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वर्धा शिक्षा योजना से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं समय सारिणी

वर्धा शिक्षा योजना से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं समय सारिणी
वर्धा शिक्षा योजना से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं समय सारिणी

वर्धा शिक्षा योजना से आप क्या समझते हैं ? इसके उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं समय सारिणी पर प्रकाश डालिए।

वर्धा शिक्षा योजना से आप क्या समझते हैं?

सन् 1935 में भारत सरकार अधिनियम (Government of India Act, 1935) के आधार पर सन् 1937 से भारत में द्वैध शासन को समाप्त करके प्रान्तों में उत्तरदायी शासन को स्थापित किया गया। देश के 11 प्रान्तों से 6 में कांग्रेस के मंत्रिमंडल थे। प्रान्तों में अब संरक्षित और हस्तान्तरित विषयों का भेद मिटाकर समस्त प्रान्तीय विषय लोकप्रिय भारत मंत्रियों को सौंप दिए गए। अतः शिक्षा का पूर्ण उत्तरदायित्व इन्हीं मंत्रियों के हाथ में आ गया।

कांग्रेस मंत्रिमंडल इस समय दुविधा में थे क्योंकि एक तरफ उनको देश के पथ-प्रदर्शक गांधी जी की शिक्षा नीति को कार्यान्वित करना था तथा दूसरी तरफ कम-से-कम समय में सर्वव्यापी निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का विस्तार करना था। कारण कि वह जनता की उस उचित माँग को पूर्ण करने के लिए वचनबद्ध थे। साथ ही उन्हें शिक्षा विस्तार के लिए पर्याप्त धनराशि की भी आवश्यकता थी। इसलिए ऐसी दशा में गांधी जी ने अपनी बेसिक शिक्षा योजना प्रस्तुत करके उनका पथ-प्रदर्शन किया। टी० एस० अविनाशलिंगम का कहना है कि, “बेसिक शिक्षा हमारे राष्ट्रपिता का अन्तिम और शायद महानतम उपहार है।”

गांधी जी का दृष्टिकोण (Educational Thoughts of Mahatma Gandhi)

गांधी जी अपने पत्र ‘हरिजन’ द्वारा शिक्षा सम्बन्धी अपने विचार बहुत दिनों से प्रकट कर रहे थे और कुछ समय के बाद उनके यही लेख बेसिक शिक्षा योजना के आधार बने। हरिजन के 31 जुलाई, 1936 के अंक में प्रकाशित अपने एक लेख में उन्होंने शिक्षा विषयक अपना दृष्टिकोण व्यक्त करते हुए स्पष्ट कर दिया कि वह शिक्षा का अभिप्राय बालक और मनुष्य के सम्पूर्ण शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक शक्तियों के सर्वतोमुखी विकास से ग्रहण करते हैं तथा केवल साक्षरता ही शिक्षा नहीं है। उनकी दृष्टि में बालक की शिक्षा उसे एक उपयोगी हस्तशिल्प सिखाकर और जिस समय से वह अपनी शिक्षा प्रारम्भ करता है उसी समय से उसे उत्पादन करने योग्य बनाकर प्रारम्भ करनी चाहिए। गांधी जी का कहना था कि यदि राज्य प्रत्येक राज्य प्रान्त विद्यालयों में निर्मित वस्तुओं को लेने का उत्तरदायित्व ग्रहण कर लें तो प्रत्येक विद्यालय आत्मनिर्भर हो सकता है।

अखिल भारतीय शिक्षा सम्मेलन अथवा वर्धा शिक्षा सम्मेलन (All India National Education Conference or Wardha Education Conference)

हरिजन में प्रकाशित महात्मा गांधी के लेखों की तरफ देश के अधिक लोग आकृष्ट हो चुके थे। इस तरह गांधी जी ने 2 अक्टूबर, 1936 ई० के हरिजन में एक लेख लिखा जिसमें वर्धा में 22 और 23 अक्टूबर, 1936 को एक अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन बुलाने का उल्लेख किया।

उक्त तिथियों में वर्धा में एक शिक्षा सम्मेलन आयोजित किया गया जो कि अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन के साथ-साथ वर्धा शिक्षा सम्मेलन भी कहा जाता है इसमें देश के विभिन्न भागों से शिक्षा विशेषज्ञों, राष्ट्रीय नेताओं, समाज सुधारकों और प्रान्तीय शिक्षामन्त्रियों ने भाग लिया तथा गम्भीर विचार-विमर्श हुआ। अंत में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने बेसिक शिक्षा के लिए अपनी नवीन योजना प्रस्तुत की और कहा- “भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली किसी भी भाँति भारत की आवश्यकताओं को पूर्ण नहीं कर सकती है। इस शिक्षा द्वारा जो भी लाभ होता है, उससे देश का कर देने वाला प्रमुख वर्ग वंचित रह जाता है। अतः प्राथमिक शिक्षा का पाठ्यक्रम कम-से-कम सात वर्ष का हो जिसके द्वारा मैट्रिक तक का ज्ञान दिया जा सके, परन्तु इसमें अंग्रेजी के स्थान पर कोई अच्छा उद्योग जोड़ दिया जाये। सर्वतोमुखी विकास के उद्देश्य से सारी शिक्षा जहाँ तक हो सके, किसी उद्योग के द्वारा दी जाये जिससे पढ़ाई का व्यय भी दिया जा सके। आवश्यक यह है सरकार उन बनाई हुई चीजों को राज्य द्वारा निश्चित किये गये मूल्य पर क्रय करे।”

जाकिर हुसैन समिति (Zakir Husain Committee)

उक्त प्रस्तावों के पास हो जाने पर गांधी जी की शिक्षा योजना को व्यावहारिक रूप देने तथा एक विशद् पाठ्यक्रम बनाने के लक्ष्य से जामिया मिल्लिया, दिल्ली के तत्कालीन प्राचार्य डॉ० जाकिर हुसैन की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की गई जो कि ‘जाकिर हुसैन समिति’ कहलाती है। इसमें सभापति के अतिरिक्त नौ सदस्य और भी थे जिनमें श्री आर्यनायक, श्री विनोबा भावे, आचार्य काका कालेलकर, श्री जे० सी० कुमारम्पा, श्री मशरूवाला और प्रो० के० टी० शाह आदि उल्लेखनीय हैं। इन सदस्यों को कुछ अन्य सदस्य चुनने का भी अधिकार दे दिया गया। जाकिर हुसैन समिति ने 1937 के दिसम्बर और अप्रैल 1938 में ही रिपोर्ट प्रस्तुत की। अपनी प्रथम रिपोर्ट में उसने वर्धा योजना के मूलभूत सिद्धांतों, उद्देश्यों, अध्यापकों और शिक्षण प्रशिक्षण, विद्यालयों के संगठन, प्रशासन, निरीक्षण और प्रमुख हस्तकार्य, कताई-बुनाई के विस्तृत पाठ्यक्रम आदि का विस्तृत वर्णन किया। इसी प्रकार दूसरी रिपोर्ट में कृषि, धातु कार्य व काष्ठ शिल्प आदि अन्य बुनियादी हस्त कार्यों की विधि और पाठ्यक्रम का पूर्ण विवरण देते हुए उनका अन्य विषयों से सम्बन्ध स्थापित करने के उपायों पर भी विचार किया गया।

फरवरी, 1938 के हरीपुरा कांग्रेस अधिवेशन में जाकिर हुसैन समिति की पहली रिपोर्ट पर विचार-विमर्श हुआ और कांग्रेस ने उसे अधिकृत रूप में स्वीकार भी कर लिया तथा इस योजना को कार्यान्वित करने के उद्देश्यों से अप्रैल 1939 में सेवाग्राम, वर्धा में अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा परिषद् (All India National Education Board) की स्थापना की गई जो कि हिन्दुस्तानी तालीम संघ भी कहलाती है क्योंकि महात्मा गांधी इस शिक्षा को नई तालीम भी कहते थे ।

बुनियादी अथवा वर्धा शिक्षा के उद्देश्य [Objectives of Basic (Vardha) Education ]

बुनियादी शिक्षा को लागू करने के पीछे गांधी जी के निम्नलिखित उद्देश्य थे। ये ही बेसिक शिक्षा के उद्देश्य कहे जाते हैं-

  1. बालकों को आदर्श नागरिक बनाना।
  2. सांस्कृतिक दृष्टिकोण।
  3. बालकों का सर्वांगीण विकास करना।
  4. आर्थिक दृष्टिकोण।
  5. शिक्षा को आत्मनिर्भर बनाना।
  6. शिक्षा सबके लिए सुलभ करना ।
  7. सर्वोदय समाज की स्थापना करना।

बुनियादी अथवा वर्धा शिक्षा का स्वरूप [Nature of Basic (Vardha) Education]

  1. बेसिक शिक्षा की अवधि सात वर्षों की है। इसमें 6 से 14 वर्ष के बालक तथा बालिकाओं को निःशुल्क शिक्षा दी जायेगी।
  2. शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होगी, अंग्रेजी की शिक्षा न दी जाएगी।
  3. शिक्षा शिल्प पर आधारित होगी।
  4. ये शिल्प स्थानीय आवश्यकता के अनुसार होंगे।
  5. बच्चे अच्छे शिल्पी हो सकेंगे।
  6. उनके द्वारा निर्मित सामानों को बेचा जाएगा।
  7. उसी आय से विद्यालय का खर्च चलेगा।
  8. शिल्प की शिक्षा यांत्रिक विधि से न देकर इस प्रकार दी जायेगी कि बालक उसके सामाजिक और वैज्ञानिक महत्त्व से परिचित हो जायें।

वर्धा अथवा बुनियादी शिक्षा का पाठ्यक्रम (Curriculum of Vardha of Basic Education)

(1) बुनियादी शिल्प, पढ़ाई के विषय- (क) कृषि, (ख) कताई-बुनाई, (ग) लकड़ी का कार्य, (घ) मछली पालना, (ङ) चर्म कार्य, (च) मिट्टी का काम, (छ) फल और शाक, उद्यान कार्य, (ज) स्थानीय तथा भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार कोई भी अन्य शिल्प चुना जा सकता है।

(2) मातृभाषा ।

(3) सामान्य विज्ञान – इसमें निम्नलिखित विषय सम्मिलित होंगे- (क) प्रकृति अध्ययन, (ख) वनस्पतिशास्त्र, (ग) जीवविज्ञान, (घ) रसायनशास्त्र, (ङ) शरीर विज्ञान, (च) स्वास्थ्य विज्ञान, (छ) नक्षत्र विज्ञान, (ज) महान् वैज्ञानिकों की अन्वेषण कथायें ।

(4) सामाजिक अध्ययन- इसमें निम्न विषय सम्मिलित होंगे- (क) इतिहास, (ख) भूगोल, (ग) नागरिकशास्त्र ।

(5) गणित,

(6) कला, संगीत तथा चित्रकला,

(7) हिन्दी,

(8) गृहविज्ञान (केवल बालिकाओं के लिए),

(9) शारीरिक शिक्षा-व्यायाम और खेल-कूद ।

शिक्षण विधियाँ (Teaching Methods)

बेसिक शिक्षा की शिक्षण विधियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. क्रियाओं और अनुभवों के माध्यम से शिक्षण।
  2. बालकों को मातृभाषा का मौखिक ज्ञान देना उसके बाद पढ़ना-लिखना सिखाना।
  3. बुनियादी शिल्प का ज्ञान देना।
  4. उच्च कक्षाओं में विभिन्न विषयों का ज्ञान देना, परन्तु इन विषयों की शिक्षा किसी बुनियादी शिल्प के माध्यम से देना।
  5. सभी पाठ्य विषय परस्पर सम्बद्ध हों।

वर्धा अथवा बुनियादी शिक्षा की समय-सारिणी

(1) बुनियादी शिल्प के लिए –  3 घण्टे 20 मिनट

(2) मातृभाषा के लिए – 40 मिनट

(3) संगीत, चित्रकला और अंकगणित के लिए – 40 मिनट

(4) सामाजिक अध्ययन और सामान्य विज्ञान के लिए – 30 मिनट

(5) शारीरिक शिक्षा के लिए – 10 मिनट

(6) अल्पावकाश के लिए – 10 मिनट

समय का पूर्ण योग – 5 घण्टे 30 मिनट

भारत में वर्धा शिक्षा की असफलता के कारण (Causes of Faillure the Vardha Education in India)

भारत में यह योजना निम्नलिखित कारणों से असफल रही-

  1. शिक्षा की अपेक्षा उपार्जन पर अधिक बल दिया गया।
  2. ये योजना बाल केन्द्रित नहीं थी।
  3. इसमें असन्तुलित समय-सारिणी की व्यवस्था की गयी थी।
  4. छात्रों द्वारा निर्मित वस्तुओं एवं सामग्रियों का अपव्यय किया गया।
  5. इसमें बालक की कोमल भावनाओं की अवहेलना की गयी।
  6. इस योजना समन्वय पर अधिक बल दिया गया।
  7. यह योजना औद्योगिक सभ्यता के प्रतिकूल थी।
  8. इसमें पाठ्य-विषयों की भी अवहेलना की गयी।
  9. यह योजना धार्मिक और शारीरिक शिक्षा के प्रति उदासीन रही।

निष्कर्ष (Conclusion) – बेसिक शिक्षा पर विचार करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि यह शिक्षा पद्धति भारत जैसे देश के लिए बहुत ही उपयुक्त है। इस शिक्षा पद्धति ने इस देश के शिक्षा क्षेत्र में एक नवीन धारा प्रवाहित कर दी। भारत को श्रद्धेय बापू की यह अन्तिम किन्तु सबसे मूल्यवान देन है। संभवतः इसीलिए स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद सरकार → ने अपनी पंचवर्षीय योजनाओं में इस शिक्षा की प्रगति पर पूर्ण ध्यान दिया है। सन् 1956 में दिल्ली में ‘National Institute of Basic Education’ नामक संस्था भी स्थापित की गई जो कि बेसिक शिक्षा के क्षेत्र में नवीन अनुसंधानों और प्रयोग की ओर ध्यान दे रही है। साथ ही सभी राज्यों में बेसिक विद्यालयों और बेसिक प्रशिक्षण विद्यालयों की स्थापना की गई है और इसका महत्त्व स्वीकार करते हुए हमारे देश के प्रथम प्रधानमन्त्री नेहरू ने कहा था कि, “बुनियादी शिक्षा का मतलब यह नहीं है कि छात्रों को नयी विधि से पढ़ाया जाये। वास्तविकता यह है कि यह जीवन का नया पथ है। “

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Anjali Yadav

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