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सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख विशेषताएँ | Major Characteristics of Social Change in Hindi

सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख विशेषताएँ | Major Characteristics of Social Change in Hindi
सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख विशेषताएँ | Major Characteristics of Social Change in Hindi

सामाजिक परिवर्तन की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख विशेषताएँ (Major Characteristics of Social Change)

विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर सामाजिक परिवर्तन की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं-

1. सामाजिक परिवर्तन सार्वभौमिक है (Social change is universal) – संसार में कोई भी ऐसा समाज नहीं है, जहाँ परिवर्तन न होता रहता हो और जो पूर्णतः स्थिर हो। परिवर्तन प्रति क्षण होता रहता है। यह सम्भव है कि किसी समाज में परिवर्तन की गति तीव्र हो तो कहीं धीमी, परन्तु परिवर्तन होता सब जगह है, चाहे उसके स्वरूप में कितनी भी भिन्नता क्यों न हो। विश्व में कोई भी दो समाज पूर्णतः एक से नहीं हैं, अतः परिवर्तन कभी भी पूर्णतः एक जैसे नहीं हो सकते। रॉबर्ट बीरस्टीड (Robert Bierstedt) ने कहा है कि, “किन्हीं भी दो समाज का इतिहास एक-समान नहीं होता, किन्हीं भी दो समाजों की संस्कृति एक जैसी नहीं होती, कोई भी एक-दूसरे का प्रतिरूप नहीं है।”

2. प्रत्येक समाज में सामाजिक परिवर्तन की गति एक-समान नहीं है (Speed of social change is not the same in every society) – सामाजिक परिवर्तन में एक विशेषता यह भी पाई जाती है कि इसकी गति हर समाज में एक-सी नहीं होती। साथ ही, ग्रामीण तथा नगरीय समुदायों में परिवर्तन की गति समान नहीं पाई जाती। अमेरिकी और जापानी समाजों में जिस तीव्र गति से परिवर्तन होते हैं, भारत एवं चीन के समाजों में वह गति देखने को नहीं मिलती। परिवर्तन न केवल एक समाज से दूसरे समाज में ही भिन्न पाया जाता है, बल्कि एक ही समाज के विभिन्न समूहों में भी इसकी गति असमान होती है। यदि दो समाजों में एक-समान परिवर्तन के कारक पाए भी जाएँ तो भी यह नहीं कहा जा सकता कि दोनों समाजों में समान गति से एक जैसा ही परिवर्तन होगा, क्योंकि कारकों पर देश, काल तथा परिस्थिति का भी प्रभाव पड़ता है। अतः परिवर्तन के कारक किस समाज में अधिक प्रभावशाली होंगे और किसमें कम, यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता। उदाहरण के लिए, यूरोप में औद्योगीकरण, नगरीकरण, व्यक्तिवाद, स्त्रियों की स्वतन्त्रता तथा आवागमन एवं संदेशवाहन के साधनों से अनेक परिवर्तन बड़ी तीव्रता से आए हैं। भारत में इन परिवर्तनों की गति अपेक्षाकृत मन्द है। भारतीय नगरों में गाँवों की अपेक्षा तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं।

3. सामाजिक परिवर्तन समाज से सम्बन्धित है (Social change is related with society) – सामाजिक परिवर्तन का सम्बन्ध व्यक्ति विशेष अथवा समूह-विशेष से न होकर सम्पूर्ण समाज के जीवन से होता है। यह व्यक्तिवादी नहीं वरन् समष्टिवादी होता है। इसीलिए परिवर्तन का प्रभाव सामान्यतः सम्पूर्ण समाज पर पड़ता है।

4. सामाजिक परिवर्तन में समय का तत्व (Time factor in social change) – विलबर्ट ई० मूर ने लिखा है कि, “मानव अनुभूति में समय का भाव और परिवर्तन का अभ्यास अपृथकनीय रूप से जुड़े हुए हैं।” सीधे-सादे शब्दों में हम सामान्यतः यह कहते हैं कि पुराने जमाने में ऐसा होता था अथवा हमारे पूर्वजों के जमाने में ऐसा होता था। इन वाक्यांशों से यह सिद्ध होता है कि हम दो समयों की तुलना कर रहे हैं- एक वह जो पहले था और एक वह जो आज है। इन दोनों समयों के बीच उत्पन्न हुई भिन्नता ही परिवर्तन है। यदि सूत्र के रूप में कहा जाए तो हम कह सकते हैं कि तब (T1) तथा अब (T2) के बीच अन्तर (T2 – T1) ही परिवर्तन का द्योतक है। इस प्रकार-

Change = T2 – T1

परिवर्तन = समय-समय

मूर के शब्दों को ही हम पुनः उद्धृत करना चाहेंगे, जो स्पष्ट घोषणा करते हैं कि समय के तत्व के अभाव में परिवर्तन की बात करना निरर्थक है, “समय बिना कोई परिवर्तन नहीं है। परिवर्तन के अभाव में इसी प्रकार, समय का कोई अर्थ नहीं

5. सामाजिक परिवर्तन स्वाभाविक और अवश्यम्भावी है (Social change is natural and inevitable)- सामाजिक परिवर्तन स्वाभाविक है तथा समयानुकूल होता रहता है। मानव स्वभाव प्रत्येक क्षण नवीनता चाहता है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है तथा जरूरी है। यह किसी की इच्छा अथवा अनिच्छा पर निर्भर नहीं होता, यद्यपि आधुनिक युग में इसे नियोजित किया जा सकता है। अतः हम कह सकते हैं कि सामाजिक परिवर्तन स्वाभाविक और अवश्यम्भावी है।

6. सामाजिक परिवर्तन अमूर्त है (Social change is abstract) – सामाजिक परिवर्तन एक अवधारणा है और अवधारणा अमूर्त होती है। अतः सामाजिक परिवर्तन भी अमूर्त है। सामाजिक परिवर्तन क्योंकि सामाजिक सम्बन्धों में होने वाला परिवर्तन है और सामाजिक सम्बन्धों को न तो देखा जा सकता है तथा न छुआ जा सकता है। इनका केवल अनुभव किया जा सकता है, क्योंकि सामाजिक सम्बन्ध अमूर्त होते हैं अतः उनमें होने वाला परिवर्तन भी अमूर्त हुआ।

7. सामाजिक परिवर्तन तुलनात्मक एवं सापेक्ष होता है (Social change is comparative and relative) – समाजशास्त्री सामाजिक परिवर्तन का तुलनात्मक अध्ययन करते हैं, क्योंकि सामाजिक परिवर्तन का कोई निश्चित मापदण्ड नहीं है। इसलिए सामाजिक परिवर्तन को जानने का यही एकमात्र उपाय रह जाता है कि या तो एक समय में दो विभिन्न समाजों की तुलना की जाए अथवा एक ही समाज की दो विभिन्न कालों में तुलना की जाए। इस तुलना के आधार पर ही यह अनुमान लग सकता है कि किसी समाज में क्या परिवर्तन हो रहे हैं और वे परिवर्तन किस दिशा अथवा गति से हो रहे हैं। अतः हम कह सकते हैं कि सामाजिक परिवर्तन सदैव तुलनात्मक तथा सापेक्ष होते हैं।

8. सामाजिक परिवर्तन के बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती (Social change can never be predicted) – सामाजिक परिवर्तन के सम्बन्ध में कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती, क्योंकि कभी-कभी आकस्मिक कारक भी परिवर्तन ला देते हैं। सामाजिक परिवर्तन समाज अथवा सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन है। हमारे व्यवहार भी परिवर्तनशील हैं। यही कारण है कि सामाजिक व्यवहार के बारे में भविष्यवाणी करते समय हम, मात्र अनुमान ही लगा सकते हैं, परन्तु दृढ़तापूर्वक कुछ भी नहीं कह सकते; जैसे अस्पृश्यता के विरुद्ध सामाजिक-राजनीतिक आन्दोलन के द्वारा छुआछूत व ऊंच-नीच की भावना कम होगी, यह तो कहा जा सकता है, किन्तु समाज में ये सब कब पूर्णतः समाप्त होगा, यह नहीं कहा जा सकता। सामाजिक परिवर्तन की दिशा के बारे में तो अनुमान लगाया जा सकता है, किन्तु भविष्यवाणी करना कठिन कार्य है।

9. सामाजिक परिवर्तन एक तटस्थ अवधारणा है (Social change is a neutral concept)- सामाजिक परिवर्तन एक तटस्थ अवधारणा है, क्योंकि यह तो दो समयावधियों के अन्तराल में किसी समाज में उत्पन्न भिन्नता मात्र है। इसलिए इससे तो केवल इतना पता चलेगा कि कोई चीज जिस रूप में पहले थी, उस रूप में अब नहीं है। वह अन्तर समाज के लिए अच्छा रहा या बुरा, यह एक अलग बात होगी जिसे मापने के लिए निश्चित कसौटियों की जरूरत होगी।

10. सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न प्रतिमान होते हैं (Social change has various patterns) – परिवर्तन का कोई एक प्रतिमान नहीं है। समाज में होने वाले सभी परिवर्तनों को देखने के बाद हम इसी निष्कर्ष पर आते हैं कि समाज में सैकड़ों प्रकार के परिवर्तन होते रहते हैं। कभी परिवर्तन उतार-चढ़ाव के रूप में होता है तो कभी समरेखीय और कभी चक्रवत् तो कभी लहरदार। जनसंख्या, आर्थिक जगत एवं फैशन में परिवर्तन का जो प्रतिमान देखने में आता है, वह मूल्यों एवं मनोधारणाओं के परिवर्तन में नहीं दिखाई देता।

सामाजिक परिवर्तन की विशेषताओं का अध्ययन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि सामाजिक परिवर्तन समाज व्यवस्था में अन्तर्निहित सत्य है। समय के साथ-साथ, जीवन-यापन की दशाओं में ऐसा परिवर्तन हो जाता है कि कुछ विशिष्ट समूहों या वर्गों की अपनी महत्वाकांक्षाएँ पूरी नहीं होतीं। वे महसूस करते हैं कि उन्हें उनके न्यायोचित देय से वंचित रखा जा रहा है। यह असन्तोष तथा निराशा विद्यमान सामाजिक संस्थाओं में तनाव पैदा कर है और उनका पुनर्गठन करना आवश्यक हो जाता है। यहाँ यह भी स्मरण रखने योग्य है कि सामाजिक परिवर्तन बहुकारकीय घटना है। किसी एक कारक को ही समाज का निर्धारक कारक नहीं माना जा सकता। अन्त में, हम यह भी कहना चाहेंगे कि समाज व्यवस्था एक ‘जीवन्त सम्पूर्ण घटना है। इसकी सभी उपव्यवस्थाएँ; जैसे परिवार तथा नातेदारी, अर्थव्यवस्था, राजव्यवस्था, शैक्षिक व्यवस्था, धार्मिक व्यवस्था, नैतिक व्यवस्था, सौन्दर्य बोधात्मक व्यवस्था तथा मनोरंजन व्यवस्था; एक-दूसरे से घनिष्ठतया सम्बन्धित हैं। इनमें से किसी एक उपव्यवस्था में भी घटित हुआ परिवर्तन अन्य सभी उपव्यवस्थाओं पर प्रभाव अवश्य डालेगा और इस तरह सम्पूर्ण समाज के सन्तुलन को नए बिन्दु पर पुनर्गठित करना होगा।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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