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लिंग (जेण्डर) एवं शिक्षा के सिद्धान्त | Theory on Gender and Education in Hindi

लिंग (जेण्डर) एवं शिक्षा के सिद्धान्त | Theory on Gender and Education in Hindi
लिंग (जेण्डर) एवं शिक्षा के सिद्धान्त | Theory on Gender and Education in Hindi

लिंग (जेण्डर) एवं शिक्षा के प्रमुख सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए। 

लिंग (जेण्डर) एवं शिक्षा के सिद्धान्त (Theory on Gender and Education)

लिंग एवं शिक्षा से सम्बन्धित मुख्य रूप से चार प्रकार की नारीवादी विचारधारायें देखने को प्राप्त होती हैं। जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपना विशिष्ट योगदान दिया है। ये सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-

  1. समाजीकरण सिद्धान्त (Socialization Theory)
  2. जेण्डर-अन्तर सिद्धान्त (Gender Difference or Caring Theory)
  3. संरचनात्मक सिद्धान्त (Structural Theory)
  4. विखण्डन सिद्धान्त (Deconstructive Theory)

ऐसा माना जाता है कि नारीवाद की उदारवादी विचारधारायें, व्यवस्था या तन्त्र के अन्दर कार्य करके समस्याओं को सुलझाने का दृष्टिकोण रखती है, जबकि वामपंथी नारीवाद सामाजिक तंत्र को ही असमान मानता है। उदारवादी नारीवाद मानता है कि असमानता का कारण पूर्वाग्रह तथा अज्ञानता (Ignorance) है; अतः इस असमानता को प्रभावी शैक्षिक कार्यक्रमों तथा सुधारात्मक एवं सकारात्मक प्रयासों से दूर किया जा सकता साथ ही वे प्रचलित व्यवस्थाओं पर प्रश्न भी उठाते हैं, परन्तु उसमें से कुछ सिद्धान्तों को अच्छा व उपयोगी मानकर उसे स्वीकृति भी देते हैं। सामाजिकता तथा जेण्डर-अन्तर सिद्धान्त नारीवाद के लिबरल दृष्टिकोण से समीपता रखते हैं वहीं संरचनावाद तथा विखण्डनवाद पर वामपंथियों का प्रभाव दिखता है।

समाजीकरण सिद्धान्त 1970 से लेकर 1980 के प्रारम्भ तक काफी व्यापक था। उसके पश्चात् जेण्डर-अन्तर सिद्धान्त ने केन्द्रीय रूप ले लिया। दोनों संरचनावादी तथा डिकन्सट्रक्सिव विश्लेषणों ने 1980 के दशक के मध्य से 1990 के दशक तक नारीवादी शिक्षण सिद्धान्तों पर अपना प्रभाव बनाये रखा।

(1) समाजीकरण सिद्धान्त (Socialization Theory)

समाजीकरण के सिद्धान्त के अन्तर्गत शुरुआती द्वितीय लहर के नारीवादी इस सेक्सिस्ट • नजरियों को खारिज करते हैं कि लड़कियाँ “पुरुषवादी” (Masculing) विषयों; जैसे- गणित व विज्ञान में खराब प्रदर्शन करती हैं; अतः वे उच्च बौद्धिक स्तर तक नहीं पहुँच पातीं। समाजीकरण सिद्धान्तकार मानते हैं कि लड़कियाँ भी लड़कों के समान शैक्षिक स्तर प्राप्त कर सकती हैं। यदि अध्यापक तथा अभिभावक उन्हें इस बात को मानने के लिए समाजीकरण न करें कि वे कठिन विषयों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पायेंगी। अध्यापक व अभिभावकों को लड़कियों से भेदभावपूर्ण रवैया नहीं रखना चाहिए तथा उनके मन में कठिन विषयों का हौवा भी नहीं बनाकर रखना चाहिए। लड़कियों की सफलता की राह की बाधाएँ हटाने के लिए आवश्यक है कि उन्हें जेण्डर निरपेक्ष शिक्षा प्रदान की जाये तथा इस प्रकार से ही विद्यमान पक्षपातरहित शिक्षा दे पायेंगे। साथ की कुशल कर्मचारियों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी हो जिससे अन्ततः समाज ही लाभान्वित होगा।

समाजीकरण को बढ़ाने के लिए कुछ क्षतिपूर्ति कार्यक्रम किये जाते हैं जिनमें महिला, रोल मॉडल को कक्षा में आमन्त्रित करना या लड़कियों के लिए विज्ञान एवं गणित की कार्यशालाओं में आयोजित करना आदि हैं। समाजीकरण सिद्धान्तकार इन सबके अतिरिक्त लड़कियों के लिए शैक्षिक उपचारों (Pedagogical interventions) पर भी ध्यान देते हैं तथा कहते हैं कि यदि लड़कियों को आगे बढ़ाना है तो अध्यापकों, अभिभावकों तथा प्रशासकों को लड़कियों के साथ लड़कों के समान व्यवहार करना चाहिए। इस बात को क्रियान्वित करने में काफी परेशानी आती है, क्योंकि अध्यापकों को न केवल लड़के-लड़कियों के समान व्यवहार करना होता है बल्कि उन्हें अपने समाजीकृत रुझानों पर भी विजय प्राप्त करनी होती है जो उनके लड़कों एवं लड़कियों के प्रति व्यवहार को आकार प्रदान करते हैं। नारीवादी अध्यापक (Feminist teacher) अपनी कक्षाओं में लड़कियों पर अधिक ध्यान दे सकने के कारण पक्षपातपूर्ण तथा व्यक्तिनिष्ठ भी नजर आ सकते हैं परन्तु ऐसा करने में उन्हें अभिभावकों तथा अन्य अध्यापकों का भरपूर सहयोग चाहिए होता है।

(2) लिंग (जेण्डर) अन्तर सिद्धान्त (Gender Difference Theory)

समाजीकरण सिद्धान्तकार (Socialization theorist) लड़कियों के लड़कों से अन्तर या अलग होने को समस्या मानते हैं तथा समझते हैं कि इसे खत्म किया जाना आवश्यक है। वहीं जेण्डर अन्तर सिद्धान्तकार (Gender-difference theorists) विश्वास करते हैं कि स्त्रीत्व के गुणों (Female/Feminietraits) को पहचाना जाना चाहिए तथा महत्त्व प्रदान किया जाना चाहिए। लड़कियों को लड़को की तरह से समाजीकरण करने के बजाय लड़कियों से सम्बन्धित गुणों को पुनर्प्रतिष्ठित (Revalorize) करने पर अन्तर सिद्धान्तकार जोर देते हैं। वे देखते हैं कि लड़कियों की शिक्षा से सम्बन्धित समस्यायें अधिकार स्कूल की संस्कृति तथा स्त्रीत्व की संस्कृति के मध्य असामंजस्य होने से होती हैं। इन सम्बन्धित मूल्यों को सार्वजनिक क्षेत्र (Pubic Sphere) से जुड़ी प्रवृत्तियों, जैसे- तार्किकता, प्रतिस्पर्धा, विजय, उपभोक्तावाद तथा रेडिकल व्यक्तिवाद के द्वारा ठेस पहुँचाई जाती है, क्योंकि ये सिद्धान्तकार मानते हैं कि लड़कियों से सम्बन्धित ज्ञान (Relational-knowledge) उनकी स्वास्थ्य तथा मानसिक कुशलता (Well being) के लिए बहुत जरूरी है तथा उनके अनुसार ‘स्कूल’ ऐसा स्थान होना चाहिए जहाँ लड़कियाँ अपने तरीके से दुनिया को जान सकें। उनका तर्क है लड़कियों को ‘जेण्डर निरपेक्ष’ (Gender-neutral) नहीं बल्कि जेण्डर-संवेदी (Gender sensitive) शिक्षा की आवश्यकता है। हालांकि जेण्डर-अन्तर सिद्धान्तकारों में जेण्डर-संवेदी शिक्षा क्या है व कैसी दी जाये ? इस पर मतैक्य नहीं है।

इस विचार के अन्तर्गत नेल नाडिंग्स (Nel Naddings) तथा जेन रोलाण्ड मार्टिन (Jane Roland Martin) का मानना है कि लड़के एवं लड़कियों की स्कूलिंग में हमें अधिक संवेदनाओं, अभिवृत्तियों तथा सम्बन्धों को महत्त्व देना चाहिए जिससे एक देखभाल की प्रवृत्ति (Caring Orientation) को बढ़ावा मिलता है तथा वे इस प्रवृत्ति (Caring) को केवल लड़कियों तक सीमित न रखकर पूरे समाज की आवश्यकता के रूप में देखते हैं। वे कहते हैं कि यदि दोनों लिंग के बच्चों को स्वयं को सम्बन्धपरक (Relational) दृष्टिकोण से बड़ा किया जाये तो ऐसे में पारम्परिक पाठ्यक्रम जिसमें वस्तुपरकता तथा सूक्ष्म ज्ञान (Objectivity abstractness) पर बल दिया जाता है का स्थान एक कहने को स्त्रीत्व (Feminine) आधारित पाठ्यक्रम ले लेगा जो समाज के भले के लिए ही होगा। इस प्रकार स्कूलों को एक ‘तर्क-आधारित, अनुशासित पाठ्यक्रम’ के स्थान पर “देखभाल के केन्द्र” (Centres-of Caring) के रूप में संगठित होना चाहिए जो ‘शरीर, मन तथा आत्मा’ (Body, Mind & Spint) को एकीकरण कर पाये। कई प्रकार से अन्तर, सिद्धान्तकारों के मतों में अन्तर देखने को मिलता है परन्तु इस बात पर सभी एकमत हैं कि लड़कियों की स्कूलिंग की सफलता लड़कों के अनुकरण (Modeling) से ही सम्भव हो सकती है। पुरुषत्व के गुणों (Masculine Values) को सार्वभौमिक मूल्यों (Universal Values) के रूप में अपनाने के बजाय स्कूलों को महिलाओं के सम्बन्धपरक (Relational values) मूल्यों को अपनाना चाहिए तथा इन्हें भी उतना ही महत्त्व देना चाहिए जितना कि पुरुषों से जुड़े तार्किक मूल्यों का ( Rationalistic values ) ।

(3) संरचनावादी सिद्धान्त (Structural Theory )

लैगिकता से सम्बन्धित शिक्षा की समस्याओं को सुलझाने के दृष्टिकोण से इन चारों सिद्धानतों की प्रभावपूर्ण उपस्थिति देखने को मिलती है तथा जहाँ एक तरफ समाजीकरण सिद्धान्त तथा अन्तर सिद्धान्त उदारवादी पंथ के माने जाते हैं वहीं संरचनावाद तथा विखण्डनवाद सिद्धान्त उत्तर आधुनिक रुझान की तरफ जाते हुए दिखते हैं। इसमें भी जब हम शिक्षा के संरचनावादी दृष्टिकोण की बात करते हैं तो पाते हैं कि संरचनावादी मुख्यतः स्थायी सत्ताओं की व्यवस्था को अधिक मूल्य प्रदान करते हैं, जबकि विखण्डनवादी दृष्टिकोण लगातार परिवर्तनशील सांस्कृतिक व्यवस्थाओं पर ध्यान केन्द्रित करता है। दोनों ही सिद्धान्त संरचनावादी तथा विखण्डनवादी किसी भी अन्य सिद्धान्त, उदारवादी नारीवादी सिद्धान्तों के शैक्षिक निहितार्थी पर आधारित हैं जो स्त्री व पुरुष के प्रति समान व्यवहार (Treatment) करने पर जोर देता है। जेण्डर-अन्तर सिद्धान्त स्त्रियों के स्त्रीत्व तथा सम्बन्धपरक (Relational orientation) रुझानों को स्थापित करने में संस्कृति, शिक्षा तथा नैतिकता के तर्क देता हैं, परन्तु अक्सर ही यह सिद्धान्त एक-दूसरे से सहसम्बन्धित तथा मिले-जुले से प्रतीत होते हैं; जैसे-समाजीकरण सिद्धान्त को जेण्डर-अन्तर सिद्धान्त से मिलाकर देखा जाता है तथा संरचनावादी सिद्धान्त परस्पर घुले-मिले हो सकते है। सभी सिद्धान्त अपने मूल्यों के आधार पर शिक्षा के भिन्न-भिन्न उद्देश्य की संरचना करते हैं तथा इसके आधार पर जेण्डर-असमानताओं को दूर करने की प्रविधियों का सुझाव देते हैं।

इस सम्बन्ध में संरचनावादी विश्लेषण कुछ विशिष्ट लोगों द्वारा सत्ता तथा विशेषाधिकार (Power and Privilege) के एकत्रीकरण (Concolidation) पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। इन सिद्धान्तों के अनुसार, सत्ता या शक्ति को एक समूह दूसरे पर आरोपित करता है। यह विभिन्न नियमों द्वारा हो सकता है, धन बल द्वारा या नेतृत्व (hegemonic) या संस्थानीकरण द्वारा किया जा सकता है। जेण्डर तथा अन्य प्रकार की असमानताओं को एक स्थायी व्यवस्था द्वारा जन्म दिया जाता है तथा इस प्रकार की असमानताओं के विरुद्ध यह एकजुट भी प्रतीत होती हैं। उदाहरण के तौर पर पाश्चात्य देशों में विषमलैंगिक समूहों (Heterosexual Unions) को अन्य समूहों; जैसे-गे एवं लेस्बियन (Gay & Lesbian Unions) समूहों से ज्यादा सुविधायें प्राप्त हैं जिनमें अपने जीवन साथी का बीमा, दत्तक संतान लेने के नियम, विवाह का अधिकार किसी भी प्रकार की असमानता के विरुद्ध कानूनी संरक्षण प्राप्त होता है। अन्य प्रकार की संरचनात्मक असमानता के उदाहरणों में महिलाओं को कम वेतन वाले कार्यों में संलग्नता या कम समान वाले कार्यों में संलग्नता (जैसे-होटल की आया तथा वेटर एवं पिंक कलर जाब्स; जैसे अध्यापिका, सैकेटरी तथा नर्स) का होना है। पुरुषों को वरीयता देने वाली पदोन्नति योजनायें होती हैं तथा चिकित्सा से सम्बन्धित शोधों में भी पुरुष होने’ (Maleness) को ही प्रतिमान (Normative) माना जाता है (हृदय रोग तथा एड्स शोधों में) तथा ऐसे कानून व नियम होते है हैं जिनमें महिला को गर्भधारण के लिए तो उत्तरदायी मानते हैं परन्तु उन्हें गर्भपात (Abortion) का अधिकार नहीं देते।

चूँकि हमें जेण्डर सेक्स, नस्ल तथा वर्ग के विस्थापन (Exclusion) को प्राकृतिक तथा उचित मानने की आदत हो जाती है। इसलिए इस विस्थापन को पहचानना मुश्किल हो जाता है। यह विस्थापन (Exclusionary Character) तभी स्पष्ट हो पाता है जब हमें विभिन्न सिद्धान्त इस जानकारी हेतु प्रेरित करते हैं जिसमें सामान्यीकरण के अनुभवों को सावधानीपूर्वक तथा क्रमिक रूप से प्रश्न किया जाता है। अधिकतर संरचनावादी नजरियों में, पहले ‘दमन’ (Oppression) को समझना पड़ता है तब इसे बदलने की कोशिश की जाती है। इसके मद्देनजर ही संरचनात्मक नारीवादी शैक्षिक उपचार या सुधार, प्राथमिक रूप से एक उदारवादी शिक्षण शास्त्र (Liberationist Pedagogy) तथा एक विपरीत नायकत्व पाठ्यचर्या (Counter hegemonic Curriculum) पर आधारित होते हैं। इन दोनों तरीकों के द्वारा छात्रों को स्वयं की तथा दूसरों की स्थितियों को मापने एवं समझने की शक्ति दी जाती है। कुछ संरचनावादी नारीवादी, अस्तित्वमान सत्ता एवं शक्ति सम्बन्धों को प्राकृतिक तथा योग्यतावादी (Meritocractic) मानते रहने की चुनौती देते हैं, वहीं दूसरी ओर अन्य नये तथा वैकल्पिक संरचनाओं को खोजने पर जोर देते हैं। प्रथम प्रकार के संरचनावादी, किन्हीं सामाजिक समूहों के दमन को खुलकर सामने रखते हैं तथा यह भी स्पष्ट करते हैं कि किस प्रकार दमन ने उन लोगों को फायदा पहुँचाया है जो पहले से सत्ता में हैं। ऐसे भौतिक विषय; जैसे- इतिहास, समाजशस्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र के क्षेत्र में काम करने वाले संरचना नारीवादी इसलिए इन विषयों में जेण्डर समानता को लाने के लिए वस्तुनिष्ठता की बात करते हैं। प्रभुत्वकारी विचारधारा के लोग जो वर्णनात्मकता तथा मेरिट को महत्त्व देते हैं, उनमें अक्सर ही देखा गया है कि यदि अधीनस्थ समूह उनसे कहीं बेहतर प्रदर्शन करने लगता है तो वे अपने मानकों को पुनः परिभाषित (Revise) कर लेते हैं। इसी प्रकार यदि स्त्रियाँ, पुरुषों से किसी परीक्षा में अधिक अंक लायें या अधिक मेडल लायें तो अक्सर ही स्त्रियों की शिक्षा की पहुँच तक सीमित कर दिया जाता है या फिर परीक्षण की वैधता, या शिक्षण पर प्रश्नचिह्न ही लगा दिये जाते हैं।

(4) असंरचनात्मक या विखण्डन सिद्धान्त (Deconstructive Theory)

संरचनावादी एक तरफ जहाँ कुछ सत्ता संरचनाओं की लाभप्रद अवस्था को अधिक या कम स्थायी मानते हैं (जिससे पितृसत्ता, श्वेत वर्णीयता, बुर्जुआ या इसी प्रकार के वर्गों को बताया जा सके) विखण्डन विश्लेषण इन निश्चित वर्गों को संदेह के साथ देखते हैं। इसके आधार पर ‘जेण्डर’ को किसी ‘वास्तविक’ (Real) वस्तु से भ्रमित नहीं किया जा सकता। किसी ‘वास्तविक’ तथ्य की ओर इशारा करने के बजाय ‘जेण्डर’ स्वयं में एक वर्ग है। “लिंग जो कि जैविक रूप से निर्धारित वर्ग है उसका राजनीतिक व्यावहारिक विकल्प” (“A Politically Pragmatic Alternative to the Biologically Determinist Category of Sex”.) के रूप में “जेण्डर” एक सामाजिक निर्मित (Social Construction) को इंगित करता है; अतः इसको परिवर्तित किया जा सकता है। हालांकि हम इसको प्राकृतिक मानकर देखने के आदी हो चुके हैं परन्तु हमें समझना चाहिए कि ‘जेण्डर’ एक सामाजिक निर्मित (Social Construction) है। जो वर्ग इस प्रकार से प्राकृतिक या सामान्यीकृत कर दिये जाते हैं वे बहुत आसानी से बहिष्कृत (exclusion) किये जा सकते हैं। जैसे कि ‘जेण्डर समानता’ लाने के लिए बनी नीतियाँ सरल दिखाई पड़ती हैं, परन्तु यह नीतियाँ ‘जेण्डर को सीधे और स्पष्टता से परिभाषित करने के कारण यह आवश्यक समझने लगती हैं कि समानता लाने के लिए ‘जेण्डर’ को वर्ग में रख दिया जाये तथा इसका नतीजा यह होता है कि इसमें अधिकारों को ‘सुनिश्चित’ (Affirm) करने के बजाय उन्हें ‘नकारा’ (Deny) अधिक जाने लगता है। इसलिए विखण्डन नारीवाद किसी भी वर्ग के सामान्यीकरण या प्राकृतिक बताने के खिलाफ है तथा यह इस तथ्य को सामने रखते हैं कि यह सब समाज द्वारा निर्मित वर्ग है तथा समाज ही इसे बनाये रखने में मदद करता विखण्डन नारीवाद को उत्तर संरचनावाद (Post structuralism), तथा अन्य दूसरे उत्तर आधुनिक सिद्धान्तों (Post Modernist) सांस्कृतिक सिद्धान्तों, श्वेत अध्ययन, नारीवाद मनोविश्लेषण आदि से प्रेरणा प्राप्त होती है। इन सभी सिद्धान्तों की मदद से छात्र में संरचित पाठों को विखण्डित (Deconstruct) कर पाते हैं। पहले से तैयार या रेडीमेड अर्थों को स्वीकार करने के बजाय, छात्र पहले से स्थापित नजारियों पर पुनः कार्य करके नये वैकल्पिक तथा उत्तेजक (Provocative) विविध अर्थ सुझा सकते हैं।

संरचनावादी सिद्धान्तों की तरह ही विखण्डन के शैक्षिक सुधार (Deconstructive educational Interventions) काफी मात्रा में वैकल्पिक पाठों तथा नयी व्याख्याओं पर निर्भर रहते हैं, परन्तु फिर भी विखण्डनवादी (Deconstructive Classroom Practices) कक्षा, अभ्यास, संरचनावादी तथा समाजीकरण सिद्धान्तों से अन्तर रखती हैं।

जेण्डर-अन्तर सिद्धान्त के आभासी-तत्त्ववाद (Quaiessentialist) जो देखभाल ( Caring) तथा नारीत्व को महत्त्व देते हैं को विखण्डन सिद्धान्त शिक्षा को एक सम्बन्धपरक नजरिये (Relational enterprise) की तरह परिभाषित करते हैं जहाँ नारीत्व पूर्ण कर्त्तव्यों, देखभाल तथा महिलाओं की सहजज्ञान क्षमता को केन्द्रीय महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया जाता है; जबकि विखण्डन सिद्धान्त, जेण्डर से सम्बन्धित सभी धारणाओं को पुनर्संरचित या विखण्डित (Deconstruct) करने की जरूरत पर बल देते हैं। साथ ही वर्गीय धारणाओं को भी ध्वस्त करते हैं जो कि जेण्डर अन्तर सिद्धान्त सहजज्ञान तथा देखभाल (Intuitive Knowledge and Caring) को नारीत्व के गुण बताकर महिमामण्डित करता है।

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Anjali Yadav

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