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राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा, 2005 (NATIONAL CURRICULUM FRAMEWORK, NCF-2005)
परिचय (Introduction)
भारत जैसे बहुभाषिक एवं विविधता वाले देश में स्कूली शिक्षा कैसी हो? इस प्रश्न का उत्तर पाना उन सभी के लिए अत्यन्त आवश्यक है जो देश के बालकों की शिक्षा के प्रति सरोकार रखते हैं एवं सुधार की आकांक्षा रखते हैं।
सन् 2004 में केन्द्र में एन.डी.ए. की सरकार के स्थान पर यू.पी.ए. की सरकार सत्तारूढ़ हुई। इनका कहना था कि 2000 में पाठ्यचर्या को धार्मिक दृष्टि से तैयार किया गया है जो कि एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के लिए घातक है इसलिए धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के अनुकूल एक नवीन पाठ्यचर्या का निर्माण किया जाना आवश्यक है। इसके लिए मानव संसाधन विकास मन्त्रालय के द्वारा राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की कार्य कारिणी सभा बुलाई गई। मानव संसाधन विकास मन्त्रालय द्वारा राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद की बैठक 6 दिन, (14 जुलाई 2004 से 19 जुलाई 2004) तक चली। NCERT ने विद्यालयी शिक्षा से सम्बन्धित विविध मुद्दों पर सामाजिक विचार-विमर्श की एक प्रक्रिया प्रारम्भ की। विचारों एवं अपेक्षाओं के गहन मन्धन में बड़ी संख्या में प्रतिष्ठित विद्वानों, शिक्षकों, अभिभावकों, गैर-सरकारी संस्थानों के प्रतिनिधियों आदि ने भाग लिया। इस सभा में यह निर्णय लिया गया कि 21वीं शताब्दी के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या तैयार की जाए। वैसे भी प्रत्येक 5 वर्ष के उपरान्त पाठ्यचर्या का पुनर्निरीक्षण एवं आवश्यक संशोधन करने की बात राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में पहले ही कही गई थी एवं 2000 में निर्मित पाठ्यचर्या के पाँच वर्ष 2005 में पूर्ण होने वाले थे। इसी बीच वर्ष 2005 से समाज पर सूचना संचार प्रौद्योगिकी का प्रभाव बहुत तेजी से पड़ा एवं कम्प्यूटर की आधुनिक दुनिया को सम्मिलित करते हुए पाठ्यचर्या रूपरेखा 2005 तैयार की गई एवं इसे दिसम्बर, 2005 में प्रकाशित किया गया। इस रूपरेखा में कक्षा 1 से कक्षा 12 तक की पाठ्यचर्या प्रस्तुत की गई है। इन स्तरों पर किस प्रकार और कैसे पढ़ना सिखाया जाए इस विषय में पूरी रूपरेखा तैयार की गई है।
पाठ्यचर्या का अर्थ एवं ढाँचा (Meaning and Structure of Curriculum)
विद्यालय में बालकों के सम्पूर्ण अनुभवों अधिगम, पाठ्यक्रम आदि के योग को ही पाठ्यचर्या कहते हैं। पाठ्यचर्या बालक के पूर्ण व्यक्त्तित्त्व के विकास को अपना लक्ष्य मानती है एवं यह समझती है कि शिक्षा के साथ-साथ उचित अभिवृत्तियों एवं जीवन शैलियों का विकास किए बगैर विषय वस्तु भी नहीं सीखी जा सकती। पाठ्यचर्या ढाँचा एक मोटी रूपरेखा है जिसमें शिक्षा के किसी विशेष चरण पर शिक्षा के लक्ष्य, विषयवस्तु एवं उसका विस्तार, सीखने-सिखाने की विधियों व रणनीतियों के लिए संकेत आदि शामिल हैं। इस प्रकार इसमें पाठ्यचर्या के प्रमुख तत्त्वों एवं उन्हें प्राप्त करने के सम्भव कदमों के विषय में विद्यालयों व समुदायों सहित सम्बन्धित संस्थाओं के लिए पर्याप्त विस्तार का प्रावधान है।
पाठ्यचर्या का ढाँचा कैसे सहायता करता है? (How Structure of Curriculum Help?)
पाठ्यचर्या का ढाँचा निम्न प्रकार से सहायता करता है-
1) बालकों को केन्द्र बिन्दु मानकर अधिगम क्षेत्रों को परिभाषित करना न कि विषयों को।
2) प्रत्येक अधिगम क्षेत्र का विस्तार तय करना व प्रत्येक क्षेत्र के लिए समय का आवंटन करना।
3) शैक्षणिक पैकेज व सहायक सामग्री का विकास करना।
4) भौतिक व मानवीय विद्यालयी साधनों की पहचान व प्रबन्धन करना।
5) न्यूनतम अधिगम स्तर की धारणा को परिभाषित करना एवं पाठ्यचर्या में उसकी उचित जगह के विषय में समझ बनाना।
6) प्रत्येक बालक की पृथक-पृथक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए अधिगम अनुभवों की योजना बनाना।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा की आवश्यकता (Need of N.C.F., 2005)
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा की आवश्यकता निम्न कारणों से हुई-
1) 21वीं सदी की माँग- वर्तमान में शिक्षा की निवेश के रूप में गिनती की जाती है। शिक्षा ही आज कमजोर समूहों के सशक्तीकरण में सहायक है। आज शिक्षा वैश्विक सभ्यता की नींव के रूप में उभर कर आ रही है। इस परिवर्तित समय में शिक्षा की भूमिका बहुत बढ़ गई है। ऐसे में एक उचित ढंग से व्यवस्थित पाठ्यचर्या की नितान्त आवश्यकता थी।
2) भारतीय समाज में विविधता- हमारे भारतवर्ष में विभिन्न प्रकार के क्षेत्र, भाषाएँ, धर्म, आर्थिक स्थितियाँ एवं सामाजिक स्तर देखने को मिलते हैं जो हमारे समाज की समता के ऊपर प्रश्न उठाती है। ऐसे में शिक्षा के द्वारा ही इन सभी प्रश्नों को हल किया जा सकता है इसीलिए शिक्षा में उचित पाठ्यचर्या की आवश्यकता है।
3) परिवर्तन के लिए आवश्यक- पाठ्यचर्या में परिवर्तन आवश्यक है। विभिन्न समूहों ने भी विचार-विमर्श के दौरान शिक्षा की सापेक्षता के विषय में ध्यान केन्द्रित किया है। बालकों के माता-पिता, समाज, शिक्षकों तथा स्वयं बालकों को यह एहसास होने लगा कि शिक्षा की व्यवस्था सापेक्षित नहीं है। अतः इसमें परिवर्तन की आवश्यकता है।
4) संवैधानिक बाध्यता- भारत में समता एवं समानता पर आधारित लोकतन्त्रीय व्यवस्था है। यह राजनैतिक दृष्टिकोण से सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक व्यवस्था पर अधिक कार्यभार डाल देता है एवं आज के समय में जब शिक्षा रीढ़ की हड्डी की भूमिका निभा रही है तो शिक्षा में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढाँचा एक आवश्यक कदम है।
5) NCERT का आवधिक व्यायाम- राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के सुझावों के अनुसार NCERT द्वारा पाठ्यचर्या को नियमित रूप से दोहराते रहना चाहिए क्योंकि शिक्षा के आयामों एवं शिक्षा के मूल्यों में बहुत तेजी से परिवर्तन हो रहा है। शिक्षा के विभिन्न पहलुओं में उदीयमान होते चलन को अपनाने के लिए पाठ्यचर्या को दोहराते रहना चाहिए।
6) शिक्षा का आधुनिकीकरण- वर्तमान आधुनिकीकण के युग में शिक्षा के आधुनिकीकरण की भी नितान्त आवश्यकता है एवं इसके लिए शिक्षा की पाठ्यचर्या का ढाँचा अनुकूल होना आवश्यक है।
7) उपसंहार- राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 की रूपरेखा इस सम्बन्ध में एक विस्तृत दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है कि हमारे बालकों की शिक्षा के लिए क्या वाँछनीय है? यह उन लोगों को भी सशक्त करती है जो बालकों एवं उनकी स्कूली शिक्षा से जुड़े हैं। यह पाठ्यचर्या ऐसे लोगों को आधार प्रदान करती है जिन पर वे पाठ्यचर्या को तय कर सके। इसके लिए बालकों के सीखने से जुड़े मुद्दों की समझ ज्ञान की प्रकृति एवं संस्था के रूप में स्कूल की समझ विकसित करनी होगी।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा के उद्देश्य (Objectives of National Curriculum Framework, 2005)
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा के उद्देश्य इस प्रकार हैं-
1) विभिन्न प्रकार के विषयों (अनुशासनों) में सम्बन्ध स्थापित करना।
2) शिक्षा तथा ज्ञान को विद्यालय से बाह्य जीवन से जोड़ना एवं बालकों को सामान्य ज्ञान जिसे वह सामान्य क्षेत्रों में प्रयोग कर सके।
3) बालकों के लिए सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक विकास करना।
4) विविध उपागमों को शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया के विविध पहलुओं में बढ़ाकर यह बताना कि यह प्रक्रिया सृजनात्मकता की गुणवत्ता को बढ़ाती है।
5) परीक्षा को अधिक लचीला तथा एकीकृत बनाना।
6) बालक अपने स्व ज्ञान के निर्माण में समर्थ हो इसके लिए सामाजिक, आर्थिक एवं जातीय पृष्ठभूमि को मजबूत बनाना।
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