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राष्ट्रीय शिक्षा योजना की अवधारणा एवं इसकी कार्यप्रणाली

राष्ट्रीय शिक्षा योजना की अवधारणा एवं इसकी कार्यप्रणाली
राष्ट्रीय शिक्षा योजना की अवधारणा एवं इसकी कार्यप्रणाली

राष्ट्रीय शिक्षा योजना की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। इसकी कार्य प्रणाली एवं संस्तुतियों की व्याख्या कीजिए।

राष्ट्रीय शिक्षा योजना, 1986

भारत सरकार ने 1986 ई. में राष्ट्रीय शिक्षा योजना की घोषणा की। इस योजना की घोषणा करने के पूर्व शिक्षा की राष्ट्रीय स्थिति का विस्तृत अध्ययन किया गया और उस पर राष्ट्रीय चर्चा की गयी। समस्त स्रोतों से प्राप्त सूचनाओं के विश्लेषण के आधार पर मनन चिन्तन के पश्चात् राष्ट्रीय शिक्षा योजना का जन्म हुआ। 24 पृष्ठों की शिक्षा योजना में निम्न बिन्दुओं पर संस्तुतियाँ की गयी

  1. शिक्षा का स्तर एवं उसकी भूमिका,
  2. राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था,
  3. समानता के लिए शिक्षा,
  4. विभिन्न स्तरों पर शिक्षा का पुनर्गठन,
  5. तकनीकी एवं प्रबन्ध शिक्षा,
  6. शिक्षा व्यवस्था को कारगर बनाना,
  7. शिक्षा का व्यावसायीकरण करना,
  8. निरक्षरता को दूर करना,
  9. शिक्षा की विषय-वस्तु तथा प्रक्रिया को नई दिशा प्रदान करना,
  10. शिक्षक,
  11. शिक्षा का प्रबन्ध,
  12. संसाधन और समीक्षा,
  13. भविष्य ।

आधुनिक शैक्षिक विचारधारा के विकास में राष्ट्रीय शिक्षा योजना की कार्यप्रणाली

आधुनिक शैक्षिक विचारधारा में राष्ट्रीय शिक्षा योजना का निम्नलिखित योगदान है-

(1) शिक्षा का राष्ट्रीय स्वरूप- राष्ट्रीय शिक्षा योजना के अन्तर्गत सम्पूर्ण राष्ट्र में समान शैक्षिक संरचना लागू करने का प्रस्ताव रखा गया। यह राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था सम्पूर्ण देश के हेतु समान राष्ट्रीय शिक्षा कार्यक्रम के ढ़ाँचे पर आधारित होगी, जिसमें सामान्य केन्द्रक (Common core) होगा और अन्य भागों में लचीलापन रहेगा। सामान्य केन्द्रक के अन्तर्गत भारतीय स्वतन्त्रता का इतिहास, सवैधानिक दायित्व और राष्ट्रीय गौरव से सम्बन्धित अनिवार्य तत्त्वों को सम्मिलित किया जायेगा, जो इस प्रकार हैं- हमारी सामान्य सांस्कृतिक धरोहर, लोकतन्त्र, धर्म निरपेक्षता, स्त्री-पुरुष में समानता, पर्यावरण शिक्षा, सामाजिक समता और सीमित परिवार का महत्त्व आदि। शिक्षा का राष्ट्रीय स्वरूप इस प्रकार का होना चाहिए कि सभी नागरिक एकता के सूत्र में बंध सकें।

(2) समानता के हेतु शिक्षा- राष्ट्रीय शिक्षा योजना में समानता के अवसरों के संवैधानिक लक्ष्यों की प्राप्ति का उद्देश्य रखा गया, इसके अन्तर्गत स्त्री शिक्षा, अनुसूचित जातियों की शिक्षा, शैक्षिक रूप से वंचित समुदायों की शिक्षा और अल्पसंख्यक एवं विकलांगों की शिक्षा का विस्तृत विवेचन और निर्देशन किया गया।

लैंगिक समानता के सन्दर्भ में शिक्षा योजना में कहा गया- “ बालक एवं बालिकाओं में किसी प्रकार का भेद-भाव न किए जाने की नीति पर पूरा जोर देकर अमल किया जायेगा ताकि तकनीकी एवं व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में पारम्परिक रूप से चले आ रहे लिंगमूलक विभाजन को समाप्त किया जा सके और गैर-पारस्परिक आधुनिक व्यवसायों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ सके।”

इसी तरह अनुसूचित जातियों में शिक्षा के प्रसार के हेतु सम्भव प्रयासों का उल्लेख करते हुए शिक्षा नीति में कहा गया“ अनुसूचित जनजातियों के लिए उनके जीवन के तौर-तरीकों, और उनकी खास आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए ऐसी प्रोत्साहित योजनाएँ तैयार की जायेंगा जिनसे शिक्षा प्राप्ति में आने वाली कठिनाइयाँ दूर । उच्च शिक्षा में दी जाने वाली छात्रवृत्तियों में तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा को अधिक महत्व प्रदान किया जायेगा।”

शैक्षिक रूप से पिछड़े व्यक्तियों और छात्रों की समस्या के सन्दर्भ में नई शिक्षा योजना में कहा गया- “शिक्षा की दृष्टि से पिछड़े हुए सभी वर्गों विशेषकर ग्रामीण में समुचित प्रोत्साहन दिया जायेगा। पर्वतीय और रेगिस्तानी जिलों में, दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में और टापुओं पर पर्यात संख्या में शिक्षा संस्थायें खोली जायेंगी।”

(3) नवोदय विद्यालय- राष्ट्रीय शिक्षा योजना में आर्थिक रूप से दुर्बल और ग्रामीण क्षेत्र के बालक-बालिकाओं को 5वीं कक्षा से ऊपर पढ़ने के उद्देश्य से गति निर्धारक विद्यालयों की स्थापना पर बल दिया गया। इन विद्यालयों को नवोदय विद्यालय की संज्ञा दी गयी।

(4) शिक्षा का व्यवसायीकरण राष्ट्रीय शिक्षा योजना के अन्तर्गत माध्यमिक – शिक्षा के व्यवसायीकरण पर बल दिया गया। इससे बालकों को जीविकोपार्जन हेतु तैयार करने के अतिरिक्त उन पर शिक्षा में पड़ने वाले अतिरिक्त दबाव कम किया जा सकता है। इस सन्दर्भ में राष्ट्रीय शिक्षा योजना में कहा गया- “व्यवसायिक शिक्षा स्वयं में शिक्षा की एक विशिष्ट धारा होगी, जिसका उद्देश्य कई क्षेत्रों के चुने गये कामधन्धों के लिए विद्यार्थियों को तैयार करना होगा। यह कोर्स सामान्यतया माध्यमिक शिक्षा के बाद प्रारम्भ किया जायेगा लेकिन इस योजना को लचीला रखा जायेगा ताकि कक्षा आठ के बाद भी विद्यार्थी ऐसे व्यवसायों का प्रसिक्षण ले सकें। औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान भी व्यवसायिक शिक्षा के ढाचे के अनुसार चलेंगे ताकि उनमें प्राप्त सुविधाओं का पूरा लाभ उठाया जा सकें।”

(5) उच्च शिक्षा में सुधार – उच्च स्तर पर शिक्षा में सुधार में सम्बन्ध के राष्ट्रीय शिक्षा योजना के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया- “उच्च शिक्षा से लोगों को इस बात का अवसर प्राप्त होता है कि वे मानव जाति की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, नैतिक, और आध्यात्मिक क्षेत्र में उत्पन्न समस्याओं पर विचार कर सकें। विशिष्ट ज्ञान एवं कुशलताओं के प्रसारण द्वारा उच्च शिक्षा राष्ट्र के विकास में सहायक बनती है।”

(6) खुला विश्वविद्यालय एवं दूरस्थ शिक्षा की व्यवस्था – उच्च शिक्षा को जनतान्त्रिक समाज के अनुरूप बनाने के हेतु खुले विश्वविद्यालयों की स्थापना पर बल दिया गया। इस उद्देश्य के हेतु 1986 ई. में इन्दिरा गाँधी खुला विश्वविद्यालय स्थापित किया गया। इसके साथ देश के प्रसिद्ध और समृद्ध विश्वविद्यालयों को दूरस्थ शिक्षा केन्द्र बनाने की पहल की गयी, फलस्वरूप अनेक ऐकेडेमिक और व्यावसायिक विषयों का प्रशिक्षण प्रदान किया जाने लगा।

(7) नौकारियों में डिग्री की अनिवार्यता को समाप्त किए जाने पर बल – माध्यमिक और उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों को अधिकाधिक व्यवसायोन्मुखी बनाने के हेतु नौकरियों में डिग्री की अनिवार्यता को समाप्त करने का सुझाव दिया गया। इस सन्दर्भ में राष्ट्रीय शिक्षा योजना में कहा गया- “डिग्री को नौकरियों से अलग करने की योजना उन सेवाओं में शुरू की जायेगी जिनमें विश्वविद्यालाय की डिग्री आवश्यक नहीं है। इस योजना को लागू करने से विशेष कार्यों एवं अपेक्षित कुशलताओं पर आधारित नवीन पाठ्यक्रम लगेंगे और इससे उन प्रत्याशियों के साथ अधिक न्याय हो सकेगा जिनके पास किसी विशेष काम को करने की क्षमता तो हैं लेकिन उन्हें वह काम इसलिए नहीं मिल सकता क्योंकि उसके लिए स्नातक प्रत्याशियों को स्थान दिया जाता है।”

(8) ग्रामीण विश्वविद्यालयों की स्थापना – ग्रामीण क्षेत्र की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा योजना में ग्रामीण विश्वविद्यालय की स्थापना का सुझाव दिया गया। इस सम्बन्ध में कहा गया- “ग्रामीण विश्वविद्यालयों के ढाँचे को सुदृढ़ किया जायेगा और इसे महात्मा गाँधी के शिक्षा सन्बन्धी क्रान्तिकारी विचारों के अनुरूप विकसित किया जायेगा। इसका उद्देश्य होगा कि ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए कार्यक्रमों का आयोजन ग्राम स्तर पर चलाने की दृष्टि से योग्य शिक्षा दी जाय। महात्मा गाँधी की बुनियदी शिक्षा से सम्बद्ध संस्थाओं एवं कार्यक्रमों को सहायता दी जायेगी।

(9) कम्प्यूटर शिक्षा – राष्ट्रीय शिक्षा योजना में तकनीकी शिक्षा प्रभावी रूप से क्रियान्वित करने के हेतु कम्प्यूटर शिक्षा को विशेष महत्व प्रदान किया गया। इसमें कहा गया कि प्रत्येक बालक को कम्प्यूटर साक्षरता का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। इस सन्दर्भ में शिक्षा योजना में उल्लेख है- “चूँकि कम्प्यूटर (संगणक) महत्वपूर्ण एवं सर्वव्यापक साधन बन गया है अतः कम्प्यूटर के विषय में थोड़ी-बहुत जानकारी और उनके प्रयोग में प्रशिक्षण व्यावसायिक शिक्षा अंग बन जायेगा। कम्प्यूटर लिटरेसी के कार्यक्रम स्कूल स्तर से ही बड़े पैमाने पर आयोजित किए जायेंगे।”

(10) शिक्षा व्यवस्था को प्रभावी बनाना- शिक्षा व्यवस्था को पुनर्गठित करके उसे प्रभावी बनाने के हेतु राष्ट्रीय शिक्षा योजना में शिक्षकों और शिक्षा संस्थाओं को उत्तरदायी बना दिया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा योजना में शिक्षा को प्रभावी बनाने के उद्देश्य से निम्न सुझाव दिये गये-

  1. शिक्षा को अधिक सुविधायें देना और अधिक उत्तरदायी बनाना।
  2. छात्रों के हेतु सेवा में सुधार और उनके नैतिक आचरण पर बल।
  3. शिक्षा संस्थाओं को अधिक सुविधाएँ प्रदान करना।
  4. राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर निर्धारित किए गए मानदण्डों के आधार पर शिक्षा संस्थाओं के कार्य के मूल्यांकन की पद्धति।

(11) सांस्कृतिक शिक्षा पर बल -सांस्कृतिक शिक्षा के विकास पर बल देते हुए राष्ट्रीय शिक्षा योजना में शिक्षा में व्याप्त दोषों को दूर करते हुए लिखा गया- “ इस समय शिक्षा की औपचारिक पद्धति और देश की समृद्धि और विविध सांस्कृतिक परमपराओं के बीच एक खाई है, जिसे पाटना आवश्यक है। आधुनिक टेक्नोलॉजी की धुन में यह नहीं होना चाहिए कि नई पीढ़ी भारतीय इतिहास एवं सांस्कृति की मौलिकता से दूर हो जाय। संस्कृतिविहीनता, अमानवीयता और अजनबीपनता के भाव से हर स्थिति में बचना होगा। परिवर्तनशील टेक्नोलॉजी और निरन्तर चली आ रही देश की सांस्कृतिक परम्परा में एक समुन्दर समन्वय की आवश्यकता है और शिक्षा इसे भली-भाँति कर सकती है।”

इस दोष के निवारण के हेतु शिक्षा की पाठ्यचर्या और प्रक्रियाओं को संस्कृतिक विषयवस्तु से सम्बद्ध करना, बालकों में स्थनीय और सामंजस्यता के गुणों को विकसित करना, कला और संस्कृति, पुरातन और प्राचीन अध्ययन के मध्य समन्वय पर बल दिया गया। सांस्कृतिक मूल्यों के विकास के सम्बन्ध में राष्ट्रीय शिक्षा योजना में कहा गया- “हमारा समाज सांस्कृतिक रूप से बहुआयामी है। इसलिए शिक्षा के द्वारा उन सार्वजनिक और शाश्वत मूल्यों का विकास होना चाहिए जो हम लोगों को एकता की ओर ले जा सके।” इन मूल्यों द्वारा धार्मिक अन्धविश्वास, कट्टरता, असहिष्णुता, हिंसा और वाद-विवाद का अन्त करने में सहायता मिलनी चाहिए।

(12) शैक्षिक प्रौद्योगिकी पर बल – शिक्षक प्रशिक्षण में शैक्षिक प्रौद्योगिकी को प्रारम्भ कने की आवश्यकता पर बल देते हुए राष्ट्रीय शिक्षा योजना में कहा गया- “ शैक्षिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग उपयोगी जानकारी के लिए अध्यापकों के प्रशिक्षण और पुनः प्रशिक्षण के लिए शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने लिए और कला और संस्कृति के प्रति जागरूकता एवं स्थायी मूल्यों के संस्कार उत्पन्न करने के लिए किया जायेगा।”

(13) परीक्षा प्रणाली में सुधार- राष्ट्रीय शिक्षा योजना में परीक्षा प्रणाली में सुधार के हेतु निम्नलिखित कदम उठाने के लिए कहा गया-“

  1. रटने को प्रोत्साहन न देना।
  2. ऐसी मूल्यांकन प्रक्रिया का विकास करना जिसमें शिक्षा के शास्त्रीय और अन्य पहलू समाहित हो जायँ और पूरी शिक्षण अवधि तक चले।
  3. शिक्षकों, अध्यापकों और अभिभावकों के द्वारा मूल्यांकन प्रक्रिया का प्रभावी उपयोग।
  4. परीक्षा के आयोजन में सुधार।
  5. परीक्षा के साथ शिक्षण सामग्री और शिक्षण विधियों में सुधार।
  6. अंकों के स्थान पर ” ग्रेड” का प्रयोग ।

(14) शिक्षक गुणवत्ता में सुधार- में विद्वानों की यह मान्यता है कि कोई भी राष्ट्र अपने शिक्षकों के सहयोग के बिना प्रगति नहीं कर सकता, अतएव शिक्षकों का समाज के निर्माण में पर्याप्त रुचि लेना आवश्यक है। शिक्षकों की गुणवत्ता में सुधार लाने की दृष्टि से राष्ट्रीय शिक्षा योजना में कहा गया“ अध्यापकों की भर्ती करने की प्रणाली में इस प्रकार परिवर्तन किया जायेगा कि उनका चयन उनकी योग्यता के आधार पर तथा बिना किसी भेद-भाव के हो सके। अध्यापकों के वेतन और सेवा की शर्ते उनके सामाजिक और व्यावसायिक दायित्वों के अनुरूप हों, ताकि प्रतिभाशाली व्यक्ति शिक्षा व्यवसाय की ओर आकर्षित हों।”

(15) ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड- नई शिक्षा योजना के प्राथमिक शिक्षा के तीव्र विकास के लिए “ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड” की आवश्यकता पर विशेष बल दिया गया। ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड के अन्तर्गत प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय में कम-से-कम दो बड़े कमरे, कुछ आवश्यक चार्ट और मानचित्र, श्यामपट्ट, टाट-पट्टी और अन्य उपयोगी सामग्री उपलब्ध करायी जाय। आरम्भ में प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय के हेतु दो अध्यापकों की नियुक्ति की जाय किन्तु बाद में ज्यों-ज्यों कोई नवीन कक्षा जोड़ी जाय, उसी प्रकार प्रत्येक कक्षा के हेतु एक नया शिक्षक नियुक्त किया जाय। इस ऑपरेशन ब्लैड बोर्ड योजना में स्वयंसेवी संस्थाओं और स्थानीय निकायों को सम्मिलित करने का सुझाव दिया गया।

(16) शिक्षा का प्रबन्ध – शिक्षा का आयोजन और प्रबन्ध की व्यवस्था के पुनर्गठन – उद्देश्य से राष्ट्रीय शिक्षा योजना में निम्न सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया-

  1. शिक्षा के आयोजन और प्रबन्ध हेतु दीर्घकालीन वातावरण तैयार करने और उसे देश के विकासात्मक एवं वित्त की आवश्यकताओं से जोड़ना ।
  2. शिक्षा संस्थाओं में स्वायत्तता की भावना उत्पन्न करना।
  3. जनता की भागीदारी को प्रधानता देना जिसमें निजी क्षेत्र का प्रबन्ध और स्वैच्छिक प्रयास सम्मिलित हो।
  4. शिक्षा के आयोजन और प्रबन्ध में महिलाओं को अधिक से अधिक संख्या में सम्मिलित करना।
  5. शिक्षा के उद्देश्यों और मूल्यांकन के सम्बन्ध में उत्तरदायित्व के सिद्धान्त की स्थापना।
  6. शिक्षा के प्रबन्ध और व्यवस्था में विकेन्द्रीकरण के सिद्धान्त का पालन करना।

उपर्युक्त शिक्षा योजना के प्रभावी कार्यान्वयन के पश्चात् भविष्य में शिक्षा सम्बन्धी आकांक्षा व्यक्त करते हुए राष्ट्रीय शिक्षा योजना में कहा गया- “ सबसे बड़ा कार्य है- शैक्षिक पिरामिड की बुनियाद को सुदृढ़ करना, उस बुनियाद को जिसमें इस शताब्दी के अन्त तक लगभग 100 करोड़ लोग होंगे। यह सुनिश्चित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि जो इस पिरामिड के शिखर पर हों, वे विश्व में सर्वोत्तम स्तर के हों। अतीत में इन दोनों छोरों को हमारी संस्कृति के मूल स्रोतों ने भली-भाँति सुरक्षित रखा। लेकिन विदेशी आधिपत्य और प्रभाव के कारण इस प्रक्रिया में दोष उत्पन्न हो गया। अब मानव संसाधन विकास का एक राष्ट्रव्यापी प्रयास पुनः प्रारम्भ होना चाहिए, जिसमें शिक्षा अपनी बहुमुखी भूमिका पूर्ण रूप से निभा सके।”

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Anjali Yadav

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