विद्यालय में अजायबघर (विचित्रालय) अथवा संग्रहालय की आवश्यकता एवं महत्व का उल्लेख कीजिये। संग्रहालय की व्यवस्था आप किस प्रकार करेंगे ?
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विद्यालय में संग्रहालय एवं अजायबघर (विचित्रालय) की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Museum in School)
संग्रहालय की विद्यालय के जीवन में अत्यन्त आवश्यकता होती है। एक विद्वान ने कहा है-“एक सज्जित प्रयोगशाला बच्चों के विकास, प्रेरणा, तथा सर्वांगीण विकास के लिये उत्तरदायी है।” (A well-furnished museum is the sign of enthusiasm of the pupils who get incessant inspiration there from for their all-round development.) संग्रहालय शिक्षा के महत्वपूर्ण साधन हैं। यह स्थायी ज्ञान है। बालक संग्रहालय में अनेक वस्तुओं को देखकर उनके प्रति स्थायी धारणा एवं प्रतिमा बना लेते हैं।
प्रत्यक्ष अनुभूति से शैक्षिक अनुभव गहन होते हैं। इसके लिये आवश्यक है कि छात्रों को वस्तुओं के निकट लाया जाये और उनके बारे में प्रत्यक्ष अनुभव कराया जाये। यह कार्य दो प्रकार से हो सकता है। पहला साधन तो यह है कि छात्रों को ही आवश्यकतानुसार उस स्थान पर ले जाया जाये जहाँ के वातावरण में उस वस्तु का निर्धारण करके छात्र स्वयं ज्ञान प्राप्त करें, किन्तु अनेक बार पर्यटन की व्यवस्था करना और हर स्थान पर ले जाकर उन्हें दिखाना कठिन ही नहीं, असम्भव भी है।
दूसरा रास्ता यह है कि जिन वस्तुओं का प्रत्यक्ष ज्ञान देना है, उन्हें अथवा उनकी प्रतिमूर्तियाँ एक स्थान पर सुरक्षित रखी जायें और आवश्यकतानुसार उन्हें छात्रों के समक्ष प्रस्तुत किया जाये। विचित्रालय इसी आवश्यकता की पूर्ति करता है। यदि प्रत्यक्ष अनुभव से ज्ञान का विकास होता है तो यह आवश्यक है कि प्रत्येक विद्यालय में एक विचित्रालय की स्थापना की जाये और उसमें शिक्षा से सम्बन्धित विविध विषयों की शिक्षा को सम्पन्न करने वाली वस्तुएँ अथवा उनकी प्रतिमूर्तियाँ आदि रखी जायें। इन्हें दिखाकर छात्रों को उनके वास्तविक रूप से परिचित करवा सकते हैं और वातावरण से सम्बन्ध स्थापित कर उनके ज्ञान की वृद्धि कर सकते हैं।
संग्रहालय में रक्षित सामग्री छात्रों की उत्सुकता को जाग्रत करती है और साथ ही उनकी ज्ञान पिपासा को शान्त भी करती है। ऐसी वस्तुएँ, जिनका प्रत्यक्ष सामान्य रूप से बनाने में कठिनाई होती है, उन्हें प्रत्यक्ष रूप से देखकर एक तो ज्ञान स्पष्ट होता है, भ्रम का निवारण होता है और आनन्द मिलता है। विचित्रालय शिक्षण की नीरसता को दूर करने और कल्पना शक्ति के विकास के उत्तम माध्यम हैं।
संग्रहालय की व्यवस्था (Management of Museum)
विचित्रालय की व्यवस्था निम्न प्रकार की जानी चाहिये-
1. विद्यालय में संग्रहालय के लिए अलग कमरों की व्यवस्था होनी चाहिये। इतने कमरे हों, जिनमें सभी विषयों से सम्बन्धित वस्तुएँ सरलता से रखी जा सकें, किन्तु अपने देश में विद्यालयों के पास शिक्षण के लिये ही कमरे नहीं हैं, फिर इसके लिए अलग से कमरों की व्यवस्था असम्भव है। इसके लिये दो मार्ग हैं। पहला मार्ग यह कि कम से कम कमरों की व्यवस्था की जाये, जहाँ सभी विषयों के उत्सुक छात्रों और शिक्षकों के लिये अलग-अलग स्थान निश्चित हों, जहाँ वे अपने विषय से सम्बन्धित वस्तुयें सजाकर रखें।
दूसरा मार्ग यह है कि सभी विषयों के अलग-अलग अध्ययन कक्ष हों। जब छात्रों को वह विषय पढ़ना हो तो उसी कक्ष में जायें। वहाँ पर उस विषय से सम्बन्धित सभी आवश्यक वस्तुएँ दीवार में शीशे के अन्दर अलमारियों में, दीवारों या अन्य उपयुक्त स्थान पर रखी हों। यह वहीं सम्भव है, जहाँ एक कक्षा और एक वर्ग वाले विद्यालय हों। अधिक के लिये केन्द्रीय व्यवस्था ही उत्तम है।
2. वस्तुओं का संग्रह – वस्तुओं के संग्रह के लिये शिक्षक को स्वयं उत्सुक रहना चाहिये और छात्रों में उत्सुकता जाप्रत करनी चाहिये। पर्यटन में जाते समय छात्रों को सावधान कर दें कि वे जो वस्तुएँ संग्रहणीय पायें, उन्हें एकत्र कर लें। इसी प्रकार यदि उनमें जिज्ञासा है तो वे हर क्षण प्रयत्नशील रहेंगे और एक अच्छा संग्रहालय सरलता से बन जायेगा।
3. वस्तुओं का वर्गीकरण- वस्तुओं का वर्गीकरण किया जाना आवश्यक है, जिससे छात्रों और शिक्षकों को उन्हें यथास्थान प्राप्त करने में सरलता हो। सभी वस्तुओं के सम्बन्ध में संक्षिप्त विवरण भी उनके साथ लगा रहे तो उपयोगिता बढ़ जाती है। आवश्यक निर्देश द्वार पर लगे होने चाहियें।
4. वस्तुओं का आदान – प्रदान केन्द्रीय संग्रहालय अथवा अन्य संग्रहालयों से वस्तुओं को आवश्यकतानुसार मंगाया जा सकता है और इन्हें दिखाने के बाद उचित स्थान पर लौटाया जा सकता है।
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