अध्यापकों के वास्ते एक राष्ट्रीय पोर्टल स्थापित करना चाहिए।
7. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा- 2005 के प्रकाश में पाठ्यचर्यात्मक सुधार शुरू करना चाहिए ताकि उसे और अधिक नमनशील और प्रासंगिक बनाया जा सके।
8. परीक्षा प्रणाली में, विशेष रूप से बोर्ड स्तर पर बदलाव लाना चाहिए जिससे कि रट्टा लगाकर सीखने के दबाव को कम किया जा सकें।
9. संसाधनों के लागत प्रभावी प्रयोग, नवाचारी शिक्षाशास्त्रीय कार्यनीतियों तथा छात्रों और अध्यापकों के लिए और अधिक व्यापक प्रभाव के लिए नई-नई प्रौद्योगिकियों विशेष रूप से आई. सी.टी. के लिए आधारित तंत्र का निर्माण करना चाहिए।
10. पिछड़े और दूरस्थ क्षेत्रों में स्कूल शिक्षा की अधिक सुलभता, सीमांत सामाजिक वर्गों की लड़कियों और छात्रों का और अधिक नामांकन सुनिश्चित करने तथा श्रमिक बच्चों, प्रवासी कामगारों के बच्चों और भिन्न-भिन्न विकलांगताओं से युक्त बच्चों की विशेष जरूरतों की ओर ध्यान देने के लिए विशेष कार्यनीतियाँ तैयार करना चाहिए।
3. उच्च शिक्षा (Higher Education)
1. उच्च शिक्षा के लिए विश्वविद्यालयों को डिग्रियाँ प्रदान करने की शक्तियाँ प्रदान करने वाले एक स्वतंत्र विनियामक निकाय (Independent Regulatory Authority for Higher Education- IRAHE) की स्थापना की जानी चाहिए।
2. यह स्वतन्त्र विनियामक निकाय (Regulating Body) मानकों को मानीटर करने और विवादों को हल करने के लिए जिम्मेदार होगा।
3. विस्तार और गुणवत्ता-दोनों की जरूरत की ओर ध्यान देने के लिए 50 राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना करनी चाहिए।
4. गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए पाठ्यचर्या में संशोधन करने, पाठ्यक्रम क्रेडिट प्रणाली लागू करने, आंतरिक आकलन पर अधिक भरोसा करने, अनुसंधान को प्रोत्साहित करने और संस्थानों के अभिशासन में सुधार लाने जैसे सुधार करने चाहिए।
4. मुक्त और दूरस्थ शिक्षा (Open and Distance Education)
1. दूरसंचार, रेडियो और इंटरनेट जैसे मीडिया के संवर्द्धन के कारण दूरस्थ शिक्षा की पहुँच में भारी वृद्धि की जा सकती है।
2. आई.सी.टी. आधारित एक राष्ट्रीय तंत्र के सृजन, वेब आधारित सामान्य मुक्त संसाध न विकसित करने, एक क्रेडिट बैंक स्थापित करने तथा एक राष्ट्रीय परीक्षण सेवा उपलब्ध कराने पर बल दिया जाना चाहिए।
3. दूरस्थ शिक्षा का विनियमन प्रस्तावित स्वतंत्र विनियामक प्राधिकरण के अधीन एक उप-समिति द्वारा किया चाहिए।
4. उत्तम सामग्री का उत्पादन तथा वैश्विक मुक्त शैक्षिक संसाधनों का लाभ उठाने के और व्यापक तरीके से बल दिया जाना चाहिए।
5. महत्त्वपूर्ण अनुसंधान लेखों, पुस्तकों, पत्रिकाओं आदि की मुक्त सुलभता को एवं नेटवर्क समर्थित आपूर्ति आधारित तन्त्र के निर्माण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
5. पेशेवर शिक्षा (Professional Education)
1. सभी पेशेवर शिक्षा धाराओं में विनियमन की मौजूदा व्यवस्था के स्थान पर प्रस्तावित स्वतंत्र विनियामक के तहत विभिन्न धाराओं के लिए अलग-अलग उप-समूह रखे जाने चाहिए।
2. संस्थानों को और अधिक स्वायत्तता प्रदान करना चाहिए, मौजूदा परीक्षा प्रणाली में सुधार लाना चाहिए तथा नियमित रूप से अद्यतन सम-सामयिक पाठ्यचर्या विकसित करनी चाहिए।
3. प्रतिभासंपन्न संकाय की भर्ती करने, वेतन विभेदक लागू करने, व्यावसायिक पेशे में अवसरों की तथा परामर्शी सेवाओं की अनुमति दिए जाने जैसे कुछेक उपायों की खोज कि की जरूरत है।
4. आम आदमी से सम्बन्धित विधि के विभिन्न पक्षों पर अनुसंधान करने के लिए प्रत्येक क्षेत्र में उन्नत विधिक अध्ययन और अनुसंधान केन्द्र (Centre of Advanced Law Study and Research- CALSAR) स्थापित किये जाने चाहिए।
5. सभी वर्गों को वहनीय स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिए चिकित्सीय शिक्षा को अपना ध्यान जनस्वास्थ्य की ओर सुदृढ़ीकृत करना चाहिए।
6. प्रबन्ध शिक्षा की सामाजिक प्रासंगिकता बढ़ाने तथा परामर्श के एक कार्यक्रम के रूप में देखने के माध्यम से प्रबन्ध शिक्षा की गुणवत्ता का संवर्द्धन किया जाना चाहिए।
6. व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण (Vocational Education and Training)
1. मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली के भीतर व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण (VET) के लचीलेपन में वृद्धि करनी चाहिए।
2. व्यावसायिक शिक्षा के प्रभाव के परिमाणन और मानीटर की जरूरत की ओर ध्यान आकृष्ट करना चाहिए।
3. एक मजबूत सरकारी-निजी भागीदारियों (Public Private Participation PPP) सहित नवाचारी आपूर्ति मॉडलों के माध्यम से क्षमता का विस्तार करने पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
4. महत्त्व और उच्चतर आय अर्जित करने की योग्यता बढ़ाने के लिए संव्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण को पुनःबैंड करने के एकजुट प्रयास किये जाने चाहिए।
7. पुस्तकालय (Library)
1. देश के भीतर समूचे पुस्तकालय और सूचना सेवा (LIS) के क्षेत्र में प्राण फूँकने के लिए सुधारों की पेशकश की जानी चाहिए।
2. भारत में सरकारी और निजी क्षेत्रों में उपलब्ध पुस्तकालयों का एक विशाल नैटवर्क ज्ञान के आदान-प्रदान और प्रसार के गतिशील केन्द्रों के रूप में प्राण फूँक सकता है।
3. सूची बनाने, सामग्री को डिजिटिकरण करने, ई-पत्रिकाओं के सृजन आदि जैसे विभिन्न प्रयोगों के लिए आइसीटी का लाभ उठाया जाना चाहिए।
4. इस क्षेत्र की ओर सतत् ध्यान देने के लिए पुस्तकालयों पर एक स्वतंत्र और स्वायत्र राष्ट्रीय आयोग स्थापित किया जाना चाहिए।
8. अंग्रेजी भाषा (English Language)
1. उच्चतर शिक्षा, रोजगार अवसरों और सामाजिक अवसरों की सुलभता के लिए सर्वाधि क महत्त्वपूर्ण निर्धारक तत्त्व मौजूदा परिदृश्य में अंग्रेजी भाषा की समझ और उस पर अधिकार रखना है।
2. बच्चे की प्रथम भाषा (मातृभाषा अथवा क्षेत्रीय भाषा) के साथ-साथ एक भाषा के रूप में अंग्रेजी का शिक्षण कक्षा 1 से शुरू किया जाना चाहिए।
3. अंग्रेजी भाषा के शिक्षण और अधिगम के शिक्षाशास्त्र में सुधार की जरूरत पर भी बल दिया जाना चाहिए जिससे कि व्याकरण पर गैर-आनुपातिक बल को कम किया जा सके। और बच्चे के लिए सार्थक अधिगम अनुभव का सृजन करने पर बल दिया जा सके।
4. परम्परागत शिक्षण विधियों को संपूरित करने के लिए श्रव्य-दृश्य तथा मुद्रित मीडिया के माध्यमों सहित सभी उपलब्ध माध्यमों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
9. अनुवाद (Translation )
1. बहुभाषी देश में विभिन्न भाषायी वर्गों को ज्ञान उपलब्ध कराने में अनुवाद को एक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करना चाहिए।
2. अनुवाद का आशय केवल साहित्यिक पाठ्यसामग्री के अनुवाद से ही नहीं, वरन् बहुविध क्षेत्रों के अनुवाद से होना चाहिए।
3. देश के भीतर अनुवाद क्रियाकलापों को बढ़ावा देने पर बल देते हुए राष्ट्रीय अनुवाद मिशन की स्थापना की जानी चाहिए।
4. राष्ट्रीय अनुवाद मिशन को अनेक तरह से क्रियाकलाप जैसे कि अनुवाद के सभी पक्षों की बावत जानकारी के एक भण्डारगृह की स्थापना, अनुवादकों के लिए उत्तम प्रशिक्षण और शिक्षा प्रदान करना, अनुवाद के लिए डिजिटल साधनों सहित विभिन्न साधनों का सृजन करना और उन्हें बनाए रखना, अनुवाद के संबंध में एक राष्ट्रीय वेब पोर्टल स्थापित करना, सम्मेलन, पुस्तक विमोचन, उत्सव और अध्येतावृत्तियों का आयोजन करना तथा एक विषयक्षेत्र के रूप में अनुवाद में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना आदि करना चाहिए।
10. ज्ञान नेटवर्क (Knowledge Network)
1. गीगाबाइट क्षमताओं से युक्त इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल ब्राडबैंड नेटवर्क के माध्यम से देश के भीतर सभी ज्ञान संस्थानों को एक-दूसरे से जोड़ा जाना चाहिए जिससे कि संसाधनों और सहयोगात्मक अनुसंधान के आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया जा सके।
2. संकाय के स्तर, पाठ्यसामग्री तथा आधारिक-तन्त्र के रूप में शिक्षा प्रणाली के संसाधनों के सीमित व विषमतापूर्ण होने के कारण अन्तः सयोज्यता प्रदान करके संस्थानों के संसाधनों का आदान प्रदान करना चाहिए।
3. नेटवर्क के रोजमर्रा के कामकाज की देखभाल का प्रबन्ध राज्य शासित स्कीम के स्थान पर स्वामित्व- प्रयोक्ता समुदाय के हाथों में सौंपा जाना चाहिए।
11. स्वास्थ्य सूचना नेटवर्क (Health Education Network)
1. सूचना और संचार प्रौद्योगिकी में हुई उन्नति ने स्वास्थ्य देखभाल आपूर्ति की प्रभाविता बढ़ाने के लिए नए अवसर पैदा किए हैं।
2. देश में निजी और सरकारी-दोनों क्षेत्रों में सभी स्वास्थ्य देखभाल स्थापनाओं को संयोजित करके एक वेब-आधारित नेटवर्क तैयार करने की जरूरत है।
3. इस प्रयोजन के लिए मुक्त स्रोत समाधानों पर आधारित एक सामान्य इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकार्ड (EHR) का सृजन किए जाने और व्यापक रूप से प्रसारित किया जाना चाहिए।
4. नैदानिक शब्दावली और स्वास्थ्य सूचना विज्ञान के लिए राष्ट्रीय मानक स्थापित करने पर बल दिया जाना चाहिए।
12. पोर्टल (Portal)
1. जल, ऊर्जा, पर्यावरण, शिक्षा, खाद्य, स्वास्थ्य, कृषि, रोजगार, नागरिक अधिकार आदि जैसे कतिपय महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में राष्ट्रीय वेब-आधारित पोर्टल स्थापित किए जाने के लिए प्रस्तावों की पेशकश की है।
2. इन पोर्टलों को इस क्षेत्र में छात्रों से लेकर अनुसंधानकर्ताओं तथा कार्यरत लोगों तक के सभी हितधारियों के लिए इस क्षेत्र से सम्बन्धित सूचना के लिए एक ‘एकल खिड़की’ के रूप में काम करना चाहिए।
3. ये पोटल राष्ट्रीय प्रकृति के होने चाहिए एवं इनका प्रबन्ध किसी एक संगठन के स्थान पर बहुविध हितधारकों के प्रतिनिधियों वाले कन्सोर्टियम द्वारा किया जाना चाहिए।
4. अर्ध्यम ट्रस्ट के तत्त्वावधान में जल के लिए एवं दी एनर्जी रिसर्च इन्स्टीट्यूट (TERI) के तत्त्वावधान में ऊर्जा पर पोर्टल स्थापित किये जा चुके हैं जबकि जैव-विविधता तथा अध्यापक शिक्षा सम्बन्धी पोर्टलों पर कार्य शुरू किया जा चुका है।
13. बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Rights)
1. भारत को वैश्विक ज्ञान नेता बनाने हेतु ज्ञान सृजन करने के लिए एक ऐसी अनुकूल पारिस्थितिकी प्रणाली जरूरी है जो केवल विधाता की विदग्धता की रक्षा ही न करे बल्कि वाणिज्यिक अनुप्रयोगों के माध्यम से ज्ञान सृजन को भी पुरस्कृत करे ।
2. ज्ञान के सृजन को सुविधापूर्ण बनाने के लिए एक विश्वस्तरीय आईपीआर आधारित तंत्र के निर्माण की दिशा में उपायों की मात्रा बढ़ाई जानी चाहिए। इसमें कम्प्यूटरीकरण, ई-फाइलिंग प्रक्रिया, पुनः इंजीनियरी, मानव संसाधन विकास, पारदर्शिता, प्रलेखन, सुलभता और वैश्विक मानकों का निर्माण करके पेटेंट कार्यालयों के आधुनिकीकरण की दिशा में प्रयास शामिल करने चाहिए।
3. आई. पी. कार्यालयों तथा शैक्षिक संस्थानों में आई.पी.आर. (IPR) प्रशिक्षण में तेजी लाने के लिए आई.पी.आर. (IPR) सेल स्थापित किये जाने चाहिए।
4. पृथक आई. पी. आर. न्याधिकरण, आम आदमी से सम्बन्धित आई.पी. आर. नीति के. लिए राष्ट्रीय संस्थान तथा वैश्विक प्रौद्योगिकी अधिग्रहण निधि जैसे नये तंत्रों की स्थापना की जानी चाहिए।
5. परम्परागत ज्ञान को सुरक्षित रखने तथा नये प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में प्रमुख आई.पी.आर. मुद्दों की पहचान के लिए तन्त्रों की खोज की जानी चाहिए।
14. सरकारी वित्तपोषित अनुसंधान के लिए विधिक तंत्र (Legal Framework for Public Funded Research)
1. विश्वविद्यालयों में अनुसंधान में प्राण फूँकने तथा सरकारी वित्तपोषित अनुसंधान के लिए प्रोत्साहन उपलब्ध कराने के वास्ते एक ऐसा कानून बनाया जाना जरूरी है जो विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों को सरकारी वित्तपोषित अनुसंधान से उभरने वाले आविष्कारों के बारे में स्वामित्व और पेटेंट अधिकार प्रदान करे।
2. इस तरह की लाइसेंस व्यवस्था में आविष्कर्ताओं को भी रॉयल्टी का एक हिस्सा प्राप्त करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
3. प्रस्तावित कानून में अपवादात्मक स्थितियों में जनहित की रक्षा के लिए आवश्यक महत्त्वपूर्ण उपाय भी करने चाहिए।
15. राष्ट्रीय विज्ञान और समाज विज्ञान प्रतिष्ठान (National Science and Social Science Foundation)
1. एक राष्ट्रीय विज्ञान और समाज विज्ञान प्रतिष्ठान (NSSF) की स्थापना की जानी चाहिए जो ज्ञान को एक अथाह सत्ता के रूप में अग्रसर करे।
2. एन.एस.एस.एफ. का उद्देश्य प्राकृतिक, भौतिक, कृषि, स्वास्थ्य और सामाजिक विज्ञानों के सभी क्षेत्रों में नए ज्ञान के सृजन और प्रयोगों में भारत को नेतृत्व में अग्रणी बनाने की दिशा में नीतिगत पहले सुझाना होना चाहिए।
3. एन.एस.एस.एफ. को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे लोगों की जिंदगी की बेहतरी के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का अधिकतम इस्तेमाल कैसे किया जाए।
16. नवाचार (Innovations)
1. ज्ञात जानकारियों पर आधारित उन्नति के लिए नवाचार एक प्रमुख प्रेरक है लेकिन पाठ्यचर्या में प्रयोग/समस्या पर कम बल दिए जाने के कारण उभरने वाली कौशल की कमी एक प्रमुख बाधा बनी हुई है। इसके साथ-साथ उद्योगों, सरकार, शैक्षिक प्रणाली तथा डी वातावरण और उपभोक्ता के बीच और अधिक सहक्रिया की जरूरत है।
2. इसके अलावा समूची अर्थव्यवस्था के भीतर ग्रास रूट स्तर से लेकर बड़ी कम्पनियों के स्तर तक एक व्यापक अभियान की जरूरत है जिससे नवाचार में भारत को एक वैश्विक नेता बनाया जा सके।
17. परम्परागत स्वास्थ्य प्रणालियाँ (Traditional Health System)
1. लोगों की स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा करने के भावी उपाय के रूप में चिकित्सीय बहुलता को अधिकाधिक मान्यता प्रदान करके परम्परागत स्वास्थ्य प्रणालियों पर आधारित उत्तम स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करनी चाहिए।
2. परम्परागत चिकित्सा में उत्तम शिक्षा प्रदान करने के लिए बड़े उपाय किए जाने चाहिए। उच्च स्तर पर एकजुट निवेशों तथा और अधिक कठोर प्रविधियों के माध्यम से अनुसंधान का सुदृढ़ीकरण किए जाने की जरूरत पर, जड़ी-बूटी की औषधियों के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य मानकीकरण और प्रलेखन सुनिश्चित करने, विश्वस्तरीय प्रमाणन प्रक्रिया का पालन करने के साथ-साथ नैदानिक परीक्षणों को बढ़ावा देने की जरूरत पर बल दिया जाना चाहिए।
3. उत्तम विनिर्माण, प्रयोगशाला, नैदानिक, कृषिक और संग्रह परिपाटियों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय रूप से स्वीकृत मानकों की पूर्ति में सहायता दी जानी चाहिए। परम्परागत ज्ञान डिजिटिल पुस्तकालय (TKDL) के निमित्त पहले से चले आ रहे प्रयासों का वैविध्यकरण और विस्तार किया जाना चाहिए जिससे चिकित्सीय ज्ञान को समाहित किया जा सकें।
18. ई-अधिकारिता (E-Governance)
1. सरकारी प्रक्रियाओं की पुनः इंजीनियरी पर बल दिया जाना चाहिए जिससे सरलता, पारदर्शिता, उत्पादकता और प्रभाविता के लिए अधिकारिता की मूल प्रकृति बदली जा सके।
2. ई-अधिकारिता के लिए सामान्य मानक विकसित करने और एक सामान्य मंच / आध आरित तंत्र तैनात करने की जरूरत पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
3. सुनिर्मित ई-आधिकारिता कार्यान्वयन और वेब-इंटरफेस सहित नए राष्ट्रीय कार्यक्रमों (जैसे कि भारत निर्माण, ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम आदि) की शुरुआत की जानी चाहिए।
4. सेवाओं की शीघ्र आपूर्ति, उत्पादकता और प्रभाविता सुनिश्चित करके इन सेवाओं को नागरिक केन्द्रित बनाना चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सही लोगों को इनका लाभ प्राप्त हो सके।
19. गणित और विज्ञान में अधिक प्रतिभाशाली छात्र (More Telented Students in Mathematics and Science)
1. विज्ञान पढ़ाने के तरीकों यथा शिक्षण कला, अध्यापक प्रशिक्षण, अध्यापक प्रतिपूर्ति, मूल्यांकन, पाठ्यचर्या और प्रविधि के क्षेत्रों में बदलाव लाना चाहिए।
2. विज्ञान में कैरियर के नये अवसर विकसित करने चाहिए तथा मौजूदा कैरियरों के आकर्षण में वृद्धि करना चाहिए।
3. उद्योग, विश्वविद्यालयों तथा अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग के माध्यम से कैरियर के नए अवसरों का सृजन करना चाहिए।
4. आधारिक-तंत्र का ढीकरण करने उपलब्ध आधारिक-तंत्र का इष्टतम प्रयोग करने और सरकारी-निजी भागीदार के माध्यम से वित्तपोषण के स्रोतों का वैविध्यकरण करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
5. विज्ञान को लोकप्रिय बनाए जाने के कार्यक्रम बड़े पैमाने पर हाथ में लिये जाने चाहिए।
20. इंजीनियरिंग शिक्षा (Engineering Education)
1. क्षेत्रीय विषमताओं में कमी लाने सहित इंजीनियरिंग शिक्षा की सुलभता बढ़ानी चाहिए।
2. इंजीनियरिंग शिक्षा प्रणाली में संकाय को आकर्षित करना और उन्हें बनाए रखने के प्रयास किये जाने चाहिए।
3. इंजीनियरिंग शिक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान को प्रोत्साहित करना चाहिए।
4. इंजीनियरिंग शिक्षा के मौजूदा आधारिक-तंत्र का सुदृढ़ीकरण तथा उसके इष्टतम प्रयोग को प्रोत्साहित करना चाहिए।
5. प्रौद्योगिकीय अप्रचलन तथा उद्योग की जरूरतों को पूरा करने के लिए पाठ्यचर्या सुधार करना चाहिए।
6. शिक्षण और मूल्यांकन प्रविधियाँ बदलना एवं अध्यापकों और संस्थानों को और अधिक स्वायत्तता प्रदान करना चाहिए जिससे कि सृजनात्मक शिक्षण और समस्या समाधान को बढ़ावा मिल सके।
7. कौशल अंतराल को पाटने और अनुसंधान व विकास (R & D) को प्रोत्साहित करने के लिए उद्योग-विद्वत्समुदाय के बीच अधिक वैचारिक आदान-प्रदान प्रोत्साहित करना चाहिए।
8. इंजीनियरिंग शिक्षा के विनियामक संस्थानों और प्रत्यायन की प्रणाली में सुधार करना चाहिए।
21. कृषि में ज्ञान अनुप्रयोग (Knowledge Application in Agriculture)
1. भारतीय कृषि के समक्ष प्रस्तुत नई चुनौतियों और अवसरों को ध्यान में रखते हुए अनुसंधान और विस्तार के मौजूदा प्रतिमानों की जाँच करना चाहिए।
2. वर्षापोषित कृषि, जल प्रबंध और मृदा स्वास्थ्य और इसके साथ-साथ कार्बनिक खेती, खाद्य प्रसंस्करण और बागवानी जैसे उच्च सम्भावनाओं वाले क्षेत्रों में अनुसंधान प्राथमिकताएँ तैयार करना चाहिए।
3. सरकारी अनुसंधान और विस्तार प्रणाली को ज्ञान सृजन और अनुप्रयोग में प्रवृत्त अन्य पक्षकारों से अलग करने वाले मानदण्ड, नियम और परिपाटियाँ अभिज्ञात करनी चाहिए और संस्थानगत सुधार के लिए सुझाव प्रस्तुत करने चाहिए।
4. राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली (NARS) में पाठ्यचर्या की पुनर्रचना तथा मूल्यांकनों और प्रोत्साहनों की रचना का अध्ययन करना चाहिए, जिससे नवाचार को बढ़ावा दिया जा सके और इस क्षेत्र में और अधिक मात्रा में प्रवृत्त किया जा सके।
5. कृषि विस्तार के लिए मौजूदा पहलों की जाँच करना और क्षेत्रीय स्तर पर और अधि कि प्रचालनात्मक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए तंत्रों का सुझाव देना चाहिए।
7. विस्तार कार्यकर्ताओं के कार्यक्षेत्र और विशेषज्ञता का विस्तार करना और उन्हें सेवाओं की एकीकृत शृंखला उपलब्ध कराने, स्थानीय और स्वदेशी ज्ञान, बाजार सूचना प्रणालियों, ऋण तथा श्रम बाजार ज्ञान को समेकित करने के योग्य बनाने पर जोर देना चाहिए।
8. छोटे किसानों के लिए उच्च मूल्य के बाजारों तक पहुँचने की क्षमता का संवर्द्धन करके, लघु फार्म कृषि को लाभकारी बनाने पर बल देना चाहिए।
9. कृषि अनुसंधान और विस्तार में निजी क्षेत्र की सहभागिता के प्रभाव की जाँच करना और उत्पादनशील सरकारी निजी भागीदारियों के लिए तंत्र निर्मित करना चाहिए।
22. उद्यमिता (Enterpreneurship)
1. संपदा सृजन और रोजगार सृजन में उद्यमियों द्वारा निभाई जा रही महत्त्वपूर्ण भूमिका को ध्यान में रखते हुए देश के भीतर उद्यमिता की उन्नति को बढ़ावा देना चाहिए और इसकी प्रमुख बाधाओं का पता लगाना चाहिए।
2. उद्यमिता को सुविधापूर्ण बनाने के लिए एक अनुकूल परिस्थिति की प्रणाली का सृजन करने के वास्ते सिफारिशें तैयार करनी चाहिए।
3. उत्तम परिपाटियों का आदान-प्रदान सुविधापूर्ण बनाने तथा उद्यमियों को मान्यता देने और उसकी प्रशंसा करने के लिए प्रयास किये जाने चाहिए।
इक्कीसवीं शताब्दी में भारत को एक वैश्विक नेता बनाने और भारत की आबादी में युवकों के बहुत बड़े घटक की बढ़ती हुई आकांक्षाओं को पूरा करने में ज्ञान संस्थान की अपेक्षित महत्त्वपूर्ण भूमिका को ध्यान में रखते हुए इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है कि ग्यारहवीं योजना में शिक्षा और संबद्ध क्षेत्रों के लिए अनेक संस्थानगत सुधारों की जरूरत होगी। सरकार द्वारा ग्यारहवीं योजना 2007-2012 के लिए राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (NKC) की परिकल्पना एक महत्त्वपूर्ण संवर्ती प्रक्रिया के रूप में की गई है। ऐसा लगता है कि ग्यारहवीं योजना की स्थूल रूपरेखा तैयार करने में राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (NKC) की सिफारिशें प्रमुख आधार रही हैं। राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (NKC) ने अपनी सिफारिशों के संबंध में अनुवर्ती कार्रवाई के रूप में निम्न बातों की परिकल्पना भी की है-
1. संस्थागत सुधार पर बल देते हुए ग्यारहवीं योजना में वित्तीय संसाधनों की प्रतिबद्धता (Commitment) सुनिश्चित करना ।
2. सुधार की दिशा में अनुकूल मत का सृजन करने में बहुविध हितधारकों को प्रवृत्त करने के लिए राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (NKC) की सिफारिशों का व्यापक प्रसार और तत्संबंधी चर्चा करना, तथा
3. राज्य स्तर पर कार्यान्वयन के लिए विस्तृत कार्यनीतियाँ और योजनाएँ तैयार करना। राष्ट्रीय ज्ञान आयोग के सम्बन्ध में उपर्युक्त प्रस्तुत चर्चा एवं संस्तुतियों के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि यह आयोग शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक व मात्रात्मक सुधार लाने एवं शिक्षा को एक वास्तविक व दीर्घकालीन निवेश के रूप में प्रतिष्ठित करने के कार्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है।
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