शिक्षाशास्त्र / Education

शैक्षिक नवाचार की अवधारणा | शैक्षिक नवाचार का अर्थ | शैक्षिक नवाचार का प्रयोग | शैक्षिक नवाचार का क्षेत्र

शैक्षिक नवाचार की अवधारणा | शैक्षिक नवाचार का अर्थ | शैक्षिक नवाचार का प्रयोग | शैक्षिक नवाचार का क्षेत्र
शैक्षिक नवाचार की अवधारणा | शैक्षिक नवाचार का अर्थ | शैक्षिक नवाचार का प्रयोग | शैक्षिक नवाचार का क्षेत्र

शैक्षिक नवाचार का अवधारणा स्पष्ट करते हुए इसके प्रयोग व क्षेत्र का वर्णन कीजिए।

शैक्षिक नवाचार की अवधारणा- शैक्षिक नवाचार शिक्षा की सतत् रहने वाली प्रक्रिया को प्रदर्शित करने वाली एक नवीन संकल्पना है। शैक्षिक ‘नवाचार’ शब्द का प्रयोग शिक्षा में आने वाली नवीन पद्धतियों, विधियों, अवधारणाओं और सूचनाओं को प्रकट करने के लिये किया जाता है। इसके अंतर्गत वह समस्त ज्ञान सम्मिलित किया जाता है जो नवीनतम अध्ययनों और अनुसंधानों के माध्यम से विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। वर्तमान वैज्ञानिक विकास के युग में शैक्षिक तकनीकी के नवीन प्रावधानों के कारण इसका महत्व और बढ़ गया है। अंतर्राष्ट्रीयता, वैश्वीकरण और जनसंचार के आधुनिक संसाधनों ने इसे आज के युग की एक आवश्यकता के रूप में स्थापित कर दिया है।

शैक्षिक नवाचार का अर्थ (Meaning of Educational Initiations)

शैक्षिक नवाचार को शिक्षा के नवीन प्रचलित व्यवहारों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। शिक्षा के उक्त प्रचलित व्यवहारों के अंतर्गत उन सभी नवीन अवधारणाओं, विचारों, विधियों, सिद्धांतों, प्रयोगों और सूचनाओं को सम्मिलित किया जा सकता है जो शिक्षाविदों के आधुनिकतम चिन्तन के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई हैं। इस प्रकार नवाचार शैक्षिक तकनीकी के रूप में शिक्षा दर्शन, मनोविज्ञान और विज्ञान आदि शिक्षा के समस्त पहलुओं को प्रभावित करता है।

शैक्षिक नवाचार का प्रयोग

शैक्षिक प्रबन्ध की अवधारणा का कार्य मानवीय तथा गैर-मानवीय संसाधनों का शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये यथासंभव कम से कम समय धन व श्रम को व्यय करके अधिक से अधिक उपलब्धि प्राप्त करना है। अतः प्रबंध का कार्य भी एक शैक्षिक कार्य ही कहा जाएगा। जब वह पूरे विद्यालय की शिक्षा की व्यवस्था करता है, तो शैक्षिक नवाचारों को विद्यालय में प्रविष्ट कराने का भी उसका कुछ न कुछ दायित्व अवश्य बनता है। यहां पर प्रबंध का कुछ न कुछ दायित्व इसलिये कहा गया है कि शैक्षिक नवाचारों का सैद्धान्तिक पक्ष शिक्षकों एवं शिक्षाविदों के कार्यक्षेत्र में आता है, किन्तु उन्हें विद्यालय में लागू करने और प्रचलित करने में प्रबंध का पर्याप्त योगदान रहता है।

किसी शैक्षिक नवाचार को विद्यालय में लागू करना है या नहीं, यदि करना तो किस सीमा तक लागू करना है और किस प्रकार लागू करना है, आदि बातों से संबंधित अनेक प्रश्नों का उत्तर खोजने में प्रबंधकों की विशेष भूमिका रहती है। यह सत्य है कि इस कार्य का उत्तरदायित्व बहुत कुछ प्रधानाचार्य और शिक्षकों पर ही होता है, किन्तु यदि इसमें प्रबंध-तंत्र का सहयोग और समर्थन उनके साथ हो तो शैक्षिक उन्नयन की दृष्टि से बहुत उत्तम होता है। कभी-कभी कुछ राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक कठिनाइयां ऐसी आ जाती हैं, जिनके कारण प्रबंध इन्हें विद्यालय में प्रचलित करने में रुचि नहीं लेते अथवा संकोच करते जिससे शिक्षकों के सामने भी समस्या उत्पन्न हो जाती है। ऐसी स्थिति में प्रबंधकों, प्रधानाचार्य तथा शिक्षकों को मिल कर कोई समुचित हल निकालना चाहिये। जहां तक संभव हो, ऐसे प्रयास किये जाने चाहिए, जिनसे विद्यालयों को शैक्षिक नवाचारों से वंचित न रहना पड़े।

शैक्षिक नवाचार का क्षेत्र

शिक्षा के क्षेत्र में अनेक अनुसंधान होते रहते हैं। यदि ऐसा कोई अनुसंधान उच्च शिक्षा के क्षेत्र से संबंधित हो, तो प्रबंधक उसे अपने माध्यमिक विद्यालय में प्रचलित नहीं कर सकता। इसी प्रकार भारत सरकार की नयी शिक्षा नीति – 1986 में 10 + 2 + 3 शिक्षा संरचना, अल्पसंख्यकों-पिछड़े व वंचितों की शिक्षा, सतत शिक्षा, शिक्षक प्रशिक्षण, ग्रामीण विद्यालयों के विकास, दूरस्थ शिक्षा व मुक्त विद्यालयों की स्थापना, धर्म निरपेक्षता और साक्षरता को लागू करने की बात कही है। इन सब नवाचारों में से उनको लागू करना तो प्रबंधकों के लिये आवश्यक होता है, जो सरकार द्वारा अनिवार्य घोषित किये जाते हैं, किन्तु ऐच्छिक प्रस्तावों पर उन्हें उनकी उपयोगिता और सार्थकता पर विचार करना पड़ता है।

इस दृष्टि से विद्यालयों के लिये शैक्षिक नवाचारों के क्षेत्र को निम्न रूप में वर्णित किया जा सकता है-

  1. अनिवार्य सरकारी नीतियों के अंतर्गत आने वाले शैक्षिक नवाचारों को लागू करना। इसमें शिक्षा संरचना, पाठ्यक्रम, प्रवेश प्रक्रिया आदि को शामिल किया जा सकता है।
  2. विद्यालय प्रबंध में प्रधानाचार्य तथा शिक्षकों की सहभागिता पर विचार करना।
  3. सम्मेलनों, सेमिनारों, गोष्ठियों में प्रस्तावित किये गये नवाचारों पर विचार करना।
  4. लोकतांत्रिक मूल्यों को स्थापित करने में नवीन तथ्यों का समावेश करना।
  5. परीक्षा प्रणार्ली एवं व्यवस्था में परिवर्तन करना।
  6. पाठ्यक्रम में संशोधन करना।
  7. नये-नये व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को लागू करना।
  8. शैक्षिक तकनीकी में होने वाले परिवर्तनों को विद्यालय में प्रचलित करना।
  9. अभिक्रमित अनुदेशन, शिक्षण मशीन तथा कम्प्यूटर सह अनुदेशन आदि विधियों को लागू करना ।
  10. कठोर एवं कोमले सामग्री तकनीकी को प्रोत्साहित करना।
  11. सूक्ष्म शिक्षण की व्यवस्था करना।
  12. समाज सेवा, साक्षरता अभियान एवं दूरस्थ शिक्षा का प्रबंध करना।
  13. सूचना तकनीकी (Information Technology) का प्रयोग करना।
  14. 14. विद्यालय के विकास के लिये नवीन भवनों, विभागों आदि की स्थापना पर विचार करना।
  15. राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव और वैश्वीकरण से संबंधित सूचनाओं तथा ज्ञान का प्रसार ।
  16. सर्व शिक्षा अभियान, प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम तथा सभी के लिये शिक्षा की योजनायें लागू करना।
  17. अंतर्राष्ट्रीय शैक्षिक मानकों पर विचार करना ।
  18. निर्देशन व परामर्श की नवीन तकनीकों का समावेश करना।
  19. मनोरंजक शैक्षिक कार्यक्रमों का आयोजन करना ।
  20. पर्यटन, भ्रमण एवं सांस्कृतिक समारोहों का आयोजन करना।
  21.  खेलकूद को प्रोत्साहन देना ।

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Anjali Yadav

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