विद्यालय संगठन / SCHOOL ORGANISATION

विद्यालय भवन से आप क्या समझते हैं ? एक अच्छे विद्यालय भवन की आवश्यकता तथा महत्व

विद्यालय भवन से आप क्या समझते हैं ? एक अच्छे विद्यालय भवन की आवश्यकता तथा महत्व
विद्यालय भवन से आप क्या समझते हैं ? एक अच्छे विद्यालय भवन की आवश्यकता तथा महत्व

विद्यालय भवन से आप क्या समझते हैं ? एक अच्छे विद्यालय भवन की आवश्यकता तथा महत्व की विवेचना कीजिये।

विद्यालय भवन (School Building)

विद्यालय भवन से हमारा अभिप्राय न केवल कक्षा कार्यालय तथा प्रधानाचार्य के कमरों से होता है, अपितु सभी आवश्यक भवनों एवं सुविधाओं से होता है। विद्यालय भवन के सम्बन्ध में डॉ० एम० एन० मुकर्जी का कथन इस प्रकार है – “विद्यालय भवन पढ़ाई के घण्टों के मध्य बालक का घर समझा जाना चाहिये। यह उस प्रयोगशाला के रूप में सोचा जाना चाहिये, जहाँ बालक कुछ सीखते हैं। यह युवा केन्द्र के रूप में भी जाना चाहिये, एवं नागरिकों के साहस का भी केन्द्र होना चाहिये। यह उनके विकास के लिये मनोरंजन के साधन, पुस्तकालय एवं सांस्कृतिक सुविधाओं को प्रदान करें। विद्यालय को बालक एवं प्रौढ़ों के लिये सामुदायिक एवं सामाजिक केन्द्र के रूप में सेवा करनी चाहिये।”

भवन की स्थिति (Site of the Building)

भवन निर्माण में प्रमुख ध्यान स्थिति (Site) का रखना होता है। रायबर्न के अनुसार, “यदि किसी प्रकार सम्भव हो तो पाठशाला के लिए नगर से बाहर स्थान प्राप्त कर लेना ज्यादा अच्छा है-ऐसी स्थिति में ताजी हवा ज्यादा मिल सकेगी, पाठशाला के निकट पर्याप्त खेल के मैदान प्राप्त करने की सुविधा होगी, पाठशाला के लिए सुन्दर-सा स्थान प्राप्त करने का अधिक सुयोग मिल सकेगा, छूत की बीमारियों को पाठशाला में फैलने से रोकने का ज्यादा अच्छा मौका मिल जायेगा, जमीर सस्ती होगी और रहने के लिए ज्यादा जगह मिल सकेगी।”

(i) विद्यालय नगर के धुआँ, गर्द तथा कोलाहल से दूर होना चाहिये। (ii) यह ऐसी जगह पर स्थित होना चाहिये, जहाँ चारों ओर से छात्रों को पहुँचने में सुविधा रहे। (iii) भूमि ऊँची होनी चाहिये, जहाँ पानी न रुकता हो। पास में गन्दे नाले आदि नहीं होने चाहियें। (iv) भवन के विस्तार और विभिन्न उपयोग के लिये पर्याप्त स्थान उपलब्ध होना चाहिये । उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के लिये 10 एकड़ भूमि पर्याप्त है। (v) सड़क के निकट परन्तु उसको धूल से दूर होना चाहिये। भवन का मुख सड़क की ओर होना चाहिये। (vi) आस-पास की भूमि ऊर्वरा होनी चाहिये, जिस पर उद्यान, कृषि आदि की उत्तम व्यवस्था हो सके। (vii) भूमि दीमक के प्रभाव से मुक्त हो। (viii) जल आसानी से सुलभ तथा मीठा होना चाहिये।

भवन का स्वरूप निर्माण (Design and Construction)

यदि स्थान पर्याप्त है तो एक मंजिल का भवन ही सुविधाजनक होगा। भवन निर्माण में इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि व्यवस्था प्रशासन तथा छात्रों की दृष्टि से वह सुविधाजनक एवं आकर्षक हो। अंग्रेजी के अक्षर T, E, L, H, और U आकार के भवन उपर्युक्त दृष्टिकोण से सुविधाजनक भी होते हैं तथा आकर्षक भी। भवन निर्माण करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये –

1. व्यापक योजना– भवन निर्माण से पहले उसकी वर्तमान दशा, आवश्यकता एवं भविष्य की प्रगति को ध्यान में रखकर एक विस्तृत योजना बना लेनी चाहिये। अनियोजित निर्माण कार्य अनुपयुक्त तथा बाधक होता है। योजना बनाते समय शिक्षा क्षेत्र के अनुभवी व्यक्तियों तथा इन्जीनियरों से परामर्श कर लेना चाहिये।

2. भवन की दिशा- दिशा यदि उत्तर की ओर हो तो कई दृष्टि से यह लाभदायक होता है। भारत में अधिकतर पश्चिम या पूरब से हवा के झोंके चलते हैं। उत्तर दिशा में होने से हवा के झोकों से रक्षा होगी और सूर्य का प्रकाश भी बराबर मिलता रहेगा।

3. कमरों की स्थिति – कार्यालय तथा प्रधानाचार्य का कमरा पास-पास होना आवश्यक है। प्रधानाचार्य का कमरा ऐसे स्थान पर स्थित होता है, जिससे उसकी दृष्टि सारे विद्यालय पर एक साथ पड़ सके। सभा-भवन बीच में ठीक रहता है। प्रयोग के कमरे और पुस्तकालय का स्थान किनारे पर उपयुक्त रहता है।

4. कमरों की संख्या- कमरों की संख्या तो छात्रों की संख्या तथा विद्यालय में पढ़ाये जाने वाले अनिवार्य तथा वैकल्पिक विषयों और सहगामी क्रियाओं की व्यवस्था पर आधारित होती है। प्रत्येक कक्षा में जितने वर्ग हैं, उनके लिए एक-एक कमरे के अलावा पुस्तकालय, वाचानालय, संगीत, आर्ट, कार्यालय, प्रधानाचार्य तथा हॉल आदि कमरे भी होने चाहियें।

5. भवन की कुर्सी- भवन की कुर्सी जितनी ऊँची होती है, भवन उतना ही सुन्दर तथा आकर्षक लगता है। वहाँ वायु और प्रकाश की भी सुविधा रहती है।

6. कमरों की माप- कमरों की लम्बाई और चौड़ाई उनके प्रयोग पर निर्भर होगी। सामान्य रूप से माध्यमिक विद्यालय के शिक्षण कक्ष 25 x 20 x 14 होने चाहियें। प्रत्येक छात्र के लिए कम से कम 12 वर्ग फीट स्थान मिलना आवश्यक है। विज्ञान-कक्ष 30 x 20 x 14 हो। साथ में 12 x 12 के स्टोर रूम और अंधेरे कमरे संलग्न होने चाहियें। हॉल की लम्बाई-चौड़ाई छात्र की संख्या पर निर्भर होगी।

7. प्रकाश और वायु की व्यवस्था – कमरे में ऊपर रोशनदान और आमने-सामने खिड़की और दरवाजे होने चाहियें जिससे पर्याप्त प्रकाश और वायु मिल सके।

8. सुरक्षा के लिए चहारदीवारी और फाटक होना भी आवश्यक है।

विद्यालय भवन का रखरखाव तथा साजसज्जा

  1. विद्यालय भवन में तथा इसके आस-पास वृक्ष लगाने चाहियें।
  2. मुख्य मार्ग के चारों ओर ईंटों की पंक्तियाँ होनी चाहियें, जो सफेद रंग से पुती हुई हों।
  3. विद्यालय भवन में खेल के मैदान के लिए चिकनी व पानी सोखने वाली मिट्टी का प्रयोग करना चाहिये।
  4. विद्यालय भवन के उद्यान में सामयिक फूल लगाने चाहिये तथा उस उद्यान के चारों ओर कांटे वाले तार लगाने चाहिये।
  5. दीवारों तथा मुख्य भवन पर सफेदी होनी चाहिये ।
  6. भवन की विभिन्न प्रयोगशालाओं को विषय सम्बन्धित चार्टी, चित्रों व मॉडलों से अलंकृत करना चाहिये।
  7. कक्षा के श्यामपट अच्छे होने चाहियें जिन पर लिखना सम्भव हो।
  8. कक्षाकक्ष में कुछ चार्ट टाँगे जाने चाहियें।
  9. छात्रों के बैठने हेतु पर्याप्त संख्या में मेज व कुर्सी होनी चाहियें।
  10. बुलेटिन बोर्ड व सूचनापट यथास्थान रखे जाने चाहिये ।

विद्यालय भवन के मुख्य भाग

अच्छे विद्यालय भवन के अन्तर्गत निम्नलिखित भाग आवश्यक रूप से स्थापित किये जाने चाहियें-

1. मुख्याध्यापक का कक्ष– विद्यालय भवन का कोई भी प्रारूप चयनित किया जाना चाहिये, उसके बाद आवश्यकता इस बात की है कि हम यह तय करें कि प्राचार्य का कक्ष कहाँ पर होगा। हमें सदैव ही इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि प्रधानाचार्य का कक्ष ऐसे स्थान पर हो, जहाँ से उसकी उपस्थिति का आभास हो, साथ ही जहाँ से वह विद्यालय की सभी गतिविधियों पर नियन्त्रण रख सके। वैसे जहाँ तक सम्भव हो सके, प्रधानाचार्य का कक्ष विद्यालय प्रवेश द्वार के समीप ही होना चाहिये। मुख्याध्यापक के कक्ष में विश्राम गृह, शौचालय, स्नानकक्ष होना चाहिये तथा इसका आकार इतना बड़ा अवश्य होना चाहिये कि छोटी-छोटी अध्यापक सभाएँ आवश्यकता पड़ने पर इसमें बुलाई जा सकें। प्रधानाध्यापक का कक्ष बहुत ही आकर्षक होना चाहिये। इसका फर्नीचर भी आरामदायक तथा आकर्षक हो। उसके बाहर एक चपरासी बैठा होना चाहिये।

2. स्कूल कार्यालय – स्कूल कार्यालय भी विद्यालय का एक महत्वपूर्ण भाग है। इनसे मुख्याध्यापक को हमेशा ही काम रहता है। इसलिये यह मुख्याध्यापक के कक्ष के बहुत निकट होना चाहिये। हमें यह बात हमेशा ध्यान में रखनी होगी कि किसी भी विद्यालय का कुशल संचालन मुख्याध्यापक तथा विद्यालय कर्मिकों के मधुर सम्बन्ध पर काफी सीमा तक निर्भर करता है। कार्यालय में कार्य करने वाले कर्मचारियों का कमरा बड़ा होना चाहिये, जिससे वह सुगमतापूर्वक कार्य कर सकें। बैठने के लिए उचित मेज-कुर्सी होनी चाहिये। वहीं पर शौचालय व पीने के पानी की व्यवस्था होनी चाहिये।

3. आगन्तुकों के लिए कमरा- कभी किसी अध्यापक, कर्मचारी वर्ग अथवा छात्रों से मिलने विद्यालय में कोई भी आ सकता है। मिलने का स्थान निश्चित हो, इसके लिए विद्यालय में एक कमरा आगन्तुकों के लिये बनाया जाना चाहिये। यह कमरा सुसज्जित होना चाहिये, जिसमें सोफा, पलंग, मेज आदि पड़ा हो, साथ ही इसके अन्दर भी शौचालय की व्यवस्था होनी चाहिये, कमरे में पीने का पानी होना चाहिये और मेज पर कुछ समाचार पत्र या पत्रिकाएँ पड़ी होनी चाहियें।

4. कक्षाएँ- जिस दृष्टि से किसी भी विद्यालय की स्थापना की जाती है, वह है ज्ञान को प्रदान करना। विद्यालय में यह ज्ञानवर्द्धन कक्षाओं में किया जाता है। इस कारण कक्षाओं का उचित होना बहुत ही आवश्यक है। विद्यालय की कक्षायें आयाताकार होनी चाहियें तथा कक्षा में छात्रों की संख्या कमरे के आकार के अनुकूल होनी चाहिये चूंकि यदि छोटे कमरे में अधिक छात्र बैठा दिये जायेंगे तो छात्रों को कठिनाई होगी और वह जल्दी थक जायेंगे, जिससे उनका पढ़ने पर ध्यान केन्द्रित नहीं हो पायेगा। कक्षा में अध्यापक के बैठने के लिए मेज, कुर्सी होनी चाहिये तथा पढ़ाने के लिए लैक्चर स्टैण्ड होना चाहिये व अच्छा श्यामपट होना चाहियें।

कक्षाकक्ष में उपयुक्त दरवाजे, खिड़की तथा रोशनदान होने चाहियें, जिनसे उपयुक्त प्रकाश व हवा का प्रवेश हो सके। इस सन्दर्भ में रायबर्न ने ठीक ही कहा है, “मुख्य प्रकाश विद्यार्थियों के बाईं ओर से आना चाहिये, जिससे किये जा रहे कार्य पर परछाई न पड़े। यदि प्रकाश पीछे से आता है तो कार्य पर परछाई पड़ती है और यदि प्रकाश आगे से आता है तो आँखें चुँधियाने लगती हैं। दाईं ओर से आने वाला प्रकाश बहुत बुरा तो नहीं होता, परन्तु उससे भी किये जा रहे कार्य पर थोड़ा प्रतिबिम्ब पड़ता है।”

कमरों में छात्रों हेतु जो फर्नीचर बनाया जाये, वह भी उपयोगी होना चाहिये। लिखने के लिये डेस्क ढलान वाले होने चाहियें। पढ़ने की डैस्क तथा कुर्सी के बीच में कितनी दूरी रखी जायें, इस सम्बन्ध में रायबर्न ने कहा है, “पढ्ने ओर खड़े होने के लिए अतिरिक्त स्थिति, लिखने के लिये न्यून स्थिति सर्वोत्तम है। सीटें इतनी ऊंची होनी चाहियें कि बच्चों के पाँव लटकते न रहें, बल्कि फर्श पर पहुँच जायें। सीटों के पीछे पीठ भी होनी चाहिये। यदि सीट की पीठ ऐसी हो कि बैठने वाला विद्यार्थी उसके साथ अपनी पीठ समायोजित कर सके तो बहुत अच्छा होगा।”

कक्षाकक्ष में कपबोर्ड और अलमारियाँ भी होनी चाहियें। इस सम्बन्ध में रायबर्न ने कहा है, “प्रत्येक कमरे में एक या दो कपबोर्ड होने चाहियें, जिसमें झाडून, चॉक, डस्टर, पैन, स्याही, सुन्दर्भ पुस्तकें या अन्य सम्बन्धित सामग्री रखी जा सके। सबसे सस्ते कपबोर्ड वे होते हैं, जो भवन निर्माण के समय दीवारों में रखवाये जाते हैं, लेकिन उसमें दीमक न लगे, इस सम्बन्ध में सावधानी रखी जानी चाहिये। यदि सम्भव हो तो कमरे में खुले शैल्फ होने चाहियें, जिनमें शब्द कोष, विश्वकोष, चित्र पुस्तकें, एटलस आदि रखे जायें।”

प्रत्येक कक्षा में ब्लैकबोर्ड भी एक आवश्यक उपकरण है तथा इसे उचित स्थान पर लगाया जाना चाहिये। इसका रख-रखाव भी भली-भांति किया जाना चाहिये। यह विद्यार्थियों से इतनी दूरी पर होना चाहिये कि प्रत्येक विद्यार्थी इसका आसानी से अवलोकन कर सके।

5. स्टॉफ रूम- स्टॉफ रूम की भी उचित व्यवस्था विद्यालय भवन के अन्तर्गत की जानी चाहिये। स्टॉफ कक्ष में सभी अध्यापकों के लिये ऐसी व्यवस्था होनी चाहिये कि वे अपने व्यक्तिगत सामान को ताले में रख सकें। अध्यापकों के बैठने के लिये पर्याप्त मात्रा में कुर्ती होनी चाहिये। वहाँ विश्राम करने के लिये एक पलंग भी डाल देना चाहिये। कमरे में शौचालय तथा स्नानगृह की भी व्यवस्था होनी चाहिये। मेज पर अखबार व पत्रिकायें भी होनी चाहियें, किन्तु इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिये कि पत्रिकाओं का स्तर अच्छा हो ।

6. ड्राइंग कक्ष- बालकों को ड्राइंग व कला का ज्ञान कराने के लिये विद्यालय में एक अलग कक्ष होना चाहिये, जहाँ की दीवारों को विभिन्न प्रकार की कलाओं से सुसज्जित किया जाना चाहिये, जिससे छात्रों के मन में इसके प्रति रुचि उत्पन्न की जा सके। ड्राइंग बनाने के लिये जिन सामग्रियों की आवश्यकता होती है, वह वहाँ उपलब्ध होनी चाहिये। यहाँ कार्य करने के लिये विशिष्ट प्रकार की मेजें तथा कुर्सी होनी चाहियें।

7. विज्ञान कक्ष- विज्ञान कक्ष व विज्ञान प्रयोगशाला की विस्तारपूर्वक चर्चा हम पिछले पृष्ठों में कर चुके हैं, परन्तु विज्ञान कक्ष के लिये आवश्यकता इस बात की है कि जिन विषयों को पढ़ाने की सुविधा विद्यालय में है, उनकी पृथक् प्रयोगशाला हो । विज्ञान कक्ष में एक प्रयोगशाला हो, एक व्याख्यान कक्ष, एक अध्यापक कक्ष तथा एक सामान घर विज्ञान कक्ष में अलमारियाँ होनी चाहियें, जिससे प्रायोगिक सामग्री को सुरक्षित रखा जा सके। वहाँ हवा, पानी, प्रकाश की समुचित व्यवस्था होनी चाहिये। इस कमरे में 10 x 4 x 3′ की कुछ मेजें अवश्य होनी चाहियें तथा साथ ही पर्याप्त मात्रा में स्टूल भी होने चाहियें। यहाँ कुछ अच्छे व बड़े श्यामपट होने चाहियें व लेखन के लिए सफेद व चित्र बनाने के लिये रंगीन चॉक सदैव उपलब्ध होने चाहियें।

8. भूगोल कक्ष – किसी भी विद्यालय में भूगोल के एक अलग कक्ष की आवश्यकता को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। भूगोल कक्ष में निम्न सामग्री होनी चाहिये-

  1. विभिन्न देशों की सीमा को प्रदर्शित करने वाले बड़े मानचित्र ।
  2. विभिन्न देशों की जलवायु, वर्षा, वनस्पति को प्रदर्शित करने वाले मानचित्र ।
  3. वायु भार मापने वाला यन्त्र, वर्षा यन्त्र, तापमान यन्त्र, वायुदिशा यन्त्र तथा कुतुबनुमा।
  4. भूमि मार्ग, वायु मार्ग, जल मार्ग को प्रदर्शित करता हुआ मानचित्र ।
  5. खनिज सम्पदा तथा औद्योगिक प्रगति को प्रदर्शित करता हुआ मानचित्र ।
  6. विभिन्न मॉडल, जैसे-इग्लू, सूर्य परिक्रमा, ऋतु परिवर्तन ।
  7. ग्लोब व एटलस।

9. शौचालय– विद्यालय प्रांगण में छात्रों हेतु शौचालय की सुविधा अनिवार्य सुविधा के रूप में समझी जानी चाहिये। शौचालय में पानी की सुविधा तथा साथ ही उसकी हर समय सफाई करने के लिये कर्मचारी नियुक्त किये जाने चाहिये ।

10. साइकिल स्टैण्ड- स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों के वाहनों को रखने की दृष्टि से, साथ ही उनकी सुरक्षा की दृष्टि से विद्यालय में साइकिल स्टैण्ड का बनाया जाना चाहिये। साइकिल स्टैण्ड कहाँ बनाया जाना चाहिये, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। विद्यालय प्रांगण के अन्दर साइकिल स्टैण्ड नहीं बनाना चाहिये चूँकि इससे विद्यालय के शैक्षिक वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसे विद्यालय के प्रवेश द्वार पर ही स्थापित किया जाना चाहिये।

11. उद्यान – विद्यालय प्रांगण सुन्दर प्रतीत हो, इसके लिये यह आवश्यक है कि जहाँ कहीं भी विद्यालय में खाली जगह पड़ी हो, वहाँ घास लगा देनी चाहिये और उसे काँटेदार तारों से घेर देना चाहिये, जिससे विद्यार्थियों के प्रवेश से वह खराब न हो।

12. पीने के पानी की व्यवस्था – स्कूल में कोई स्थान ऐसा अवश्य नियत किया जाना चाहिये, जहाँ पीने का पानी हर समय उपलब्ध हो। पानी के लिये विद्यालय में टंकी की व्यवस्था की जा सकती है, लेकिन टंकी की नियमित रूप से सफाई होनी चाहिये व आवश्यकतानुसार उसमें कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग किया जाना चाहिये, किन्तु सबसे अच्छा यह है कि विद्यालय के अन्दर वाटर कूलर हो, जिससे छात्रों को ग्रीष्म ऋतु में ठंडा पानी उपलब्ध हो सके।

13. बिजली की व्यवस्था– प्रत्येक विद्यालय के पास बिजली की उचित व्यवस्था होनी चाहिये। प्रत्येक कक्षा में बल्व गूंरॉड तथा पंखे लगे हों और यदि बिजली चली जाये तो विद्यालय का अपना जनरेटर सैट भी होना चाहिये।

14. खेल-कूद का कक्ष व मैदान- विद्यालय में कुछ ऐसे खेलों की भी व्यवस्था हो, जो कमरे में खेले जा सकते हैं, जैसे—इनडोर बेडमिण्टन व टेनिस व कुछ ऐसे खेल भी जिनके लिए मैदानों की आवश्यकता पड़ती है, जैसे-क्रिकेट, हॉकी। विद्यालय में खेल सामग्री को रखने के लिए एक अलग कक्ष की आवश्यकता पड़ती है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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