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वुड का घोषणा-पत्र (1854) | घोषणा पत्र की प्रमुख सिफारिशें अथवा सुझाव | वुड घोषणा-पत्र के गुण अथवा महत्त्व | वुड घोषणा-पत्र के दोष

वुड का घोषणा-पत्र (1854) | घोषणा पत्र की प्रमुख सिफारिशें अथवा सुझाव | वुड घोषणा-पत्र के गुण अथवा महत्त्व | वुड घोषणा-पत्र के दोष
वुड का घोषणा-पत्र (1854) | घोषणा पत्र की प्रमुख सिफारिशें अथवा सुझाव | वुड घोषणा-पत्र के गुण अथवा महत्त्व | वुड घोषणा-पत्र के दोष

1854 के चार्ल्स वुड के घोषणा पत्र की प्रमुख सिफारिशें क्या थीं? संक्षेप में वर्णन कीजिए। 

वुड का घोषणा-पत्र (1854) (Wood’s Despatch, 1854)

सन् 1833 के बाद 1853 में कम्पनी के आज्ञापत्र (Charter) को नवीन रूप देने का अवसर आया। इस समय तक ब्रिटिश सभा यह सोचने लगी थी कि भारतीयों की शिक्षा की अवहेलना अब नहीं की जा सकती। इस दृष्टि को सम्मुख रखते हुए आज्ञापत्र को प्रकाश में लाने के पहले लोकसभा ने एक ‘संसदीय समिति’ की नियुक्ति की। समिति के सभी सदस्यों तथा भारत के शिक्षा-मर्मज्ञों ने भारत की 1853 तक की शिक्षा का एक दृढ़ गठन किया। समिति की जाँच के आधार पर कम्पनी के संचालकों को भली-भाँति स्पष्ट कर दिया कि भारतीय शिक्षा के प्रश्न को टाला नहीं जा सकता है। समिति के सुझाव के अनुसार कम्पनी के संचालकों ने 19 जुलाई, सन् 1834 ई० को भारतीय शिक्षा नीति की घोषणा कर दी। उस समय चार्ल्स वुड ( Sir 1 Charles Wood) बोर्ड ऑफ कण्ट्रोल (Board of Control) का प्रधान था। इसलिए उसी के नाम पर शिक्षा का यह नवीन घोषणा पत्र प्रकाशित किया गया और इसका नाम ‘वुड का आदेश-पत्र’ (Wood’s Despatch) रखा गया। यह सौ अनुच्छेदों का लम्बा लेख-पत्र था जिसमें सिफारिशें की गई थीं। इस घोषणा पत्र ने भारतीय शिक्षा के इतिहास में एक नये उषकाल की शुरुआत की। यही कारण है कि कुछ लोगों ने इस घोषणा पत्र को भारतीय शिक्षा का अधिकार-पत्र (Magnacharta of Indian Education) भी कहा है। नीचे इस घोषणा-पत्र के सम्बन्ध में विस्तार के साथ प्रकाश डाला गया है।

घोषणा पत्र की प्रमुख सिफारिशें अथवा सुझाव (Chief Recomendations of the Despatch)

वुड के घोषणा पत्र की प्रमुख सिफारिशें शिक्षा के निम्न तथ्यों पर विचार करती हैं और इनके सुधार हेतु निश्चित नियम प्रस्तुत करती हैं-

(1) शिक्षा का उत्तरदायित्व (Responsibility of Education) – वुड घोषणा पत्र में यह बात स्वीकार की गई कि शिक्षा की जिम्मेदारी कम्पनी पर होगी। इस सम्बन्ध में लिखा गया है कि “Among many subjects of importance none can have a stronger claim to our attention than that of Education. It is one of our sacred duties.”

(2) शिक्षा का उद्देश्य (Aims of Education) – शिक्षा का उद्देश्य भारतीय जन समुदाय तथा अंग्रेजों के राज्य या शासन सम्बन्धी हितों को ध्यान में रखकर बनाया गया था।

घोषणा-पत्र में शिक्षा के उद्देश्य का स्पष्टीकरण करते हुए लिखा है कि “We have more than once looked upon the encouragement of Education to raise the intellectual fitness and moral character of those who partake of advantages, and so to supply you with servants to whom probably you may with increased confidence commit offices of trust.”

   -Wood’s Despatch- Report.

(3) पाठ्यक्रम (Curriculum) – घोषणा पत्र में प्राच्य पाश्चात्य विवाद का भी उल्लेख किया गया है और वुड ने संस्कृत, अरबी और फारसी की उपयोगिता को स्वीकार करके उनको पाठ्यक्रम में विशेष स्थान देने की बात कही है और अन्त में उसने भी मैकाले की भाँति पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान को भारतवासियों के लिए उपयुक्त स्वीकार करते हुए यूरोपीय कला, विज्ञान, दर्शन तथा साहित्य का प्रसार भारत में करने की इच्छा व्यक्त की है। घोषणा पत्र में लिखा गय है कि-

“We must emphatically declare that the Education which we desire to see extended in India is that which has for its object the diffusion of the imported arts, sciences, philosophy and literature of Europe, in short of European knowledge.”

– Wood’s Despatch.

इसके अतिरिक्त आदेश-पत्र में यह भी लिखा गया कि, “हम बलपूर्वक घोषित करते हैं कि भारत में जिस शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार हम देखना चाहते हैं वह है-यूरोपीय ज्ञान।”

(4) शिक्षा का माध्यम (Medium of Instruction)- घोषणा-पत्र में यह बात बताई गई है कि भारतीय भाषाओं में पाठ्य पुस्तकों का अभाव होने से अंग्रेजी को ही शिक्षा का माध्यम बनाना चाहिए। साथ ही यह बात भी स्पष्ट कर दी गई थी कि अंग्रेजी भाषा के माध्यम से केवल उन्हीं लोगों को शिक्षा प्रदान की जाये जो अंग्रेजी का ज्ञान रखते हों तथा जिनमें कि इस भाषा के द्वारा यूरोपीय साहित्य तथा ज्ञान की शिक्षा प्राप्त कर सकने की क्षमता हो । अन्य व्यक्तियों के लिए भारतीय भाषाओं को ही शिक्षा का माध्यम माना गया पर साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि इन भाषाओं द्वारा यूरोपीय साहित्य और विज्ञान से सम्बन्धित शिक्षा ही प्रदान की जाये। इस भाँति देशी भाषाओं और अंग्रेजी दोनों को शिक्षा का माध्यम निश्चित करते हुए घोषणा-पत्र में यह कहा गया कि, “हम यूरोपीय ज्ञान के प्रसार के लिए अंग्रेजी भाषा एवं भारतीय भाषाओं को शिक्षा के माध्यम के रूप में एक साथ देखना चाहते हैं।”

(5) शिक्षा विभाग की स्थापना (Establishment of Education Deptt.)- घोषणा पत्र में यह कहा गया था भारत के प्रत्येक प्रान्त में एक-एक जन-शिक्षा विभाग (Department of Public Instructions) स्थापित किया जाये तथा इसका सबसे बड़ा अधिकारी जनशिक्षा संचालक (Director of Public Instructions) हो। यह भी आदेश दिया गया कि जनशिक्षा संचालक की सहायता के लिए उपशिक्षा संचालक, निरीक्षक (Inspector) तथा सहायक निरीक्षक नियुक्त किये जायें। शिक्षा विभाग की स्थापना के सम्बन्ध में घोषणा-पत्र में लिखा है-

“It is advisable to place the superintendence and direction of Education upon a more systematic footing and we have therefore, determined to create an Education Department as a portion of the machinery of our government in the several Presidencies of India.”

-Wood’s Despatch.

(6) विश्वविद्यालयों की स्थापना (Establishment of Universities) – भारतीयों को उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए कोलकाता, मुम्बई और यदि आवश्यक हो तो चेन्नई तथा अन्य स्थानों में विश्वविद्यालय स्थापित करने का आदेश दिया गया। ये विश्वविद्यालय आदर्श रूप में लन्दन विश्वविद्यालय का अनुकरण करेंगे। प्रत्येक विश्वविद्यालयों के संचालन के लिए कुलपति (Chancellor) तथा उपकुलपति और मनोनीत अभिसदस्यों (Fellows) का भी सुझाव दिया गया। भारत में विश्वविद्यालयों की स्थापना की आवश्यकता को स्पष्ट करते हुये घोषणा पत्र में कहा गया है ” अब भारत में विश्वविद्यालयों की स्थापना का समय आ गया है जो साहित्यिक पाधियाँ प्रदान करके शिक्षा के नियमित तथा उदार पाठ्यक्रम को प्रोत्साहित करें।”

(7) क्रमबद्ध विद्यालयों की स्थापना (Establishment of graded schools) – घोषणा पत्र में पूरे भारत में क्रमबद्ध विद्यालयों (graded schools) की योजना पर भी बल दिया गया है तथा शिक्षा का क्रम इस प्रकार से निर्धारित किया गया है-

(i) विश्वविद्यालय, (ii) कॉलेज, (iii) हाईस्कूल, (iv) मिडिल स्कूल, (v) प्राथमिक स्कूल।

(8) जन-साधारण की शिक्षा विस्तार (Expansion of Mass Education ) – वुड ने शिक्षा में छनाई के सिद्धान्त पर असन्तोष प्रकट कर जनसाधारण के लिए व्यावहारिक और उपयोगी शिक्षा पर बल देते हुये स्पष्ट रूप से कहा कि-“अब हमारा ध्यान इस महत्त्वपूर्ण समस्या की ओर जाना चाहिए जिसकी अभी तक उपेक्षा की गई है अर्थात् जीवन के सभी अंगों के लिए लाभदायक एवं व्यावहारिक शिक्षा इस विशाल समूह को किस प्रकार दी जाये जो किसी सहायता के बिना स्वयं लाभदायक शिक्षा प्राप्त करने में पूर्णतः असमर्थ है।”

(9) प्रशिक्षण विद्यालयों की स्थापना (Establishing Training Colleges ) – घोषणा में शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय खोलने की भी बात कही गई तथा यह सिफारिश की गई कि त्राध्यापकों को छात्रवृत्तियाँ एवं शिक्षकों को अधिक वेतन देकर अन्य राजकीय विभागों के समा शिक्षा विभाग को भी उतना ही आकर्षक बनाया जाये।”

(10) सहायता अनुदान प्रणाली (Grant-in-aid System) – यह अनुभव किया गया कि भारत की विशाल जनसंख्या को शिक्षा प्रदान करने का सम्पूर्ण व्यय केवल सरकार ही नहीं वहन कर सकती है। घोषणा-पत्र में सहायता अनुदान प्रणाली का सुझाव दिया गया कि, “हमने भारत में उसी सहायता अनुदान प्रणाली को अपनाने का निश्चय किया है, जो इंग्लैण्ड में अत्यधिक सफलतापूर्वक सम्पादित की गई है।” प्रान्तीय सरकारों, इंग्लैंड की सहायता अनुदान प्रणाली का उद्देश्य मिशनरियों को प्रोत्साहन प्रदान करना था क्योंकि उस समय व्यक्तिगत रूप से चलने वाले मिशन स्कूलों का बाहुल्य था।

(11) स्त्री शिक्षा (Female Education) – घोषणा पत्र में स्त्री शिक्षा को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है और इस सम्बन्ध में दान आदि के द्वारा सहायता पाने वाले व्यक्तियों की सहायता की गई। स्त्री शिक्षा के लिए उदारतापूर्ण नीति बरतने की बात कही गई तथा लोगों को इस कार्य के लिए प्रोत्साहन देने के लिए भी कहा गया। जो विद्यालय स्त्री शिक्षा प्रदान कर रहे हैं या करें उनको अनुदान दिया जाये। घोषणा पत्र में कहा गया है-

“The importance of Female Education in India cannot be overrated. We cannot refrain from expressing cordial sympathy with the efforts which are being made in this direction. Our Governor General has declared that the government ought to give to the native female Education in India its frank and cordial support and in this we heartily concur.”

– Woods Desptach.

(12) व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education) – घोषणा-पत्र में व्यावसायिक शिक्षा पर भी बल दिया गया है तथा यह कहा गया है कि प्रान्तों में इस प्रकार के स्कूल तथा कॉलेज खोले जायें जो कि भारतीय युवकों को विभिन्न प्रकार की व्यावसायिक शिक्षा दे सकें। व्यावसायिक शिक्षा के लिए विद्यालयों की स्थापना के प्रमुख दो उद्देश्य थे-

(1) व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने के उपरान्त भारतीय युवक बेकार न रहेंगे तथा उनको किसी प्रकार के आन्दोलन में भाग लेने का अवसर न मिलेगा।

(2) व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने से उनको सरलतापूर्वक नौकरी प्राप्त हो जायेगी जिससे कि वे सरकार का अहसान मानेंगे तथा सरकार के स्वामिभक्त बने रहेंगे।

(13) प्राच्य साहित्य तथा प्रचलित भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन (Encouragement to Oriental Literature and Vernaculars)- यद्यपि घोषणा-पत्र में पाश्चात्य साहित्य तथा विज्ञान की उपादेयता को स्वीकार कर भारतीयों के लिए उनका अध्ययन आवश्यक कहा गया है पर साथ ही प्राच्य साहित्य को प्रोत्साहन देने की सिफारिश करते हुए यह सुझाव दिया गया कि पाश्चात्य साहित्य तथा विज्ञान की पुस्तकों का न केवल भारतीय भाषाओं में अनुवाद कराया जाये अपितु इन विषयों पर भाषाओं में भी पुस्तकें लिखवाई जायें और लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिए उचित पुरस्कार भी दिये जायें।

(14) शिक्षा और सरकारी नौकरी (Education and government service)- वुड ने शिक्षित व्यक्तियों को सरकारी नौकरियों पर नियुक्त करने का सुझाव देते हुए घोषणा-पत्र में साफ-साफ लिखा है कि, “हमारी यह इच्छा है कि यदि सरकारी नौकरियों के लिए अभ्यर्थियों की अन्य योग्यताएँ समान हों, तो उस व्यक्ति की तुलना में जिसने अंग्रेजी की अच्छी शिक्षा प्राप्त नहीं की है, उस व्यक्ति को प्राथमिकता दी जाये, जिसने अच्छी शिक्षा प्राप्त की हो ।”

(15) मुसलमानों की शिक्षा (Education of Mohammadans) – घोषणा पत्र में मुस्लिम शिक्षा के प्रति सहानुभूति व्यक्त की गई है और मुस्लिम शिक्षा की स्थिति पर विचार करते हुए कम्पनी के कर्मचारियों से अपील की गई है कि वे इस ओर विशेष रूप से ध्यान दें।

वुड घोषणा-पत्र के गुण अथवा महत्त्व (Qualities Importance of Wood’s Despatch)

(1) इसी घोषणा-पत्र से भारतीय शिक्षा के इतिहास का एक नवीन युग आरम्भ होता है। इसे भारत में शिक्षा का अधिकार पत्र (Magnacharta of English Education in India) भी कहा गया है।

(2) प्रथम बार ब्रिटिश पार्लियामेण्ट ने भारतीय शिक्षा नीति का निर्धारण करके उसको वैधानिक रूप देने का प्रयास किया।

(3) अभी तक ईस्ट इण्डिया कम्पनी के संचालकों की भारतीय शिक्षा सम्बन्धी कोई भी निश्चित नीति नहीं थी। इस घोषणा-पत्र द्वारा उन्होंने प्रथम बार अपनी शिक्षा सम्बन्धी नीति का निर्धारण किया।

(4) इस घोषणा-पत्र में प्रथम बार भारतीय शिक्षा के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुये उसे एक निश्चित मार्ग की ओर अग्रसर किया गया।

(5) इस घोषणा-पत्र में यह बात प्रथम बार कही गई कि भारत में शिक्षा के प्रसार का उत्तरदायित्व अंग्रेज सरकार पर है। अन्यथा इसके पूर्व कभी यह बात नहीं मानी गई थी।

( 6 ) अंग्रेज सरकार ने भारतीय शिक्षा को अब शासन का एक महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य माना।

(7) वुड घोषणा-पत्र ने शिक्षा में छनाई के सिद्धान्त को स्वीकार करके इसे भारतीय शिक्षा के लिए सर्वथा अनुपयुक्त माना है तथा जनशिक्षा को प्रोत्साहित करने की ओर सक्रिय ध्यान दिया है।

(8) इस शिक्षा योजना में प्रथम बार विस्तृत शिक्षा योजना की रूपरेखा प्रस्तुत कर उसने सभी प्रश्नों पर ध्यान देते हुये प्राथमिक शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालयी शिक्षा पर विचार किया गया है।

(9) घोषणा पत्र में भारतीय संस्कृति के गुण और महत्त्वों को मानते हुये उसकी उपादेयता स्वीकार की गई तथा सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भारतीयों के लिए भारतीय संस्कृति को स्थान दिया गया है।

(10) मैकाले ने एक ओर भारतीय साहित्य तथा देशी भाषाओं की आलोचना की है तथा उनकी आलोचना से उन्हें व्यर्थ सिद्ध कर दिया था, दूसरी तरफ उसने घोषणा पत्र में इनके महत्त्व को स्वीकार किया। यहाँ तक कि देशी भाषाओं को उसके पाठ्यक्रम में महत्त्वपूर्ण स्थान भी दिया।

(11) वुड ने भारतीय भाषाओं में भी पुस्तकें लिखवाने की व्यवस्था करने का सुझाव दिया है।

(12) घोषणा-पत्र में भारतीय साहित्य की वृद्धि पर ध्यान देते हुये यह व्यवस्था की गई कि यूरोपीय ज्ञान-विज्ञान का देशी भाषाओं में अनुवाद करने के लिए पुरस्कार भी दिया जाना चाहिए।

(13) प्रत्येक प्रान्त में शिक्षा विभाग (Education Department) की स्थापना करके उसमें शिक्षा संचालक, निरीक्षक तथा उपनिरीक्षकों की नियुक्ति करके शिक्षा विभाग को एक सुव्यवस्थित तथा सुगठित रूप प्रदान करने की बात कही गई जिससे कि भारतीय शिक्षा का विकास सुचारू रूप से हो सके।

(14) घोषणा-पत्र में प्राथमिक विद्यालयों के पुनरुत्थान की ओर भी सरकार का ध्यान आकृष्ट किया गया है।

(15) वुड ने शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी के साथ-साथ भारतीय भाषाओं को भी स्वीकार किया और अंग्रेजी माध्यम को उन्हीं लोगों के लिए उपयुक्त माना है जो उसका पर्याप्त ज्ञान रखते हों।

(16) उच्च शिक्षा की प्रगति के लिए विश्वविद्यालयों की स्थापना का सुझाव दिया गया। कोलकाता, मुम्बई और चेन्नई में विश्वविद्यालय खोले गये ।

(17) उच्च माध्यमिक विद्यालयों की संख्या में वृद्धि करने की बात कही गई।

(18) बेकारी की समस्या को दूर करने के लिए व्यावसायिक शिक्षा पर बल दिया गया।

(19) स्त्री शिक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया गया।

(20) शिक्षा विस्तार के लिए व्यक्तिगत संस्थानों को सहायता अनुदान दिया गया इससे व्यक्तिगत शिक्षा प्रयासों को बड़ा बल मिला।

(21) निर्धन और योग्य छात्रों के लिए छात्रवृत्ति का प्रबन्ध किया गया। सरकारी नौकरियों में शिक्षित व्यक्तियों को ही प्रधानता दी गई। इससे अध्ययन की ओर सबकी रुचि बढ़ने लगी।

(22) शिक्षकों का वेतन बढ़ाकर अधिक-से-अधिक लोगों को शिक्षा कार्य की ओर आकृष्ट किया गया।

(23) हेम्पटन ने भी कहा है कि 1854 ई. का घोषणा-पत्र भारतीय शिक्षा के एक युग की समाप्ति करता है जिसमें कि शिक्षा के महान् अग्रदूत अवतीर्ण हुये।

(24) लार्ड डलहौजी के अनुसार इस घोषणा पत्र में शिक्षा की व्यापक और विशद योजना प्रस्तुत की गई जिसको प्रस्तुत करने में प्रान्तीय तथा केन्द्रीय सरकारें कभी भी सफल न हो पातीं।

(25) बसु के कथनानुसार वुड का घोषणा-पत्र भारतीय शिक्षा का मूलाधार हैं और यदि विचारपूर्वक देखा जाये तो भारत में आधुनिक शिक्षा प्रणाली का शिलान्यास इसी से हुआ।

वुड घोषणा-पत्र के दोष (Demerits of Wood’s Despatch)

(1) इस घोषणा पत्र में भारतीय विश्वविद्यालयों के लिए लन्दन विश्वविद्यालय को आदर्श माना गया। इस तरह प्राचीन विश्वविद्यालयों की उपेक्षा की गई है।

(2) विश्वविद्यालय सीनेट के सभी सदस्यों को सरकार मनोनीत करती थी इसलिये प्रायः ऐसे भी प्रसंग आते थे जबकि शिक्षा की समस्याओं से अनभिज्ञ लोग भी सीनेट के सदस्य बन जाते थे। इससे लाभ की जगह हानि होती थी।

(3) घोषणा पत्र में शिक्षा को पूर्णतः राज्य के अधीन कर दिया गया और उस पर शासन का आधिपत्य स्थापित हो जाने से प्राचीनकाल से प्रचलित स्वतन्त्र कार्य की समाप्ति हो गई।

(4) सरकारी नौकरियों में सुशिक्षित व्यक्तियों को ही प्राथमिकता देने के कारण शिक्षा का व्यापक उद्देश्य नष्ट हो गया और अब शिक्षा केवल जीविकोपार्जन तक ही सीमित रही।

(5) इस घोषणा पत्र के अनुसार अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोगों को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता मिलती थी, इसलिये जहाँ कि देशवासियों की रुचि अंग्रेजी की ओर अधिक बढ़ी वहाँ इससे यह हानि भी हुई कि प्राचीन संस्थाएँ बन्द होने लगीं।

(6) यद्यपि वुड ने प्राच्य साहित्य और देशी भाषाओं को संरक्षण देने की बात कही परन्तु साथ ही उसने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि पाश्चात्य साहित्य और विज्ञान की पुस्तकों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद कराया जाये अतः लोगों का ध्यान यूरोपीय साहित्य और विज्ञान पर ही अधिक रहा और दिन-प्रतिदिन देशी भाषाओं की प्रगति अवरुद्ध होने लगी।

(7) हमारी संस्कृति में धर्म को प्रमुख स्थान दिया जाता रहा और हमारी प्राचीन शिक्षा में धर्म की ही प्रधानता भी थी पर वुड ने धर्म को शिक्षा से पृथक् कर शिक्षा में धर्म की अवहेलना की है। इस सम्बन्ध में डॉ. एस. एन. मुकर्जी का कथन है कि “घोषणा-पत्र ने देश की प्राचीन परम्पराओं का पता नहीं लगाया और इस बात पर जरा भी विचार नहीं किया कि भारत में शिक्षा धार्मिक संस्कार था।”

(8) इस घोषणा पत्र में भारतीय शिक्षा को धार्मिक मान्यताओं से पृथक करने का एक दुष्परिणाम यह भी हुआ कि भारतीयों ने अध्यात्मवाद को भुला दिया।

(9) वुड ने संस्कृत, अरबी और फारसी आदि भाषाओं की उपादेयता अवश्य स्वीकार की है पर लार्ड मैकाले की भाँति उसने भी शिक्षा का उद्देश्य पाश्चात्य ज्ञान का प्रसार ही माना, भारतीयों के लिए पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान को उचित कहा है। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से संस्कृत, अरबी और फारसी का महत्त्व कम कर दिया है।

(10) शिक्षा विभाग की स्थापना करके शिक्षा पद्धति में जो लचीलापन ला दिया गया था वह नष्ट हो गया तथा इस प्रकार भारतीय शिक्षा यांत्रिक हो गयी क्योंकि शिक्षण संस्थाएँ अब अपना कार्य शिक्षा अधिकारियों की आज्ञाओं का पालन करना समझती थीं, तथा शिक्षा के प्रति उनका अपना कोई मौलिक उत्साह नहीं रह गया।

(11) इस घोषणा-पत्र ने शिक्षा के ढाँचे को पूर्णतः विदेशी कर दिया तथा पाश्चात्य शिक्षा को समाप्त करने के लिए भारतीयों को अनेक प्रकार के प्रलोभन दिये जाने लगे। इसलिये देशी शिक्षा प्रणाली और शिक्षा प्रसार में उनकी लेशमात्र रुचि न रही।

(12) व्यावसायिक शिक्षा संस्थाओं का निर्माण बाह्य रूप से दिखाने के लिए तो भारतीयों के हित के लिए था, लेकिन सत्य यह है कि यह योजना भारतीयों को ध्यान में रखकर नहीं बनी थी।

(13) अंग्रेजी शिक्षा ने पाश्चात्य धर्म और साहित्य का अधिक प्रचार किया।

(14) भारतीय भाषाओं से सम्बन्ध रखने वाली शिक्षा संस्थाओं को महत्त्वहीन समझा जाने लगा। लोगों का उत्साह उधर से कम होने लगा। इसलिये इन विद्यालयों की प्रगति अवरुद्ध होती गई।

(15) शिक्षा माध्यम अंग्रेजी बना देने के कारण विद्यार्थियों को इतिहास, भूगोल, गणित तथा अन्य सभी विषय पढ़ाये जाते थे, लेकिन इन विषयों का पूर्ण ज्ञान लोग अंग्रेजी के पूर्ण ज्ञान के अभाव में नहीं प्राप्त कर पाते थे।

(16) किसी विषय को समझने की अपेक्षा रटकर परीक्षा पास करना अपना उद्देश्य छात्रों ने बना लिया। बाजार में इसकी पूर्ति के लिए टीकाओं और कुंजियों का आधिक्य हो गया था।

(17) शिक्षा की इस प्रणाली में परीक्षाओं को ही सर्वोच्च स्थान दिया गया। इससे छात्रों ने परीक्षा पास करना ही अपना उद्देश्य बना लिया।

(18) इस घोषणा पत्र में असाम्प्रदायिक शिक्षा की ओर संकेत कर धर्म-निरपेक्षता का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है किन्तु धर्म प्रचारकों के प्रति वह निष्पक्ष न रहा और उसमें स्पष्टतः यह माना गया है कि ईसाई मत की पुस्तकें राजकीय विद्यालयों के पुस्तकालयों में रखी जा सकती हैं।

(19) छात्रों के पुस्तकालय में रखी बाइबिल को स्वतन्त्रतापूर्वक पढ़ने और ईसाई धर्म के विषय में प्रश्न करने पर अध्यापकों को उनका उत्तर देने का निर्देश किया गया। इस तरह लाइबिल पढ़ने और ईसाई मत पर प्रश्न करने की पूर्ण स्वतन्त्रता दी गई।

(20) सर फिलिप हटांग ने वुड के घोषणा पत्र की प्रशंसा करते हुए उसे भारत के कल्याण के लिए बुद्धिमत्ता का विकास करने वाली नीति का निर्धारक कहा था, परन्तु विद्वानों ने इस मत का खंडन किया है और कहा है कि यह घोषणा-पत्र भारतीय शिक्षा की व्यवस्था पर कोई ध्यान नहीं देता और न ही राज्य पर कोई ऐसा बन्धन लगता है जिससे कि वह एक निश्चित सीमा के सभी बालकों की शिक्षा व्यवस्था पर ध्यान दे सके। इतना ही नहीं वह शिक्षा के रास्ते में होने वाली सबसे बड़ी बाधा निर्धनता को दूर करने की व्यवस्था नहीं करता।

निष्कर्ष– उक्त वर्णन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि वुड के घोषणा-पत्र में गुण के साथ-ही-साथ दोष भी विद्यमान हैं। यहाँ तक कि कुछ विचारक इस घोषणा-पत्र को, घोषणा पत्र कहना भी हास्यास्पद समझते हैं। दूसरी तरफ यह भी सत्य है कि वह हमारी शिक्षा के इतिहास में एक मूल्य देने से भी रहा, क्योंकि इस घोषणा पत्र ने भारतीय शिक्षा को एक निश्चित, सुगम और व्यवस्थित मार्ग प्रदान किया है। हमारा भी यही कहना है कि अपनी सीमाओं और न्यूनताओं के बावजूद भारतीय इतिहास में वुड के घोषणा पत्र का अपना महत्त्व है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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