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समुदाय और शिक्षा से क्या अभिप्राय है ? शिक्षा और समुदायिक विकास की चर्चा करते हुए इसके प्रभाव

समुदाय और शिक्षा से क्या अभिप्राय है ? शिक्षा और समुदायिक विकास की चर्चा करते हुए इसके प्रभाव
समुदाय और शिक्षा से क्या अभिप्राय है ? शिक्षा और समुदायिक विकास की चर्चा करते हुए इसके प्रभाव

समुदाय और शिक्षा से क्या अभिप्राय है ? शिक्षा और समुदायिक विकास की चर्चा करते हुए इसके प्रभावों का वर्णन कीजिए।

समुदाय और शिक्षा

समुदाय और शिक्षा में सम्बन्ध का होना आवश्यक है। प्रत्येक समुदाय यह चाहता है कि उसकी नयी पीढ़ी उससे भी योग्य और समझदार हो। वह चाहता है कि उसकी समस्याओं के समाधान में योग देने वाली नयी पीढ़ी के लिये उचित शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था हो। जिस समुदाय के सदस्य उचित शिक्षा-दीक्षा नहीं पाये रहते, उसकी प्रगति के विषय में कुछ भी आशा नहीं की जा सकती; ऐसे समुदाय अपने सीमित क्षेत्र में अपनी सीमित आवश्यकताओं और ढंगों वाली संस्कृति से लिपटे रहते हैं।

शिक्षा संस्थायें ही समुदाय का मार्गदर्शन करती हैं। पढ़े-लिखे लोगों का सम्पर्क बाहर के समुदायों और देश विदेश से पड़ता है और इससे समुदाय की कूप-मण्डूकता समाप्त होती है।

अपनी नयी पीढ़ी की शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था करना प्रत्येक समुदाय का कर्त्तव्य है। साथ ही समुदाय स्वार्थ-वश भी शिक्षा के साथ अपना सम्बन्ध जोड़ता है। किसी भी समाज की प्रगति शिक्षा की व्यवस्था पर ही निर्भर करती है। गरीब समुदाय वाले अपने बालकों की शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था नहीं कर पाते इसीलिये उनकी गरीबी या पिछड़ापन दूर नहीं हो पाता।

शिक्षा समुदाय की आवश्यकताओं और समस्याओं की पूर्ति एवं समाधान में भी पर्याप्त योग देती है। शिक्षित आदमी की आवश्यकतायें, अशिक्षित आदमी की अपेक्षा अधिक होती हैं और इन आवश्यकताओं के बढ़ने और उनके पूरा करते रहने से ही आदमी के रहन-सहन का स्तर ऊँचा उठता है। इस प्रकार समस्यायें जीवन की प्रगति के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध रखती हैं।

जिस समुदाय या व्यक्ति की समस्यायें जितनी ही शीघ्रता से सुलझती हैं वह उतनी ही प्रगति करती है। साथ ही प्रत्येक समुदाय अपनी समस्याओं के समाधान के लिये योग्य व्यक्तियों की अपेक्षा करता है और योग्य आदमी शिक्षा के द्वारा ही तैयार किये जाते हैं। प्रत्येक समुदाय की अपनी संस्कृति होती है। समुदाय शिक्षा के द्वारा नयी पीढ़ी को उस संस्कृति का ज्ञान कराता है। अशिक्षित समुदाय की संस्कृति परम्परानुगामी और स्थिर होती है, जबकि शिक्षित समुदाय की अस्थिर और प्रगतिशील होती है।

शिक्षा और सामुदायिक विकास

प्रत्येक देश या राज्य विभिन्न समुदायों का एक संगठन होता है। अतः देश की प्रगति के लिये सरकार का समुदायों के विकास हेतु, योजनाओं का बनाना स्वाभाविक है। समुदायों की एक-एक इकाई के विकसित हो जाने पर ही राज्य विकसित हो सकता है। महात्मा गांधी का कथन था- “कि भारत गाँवों का देश है, जब एक-एक गाँव अपने में सुधर जायेगा तो भारत अपने आप में सुधरा हुआ मिलेगा।”

हमारे देश में सामुदायिक विकास के लिये पंचवर्षीय योजनायें चल रही हैं। कुछ समुदायों को मिलाकर एक ‘विशेष क्षेत्र’ बना दिया गया । उन विकास क्षेत्रों में, एक-एक क्षेत्र विकास अधिकारी एवं अनेक सहायक क्षेत्र विकास अधिकारी तथा ग्राम सेवक होते हैं, लेकिन इन शासकीय प्रयासों से पर्याप्त सफलता नहीं प्राप्त हो पायी है। वास्तव में समुदायों का विकास तभी हो सकता है, जब उनमें स्वयं विकास करने की प्रवृत्ति पैदा हो और इस प्रवृत्ति के विकास में शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

शिक्षित व्यक्ति स्वयं अपना विकास कर सकता है, उसको इस हेतु सलाह देने की आवश्यकता नहीं होती। शिक्षित हो जाने पर गाँव के लोग स्वयं अच्छे बीज अच्छे उपकरण, अच्छे उर्वरक एवं नवीन विधियों का प्रयोग करने लगते हैं। इस प्रकार समुदाय के विकास का एक मात्र साधन शिक्षा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, सामुदायिक जीवन में, शिक्षा के महत्त्व को पूर्णरूपेण समझते थे, इसीलिये वे शिक्षा के प्रचार और प्रसार को अधिक महत्त्व देते थे। गाँव की निर्धन जनता न अपने बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था कर सकती थी और न ही स्वतः उसका विकास हो सकता था अतः श्री गोखले ने अनिवार्य और निःशुल्क शिक्षा का प्रस्ताव रखा था। आज भारत को स्वतन्त्र हुये पच्चीस वर्ष से भी अधिक समय हो गया है लेकिन निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की योजना पूर्णतया सफल नहीं हो पायी है। सामुदायिक विकास के क्षेत्र में शिक्षा के योगदान की समीक्षा निम्न शब्दों में प्रस्तुत की जा सकती है-

(1) शिक्षा और समुदाय की आवश्यकताओं की पूर्ति- शिक्षा ऐसे कुशल व्यक्तियों का निर्माण करती है जो समुदाय की आवश्यकताओं की पूर्ति में योग देते हैं। समुदाय की सबसे प्रारम्भिक आवश्यकता, भोजन, आवास और सुरक्षा की होती है। समुदाय की व्यावसायिक प्रगति पर ही इन आवश्यकताओं की पूर्ति निर्भर करती है। शिक्षा, सामुदायिक व्यवसायों की प्रगति के लिए व्यक्तियों को प्रशिक्षित करती है। कोई भी व्यवसाय प्रगति तभी करता है जब उसके लिए कुशल व्यक्ति, अच्छे उपकरण एवं उपयोगी साधन सुलभ हों। जिस देश में व्यवसाय की शिक्षा की जितनी ही अच्छी व्यवस्था होती है, वहाँ सम्बन्धित उद्योग-धन्धों को भी उतनी ही अधिक प्रगति होती है। दूसरे शब्दों में, शिक्षित लोग समुदाय के उत्तरदायित्व के वहन की क्षमता रखते हैं।

(2) शिक्षा और समुदाय की समस्याओं का समाधान- शिक्षित व्यक्ति समुदाय की समस्याओं के समाधान में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। समुदाय तथा विद्यालय के बीच दुहरा सम्बन्ध होता है। एक ओर, समुदाय की समस्यायें और कठिनाइयाँ, विद्यालय में अध्ययन के लिये आती हैं और दूसरी ओर, विद्यालय में ढूढे गये ज्ञान और अनुभव समुदाय में जाते हैं. जिससे समुदाय का स्तर ऊँचा होता है; उनकी समस्याओं के हल उसे प्राप्त होते हैं। इस प्रकार, विद्यालय और समुदाय के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है।

जब विद्यालय, समुदाय की समस्याओं के समाधान में योगदान देना बन्द कर देते हैं तब विद्यालय और समुदाय के बीच सम्बन्धों में तनाव उत्पन्न होने लगता है। शिक्षा जब, स्वार्थी सरकार के हाथ का खिलौना बन जाती है तो धीरे-धीरे समुदाय के प्रति वह उदासीन होने लगती है। यही कारण था कि भारत में मुस्लिम और अंग्रेजी शासन के समय यहाँ के समुदाय, शिक्षा से बहुत कम लाभान्वित हो सके। अंगेज बनाना चाहती थी। वह कम्पनी सरकार के लिये योग्य और ईमानदार वफादार तथा नौकर तैयार करना चाहती थी।

विद्यालय को समुदाय का लघुरूप कहा गया है। इसका मूल कारण विद्यालय का समुदाय की समस्याओं से प्रभावित होना तथा उनके मध्य पारस्परिक घनिष्ठता ही है-

(3) शिक्षा और समुदाय के रहन-सहन का स्तर- समुदाय में लोगों के जीवन स्तर के उन्नयन में भी शिक्षा सहायक है। शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति न केवल व्यावसायिक एवं आर्थिक क्षेत्र में प्रगति करते हैं वरन् उनकी रुचियाँ भी परिष्कृत होती हैं, उनमें अच्छी आदतों का भी विकास होता है। रहन-सहन में सफाई, हवादार आवास, व्यवहार में परस्पर सहयोग एवं सहकारिता जैसे गुण रहन-सहन को ऊपर उठाने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। शिक्षा, व्यक्ति को इन गुणों से परिचित कराती है तथा उसमें इनके विकास की क्षमता उत्पन्न करती है। इस प्रकार शिक्षा के प्रसार से समुदाय के जीवन स्तर में प्रगति होती है।

(4) शिक्षा और समुदाय की संस्कृति- समुदाय शिक्षा के माध्यम से अपनी संस्कृति की रक्षा करता है। अनौपचारिक शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति, समुदाय की संस्कृति से परिचित होता है। औपचारिक शिक्षा द्वारा व्यक्ति अपनी सामुदायिक संस्कृति को प्रगति की ओर ले जाने में समक्ष बनता है। इस प्रकार शिक्षा समुदाय की संस्कृति की संरक्षक एवं उन्नायक दोनों ही है।

(5) शिक्षा और समुदाय की व्यावसायिक एवं औद्योगिक प्रगति- किसी समुदाय की व्यावसायिक और औद्योगिक प्रगति बहुत कुछ उसकी शिक्षा पर निर्भर करती है। महात्मा गांधी जी ने अपनी बेसिक शिक्षा प्रणाली में समुदाय के व्यवसाय को ही पाठ्यक्रम का प्रधान विषय बनाया था। व्यवसाय को पाठ्यक्रम में प्रधान स्थान देने का एकमात्र लक्ष्य उनके अनुसार, समुदाय की जनता को आत्म-निर्भर और स्वाभिमानी बनाना था। निस्सन्देह व्यावसायिक या औद्योगिक शिक्षा व्यक्ति को स्वालम्बी और आत्माभिमानी बनाती है। जो समुदाय व्यावसायिक शिक्षा या व्यावसायिक प्रगति में जितना ही आगे होता है आर्थिक दृष्टि से वह उतना ही स्वतंत्र और समृद्ध होता है।

समुदाय पर शिक्षा का प्रभाव

सामुदायिक विकास के क्षेत्र में शिक्षा के योगदान के परिणामस्वरूप, समुदाय पर जो प्रभाव पड़ता है, उसकी विवेचना निम्न रूप में प्रस्तुत की जा सकती है-

(1) आवश्यकतानुसार विद्यालय, समुदाय के व्यावसायिक कार्यों में भी हाथ बँटा सकता है। विद्यालय, समुदाय की एक संस्था है। इसलिये समुदाय को उससे घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए। बहुधा समुदाय के व्यवसाय सम्बन्धित काम बहुत बढ़ जाते हैं; विशेष कर खेतिहर समुदाय में, बोआई और फसलों की कटाई के समय समुदाय ऐसे विकट समयों में यदि विद्यालय की सहायता से लाभान्वित हो, तो दोनों में सम्बन्ध अधिक प्रगाढ़ हो सकते हैं। इससे विद्यालय के प्रति समुदाय की उदासीनता भी समाप्त हो सकती है।

(2) विद्यालय, समुदाय को व्यावसायिक निर्देशन दे सकता है। प्रायः गाँव के लोग अशिक्षित और परम्परानुगामी होते हैं। वे अपने व्यवसायों में परम्परागत विधि और उपकरण अपनाना, अधिक उपयुक्त समझते हैं। जैसे खेती करने वाले समुदाय खेती की पुरानी विधियों, पुराने उपकरणों और पुराने ढंग के बीजों में अधिक विश्वास करते हैं। विद्यालय का कर्त्तव्य है कि वह समुदाय में नये प्रकार के बीजों एवं नये उपयोगी उपकरणों का प्रचार करे और साथ ही उनके उपयोग की विधियों से उन्हें परिचित कराये समुदाय की आर्थिक क्षमता को बढ़ाने में विद्यालय इस तरह समर्थ हो सकते हैं।

सामुदायिक विकास में योग देने वाले विद्यालय तो स्वयं उत्तम प्रकार के बीजों, उपकरणों एवं उर्वरकों की व्यवस्था भी करते हैं। विद्यालय, समुदाय के सहयोग से सहकारी संघ की स्थापना भी कर सकते हैं। इस संघ की स्थापना के द्वारा वे न केवल उत्पादन में समुदाय और प्रशासन के बीच, माध्यम का भी काम कर सकते हैं। विकसित देशों में ये विद्यालय समुदाय की समस्याओं को सरकार तक पहुंचाते हैं और सरकार को समुदाय की प्रगति के विषय में भी रिपोर्ट देते हैं।

(3) विकसित देशों के विद्यालय समुदाय की प्रगति के लिये भी प्रयास करते है। व्यावसायिक क्षेत्र में मार्ग प्रदर्शन के लिये वे अपने यहाँ प्रदर्शनियों की व्यवस्था करते हैं। इन प्रदर्शनियों में विकसित जाति की फसलों, नये-नये प्रकार के उपयोगी उपकरणों एवं अन्य उपयोगी साधनों से समुदाय वालों को परिचित कराते हैं।

(4) विद्यालय समुदाय की अज्ञानता एवं निरक्षरता को दूर करने के लिये प्रौढ़ शिक्षा की भी व्यवस्था करते हैं।

(5) विद्यालय, समुदाय के लिये अलग से पुस्तकालय एवं वाचनालय की व्यवस्था करते हैं। इन वाचनालयों एवं पुस्तकालयों में आने से समुदाय के लोगों की कूप-मण्डूकता भी समाप्त होती है। वे देश-दुनिया के समाचारों से अवगत होते हैं।

(6) सांस्कृतिक कार्यों का आयोजन कर विद्यालय, समुदाय के मनोरंजन में भी योग देते हैं। इससे समुदाय का नैतिक विकास भी होता है।

(7) विद्यालय, समुदाय की सहायता से अनेक समितियों का गठन कर उसके विकास में सक्रिय योद दे सकता है। इन समितियों में विद्यालय के छात्र और अध्यापकों के अतिरिक्त समुदाय के सदस्यों की भी सक्रिय भूमिका होती है। इन समितियों को युवक मंगल दल, ग्राम सुधार समिति आदि नाम दिया जा सकता है। ये समितियाँ समुदाय में सार्वजनिक निर्माण का कार्य सम्पादित करती हैं। श्रमदान के द्वारा गाँव की सफाई और सड़कों आदि का निर्माण आसानी से हो सकता है।

शिक्षा पर समुदाय का प्रभाव

उपरोक्त विवेचन से यह सिद्ध होता है कि समुदाय व शिक्षा में घनिष्ठ सम्बन्ध है। अतः यह कहना सार्थक होगा कि जहाँ एक ओर शिक्षा समुदाय पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती है, स्वयं भी समुदाय की प्रवृत्ति एवं दशा से प्रभावित होती है। विद्यालय का स्तर, उसकी व्यवस्था, बहुत कुछ समुदाय की स्थिति पर ही निर्भर है। यदि समुदाय आधुनिक तथा प्रगतिशील है तो ऐसे समुदाय व विद्यालय में निरन्तर सम्बन्धों का विकास होगा। इसके विपरीत यदि समुदाय रूढ़िग्रस्त एवं परम्परावादी है तो यह समुदाय विद्यालय एवं शिक्षा के प्रति उदासीन होगा। इस प्रकार के

समुदाय में शिक्षा के प्रसार की गति अत्यन्त मन्द होगी तथा शिक्षा केवल पुस्तकीय होगी, उसका व्यावहारिक जीवन में कोई उपयोग नहीं होगा। अन्य शब्दों में शिक्षा के लक्ष्यों के निर्धारण में, समुदाय महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

शिक्षालय, एक रूप में आदर्श सामुदायिक व्यवस्था को प्रतिबिम्बत करते हैं। यदि समुदाय स्वयं विकार-ग्रस्त है तो शिक्षा के क्षेत्र में किसी सुधार की आशा नहीं की जा सकती समुदाय व शिक्षा के मध्य सामंजस्य घनिष्ठ सम्बन्धों के विकास के लिये आवश्यक है कि शिक्षालय, स्नामाजिक माँग एवं समुदाय की दशाओं के मध्य एक सन्तुलन स्थापित करने का प्रयास करें। समुदाय से पृथक शिक्षा, निरर्थक है, उसका व्यावहारिक जीवन में कोई उपयोग नहीं हो सकता है।

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Anjali Yadav

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