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संरचनात्मक मूल्यांकन (Formative Evaluation) : विशेषताएँ, उद्देश्य, लाभ एंव दोष

संरचनात्मक मूल्यांकन (Formative Evaluation) : विशेषताएँ, उद्देश्य, लाभ एंव दोष
संरचनात्मक मूल्यांकन (Formative Evaluation) : विशेषताएँ, उद्देश्य, लाभ एंव दोष

संरचनात्मक मूल्यांकन (Formative Evaluation)

माइकल स्क्रीवेन (Michael Scriven) ने संरचनात्मक तथा योगात्मक आंकलन का प्रत्यय सन् 1967 में दिया तथा सन् 1968 में बेंजामिन ब्लूम (Benajamin Bloom) ने अपनी पुस्तक ‘Learning for Mastery‘ में इस प्रत्यय के बारे में बताया कि यह शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में छात्रों के सुधार के लिए एक उपकरण के रूप में प्रयोग किया जाता है। अंग्रेजी शब्द Formative का अर्थ संरचनात्मक तथा आरम्भिकता दोनों से लिया जाता है।

संरचनात्मक मूल्यांकन को कई लोगों द्वारा ‘अधिगम के लिए मूल्यांकन’ भी कहा जाता है। इस प्रकार के मूल्यांकन का मुख्य प्रयोजन छात्रों को वह रचनात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त करने में सक्षम बनाना है जो उन्हें बेहतर सीखने और प्रभावी प्रगति करने में उनकी मदद करेगी। ऐसी प्रतिक्रिया आम तौर पर (लेकिन हमेशा नहीं) शिक्षकों द्वारा दी जाती है।

दूसरे शब्दों में, शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षण की पाठ्यवस्तु को हमेशा इकाइयों में बाँटकर शिक्षण किया जाता है। प्रत्येक इकाई को दो या तीन इकाइयों में समूह को छात्रों को पढ़ाने के बाद अन्त में परीक्षण दिया जाना चाहिए। इसे ही इकाई परीक्षण या संरचनात्मक मूल्यांकन (Formative Evaluation) कहते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में यह मूल्यांकन वह मूल्यांकन है जो कि किसी निर्माणाधीन शिक्षानीति, शिक्षणविधि या मूल्यांकन विधि की संरचना को अन्तिम रूप देने से पहले किया जाता है। यह छात्र के प्रारम्भिक ज्ञान की परीक्षा है तथा प्रदत्त ज्ञान को व्यवहार में प्रयुक्त करने की योग्यता है। यह छात्र में होने वाले उस व्यवहार सम्बन्धी परिवर्तन की ओर संकेत करता है जिससे वह सैद्धान्तिक विषयों से प्रायोगिक विषयों की ओर अग्रसर होता है अर्थात् इसमें छात्र एवं छात्रा द्वारा अपने प्राप्त ज्ञान का दैनिक जीवन में प्रयोग करने का मूल्यांकन किया जाता है। संरचनात्मक मूल्यांकन के अन्तर्गत निदानात्मक परीक्षण भी औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों ही तरीके से शामिल होता है। यह अध्यापक द्वारा निर्मित होता है एवं शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में सुधार लाता है तथा छात्र इसके माध्यम से अधिक सीखते हैं। संरचनात्मक मूल्यांकन छात्र के अंतिम ग्रेड या अंक का हिस्सा नहीं होते हैं। यह अधिगम और समझ में सुधार के लिए सकारात्मक प्रतिक्रिया प्रदान करने के लिए प्रयोग किया जाता है। संरचनात्मक मूल्यांकन के परिणाम को ग्रेड शीट पर रिकॉर्ड नहीं किया जाता है। संरचनात्मक मूल्यांकन द्वारा सूचनाएँ एकत्र करने की विधियाँ निम्न हैं-

  1. प्रश्नावली (Questionnaire),
  2. सर्वे (Surveys),
  3. स्व एवं सहकर्मी मूल्यांकन (Self and Peer Assessment)
  4. निरीक्षण (Observation) एवं
  5. परीक्षा (Testing) |

संरचनात्मक मूल्यांकन की विशेषताएँ (Characteristics of Formative Evaluation)

संरचनात्मक मूल्यांकन का योगात्मक मूल्यांकन के मुकाबले बहुत अलग प्रयोजन और दृ ष्टिकोण होता है। योगात्मक मूल्यांकन अधिक औपचारिक होता है। संरचनात्मक मूल्यांकन कक्षा के संदर्भ में संपन्न होता है और शिक्षक और छात्र के बीच सम्बंध की बुनियाद पर विकसित होता है। संरचनात्मक मूल्यांकन (सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकंडरी एजुकेशन, 2009) की मुख्य विशेषताएँ ये हैं-

  1. वह नैदानिक और सुधारात्मक है।
  2. वह प्रभावी प्रतिक्रिया के लिए प्रावधान करता है।
  3. वह छात्रों के स्वयं सीखने में उनकी सक्रिय भागीदारी के लिए मंच प्रदान करता है।
  4. वह शिक्षकों को मूल्यांकन के नतीजों को ध्यान में रखते हुए अध्यापन को समायोजित करने में सक्षम करता है।
  5. वह उस अगाध प्रभाव की पहचान करता है जो मूल्यांकन छात्रों की प्रेरणा और आत्म-सम्मान, जिनके सीखने की प्रक्रिया पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव होते हैं, पर दृष्टि डालता है।
  6. वह छात्रों की स्वयं का मूल्यांकन करने और सुधार करने के तरीके को समझने में सक्षम होने की जरूरत की पहचान करता है।
  7. वह जो कुछ पढ़ाया जाना है उसकी परिकल्पना के लिए छात्रों के पूर्व ज्ञान और अनुभव की नींव पर विकसित होता है।
  8. कैसे और क्या पढ़ाया जाना है यह तय करने के लिए सीखने की विभिन्न शैलियों को समाविष्ट करता है।
  9. छात्रों को वे मापदंड समझने को प्रोत्साहित करता है जिनका उपयोग उनके काम को परखने के लिए किया जाएगा।
  10. छात्रों को प्रतिक्रिया के बाद उनके काम को सुधारने का अवसर प्रदान करता है।
  11. छात्रों की उनके समकक्षों की सहायता करने और उनके द्वारा सहायता किए जाने में मदद करता है।

संरचनात्मक मूल्यांकन शिक्षक को वहाँ से आगे बढ़ने का अवसर देता है जहाँ छात्र होता है और छात्र को यह समझने का मौका देता है कि उन्हें सफल होने के लिए क्या करना है। इसलिए संरचनात्मक मूल्यांकन विद्यार्थी को शामिल करता है और छात्र को उसके सीखने का स्वामित्व प्रदान करता है।

संरचनात्मक मूल्यांकन के उद्देश्य (Objectives of Formative Evaluation)

संरचनात्मक मूल्यांकन के उद्देश्य निम्न हैं-

  1. अध्यापकों को इसके द्वारा पृष्ठपोषण (Feedback) प्रदान करना।
  2. विद्यार्थियों को ज्ञानात्मक स्तर के सुधार के तरीके बताना।
  3. इसके द्वारा विद्यार्थियों को उच्चस्तर की शिक्षा देना।
  4. धनात्मक अभिप्रेरित विश्वास तथा आत्मसम्मान को प्रोत्साहित करना।
  5. अध्यापक को सूचनाएँ प्रदान करना ताकि शिक्षण में सुधार किया जा सके।

संरचनात्मक मूल्यांकन के लाभ (Advantages of Formative Evaluation)

संरचनात्मक मूल्यांकन के लाभों का अध्ययन हम दो सन्दर्भों में कर सकते हैं-

1) अध्यापकों के लिए (For Teachers)-

इससे अध्यापकों को निम्न लाभ होते हैं-

i) इसके द्वारा अध्यापक यह जानने में सक्षम होते हैं कि छात्र का अर्जित ज्ञान कितना है।

ii) अध्यापक इसके द्वारा यह निश्चित करता है कि उसे निर्देश में क्या परिवर्तन करने हैं ताकि सभी विद्यार्थी उसे समझ कर आगे बढ़ सकें।

iii) इसके द्वारा अध्यापक सामूहिक तथा व्यक्तिगत दोनों ही रूप से परीक्षा का निर्माण छात्रों के लिए कर सकता है।

iv) अध्यापक छात्रों को उनकी उन्नति के विषय में बता सकते हैं जो उन्हें उनके लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक होते हैं।

2) विद्यार्थी के लिए (For Students) –

 विद्यार्थियों के लिए निम्न लाभ हैं-

ⅰ) विद्यार्थी और अधिक सीखने के लिए अभिप्रेरित होते हैं।

ii ) विद्यार्थी स्व-अधिगम के लिए तैयार होते हैं।

iii) अध्यापक के साथ-साथ मूल्यांकन का लाभ भी विद्यार्थी उठाते हैं।

iv) विद्यार्थी बहुत से जीवन सम्बन्धी कौशल को सीखते हैं, जैसे- स्व-मूल्यांकन (Self-Evaluation), स्व-आंकलन (Self-Assessment), लक्ष्यों को निर्धारित करना आदि हैं।

संरचनात्मक मूल्यांकन के दोष (Demerits of Formative Evaluation)

संरचनात्मक मूल्यांकन के दोष निम्नलिखित हैं-

1) व्यक्तित्व के सभी पक्षों का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता है।

2) छात्र की विचार शक्ति का मूल्यांकन करना सरल नहीं है।

3 ) प्रारम्भिक स्तर के मूल्यांकन द्वारा ही छात्र के भविष्य की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है।

4) इसका क्षेत्र अत्यन्त संकुचित है।

5) इस विधि के आधार पर छात्रों के विषय में ठोस निष्कर्ष नहीं लिया जा सकता है।

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Anjali Yadav

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