विद्यालय में प्रयोगशाला की आवश्यकता एवं महत्व को समझाइये।
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प्रयोगशाला (Laboratory)
प्रयोगशाला वह स्थान है, जहाँ प्रत्येक सैद्धान्तिक ज्ञान की प्रामाणिकता प्रयोग की कसौटी पर परखते हैं। माध्यमिक स्तर पर प्रयोगशाला से सम्बन्ध वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं से है।
प्रयोगशाला की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Laboratory)
माध्यमिक विद्यालयों में विज्ञान विषयों के लिये प्रयोगशाला का होना अत्यन्त आवश्यक है। प्रयोगशाला की आवश्यकता एवं महत्व को निम्न प्रकार समझा जा सकता है-
विज्ञान वह ज्ञान है, जिसकी प्रामाणिकता प्रयोगों द्वारा सिद्ध की जाती है। अतः इस विषय को मौखिक रूप से अथवा पुस्तकों द्वारा पढ़कर अच्छे ढंग से नहीं समझा जा सकता है। इसके लिये छात्रों को निरीक्षण और प्रयोग करने की आवश्यकता होती है। छात्र सैद्धान्तिक रूप से सीखी हुई बातों को वास्तविक परिस्थिति में प्रयोग करता है। इससे छात्र की जिज्ञासा सन्तुष्ट होती है, रचनात्मक शक्ति का विकास होता है, बौद्धिक विकास होता है, तर्क-शक्ति और निरीक्षण शक्ति बढ़ती है। इससे कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित करने और सत्य को परखने की आदत पड़ती है।
इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि विज्ञान का सफल शिक्षण अच्छी प्रयोगशाला के बिना सम्भव नहीं है। हमारे अधिकांश माध्यमिक विद्यालयों में प्रयोगशाला की दशा बड़ी ही शोचनीय है। वहाँ न भवन हैं, न सज्जा और न उपकरण हैं। छात्र परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिये कुछ सिद्धान्तों को रट लेते हैं। इसके कारण आगे जाकर व्यावहारिक जीवन में उन्हें बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अतः यह आवश्यक है कि प्रत्येक विद्यालय में उत्तम ढंग की प्रयोगशालायें स्थापित की जानी चाहियें।
प्रयोगशाला की व्यवस्था के लिये राज्य सरकार और केन्द्रीय सरकार पर्याप्त धन दे रही हैं। इसमें प्रयोगशाला के भवन निर्माण और उपकरणों के खरीदने के लिये भी धन मिलता है। अतः आवश्यकता है कि इस सुअवसर से लाभ उठाया जाए और ईमानदारी के साथ महत्वपूर्ण कार्य को पूर्ण करने का प्रयास किया जाये।
माध्यमिक विद्यालयों की प्रयोगशाला को उपयोगी बनाने के लिए सुझाव
1. हमारे देश के विद्यालयों की आर्थिक दशा अच्छी नहीं है। अतः प्रत्येक विषय के लिये अलग-अलग प्रयोगशाला सम्भव नहीं है। माध्यमिक स्तर तक भौतिकशास्त्र और रसायनशास्त्र के लिए एक तथा वनस्पति-विज्ञान और जीव-विज्ञान के लिए एक, इस प्रकार दो प्रयोगशालायें आवश्यक हैं।
2. प्रयोगशाला की सज्जा कम खर्चीली और टिकाऊ होनी चाहिये।
3. प्रयोगशाला में छात्रों के ग्रुप बना दिये जाने चाहियें। एक साथ जितने छात्र सुविधापूर्वक कार्य कर सकते हैं, उतने ही रखे जाने चाहियें।
4. प्रयोग के लिये मेजों के स्थान पर दीवार के सहारे सीमेंट के मेज बनवाये जा सकते हैं।
5. सामान्य उपकरण तथा आवश्यकता की वस्तुएँ छात्रों द्वारा ही प्रयोगशाला में तैयार करायी जा सकती हैं।
6. प्रयोगशाला का मुख उत्तर दिशा को हो, जिससे अच्छा प्रकाश बराबर मिलता रहे।
7. अध्यापक की मेज के पीछे बड़ा श्यामपट दीवार में बना हो, जिस पर प्रयोग के समय आवश्यक बातें समझायी जा सकें।
8. प्रयोगशाला की छत में पानी के लिए टंकी की व्यवस्था की जा सकती है।
9. प्रयोगशाला की बगल में एक स्टोर होना चाहिये, जिसमें समय-समय पर प्रयोग में लाने वाली वस्तुएँ रखी हों।
10. प्रयोगशाला के साथ एक अन्धेरा कमरा हो, जिसमें अन्धकार में होने वाले प्रयोग किये जा सकें।
प्रयोगशाला में वस्तुओं का संग्रह
वस्तुओं के संग्रह के लिये जो उपकरण सामान्य उन्हें खरीदना ही ठीक होगा, किन्तु खरीदने में ईमानदारीपूर्वक प्रयोगशाला में वस्तुओं का संग्रह फर्म की प्रतिष्ठा को देखकर आर्डर दिया जाना चाहिये।
वे वस्तुयें जो अपनी प्रयोगशाला में ही तैयार करवायी जा सकती हैं, उन्हें अध्यापक और छात्र मिलकर तैयार कर लें। इससे छात्रों में रचनात्मक शक्ति का विकास होगा। उनके व्यावहारिक ज्ञान में वृद्धि होगी, अनेक वस्तुयें मिल जायेंगी तथा दूसरों के लिये कार्य करने की प्रेरणा भी मिलेगी।
इनके अलावा जीव-विज्ञान तथा वनस्पति-विज्ञान से सम्बन्धित अनेक वस्तुओं को छात्रों द्वारा एकत्र करवाया जा सकता है। वास्तव में, यदि शिक्षक चाहे तो वे थोड़े व्यय में अच्छी प्रयोगशाला बना सकते हैं, जो शिक्षक के लिये परम उपयोगी होगी।
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