विद्यालय संगठन / SCHOOL ORGANISATION

शैक्षिक प्रशासन तथा पर्यवेक्षण में अन्तर | पर्यवेक्षण एवं निरीक्षण में अन्तर | निरीक्षण तथा पर्यवेक्षण का संक्षेप में अन्तर

शैक्षिक प्रशासन तथा पर्यवेक्षण में अन्तर | पर्यवेक्षण एवं निरीक्षण में अन्तर | निरीक्षण तथा पर्यवेक्षण का संक्षेप में अन्तर
शैक्षिक प्रशासन तथा पर्यवेक्षण में अन्तर | पर्यवेक्षण एवं निरीक्षण में अन्तर | निरीक्षण तथा पर्यवेक्षण का संक्षेप में अन्तर

शैक्षिक प्रशासन, पर्यवेक्षण तथा निरीक्षण के सूक्ष्म अन्तर को स्पष्ट कीजिए।

शैक्षिक प्रशासन तथा पर्यवेक्षण में अन्तर

शिक्षा के क्षेत्र में प्रशासन एवं पर्यवेक्षण दोनों ही प्रत्यय नवीन एवं महत्वपूर्ण हैं। प्रशासन तथा पर्यवेक्षण दोनों प्रत्यय एक नहीं हैं। इनके पारस्परिक अन्तर को स्पष्ट करना अत्यन्त आवश्यक है।

“प्रशासन” वास्तव में, एक ऐसी प्रक्रिया है, जो किसी संस्था में भौतिक साधनों को जुटाने तथा कम व्यय में सर्वोत्तम कार्यों को करने के साधनों पर विचार करती है। किसी शिक्षण संस्था में कक्षा भवनों का निर्माण, क्रीड़ा क्षेत्र, पुस्तकालय तथा प्रयोगशाला की सुव्यवस्था का कार्य प्रशासन के अन्तर्गत ही आता है, परन्तु पर्यवेक्षण का उद्देश्य प्रशासन के उद्देश्य से कुछ भिन्न होता है। “शिक्षकों की शिक्षण विधि में सुधार, शिक्षण सामग्री में उचित सुधार, शिक्षण प्रक्रिया का मूल्यांकन, छात्रों को वांछित उद्देश्यों की अधिकाधिक प्राप्ति कराने का प्रयास आदि ऐसे कार्यों को पर्यवेक्षण के कार्यों में गिनाया जा सकता है, जिनसे शिक्षण-प्रक्रिया में उन्नति होने की सम्भावना हो।” पर्यवेक्षण सम्बन्धी कार्यों का प्रभाव संस्था में एवं संस्था से बाहर गुणात्मक रूप में होता है। जिस संस्था में पर्यवेक्षण की उत्तम विधियों को अपनाया जाता है, उस संस्था का परीक्षा परिणाम उन्नत होता है तथा संरक्षक भी उस संस्था की प्रशंसा करते हैं। विलियम टी० मेलशियर (William T. Melchior) के प्रशासन का कार्य नागरिकों को भवन तथा भूमि को प्रदान करने से प्रारम्भ होता है, इनकी रक्षा के लिए व्यय करना, शिक्षकों की सेवा सुरक्षा करना तथा विद्यालय की सामान्य रूप से देखभाल करने का कार्य शैक्षिक प्रशासन का ही होता है।”

“पर्यवेक्षण का कार्य शिक्षकों के कक्षा भवनों में जाने के साथ प्रारम्भ होता है तथा संरक्षकों को सूचना देने तथा साक्षात्कार करने के साथ ही समाप्त होता है।”

“प्रशासन” एवं “पर्यवेक्षण के कार्यों की भिन्नता वास्तव में प्रशासक के निश्चय पर अवलम्बित होती है। शिक्षण संस्था के प्रधानाचार्य को प्रशासक तथा पर्यवेक्षक दोनों के उत्तरदायित्वों पर निर्वाह करना पड़ता है। उदाहरणार्थ- प्रधानाचार्य कक्षा-भवन में प्रवेश करते हैं, कक्षा में चारों ओर दृष्टि डालकर, डायरी में कुछ लिखकर तथा शिक्षक की ओर सिर हिलाकर कक्षा से बाहर चले जाते हैं। उस समय प्रशासन तथा पर्यवेक्षण दोनों में से किस कार्य को प्रधानाचार्य द्वारा किया गया, वास्तव में, इसका सही ज्ञान प्रधानाचार्य के उद्देश्य एवं निश्चय को जानकर ही किया जा सकता है। इसका सही स्पष्टीकरण है–यदि उस समय प्रधानाचार्य का उद्देश्य कक्षा-भवन के बाह्य वातावरण का निरीक्षण करना है अर्थात् कक्षा भवन के रोशनदान, फर्नीचर तथा सफेदी आदि पर ध्यानाकर्षण करना है तो प्रधानाचार्य का कार्य “प्रशासन” से सम्बन्धित है। इसके अतिरिक्त प्रधानाचार्य का तत्कालीन उद्देश्य यदि शिक्षक की “शिक्षण विधि, कक्षा अनुशासन, शिक्षण सामग्री का प्रयोग” आदि कार्यों की ओर ध्यान देना है तो उनका कार्य ‘पर्यवेक्षण’ के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाएगा।

वास्तव में, “पर्यवेक्षण” एक ऐसी शैक्षिक सेवा है, जिसका सम्बन्ध विशेष रूप से शैक्षिक दशाओं में सुधार करना है। शिक्षण प्रक्रिया के अन्तर्गत “शिक्षक, छात्र, पाठ्यक्रम, शिक्षण सामग्री” आदि को सम्मिलित किया जाता है तथा इन सभी कार्यों की अवस्थाओं में उन्नति प्रदान करना पर्यवेक्षण का मुख्य कार्य समझा जाता है। पर्यवेक्षण के सम्बन्ध में एडम्स तथा डिक्की (Harnold P. Adams & Frank G. Dickey) के अनुसार-“पर्यवेक्षण एक सेवा है जो विशेष रूप से निर्देशन तथा उसकी उन्नति से सम्बन्धित होती है। इसका सीधा सम्बन्ध शिक्षण तथा अधिगम से तथा इनके अन्य तत्वों, शिक्षक, छात्र, पाठ्यक्रम, निर्देशन की सामग्री एवं परिस्थिति के सामाजिक तथा भौतिक वातावरण से है।”

प्रशासनिक कार्यों का उद्देश्य भी संस्था की उन्नति करना ही होता है। जैसे-बजट का निर्माण, भवन निर्माण, तथा समय विभाग चक्र निर्माण आदि अनेक कार्य संस्था की उन्नति में ही सहायक होते हैं, परन्तु ये सभी कार्य परोक्ष में ही सहायक होते हैं, किन्तु ऐसे कार्य जो प्रत्यक्ष रूप में शिक्षण प्रक्रिया की उन्नति में सहायक होते हैं, वे पर्यवेक्षण सम्बन्धी कार्य होते हैं। Adams & Dickey ने प्रशासन एवं पर्यवेक्षण के अन्तर को इन दो शब्दों में स्पष्ट किया है—“प्रशासनिक कार्य का सम्बन्ध सामग्री जुटाने की सुविधाओं तथा विद्यालयों के संचालन से होता है। पर्यवेक्षण के कार्यों का सम्बन्ध अधिगम परिस्थितियों में उन्नति करना होता है।”

‘प्रशासन’ तथा ‘पर्यवेक्षण’ के पारस्परिक अन्तर को संक्षेप में इस प्रकार दर्शाया जा सकता है-

1. प्रशासन का मुख्य कार्य संस्था के संचालन में निहित है, परन्तु पर्यवेक्षण संस्था को चलाने वाले शिक्षकों की दशा में उन्नति के उपायों पर ध्यान देता है।

2. प्रशासन का कार्य संस्था में भौतिक सुविधाओं को उपलब्ध कराना है, परन्तु पर्यवेक्षण का ध्यान इस ओर न होकर शिक्षण प्रक्रिया की उन्नति हेतु साधनों को जुटाना है।

3. समय विभाग चक्र बनाना, शिक्षकों को आवश्यकतानुसार कक्षाओं में भेजना, पाठ्येत्तर क्रियाओं के लिए समय आदि का निश्चय करना प्रशासनिक कार्य होते हैं, किन्तु पर्यवेक्षण तो शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में सम्मिलित सभी तत्वों छात्र, शिक्षक, पाठ्यक्रम, शिक्षण सामग्री आदि को उन्नत अवस्था में लाने का प्रयत्न करता है।

4. संस्था के भवन, पुस्तकालय, प्रयोगशाला आदि के निर्माण का उत्तरदायित्व प्रशासन पर ही होता है। पर्यवेक्षण का सीधा सम्बन्ध इसके निर्माण से न होकर इनमें किए जाने वाले शिक्षण कार्य की ओर ध्यान देना होता है।

पर्यवेक्षण एवं निरीक्षण में अन्तर (Difference between Supervision and Inspection)

पर्यवेक्षण एवं ‘निरीक्षण’ दोनों शब्दों में पारस्परिक अन्तर को स्पष्ट रूप में समझना आवश्यक है। वास्तव में, शब्दों के अर्थ – देश, काल एवं परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन होता रहता है। ‘निरीक्षण’ शब्द अत्यधिक प्रचलित है तथा अधिक सामान्य दशाओं के लिए प्रयुक्त किया जाता है। जैसे— सफाई निरीक्षक, आयकर निरीक्षक, बिक्रीकर निरीक्षक, पुलिस निरीक्षक आदि सभी अर्थों में निरीक्षक शब्द का प्रयोग होता है। ‘निरीक्षक’ शब्द ही कुछ भ्रम, आशंका एवं आतंक को प्रकट करता है। किसी घटना विशेष को आँखों से देखना और उसकी यथा तथ्य आख्या (Report) प्रस्तुत करना निरीक्षक का कार्य होता है, किन्तु शिक्षा क्षेत्र में विशेष रूप से स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् शैक्षिक जगत में ‘निरीक्षक’ शब्द के प्रयोग किए जाने पर शिक्षाशास्त्रियों ने कुछ आपत्ति प्रकट की, जो न्याययुक्त प्रतीत होती है स्वतन्त्रता से पूर्व भारतवर्ष की परिस्थितियों में विद्यालय निरीक्षक अध्यापकों तथा छात्रों के मन में आतंक उत्पन्न करता था। उस समय विद्यालय का निरीक्षण किए जाने का अर्थ अध्यापकों का छिद्रान्वेषण (Fault-Finding) ही समझा जाता था। उस समय निरीक्षक की स्थिति सचमुच ही भयावह तथा अधिकारिक (Authoritative) होती थी, किन्तु जब से भारतवर्ष स्वतन्त्र हुआ तभी से निरीक्षक (Inspector) के स्थान पर विद्वानों ने पर्यवेक्षक अथवा शिक्षा अधिकारी शब्दों का प्रयोग करने का सुझाव दिया।

वर्तमान युग में पर्यवेक्षक शब्द को ही अधिक उपयुक्त समझा जाता है, क्योंकि पर्यवेक्षक का उद्देश्य शैक्षिक दशाओं में उन्नति करने का अधिक होता है। पर्यवेक्षण में शिक्षकों को उत्साहित करने एवं शिक्षण कार्य में नवीन उपागमों को अपनाने के लिए अथक प्रयास किया जाता है। पर्यवेक्षक का स्वरूप शिक्षकों के लिए भयावह न होकर “परामर्शदाता”, “मित्र” एवं “पथ-प्रदर्शक” के रूप में अधिक समझा जाता है। ‘निरीक्षक’ शब्द को परिवर्तित करने के लिए सर्वप्रथम “माध्यमिक शिक्षा आयोग” के अनुसार-“हमारी दृष्टि में निरीक्षक की वास्तविक भूमिका जिसके लिए हम ‘शिक्षा सलाहकार कहना अधिक पसन्द करेंगे- प्रत्येक विद्यालय की समस्याओं का अध्ययन करना, विद्यालय के कार्यों के सम्बन्ध में व्यापक दृष्टिकोण बनाना, शिक्षकों की सहायता करना एवं दी हुई सलाहों और संस्तुतियों के कार्यान्वयन करने में निहित है। “

कालान्तर में “निरीक्षक” शब्द के सम्बन्ध में अन्य देशों में भी विचार किया गया तथा इस शब्द के स्थान पर परामर्शदाता (Councillor), अधीक्षक (Superintendent) एवं पर्यवेक्षक (Supervisor) शब्दों के प्रयोग को अधिक उपयुक्त समझा गया। इस सम्बन्ध में Prof. L. Mukherjee के अनुसार- “निरीक्षक” शब्द पुलिस निरीक्षक जैसा भयावह प्रतीत होता है। उनके अनुसार इसे विद्यालय परामर्शदाता के रूप में परिवर्तित किया जाना चाहिए। इस कथन का उल्लेख डॉ० एस० एन० मुखर्जी के शब्दों में इस प्रकार किया जा सकता है- “यदि ‘निरीक्षक’ शब्द को जो पुलिस इन्स्पेक्टर जैसी आतंककारी भावना का परिचायक है, विद्यालय-परामर्शदाता अथवा विद्यालय की देखभाल करने वाले शब्दों में बदल दिया जाए तो सम्भवतः कुछ अधिक लाभ की आशा की जा सकती है।”

कुछ विद्वानों के अनुसार भारतवर्ष की परिस्थितियों में केवल ‘निरीक्षक’ शब्द ही सर्वथा उपयुक्त है। विदेशों में शैक्षिक क्षेत्र में जो मित्र भाव अथवा परामर्शदाता का भाव अपनाया जाता है, वह उनकी सभ्यता तथा संस्कृति के अनुकूल है। विदेशी वातावरण को भारतीय परिस्थितियों में ज्यों का त्यों नहीं अपनाया जा सकता। भारतवर्ष के विद्यालयों में पर्यवेक्षक के अर्थ को ठीक समझा ही नहीं जा सकता हैं-

निरीक्षण तथा पर्यवेक्षण का संक्षेप में अन्तर

1. ‘निरीक्षण’ शब्द में भय, आतंक एवं आशंका व्याप्त होती है, परन्तु ‘पर्यवेक्षण’ शब्द में सहृदयता तथा सहानुभूति का भाव विद्यमान होता है।

2. शैक्षिक-निरीक्षण के अन्तर्गत स्वामित्व (Bossism) की गन्ध आती है, किन्तु पर्यवेक्षण में भ्रातृ-भाव तथा समानता का भाव सम्मिलित होता है।

3. ‘निरीक्षण’ केवल यथातथ्य जानकारी ही प्रस्तुत करता है, परन्तु पर्यवेक्षण किसी घटना अथवा परिस्थिति की वास्तविक जानकारी प्राप्त करके उसमें उन्नति करने के लिए सुझाव प्रस्तुत करता है।

4. निरीक्षण कार्य का उद्देश्य केवल ‘आख्या’ (Report) लिखने तक ही सीमित होता है, परन्तु पर्यवेक्षण का कार्य तो विद्यालय की चरमोन्नति तक निरन्तर विद्यमान होता है।

5. शिक्षा के क्षेत्र में निरीक्षक का कार्य केवल अध्यापकों की आलोचना करना है, परन्तु शैक्षिक पर्यवेक्षण शिक्षकों के स्तरों में सुधार करने तथा शिक्षण प्रक्रिया को उन्नत करने के लिए होता है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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