विद्यालय संगठन / SCHOOL ORGANISATION

शैक्षिक पर्यवेक्षण की आवश्यकता | The Need for Educational Supervision in Hindi

शैक्षिक पर्यवेक्षण की आवश्यकता | The Need for Educational Supervision in Hindi
शैक्षिक पर्यवेक्षण की आवश्यकता | The Need for Educational Supervision in Hindi

शैक्षिक पर्यवेक्षण की आवश्यकता तथा प्रकृति का उल्लेख कीजिए।

शैक्षिक पर्यवेक्षण की आवश्यकता (The Need for Educational Supervision)

वर्तमान युग में शिक्षा को विकास की नींव माना जाता है। राष्ट्र का भविष्य उज्ज्वल करने के लिए शिक्षित एवं सभ्य युवकों की अत्यन्त आवश्यकता है। देश के युवकों को जितने उत्तम वातावरण में सुशिक्षा प्रदान की जाएगी, निःसन्देह देश के युवक उतने ही होनहार बन सकेंगे। यह निर्विवाद सत्य है कि शैक्षिक पर्यवेक्षण उत्तम शिक्षण प्रक्रिया में पूर्णरूपेण सहायक होता है। अतः देश की सम्पूर्ण शिक्षा प्रक्रिया को समृद्ध बनाने के लिए शैक्षिक पर्यवेक्षण की अत्यन्त आवश्यकता है। शैक्षिक प्रशासन की आवश्यकता को निम्न प्रकार समझा गया है-

1. प्रशिक्षण महाविद्यालयों में अपर्याप्त प्रशिक्षण (Insufficient training in the teacher’s training Institutions) – प्रशिक्षण महाविद्यालयों में अनेक युवक-युवतियाँ शिक्षण का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं, किन्तु विद्यालयों की वास्तविक अवस्था से उनका परिचय नहीं होता। प्रशिक्षण के समय जिन कक्षाओं को पढ़ाया जाता है, उनमें भी कृत्रिम तथा अवास्तविक दशा ही बनी रहती है। परम्परागत विद्यालयों में बी० एड० अथवा बी० टी० प्रशिक्षण कक्षाओं की शिक्षण विधि के प्रति कुछ अरुचि प्रदर्शित की जाती है। अतएव विद्यालय के प्रधानाचार्य या पर्यवेक्षक को अपने ढंग से भी अध्यापकों को कुछ बातें बतलानी होती हैं। शैक्षिक पर्यवेक्षण के आधुनिक स्वरूप में अनेक आवश्यक तथा महत्वपूर्ण बातों को सम्मिलित किया जाता है, जिनका पूर्ण ज्ञान करके पर्यवेक्षक शिक्षकों की स्थिति में सुधार कर सकते हैं। अतएव प्रशिक्षक महाविद्यालयों से निकलने के बाद विद्यालय की वास्तविक अवस्था का बोध कराने के लिए शैक्षिक पर्यवेक्षण की आवश्यकता है।

2. शिक्षक वर्ग की तकनीकी सहायता (For Expert Technical Assistance to the Teachers) – शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक तथा जटिल है। आधुनिक युग में यह स्वीकार किया जाता है कि साधारण योग्यता वाले व्यक्ति पूर्णरूप से सफल नहीं हो सकते शिक्षण के लिए विविध प्रकार के पाठ्यक्रम को तैयार करना होता है तथा शिक्षण कौशल को ठीक प्रकार से सीखना होता है। इसके लिए विशिष्ट कौशल एवं तकनीकी सहायता की आवश्यकता होती है। यह सहायता कार्य उत्तम शैक्षिक पर्यवेक्षण द्वारा ही सफल हो सकता है।

3. विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्तियाँ (New appointments of the teachers in the school) – विद्यालयों में प्रत्येक वर्ष नये अध्यापकों को नियुक्त किया जाता है, जो अनुभव-शून्य ही होते हैं। छात्र-जीवन को छोड़कर शिक्षक रूप में अधिकांश युवक सीधे ही विद्यालयों में प्रविष्ट होते हैं। विद्यालयों में प्रधानाचार्य ही पर्यवेक्षण का कार्य करते हैं। नये अध्यापक व्यक्तिगत विभिन्नता के आधार पर अलग-अलग योग्यता वाले होते हैं। इन सभी को एक सांचे में ढालने का प्रयास पर्यवेक्षक द्वारा ही किया जाता है। शैक्षिक पर्यवेक्षण की उत्तम शिक्षण कार्य के लिए परमावश्यकता होती है।

4. शिक्षकों का निरन्तर विकास (Continued Growth of Teachers) – शिक्षण क्षेत्र में लगातार नवीन विधियों, अनुसन्धानों तथा उपागमों का प्रादुर्भाव होता रहता है। अनुभवी अध्यापकों को अद्यतन (Up-to-date) बनाने के लिए शैक्षिक पर्यवेक्षण के अन्तर्गत विविध पाठ्यक्रमों का संचालन किया जाता है, जिससे उनकी शैक्षिक योग्यता में वृद्धि होती है। शैक्षिक पर्यवेक्षण द्वारा आयोजित विचार गोष्ठियों के परिणामों से भी शिक्षकों को अवगत कराया जाता है। सामाजिक परिवर्तन के साथ शिक्षण व्यवसाय में क्या परिवर्तन किए जाएँ, इसके लिए भी शैक्षिक पर्यवेक्षण हमेशा जागरूक रहता है।

5. व्यावसायिक समस्याओं का निराकरण (Removal of Professional Problems) – विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति के उपरान्त उन्हें अनेक व्यावसायिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। विद्यालयगत परम्पराओं से वे अनभिज्ञ होते हैं। प्रत्येक विद्यालय के नियम भी अलग-अलग होते हैं। इन नियमों से परिचित कराने का उत्तरदायित्व पर्यवेक्षण का होता है। इसके अतिरिक्त पाठ्यक्रम की विविधता, अनुशासन, छात्र सम्पर्क, डायरी, रजिस्टर, शिक्षण विधि, नवीन वातावरण में समायोजन आदि समस्यायें शिक्षकों के सम्मुख होती हैं। वास्तव में, इन सभी समस्याओं का निराकरण प्रधानाचार्य तथा वरिष्ठ अध्यापकों के उचित पर्यवेक्षण द्वारा ही किया जा सकता है। उत्तम पर्यवेक्षण इन सभी समस्याओं का निदान करने में सक्षम होता है।

6. व्यावसायिक नेतृत्व की प्राप्ति (Achievement of Professional Leadership)– आधुनिक शैक्षिक पर्यवेक्षण जनतान्त्रिक नियमों पर आधारित है। शिक्षण व्यवसाय की वास्तविक प्रगति तभी हो सकती है, जब उसमें जनतान्त्रिक प्रणाली को अपनाया गया हो। शैक्षिक पर्यवेक्षण शिक्षकों को व्यावसायिक नेतृत्व शक्ति को प्राप्त कराने में सहायक होता है। विभिन्न कार्यक्रमों का उत्तरदायित्व किस प्रकार निभाया जाए, इसका प्रशिक्षण शैक्षिक पर्यवेक्षण ही देता है।

शैक्षिक पर्यवेक्षण का महत्व (Importance of Educational Supervision)

स्वतन्त्र भारत में विद्यालय शिक्षा का अत्यधिक महत्व है। विद्यालय के कक्षा-भवनों में कल के नागरिकों का निर्माण किया जाता है। देश की सामाजिक, राजनैतिक, वैज्ञानिक एवं तकनीकी आदि परिस्थितियों का प्रभाव विद्यालय की शिक्षा पर भी होता है। वर्तमान युग में समाज की दशा अत्यन्त विस्तृत तथा जटिल है, जहाँ तक बौद्धिक, औद्योगिक, व्यावसायिक तथा वैज्ञानिक उन्नति का प्रश्न है, वर्तमान युग में यह चरमोन्नति पर पहुँची हुई है। विद्यालयों के पाठ्यक्रम में आज विविध विषयों को अपनाया जाता है। ज्ञान के असीमित तथा अतुलित भण्डार को विद्यालयों में अपनाने का अधिकाधिक प्रयास किया जाता है। विद्यालयों तथा महाविद्यालयों की शिक्षा में आज जितनी विविधता, व्यापकता एवं परिमाणात्मकता है वह पहले कभी नहीं थी। अनेक प्राविधिक, कृषि सम्बन्धी व्यावसायिक आदि क्षेत्रों से सम्बन्धित संस्थाओं को स्थापित किया गया है। इस प्रकार के सभी विद्यालयों की शिक्षा को नियन्त्रित करना अत्यन्त जटिल कार्य है। वास्तव में, शिक्षण संस्थाओं तथा शिक्षार्थियों की संख्या में वृद्धि करने से कोई विशेष लाभ तब तक नहीं होता, जब तक उसका उचित रूप से निरीक्षण तथा पर्यवेक्षण न किया जाता हो। विज्ञान तथा तकनीकी के कारण आज शिक्षण सामग्री तथा शिक्षक उपकरणों के क्षेत्र में अधिकाधिक विकास हुआ है। अतएव इनका समुचित लाभ उठाने के लिए शैक्षिक पर्यवेक्षण के महत्व को स्वीकार किया जाता है।

शैक्षिक क्षेत्र में शिक्षण विधियों, शिक्षक की समस्याओं, उचित पाठ्यक्रम निर्धारण, पाठ्येत्तर क्रिया-कलापों को विद्यालयों में किस प्रकार सुनियोजित किया जाए तथा शिक्षा के स्तर को गुणात्मकता की ओर किस प्रकार अग्रसर किया जाए, वास्तव में इसके लिए शैक्षिक पर्यवेक्षण अधिक मूल्यवान तथा लाभकारी है। अल्प व्यय करके उत्तम शिक्षा ग्रहण करने तथा मानवीय साधनों की अधिकतम उपलब्धि कराने में शैक्षिक पर्यवेक्षण की विधियाँ महत्वपूर्ण समझी जाती हैं। इसके अतिरिक्त, भौतिक साधनों को भी उचित रूप में जुटाने के कार्य में शैक्षिक प्रशासन सहायक होता है। विद्यालय सामुदायिक स्रोतों को अपनाकर किस प्रकार उन्नति करे एवं सामाजिक आवश्यकताओं के अनुरूप विद्यालयों की शिक्षा में किस प्रकार का परिवर्तन किया जाए, इसके लिए दिशा-निर्देश शैक्षिक प्रशासन ही कर सकता है। शैक्षिक योजनाओं का निर्माण करने, विद्यालयों के समस्त कार्यक्रमों का उचित मूल्यांकन करने तथा शिक्षा कार्य को अधिकाधिक प्रभावशाली बनाने में शैक्षिक पर्यवेक्षण अत्यन्त महत्वपूर्ण तथा उपयोगी है।

शैक्षिक पर्यवेक्षण की प्रकृति (Nature of Educational Supervision)

शैक्षिक पर्यवेक्षण शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐसी प्रक्रिया है, जिससे शिक्षा की उत्तम व्यवस्था की जाती है। शैक्षिक पर्यवेक्षण की प्रकृति अत्यन्त गत्यात्मक (Dynamic) होती है, जो शैक्षिक स्तर को ऊँचा करने में सदैव सहायक होती है। शैक्षिक पर्यवेक्षण की प्रकृति की कुछ विशेषताओं का उल्लेख निम्नलिखित पंक्तियों में किया जा सकता है-

1. शैक्षिक पर्यवेक्षण शिक्षण प्रक्रिया की उन्नति में सहायक होता है (Educational Supervision is always helpful for the improvement of teaching) – शैक्षिक पर्यवेक्षण वास्तव में शिक्षण कार्य की दशाओं में सदैव उन्नति प्रदान करता है। शिक्षण यदि उत्तम ढंग से होता है, तो सीखने की स्थिति में भी सुधार हो जाता है, अतएव शैक्षिक पर्यवेक्षण के अन्तर्गत जितनी नवीन विधियाँ अपनाई जाती हैं, उनका उद्देश्य शिक्षण प्रक्रिया को उन्नत करना ही होता है।

2. शैक्षिक पर्यवेक्षण शैक्षिक सेवा है (Educational Supervision as a service) – शैक्षिक पर्यवेक्षण शैक्षिक सेवा के रूप में कार्य करता है। आधुनिक पर्यवेक्षण की भावना प्रशासन की नहीं, अपितु सेवा की होती है।

3. पर्यवेक्षण का शिक्षकों के प्रति उदार दृष्टिकोण (Liberal attitude of Educational Supervision towards Teachers) – शैक्षिक पर्यवेक्षण शिक्षकों के प्रति उदार दृष्टिकोण रखता है। उन्हें परम्परागत प्रणालियों से हटाकर स्वतन्त्र रूप में कार्य करने की प्रेरणा देता है। उत्तम पर्यवेक्षण शिक्षकों को आत्मावलम्बी एवं उत्साही बनाता है। शिक्षकों पर अधिक अंकुश तथा दबाव न रखने के कारण ही शैक्षिक पर्यवेक्षण उदार दृष्टिकोण वाला होता है।

शैक्षिक पर्यवेक्षण की प्रकृति शिक्षा के क्षेत्र में शैक्षिक उन्नति में सहायक होती हैं तथा शिक्षकों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करने के लिए उपायों को सुझाती है। वस्तुतः शैक्षिक पर्यवेक्षण एक ऐसी सहयोगात्मक प्रक्रिया है, जिसमें सभी शिक्षक निस्संकोच भाग लेते हैं तथा पर्यवेक्षण शैक्षिक नेता, निर्देशक तथा परामर्शदाता के रूप में कार्य करता है। पर्यवेक्षक आलोचक या निर्देशक बनकर कार्य नहीं करता, अपितु शैक्षिक उन्नति के लिए सभी का सहयोगी बनकर कार्य करता है। शिक्षण विधियों को लागू करने, कर्त्तव्यों का विभाजन करने, पाठ्यक्रम एवं पाठ्य पुस्तक का निर्माण करने में शैक्षिक पर्यवेक्षक सभी शिक्षकों की रुचियों का ध्यान रखता है। उत्तम शैक्षिक पर्यवेक्षण प्रयोगात्मक कार्यों को करने की स्वतन्त्रता प्रदान करता है तथा शिक्षकों और छात्रों के व्यक्तित्व को पूर्णतया विकसित करने में विश्वास रखता है।

4. व्यावसायिक ‘नेतृत्व’ हेतु प्रोत्साहनकारी (Stimulating Professional Leadership)– शैक्षिक पर्यवेक्षण के अन्तर्गत शिक्षकों को शिक्षण कार्य सिखाने का प्रयास किया जाता है। शैक्षिक पर्यवेक्षकों की सहानुभूति शिक्षकों को नवीन एवं रचनात्मक कार्यों में रुचि लेने के लिए प्रोत्साहन देती है। शिक्षकों को व्यक्तित्व का विकास करने के पर्याप्त अवसर प्रदान किए जाते हैं। इस प्रकार शैक्षिक पर्यवेक्षण शिक्षकों को व्यावसायिक नेतृत्व की योग्यता प्रदान करने में सहायक होता है।

5. शैक्षिक पर्यवेक्षण में सहयोग की भावना (Educational Supervision as a Cooperative enterprise) – शैक्षिक पर्यवेक्षण की प्रवृत्ति में संयोगात्मक भावना की प्रमुखता होती है। शिक्षकों के विकास के लिए शैक्षिक पर्यवेक्षण की नीति समन्वयकारी तथा सहयोगात्मक होती है। शिक्षकों को इस प्रकार प्रोत्साहित किया जाता है कि वे व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप में अपने कार्यों का सम्पादन प्रभावशाली ढंग से करते हैं। शिक्षकों का शिक्षण कौशल छात्रों को भी अधिक बुद्धिमान तथा जनतान्त्रिक समाज में कुशलतापूर्वक भाग लेने के लिए सक्षम बना देता है। वास्तव में, शिक्षकों में ऐसी योग्यता तभी उत्पन्न की जा सकती है, जब पर्यवेक्षण का पूर्ण सहयोग शिक्षकों के प्रति होता है। इस सम्बन्ध में ‘राष्ट्रीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्’ द्वारा आयोजित एक विचार गोष्ठी का मत भी उल्लेखनीय है—“शैक्षिक पर्यवेक्षण का नवीन प्रत्यय इस विश्वास पर आधारित है कि निरीक्षण तथा पर्यवेक्षण सहयोगात्मक कार्य है, जिसमें शिक्षक तथा निरीक्षण अधिकारी दोनों सक्रिय होकर भाग लेते हैं। उन्हें एक-दूसरे की समस्या से अवगत होना चाहिए और एक टीम के रूप में कार्य करना चाहिए।”

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Anjali Yadav

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