विद्यालय संगठन / SCHOOL ORGANISATION

समय तालिका अथवा समय-सारणी से आप क्या समझते हैं ?

समय तालिका अथवा समय-सारणी से आप क्या समझते हैं ?
समय तालिका अथवा समय-सारणी से आप क्या समझते हैं ?

समय तालिका अथवा समय-सारणी से आप क्या समझते हैं ? समय-सारणी की आवश्यकता महत्व तथा उपयोगिता का उल्लेख कीजिये।

समय तालिका (Time-Table)

विद्यालय के नियोजन में समय तालिका का विशेष महत्व होता है। प्रधानाचार्य को विद्यालय में संचालन के लिए कार्यप्रणाली के लिए एक प्रारूप तैयार करना होता है। उसे विद्यालय की समय-तालिका कहते हैं। समय-तालिका का नियोजन एक कठिन कार्य माना जाता है। इसलिए शिक्षक एवं प्रधानाचार्य को समय-तालिका का ज्ञान और कौशल होना आवश्यक होता है।

समय-तालिका का अर्थ (Meaning of Time Table)

समय तालिका वह सूची है, जिसमें शिक्षकों एवं कक्षाओं का एक सप्ताह का कार्य वितरण प्रदर्शित किया जाता है। एक सप्ताह में किस कक्षा को कौन-कौन से विषय, किन-किन घण्टों में किन अध्यापकों द्वारा पढ़ाये जाते हैं ? यह चार्ट समय एवं कार्य का विवरण प्रस्तुत करता है। इससे यह भी पता चलता है कि किस दिन में किस कक्षा की क्या गतिविधियाँ अथवा कार्यक्रम होंगे एवं अध्यापक विशेष को क्या-क्या कार्य करने होंगे? इस प्रकार समय-सारिणी विद्यालय की समस्त क्रियाओं के लिए समय तथा मानवशक्ति का विवरण प्रस्तुत करती है। इसके द्वारा विद्यालयी कार्यक्रमों को सुगमतापूर्वक नियन्त्रित किया जा सकता है। एक० जी० स्टैज महोदय के अनुसार, विद्यालय की जिस तालिका, योजना अथवा चार्ट के अनुसार प्रतिदिन के निर्धारित समय को विभिन्न विषयों, क्रियाओं एवं कक्षाओं के मध्य प्रदर्शित किया जाता है, समय-विभाग-चक्र या समय तालिका कहलाता है। वस्तुतः समय तालिका समस्त विद्यालयी क्रिया-कलापों का मूलाधार होती है।

समय तालिका की आवश्यकता (Need of Time Table)

समय तालिका विद्यालयी कार्यों के व्यवस्थित संचालन हेतु एक महत्वपूर्ण साधन है। समय-सारणी के महत्व पर प्रकाश डालते हुये एस० एन० मुखर्जी ने लिखा हैं कि, “समय-सारिणी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह ऐसा दर्पण है, जो समस्त शैक्षणिक कार्यक्रम सत्यता के साथ प्रतिबिम्बित करता है।” वास्तव में, समय-सारिणी पूरे विद्यालय पर नियन्त्रण का कार्य करती है। समय-सारिणी का महत्व मानवीय साधनों के सदुपयोग एवं अनुशासन स्थापना के लिए बहुत अधिक है। समय-सारिणी के विधिवत् प्रयोग से नियमितता की आदत एवं उत्तरदायित्व की भावना का विकास होता है। अच्छी समय-सारिणी से निम्नलिखित लाभ होते हैं-

1. समय तालिका द्वारा विभिन्न विषयों को उनकी प्रकृति के अनुसार उपयुक्त समय की व्यवस्था की जाती है। सभी विषयों एवं क्रियाओं के लिए समय सुनिश्चित हो जाता है तथा किसी की अवहेलना नहीं होती।

2. अच्छी समय-तालिका द्वारा विद्यार्थियों की व्यक्तिगत रुचियों, अभिरुचियों तथा योग्यताओं का चरम उपयोग किया जाता है। अच्छी समय-तालिका समस्त कक्षा को रुचिकर रूप में व्यस्त रखने में सहायक होती है।

3. समय-तालिका मानव जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों एवं आदर्शों के प्रति आदर की भावना विकसित करने में सहायक सिद्ध होती है। समय-तालिका का प्रयोग विद्यार्थियों में कर्त्तव्यपरायणता, समय-निष्ठता एवं उद्यम-प्रियता के गुणों का विकास करती है।

4. समय-तालिका समय के सदुपयोग करने में सहायक होती है। यदि विद्यालयी कार्यक्रम बिना पूर्व-नियोजित योजना के अनुसार चलाये जायेंगे तो अध्यापक और विद्यार्थी निरुद्देश्य भटकते रहेंगे। समय-तालिका सोद्देश्य क्रियायें सम्पादित करने में सहायता प्रदान करती है।

5. समय-तालिका विद्यार्थियों में अनुशासनप्रियता विकसित करने में सहायक होती है। समय-तालिका छात्रों को अनावश्यक क्रियाओं पर नियन्त्रण लगा देती है। समय तालिका में मध्यावकाश व खेल-कूद का समय भी निर्धारित किया जाता है तथा पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं के अवसर उपलब्ध कराये जाते हैं, जिनमें विद्यार्थियों की ऊर्जा का सदुपयोग कराकर वृत्तियों का शोधन किया जाता है।

6. अच्छी समय तालिका शिक्षकों में कार्य के प्रति रुचि एवं प्रेरणा विकसित करके उन्हें कार्यकुशल बना देती है।

7. समय तालिका के माध्यम से सभी विषयों को अध्यापकों एवं विद्यार्थियों द्वारा न्यायोचित समय प्रदान कराक सन्तुलित महत्व प्रदान किया जाता है।

8. समय तालिका द्वारा अध्यापक एवं विद्यार्थियों की क्रियाओं का समुचित निरीक्षण एवं पर्यवेक्षण किया जाता है।

समय तालिका तैयार करने के सिद्धान्त (Principles of Preparing Time Table)

समय-तालिका को विद्यालय की दूसरी घड़ी के नाम से पुकारा जाता है। वह उन घण्टों का विवरण प्रदान करती है, जिनमें विद्यालय-कार्य किया जाता है। इसके साथ ही यह इस बात को भी प्रदर्शित करती है कि किसी विशेष समय-चक्र तथा कक्षा में क्या कार्य किया जाता है और उस कार्य को कौन-सा शिक्षक करायेगा। इसकी श्रेष्ठता विद्यालय की उन्नति में उत्तरोत्तर वृद्धि कर सकती है अथवा इसकी अनुपयुक्तता उसके कुशल संचालन में बाधक सिद्ध हो सकती है। अतः प्रत्येक विद्यालय में प्रधानाध्यापक का मुख्य कर्त्तव्य है कि वह स्वयं अथवा अपने किसी सहयोगी से उत्तम समय तालिका का निर्माण कराये। यद्यपि उत्तम समय तालिका के निर्माण के लिए कोई निश्चित नियम नहीं है, जिनको आधार मानकर समस्त विद्यालय अपने लिए उत्तम समय तालिका का निर्माण कर सके, किन्तु फिर भी निम्नलिखित कुछ ऐसे महत्वपूर्ण तथ्य हैं, जिनको ध्यान में रखकर सन्तोषजनक समय-तालिका का निर्माण किया जा सकता है-

1. बालकों के हित सम्बन्धी तथ्य-विद्यालय का महत्वपूर्ण उद्देश्य बालकों के व्यक्तित्व का विकास करना है। अतः उसका सम्पूर्ण कार्यक्रम इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निर्धारित किया जाता है। इसलिए समय तालिका का निर्माण भी उनकी रुचि, योग्यता तथा आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिये ।

(i) जहाँ तक सम्भव हो सके बालकों की वैयक्तिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अवसर प्रदान किये जाने चाहियें।

(ii) समय-चक्रों के क्रम का भी ध्यान रखना चाहिये। कार्य की दृष्टि से प्रथम तथा अन्तिम समय-चक्र अच्छे नहीं माने जाते हैं, क्योंकि प्रथम में बालक घर से चलकर जाता है, इससे थकान का आना स्वाभाविक है। अन्तिम समय-चक्र तक ये कार्य करते-करते थक जाते हैं। इन समय-चक्रों में रोचक एवं सरल विषयों का अध्ययन करना चाहिये।

(iii) बालकों की थकावट दूर करने के लिए समय तालिका में दो अवकाशों की व्यवस्था की जाए तो अच्छा होगा। ये अवकाश तीसरे एवं पाँचवें घण्टे के पश्चात् होने चाहियें।

इस सम्बन्ध में मौसम का भी ध्यान रखना आवश्यक है। मनुष्य की कार्यक्षमता पर मौसम का प्रभाव पड़ता है। इसलिए यह आवश्यक है कि हम अपनी समय-तालिका ऐसी बनायें कि जिन महीनों में मौसम के अनुकूल होने की सम्भावना है, उन महीनों में अधिकाधिक कार्य करने का प्रयास किया जा सकता है। जैसे-पहाड़ी प्रदेशों में गर्मी के मौसम में अधिक कार्य करने का प्रयास किया जा सकता है और मैदानी प्रदेशों में जाड़े के मौसम में अधिक कार्य करने की योजना बनायी जानी चाहिये। हमारे यहाँ अधिकतर गर्मी के मौसम में स्कूल इस दृष्टिकोण से ही चलाये जाते हैं, जिससे प्रातःकाल के समय में सुगमता से कार्य किया जा सके, क्योंकि अधिक गर्मी के कारण कार्यक्षमता में कमी आ जाने से वे थोड़ा-सा कार्य करने पर थकान का अनुभव करने लगेंगे।

(iv) दिनों के क्रम को भी ध्यान में रखना चाहिये। एक सप्ताह में कार्य करने के लिए कुल 6 दिन प्राप्त होते हैं। इन दिनों में सोमवार तथा शनिवार को अधिक उपयुक्त नहीं माना जाता है, क्योंकि इनमें से एक तो छुट्टी से पहले आता है तथा दूसरा छुट्टी के बाद। इन दोनों में बालकों को ऐसे विषयों का अध्ययन नहीं कराया जाना चाहिये, जिनके लिए उनको अधिक श्रम करना पड़े, क्योंकि दोनों ही स्थितियों में उनके मस्तिष्क में छुट्टी का ध्यान रहता है

(v) बालकों को अपनी रुचि तथा योग्यता के अनुसार चुनने का अवसर प्राप्त होना चाहिये।

(vi) समय-चक्रों की अवधि का निर्धारण बालकों की आयु के अनुसार होना चाहिये। मनोवैज्ञानिक खोजों ने यह सिद्ध कर दिया है कि 6 से 9 वर्ष तक बालक किसी विषय का 10 से 15 मिनट तक ही एकाग्रचित्त होकर अध्ययन कर सकते हैं। 9 से 12 एवं 12 से 14 वर्ष तक के बालक 20 से 25 मिनट तथा 30 से 35 मिनट तक ही अपने चित्त को एकाग्र कर सकते हैं।

(vii) विषयों के क्रम का भी ध्यान रखना चाहिये। इसके अनुसार समय तालिका में दो कठिन विषयों को लगातार न रखा जाये, क्योंकि दो कठिन विषयों को लगातार रखने से बालकों में शीघ्रता से थकान आने की सम्भावना रहेगी। इसके लिए समय-तालिका में ऐसी व्यवस्था की जाये कि कठिन विषय के बाद सरल विषय को रखा जाये अथवा सैद्धान्तिक कार्य के उपरान्त दूसरा चक्र प्रयोगात्मक कार्य के लिए निर्धारित किया जाये।

(viii) बालकों के व्यक्तित्व के अन्य पक्षों के विकास से सम्बन्धित क्रियाओं के लिए भी समय तालिका में स्थान मिलना चाहिये। जैसे- शारीरिक, नैतिक, नागरिक तथा सामाजिक पक्षों के विकास के लिए उन्हें समय तालिका द्वारा खेल-कूद, व्यायाम, प्रार्थना, पाठ्यक्रम-सहगामी क्रियाओं आदि में भाग लेने के लिए अवसर प्रदान किये जायें, अर्थात् समय तालिका में विद्यालय की समस्त क्रियाओं-खेल-कूद, व्यायाम, स्कूल प्रार्थना, सामाजिक क्रियाओं आदि के लिए भी निश्चित समय होना चाहिये।

2. शिक्षकों के हित सम्बन्धी तथ्य- समय तालिका का निर्माण करते समय शिक्षकों की आवश्यकता को भी ध्यान में रखा जाये। इसका निर्माण ऐसे ढंग से किया जाये, जिससे उनको लगातार एक-सा कार्य न करना पड़े तथा आराम करने अथवा अध्ययन करने के लिए अवकाश भी प्राप्त हो जाये।

इस सम्बन्ध में निम्न बातों को ध्यान में अवश्य रखना चाहियें-

  1. प्रत्येक शिक्षक पर कार्य-भार, जहाँ तक सम्भव हो सके, समान रहे।
  2. प्रत्येक शिक्षक को वही कार्य दिया जाये, जिसमें उसकी रुचि एवं योग्यता हो। इससे शिक्षक का मानसिक सन्तुलन ठीक रहता है।
  3. शिक्षकों की सीमाओं एवं मनोवृत्तियों का भी ध्यान रखना आवश्यक है।

3. शिक्षा विभागीय नियम-सामान्यतः शिक्षा विभाग द्वारा विद्यालय- सत्र तथा विद्यालय-दिवस की अवधि तथा प्रत्येक विषय के घण्टों की संख्या का निर्धारण किया जाता है। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि शिक्षा विभाग द्वारा निर्धारित विषयों को ध्यान में रखते हुए समय तालिका में प्रत्येक विषय को उसके महत्व तथा औचित्य के अनुसार समय प्रदान किया जाये।

4. विद्यालय सामग्री सम्बन्धी तथ्य-समय तालिका का निर्माण करते समय विद्यालय में उपलब्ध साधनों का भी ध्यान आवश्यक है। जैसे—शिक्षकों की संख्या विशेष कक्षों एवं सामान्य कक्षों की व्यवस्था तथा उनकी सामग्री, फर्नीचर, पुस्तकालय, खेल का मैदान, पाठ्यक्रम-सहगामी क्रियाओं के संचालन हेतु सामग्री, शैक्षिक सामग्री आदि जिससे बालक इनका आसानी से उपयोग कर सकें।

5. अन्य शर्ते- समय तालिका का निर्माण करते समय यह ध्यान में रखना चाहिये कि उसके द्वारा बालकों तथा शिक्षकों को अधिकाधिक सम्पर्क में लाया जा सके। ऐसा करने से केवल शिक्षण स्तर को ही ऊँचा नहीं, वरन् विद्यालय की सामान्य चारित्रिक भावना को भी उच्च बनाया जा सकेगा। इसके अतिरिक्त इनका अधिकाधिक सम्पर्क शिक्षकों के लिए बालकों को वैयक्तिक रूप से जानने में भी सहायक सिद्ध होगा तथा यह जानकारी बालकों के निर्देशन के लिए बहुत ही लाभप्रद सिद्ध होगी।

मैनले (Manley) के अनुसार, माध्यमिक विद्यालय की समय तालिका में बालकों को निर्देशन के लिए भी निर्धारित किया जाना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त उसमें समन्वित शिक्षा के लिए भी व्यवस्था की जाये।

विद्यालय के घण्टों का समय विद्यार्थियों की आयु तथा अवधान केन्द्रित करने की क्षमतानुसार निर्धारित करना चाहिये। सुझाव निम्न प्रकार है-

  • 6 से 9 वर्ष की आयु- 20 मिनट का कालांश
  • 9 से 12 वर्ष की आयु- 30 मिनट का कालांश
  • 12 से 14 वर्ष की आयु -35 मिनट का कालांश
  • 14 वर्ष से अधिक आयु 40 या 45 मिनट का कालांश

(i) एक विषय या एक जैसे विषय लगातार घण्टों में नहीं पढ़ाये जाने चाहियें। विभिन्न घण्टों में विद्यार्थियों को विभिन्न विषय पढ़ाये जाने चाहियें। भाषा, व्याकरण, सामाजिक ज्ञान तथा रचना के बीच-बीच में श्रुति लेख, गणित, रचना, चित्रकला तथा प्रयोग आदि समायोजित किये जाने चाहियें।

(ii) कक्षाओं को यथासम्भव शिक्षा ग्रहण करने के स्थान परिवर्तन करने की सुविधा होनी चाहिये तथा छात्रों को एक कक्षा में एक स्थिति में देर तक नहीं बैठाना चाहिये।

6. विशिष्ट परिस्थितियों के साथ समायोजन का सिद्धान्त-समय तालिका बनाते समय कक्षा के आकार, कमरों के आकार, बच्चों की आयु, आदि का ध्यान रखना चाहिये। निश्चित रूप से एक-सी समय तालिका सभी विद्यालय के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती। विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों वाले स्थानों पर विभिन्न प्रकार की समय-सारणी तैयार करनी होगी।

समय-तालिका निर्माण हेतु आवश्यक बातें

1. विद्यालय में उपलब्ध सभी मानवीय एवं भौतिक साधनों का अच्छे तालमेल के साथ उपयोग करना चाहिये।

2. प्रत्येक कक्षा के कमरे में उस कक्षा की समय तालिका की प्रतिलिपि टंगी रहनी चाहिये।

3. समय तालिका को अन्तिम रूप देने से पहले विद्यालय के शिक्षकों से परामर्श करके गतिरोध यदि कोई हो तो दूर करना चाहिये।

4. प्रधानाध्यापक के कक्ष में तीन प्रकार की समय तालिका- (i) कक्षावार समय तालिका, (ii) विषयवार समय तालिका, (iii) अध्यापकवार समय तालिका उपलब्ध होनी चाहिये।

5. समय तालिका स्वयं में पूर्ण होनी चाहिये अर्थात् इसमें विद्यार्थियों की उपस्थिति लगाने का समय, प्रार्थना का समय, खेल-कूद का समय, व्यायाम का समय, साहित्यिक गोष्ठी एवं अन्य पाठ्यक्रम सहयोगी क्रियाओं हेतु समय सुनिश्चित होना चाहिये।

समय तालिका निर्माण के सोपान (Steps for Preparing Time-Table)

समय तालिका के निर्माण में निम्न सोपानों का अनुसरण किया जाता है-

प्रथम सोपान में समय-तालिका सम्बन्धी सूचनाओं को एकत्रित किया जाता है-अध्यापकों की सूची, कक्षाओं की सूची, विभागों सहित विषयों की सूची, कमरों की संख्या, अध्यापकों की योग्यता विषयों के अनुसार आदि।

द्वितीय सोपान में विषयों के विकल्पों सम्बन्धी सूचनाएँ एवं प्रयोगशाला, भूगोल कक्ष, कला-कक्ष आदि का विवरण।

तृतीय सोपान में कमरों की संख्या एवं आकार तथा विभिन्न कक्षाओं में छात्रों की संख्या का विवरण आदि।

चतुर्थ सोपान में गतवर्ष की समय-सारणी एवं शिक्षकों के कार्यभार (घण्टों के अध्यापन के रूप में) का विवरण।

पंचम सोपान में विद्यालय की समय-तालिका तैयार की जाती है। यह तालिका दो प्रकार से तैयार करना आवश्यक होता है। कक्षाओं के अनुसार एवं अध्यापकों के अनुसार इस प्रकार समय तालिका के प्रकार का विवेचन यहाँ किया गया है।

समय-तालिका के प्रकार (Types of Time Table)

विद्यालय की समय-तालिका कई प्रकार से तैयार की जा सकती है, परन्तु तीन प्रकार की समय-तालिका तैयार करना विद्यालय संचालन के लिए अत्यन्त आवश्यक होता है। समय तालिका का प्रकार इस प्रकार है-

  1. कक्षाओं के अनुसार विद्यालय समय-तालिका,
  2. शिक्षकों के अनुसार विद्यालय समय-तालिका,
  3. कक्षा की समय-तालिका ।

प्रथम दोनों प्रकार की समय-तालिका प्रधानाचार्य द्वारा तैयार की जाती हैं तथा तीसरे प्रकार की समय-तालिका कक्षा- अध्यापक द्वारा तैयार की जाती है।

1. कक्षाओं के अनुसार विद्यालय समय तालिका – में सप्ताह के छः दिनों का प्रतिदिन के घण्टों के अनुसार कार्य विवरण की तालिका तैयार की जाती है। इस तालिका में यह जानकारी होती है कि अमुक कक्षा में अमुक दिन, अमुक घण्टे में कौन अध्यापक शिक्षण करेगा।

कक्षाओं के अनुसार समय तालिका तैयार करने में स्तम्भों एवं पंक्तियों की सहायता ली जाती है। प्रथम स्तम्भ (Column) में कक्षाओं को विभाग सहित अंकित किया जाता है। तालिका में पंक्तियों की संख्या उतनी रहती है, जितने विद्यालय में कुल कक्षाओं के विभागों की संख्या होती है। कालांशों (Periods) की संख्या अथवा अन्तराल (Interval) अथवा विश्राम के योग के बराबर तालिका में स्तम्भों की संख्या रखी जाती है। प्रथम पंक्ति में कालांशों एवं उनका समय अंकित किया जाता है। इस प्रकार समय तालिका का ढाँचा आयोजित किया जाता है। इस तालिका के वर्गों (Cells) में विषय, शिक्षक का नाम तथा शिक्षण दिनों को अंकित करके समय-तालिका तैयार की जाती है। इसका उदाहरण निम्नलिखित है-

कक्षाओं के अनुसार समय तालिका से यह जानकारी होती है कि कक्षाओं के विभागों में कालांशों में कौन-कौन शिक्षक सप्ताह में कितने दिन अध्यापन करेगा। प्रधानाचार्य निरीक्षण समय यह पता लगा लेता है कि कौन शिक्षक कक्षा में नहीं पहुँचा है। यदि शिक्षक अवकाश पर है, तब उसके लिए अन्य शिक्षक को भेजने की व्यवस्था करता है।

2. शिक्षकों के अनुसार विद्यालय समय तालिका – में सप्ताह के छः दिनों का प्रतिदिन के घण्टों के अनुसार कार्य-वितरण की तालिका भी तैयार की जाती है। इस तालिका से यह पता चलता है कि अमुक शिक्षक को किन-किन कालांशों में कौन-कौन सी कक्षाओं में शिक्षण करना है और किस कालांश में नहीं पढ़ाना है।

इस प्रकार की तालिका के निर्माण में भी स्तम्भों तथा पंक्तियों की सहायता ली जाती है। प्रथम स्तम्भ में शिक्षकों के नाम योग्यता सहित अंकित किये जाते हैं। तालिका में पंक्तियों की संख्या उतनी रहती है, जितने विद्यालय में कुछ अध्यापक होते हैं। शिक्षकों को उनकी वरीयता के अनुसार लिखा जाता है। प्रधानाचार्य का नाम सर्वप्रथम लिखा जाता है। प्रथम पंक्ति में कालांशों की संख्या एवं विश्राम के योग के बराबर स्तम्भों की संख्या रखी जाती है। शिक्षक के अनुसार समय तालिका का ढाँचा तैयार कर लिया जाता है। इस प्रकार की तालिका के वर्गों (Cells) में कक्षा विभाग सहित तथा शिक्षण विषय तथा दिनों को अंकित किया जाता है। इसका उदाहरण निम्नांकित है-

इस तालिका से शिक्षक के कार्य-भार (Work-load) की जानकारी होती है कि शिक्षक को प्रतिदिन कितने कालांश पढ़ाने होते हैं एवं एक सप्ताह में कुल कितने घण्टे पढ़ाने पड़ते हैं। प्रधानाचार्य के लिए यह तालिका अधिक उपयोगी होती है। जब किसी शिक्षक का अवकाश के लिए आवेदन पत्र आता है, तब रिक्त कालांशों वाले शिक्षकों को उसके स्थान पर लगा देता है, जिससे उसके कालांशों की कक्षाओं के छात्र खाली न रहें, जिससे विद्यालय में व्यवस्था बनी रहे। उपर्युक्त दोनों तालिकाओं के उपयोग भिन्न-भिन्न होते हैं। इनका विशेष उपयोग प्रधानाचार्य तथा शिक्षकों को अधिक होता है। प्रत्येक शिक्षक को अपने शिक्षण के कक्षाओं तथा कालांशों की जानकारी होती है।

3. कक्षा की समय तालिका (Class Time Table)- प्रत्येक कक्षा के प्रत्येक विभाग की समय-तालिका भी तैयार की जाती है। कक्षा-शिक्षक को एवं उसके छात्रों को सप्ताह के कार्यक्रम का विशिष्टीकरण दिया जाता है, जैसे-गणित का शिक्षक सप्ताह में किन दिनों अंकगणित, किन दिनों बीजगणित और किन दिनों में रेखागणित पढ़ायेंगे।

कक्षा की समय-तालिका भी स्तम्भों एवं पंक्तियों के रूप में तैयार की जाती है। प्रथम तम्भ में सप्ताह दिनों को अंकित किया जाता है। इस तालिका में छ: पंक्तियाँ होती हैं, तथा कालांशों की संख्या के बराबर स्तम्भ होते हैं। इस ढाँचे के वर्गों (Cells) में विषय के उप-विषय तथा शिक्षक का नाम भी अंकित कर दिया जाता है।

कक्षागत समय-तालिका से यह जानकारी होती है। सप्ताह के दिनों में प्रत्येक विषय के किन उप-विषयों को कब-कब पढ़ाया जायेगा। उसी के अनुसार छात्र अपनी पुस्तकों एवं उत्तर पुस्तिकाओं को लेकर आते हैं।

समय तालिका का मूल्यांकन (Evaluation of Time Table)

समय-तालिका के निर्माण में त्रुटियों की सम्भावना रहती है। इसलिए निम्नलिखित मानदण्डों के आधार पर मूल्यांकन करना चाहिये-

  1. कभी-कभी एक अध्यापक एक ही समय में दो कक्षाओं में लगा दिया जाता है।
  2. कुछ विषयों को आवश्यकता से अधिक समय और दूसरे विषयों के समय में कटौती हो जाती है।
  3. समय-तालिका निर्माण में शिक्षा विभाग द्वारा निर्धारित नियमों का उल्लंघन हो जाता है।
  4. अध्यापकों की योग्यतानुसार कार्य नहीं मिल पाता।
  5. विद्यार्थियों को बीच-बीच में समुचित अवकाश नहीं मिलता।
  6. समय तालिका का अपूर्ण सूचनाओं से युक्त होना। समय तालिका निर्माण सिद्धान्तों को ध्यान में रखकर तथा त्रुटियों के प्रति सावधानी बरत कर विद्यालय के लिए व्यावहारिक एवं आदर्श समय तालिका बनानी चाहिये।
  7. कठिन विषय लगातार पढ़ाने के लिए समय निर्धारित कर दिए जाते हैं।
  8. समय तालिका में अनावश्यक परिवर्तन प्रदर्शित करके जटिल बना दिया जाता है।

समय-तालिका के बनाने में कठिनाइयाँ (Difficulties in Preparing Time-Table)

सामान्यतः समय तालिका के निर्माण में निम्नलिखित कठिनाइयाँ उपस्थित होती हैं-

1. सामान्य कक्षा-कक्ष, फर्नीचर तथा अन्य शैक्षिक सामग्री का अभाव भी समय तालिका के निर्माण में बहुत-सी कठिनाइयाँ उत्पन्न करता है।

2. शिक्षकों के अभाव के कारण उपर्युक्त सिद्धान्तों को अपनाना कठिन हो जाता है। इसी कारण समय तालिका में बालकों को अपनी रुचि के अनुसार विषयों को चुनने की भी व्यवस्था नहीं हो पाती है। इसके अतिरिक्त शिक्षकों को अपनी रुचि के विषय भी पढ़ाने को मिलते हैं। प्रायः यह देखा जाता है कि उन्हें वे विषय पढ़ाने पड़ते हैं, जिनको पढ़ाने के लिए वे योग्य नहीं हैं। इस कारण उन पर अधिक कार्यभार रहता है तथा उनके मस्तिष्क में सदैव तनाव रहता है, जिससे उनकी कार्य-क्षमता निरन्तर कम होती रहती है।

3. अंशकालीन शिक्षकों (Part-time Teachers) की नियुक्ति के कारण भी तालिका के बनाने में कठिनाई उत्पन्न होती है, क्योंकि वे विद्यालय को अपनी सुविधानुसार ही समय दे पाते हैं।

समय-तालिका की सीमायें (Limitations of Time Table)

समय तालिका की व्यावहारिक उपयोगिता एवं विद्यालय के महत्व के साथ निम्नलिखित सीमायें होती है-

1. समय-तालिका बालकों को अपनी रुचि के अनुसार विषयों के लिए समय-विभाजन की स्वतन्त्रता में बाधक होती है।

2. घण्टे का समय बहुत सीमित होने के कारण कभी-कभी शिक्षण कार्य अधूरा रहता है तथा पुनः अवसर आने पर अध्यापक को पिछले पढ़ाये हुए की पुनरावृत्ति में समय नष्ट करना पड़ता है।

3. समय तालिका कार्यक्रम में कठोरता उत्पन्न कर देती है, क्योंकि इसके अन्तर्गत प्रत्येक कार्य एक निश्चित ढंग से करने को कहा जाता है। शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु विद्यार्थियों की आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं के अनुरूप शैक्षिक कार्यक्रम परिवर्तन में अध्यापक कठिनाई अनुभव करते हैं। लचीलेपन का प्रायः अभाव रहता है।

4. समय तालिका में किसी-किसी विषय के लिए बहुत कम समय मिल पाता है या कई दिन बाद दोबारा अवसर आता है-ऐसी स्थिति में निरन्तरता नहीं रहती और विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि प्रभावित होती रहती है।

5. समय-सारिणी का दुरुपयोग कुछ अध्यापकों के लिए सुगम होता है, क्योंकि उन्हें एक अत्यन्त सीमित समय के लिए कक्षा में जाना होता है। कभी-कभी अध्यापकों को व्यर्थ की बातों में विद्यार्थियों के समय का अपव्यय हो जाता है।

समय तालिका का उपयोग (Uses of Time Table)

विद्यालय में समय-तालिका का स्थान महत्वपूर्ण है, क्योंकि समय-तालिका वह दर्पण है, जिसमें विद्यालय का समस्त शैक्षिक कार्यक्रम प्रतिबिम्बित होता है। यह शिक्षकों के कार्य को व्यवस्थित करती है और उन्हें अपने सन्तुलन को बनाये रखने में भी सहायता प्रदान करती है। इसके साथ ही समय-तालिका विद्यालय के कार्यक्रम को सुव्यवस्था प्रदान करके समय का सदुपयोग करती है। इसके द्वारा विभिन्न विषयों, क्रियाओं आदि पर उनके महत्व के अनुसार निर्धारित समय का विभाजन करके विद्यालय के निर्धारित समय को अधिकाधिक उपयोगी बनाया जाता है। यदि विद्यालय में समय तालिका का अभाव है अथवा उसका निर्माण उपयुक्त ढंग से नहीं किया गया तो समय एवं शक्ति का दुरुपयोग होना स्वाभाविक है।

समय तालिका का नैतिक दृष्टि से भी बहुत महत्व है। इसके अनुसार कार्य करने से बालकों में विभिन्न आदतों एवं गुणों का विकास होता है। उदाहरण के लिए-समय के महत्व को समझने की शक्ति, नियमितता, विधिवत दृष्टिकोण, कर्त्तव्यपरायणता आदि। इसका शिक्षकों के लिए भी बहुत महत्व है। वह उनमें भी कार्य के प्रति विधिवत् दृष्टिकोण उत्पन्न करने में सहायता प्रदान करती है।

इसका मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत महत्व है, क्योंकि इसका निर्माण बालकों की रुचियों तथा आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाता है। एक उत्तम समय तालिका को सीखने की प्रक्रिया को सरल बनाने में बहुत महत्वपूर्ण हाथ है, जिसमें बालकों की रुचि, खाने-पीने, उसके विभिन्न पक्षों के विकास के लिए विभिन्न क्रियाओं के नियोजन आदि के लिए उचित समय प्रदान किया जाता है।

समय-तालिका अनुशासन स्थापित करने का उत्तम साधन है। इसके द्वारा विद्यालय का सम्पूर्ण जीवन व्यवस्थित रूप में चलाया जाता है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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