शैक्षिक आदर्श पर फ्रेरा के विचार लिखिए।
आधुनिक विश्व में अनेकानेक विषम परिस्थितियों की राह आच्छादित है। अपने स्वयं के तुच्छ स्वार्थ से व्यक्ति इतना ग्रसित है कि वह दूसरों को क्षति पहुँचाने में लेशमात्र भी संकोच नहीं कर पा रहा है। अनेकानेक मानसिक यातनाओं और कुपरिस्थितियों से वह ग्रसित है। वैज्ञानिक प्रगति के बाद भी मानव को आत्मीय शान्ति नहीं है। वह स्वनिर्मित वस्तुओं का कृतदास हो गया है। ‘सामाजिक न्याय’ का सम्प्रत्यय विकसित नहीं हो पाया है, जिसके कारण मानवीय दृष्टिकोण संकुचित और एकांगी गया है। यही कारण है कि वह अपने तुच्छ स्वार्थ की खातिर दूसरों की आवश्यकताओं को नहीं समझ पाता और अन्याय हो जाता है। आज हम समाजवाद की बात करते हैं। समाजवाद और पूँजीवाद दोनों की कल्पना आर्थिक मनुष्य की कल्पना है, जो अर्थ और काम को एकमात्र पुरुषार्थ मानती है, लेकिन ‘आर्थिक मनुष्य’ एक अमूर्त प्रत्यय है। मानवतावाद अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों को महत्त्व देकर सम्पूर्ण मानव (Whole Man) को इकाई मानकर चलता है। शिक्षालयों में छात्रों और अध्यापकों की अनेकानेक समस्याएँ हैं। आये दिन घेराव, धरना, तोड़-फोड़, मारपीट इत्यादि अभद्रताएँ हो रही हैं। इसका कारण मानवतावादी शिक्षा का अभाव है। मानवतावादी शिक्षा द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में सौहार्द्र, प्रेम, करुणा, मुदिता का संचार होगा और सर्वत्र शान्ति और भ्रातृत्व होगा।
फ्रेरा ने ठीक ही कहा है कि निरंकुश राज्य और सम्पन्न लोग नहीं चाहते कि किसान पढ़ने की प्रक्रिया में उठ खड़े हो । शिक्षा का आदर्श दलितों, किसानों, मजदूरों को साक्षर व शिक्षित करना आवश्यक है। मानवतावाद का यही सन्देश है। वैसे, मानवतावाद शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम जर्मन शिक्षाविद् एफ.जे. नीथ हैमर (F.J. Neith Hamer) ने ऐसे शिक्षा दर्शन के अर्थ में किया था जो विद्यालय पाठ्यक्रम के रूप में क्लासिक साहित्य के पठन-पाठन का समर्थन करता है। 14वीं सदी से 16वीं सदी का काल यूरोप के इतिहास में पुनर्जागरण काल है जिस काल में शिक्षा में मानवतावाद ने जोर पकड़ा, यह शास्त्रीय मानवतावाद था। फ्रेरा ने जिस मानवतावाद को अपनाया वह आज के मजदूर व दलित वर्ग के प्रति प्रेम से परिपूर्ण है।
औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप मनुष्य मशीन के पुर्जे के सदृश्य हो गया जिससे विद्रोह की भावना का संचार हुआ। नगरीकरण औद्योगीकरण के फलस्वरूप मनुष्य का क्रन्दन या चीख यानि आर्तनाद ही मानवतावाद कहा जायेगा। मानवतावाद कल्पनाओं में नहीं बाह्य जगत में अस्तित्ववान है। वह विचारों, शुभाकांक्षाओं एवं सद्भावनाओं से ओत-प्रोत है। शिक्षा का यही उद्देश्य होना चाहिए।
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