हिन्दी भाषा (मातृभाषा शिक्षण के गुण एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
हिन्दी भाषा अथवा मातृभाषा शिक्षण के गुण एवं विशेषताएँ
हिन्दी भाषा अथवा मातृभाषा शिक्षण के गुण एवं विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) मातृभाषा शिक्षा प्रदान करने का सर्वोत्तम साधन है- मातृभाषा शिक्षा प्रदान करने का सर्वोत्तम साधन है क्योंकि यह विचार-विनिमय का सर्वोत्तम साधन है। मातृभाषा अन्य विषयों की भाँति एक विषय ही नहीं है वरन् यह एक आधारभूत विषय है जिसके अध्ययन एवं अध्यापन पर सम्पूर्ण शिक्षा आधारित होती है। सैम्पसन के अनुसार, “स्पष्ट शब्दों में एवं साथरण अर्थ में अंग्रेजी (मातृभाषा) शिक्षण विषय है ही नहीं, तो स्कूली जीवन का आधार है। उसे शिक्षण विषय कहने की अपेक्षा जीवन का अनिवार्य आधार ही कहना चाहिए।” शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा का बहुत अधिक महत्त्व है। मातृभाषा के माध्यम के प्रश्न पर डॉ० एनी बेसेण्ट ने कहा था, “मातृभाषा द्वारा शिक्षा के अभाव ने भारत को निश्चय ही विश्व के सभ्य देशों में अत्यन्त अज्ञानी बना दिया है।” 1905 में रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने भी इसी सन्दर्भ में कहा था, “जब तक मातृभाषा को उच्च शिक्षा का माध्यम नहीं बनाया जाएगा, तब तक पाठ्य पुस्तकें कैसे लिखी जायेंगी, नई शब्दावली कैसे बनेगी, भाषा का विकास उसके प्रयोग से होता है।”
(2) मातृभाषा छात्रों का बौद्धिक एवं मानसिक विकास करती है- गांधीजी के शब्दों में, “मनुष्य के मानसिक विकास के लिए मातृभाषा उतनी ही जरूरी है जितना कि बच्चे के भौतिक विकास के लिए माँ का दूध।” मातृभाषा पर बच्चे का स्वाभाविक अधिकार होता है। वह उसके माध्यम से अत्यन्त सरलता और स्पष्टता से विचारों का आदान-प्रदान करता है। इससे उसका बौद्धिक एवं मानसिक विकास होता है। इतना ही नहीं, अपितु अपनी मातृभाषा के अध्ययन द्वारा वह बहुत बनता है। मातृभाषा के माध्यम से ही वह अन्य विषयों का ज्ञान प्राप्त करता है। रायबर्न के शब्दों में, “मातृभाषा शिक्षा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि मातृभाषा शिक्षण पर हमारे विद्यार्थियों का बौद्धिक विकास निर्भर है- बौद्धिक जीवन का विकास, ज्ञान में वृद्धि, आत्माभिव्यक्ति की क्षमता का विकास, सृजनात्मक व उत्पादन क्षमता का विकास।”
(3) मातृभाषा छात्रों के व्यक्तित्व के विकास में सहायक है- सैम्पसन के अनुसार, “मातृभाषा का शिक्षण ज्ञान प्रदान करने का केवल एक अवसर ही नहीं है अपितु यह तो बालक को मनुष्य के जीवन में दीक्षित करने का एक भाग है।” शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य छात्रों के व्यक्तित्व का विकास करना होता है। इस विकास की प्रक्रिया में मातृभाषा का अनुपम योगदान है। मातृभाषा के माध्यम से छात्रों में आत्मविश्वास एवं नेतृत्व आदि गुण विकसित होते हैं तथा उन्हें आत्म-प्रकाशन का अवसर मिलता है। इसी के माध्यम से उनका समाजीकरण होता है तथा वे अपने समाज की सभ्यता एवं संस्कृति से परिचित होते हैं।
(4) मातृभाषा छात्रों का भावात्मक विकास करती है- बच्चे मातृभाषा को, माता और मातृभूमि के समान बड़ी श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं। यही कारण है कि एक मातृभाषा बोलने वाले व्यक्तियों में परस्पर प्रेम रहता है तथा वे एक-दूसरे से सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करते है और एक-दूसरे की सहायता करते हैं। इतना ही नहीं व्यक्तियों को अपनी मातृभाषा के साहित्य के प्रति भी अनुराग होता है और साहित्य में कलापक्ष एवं भावपक्ष दोनों ही सम्मिलित रहते हैं। इस प्रकार मातृभाषा भावात्मक एकता तथा विकास उत्पन्न एवं विकसित करने में सहायक होती है।
(5) मातृभाषा के साहित्य के अध्ययन से हृदय में आनन्द की सृष्टि होती है ‘रायबर्न के अनुसार, “मातृभाषा एक साथ ही एक करण (औजार), आनन्द, प्रसन्नता एवं ज्ञान का एक स्रोत, रुचियों एवं अनुभूतियों की निदेशक और विधाता द्वारा मनुष्य को दी हुई उस सर्वोत्तम शक्ति के प्रयोग का साधन है जिसके आधार पर हम उसके निकटतम पहुँच जाते हैं।” लोक साहित्य मातृभाषा में ही लिखा हुआ होता है। उसे पढ़कर बालकों को आनन्द आता है। वह प्रसन्नता के समुद्र में डूबता-उतरता रहता है। मातृभाषा में लिखी हुई कहानियाँ, लोक-कथाएँ, नाटक, उपन्यास आदि को पढ़कर जहाँ बालक को ज्ञान की प्राप्ति होती है, वहाँ उनमें भावनाओं का प्रक्षेपण पाकर उसके आनन्द की अनुभूति भी होती है।
(6) मातृभाषा व्यक्ति के सांस्कृतिक विकास का आधार है- जाकिर हुसैन कमेटी रिपोर्ट में लिखा है, “यह (मातृभाषा) बच्चों को उनके देशवासियों के विचारों, भावनाओं एवं महत्त्वाकांक्षाओं की समृद्ध थाती से परिचित कराने के लिए एक उपयुक्त माध्यम है।”
(7) मातृभाषा छात्रों की सृजनात्मक प्रतिभा का विकास करती है- मातृभाषा पर धीरे-धीरे अधिकार कर लेने तथा मातृभाषा के साहित्य से पर्याप्त प्रेरणा प्राप्त कर लेने के बाद छात्र मातृभाषा में कहानियाँ, कवितायें, लघु कथायें व लेख आदि लिखने लगते हैं। इस प्रकार आत्माभिव्यक्ति का अवसर मिलने से छात्रों की सृजनात्मक प्रतिभा विकसित होती है।
(8) मातृभाषा छात्रों में आदर्श नागरिकता के गुण विकसित करती है- माइकेल वेस्ट के अनुसार, “भाषा ही वह तत्त्व है जिससे हमारी आत्मा का गठन होता है। भाषा का महत्त्व केवल बौद्धिक विकास में ही नहीं है अपितु चारित्रिक विकास में भी है जिसके फलस्वरूप देश का प्रत्येक नागरिक अच्छे गुणों से युक्त हो सकता है।” रायबर्न के अनुसार, “वे समस्त गुण जो कि एक अच्छे नागरिक के लिए आवश्यक है- स्पष्ट विचार-क्षमता, स्पष्ट अभिव्यक्तिकरण, विचार, भावना और क्रिया की सत्यता, भावात्मक तथा सृजनात्मक जीवन की पूर्णता- इन समस्त गुणों का पल्लवन तथा विकास तभी सम्भव है, यदि केवल भावात्मक तथा बौद्धिक जीवन की नींव अर्थात् मातृभाषा पर यथेष्ट ध्यान दिया जाये।”
वास्तव में मातृभाषा के साहित्य के अध्ययन से छात्रों की सामाजिक परम्पराओं तथा मानवीय सम्बन्धों का ज्ञान प्राप्त होता है। जिसके आधार पर वे भविष्य में अपने जीवन-मूल्य एवं जीवन दर्शन का निर्धारण कर सकने में सक्षम हो सकते हैं।
(9) मातृभाषा बालक को सामाजिक दृष्टि से निपुण बनाती है मातृभाषा बालक को सामाजिक स्वरूप प्रदान करती है। बालक मातृभाषा में ही बोलना, लिखना, तर्क करना, भाषण देना आदि सीखता है। इन गुणों के द्वारा वह न केवल अपने व्यक्तित्व का विकास करता है वरन् है समाज में अपना एक स्थान भी बना लेता है। वह अपने विचारों एवं भावों की अभिव्यक्ति जितनी प्रभावोत्पादकता के साथ करेगा, समाज में उसकी स्थिति उतनी ही दृढ़ होगी। हो सकता है कि अपने इन्हीं गुणों के कारण वह आगे चलकर समाज को कुशल नेतृत्व प्रदान करे।
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