हिन्दी में त्वरित वाचन का महत्त्व स्पष्ट कीजिए। अथवा टिप्पणी- हिन्दी में द्रुत वाचन का महत्त्व।
हिन्दी में त्वरित वाचन का महत्त्व
द्रुत पाठ में अध्ययन शीघ्रतापूर्वक किया जाता है और उसके भावों को ग्रहण करने की योग्यता प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाता है।
गहन अध्ययन से द्रुत अध्ययन भिन्न होता है। इसमें विषय की गहनता मुख्य न होकर विषय का विस्तार मुख्य होता है और यह अध्ययन द्रुत पाठ द्वारा होता है। इसकी पुस्तकें और शिक्षण विधि भी पूर्ण रूप से भिन्न होती है।
द्रुत अध्ययन में इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि छात्र शीघ्र पढ़कर समझ ले, उसके मुख्य तथ्य को ग्रहण कर ले। इसमें विषय का सरल होना आवश्यक है। जैसे वाण, सुबन्धु व दण्डी आदि का साहित्य द्रुत पाठ के अनुपयुक्त है क्योंकि धीरे-धीरे बिना गहन अध्ययन किये उसे द्रुत पाठ से समझा नहीं जा सकता है। भर्तृहरि शतक के कुछ श्लोक बहुत सरल हैं। उन्हें द्रुत पाठ के अन्तर्गत रखा जा सकता है।
दुत पाठ का उद्देश्य- द्रुत पाठ का मुख्य उद्देश्य शीघ्र पठन द्वारा साहित्य का अधिक-से-अधिक भाग प्राप्त करना है। द्रुत पाठ के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
- शीघ्र पठन द्वारा छात्रों में इस योग्यता को उत्पन्न करना कि वे कम समय में विषय-वस्तु को समझ सकें।
- शीघ्र पठन का अभ्यास करना।
- साहित्य के प्रति रुचि जागृत करना।
- छात्रों को स्वतन्त्र अध्ययन के लिए प्रेरित करना।
- स्वस्थ मनोरंजन के प्रति आकृष्ट करना।
द्रुत पाठ शिक्षण विधि- द्रुत पाठ का मुख्य उद्देश्य विषयगत भावों को ग्रहण करना द्रुत पाठ में समय की बचत होती है, क्योंकि इसमें न तो आदर्श पात्र की आवश्यकता होती है और न लेते हैं। इसके पश्चात् विषय सामग्री सरल होने के कारण शब्दार्थ तथा स्पष्टीकरण की। अध्यापक मौनवाचन करने को कहता है और यदि बीच में कोई बात समझ में नहीं आती है तो छात्र स्वतः ही पूछ अध्यापक कुछ प्रश्न पूछता है। छात्रों के उत्तर से यह ज्ञात हो जाता है कि उन्होंने विषय को कितना समझा। छात्रों को सरल संस्कृत में कुछ वाक्यों को भी लिखने को कहा जाता है।
उच्च स्तर पर भाषा के कुछ प्रश्नोत्तर दिये जायँ और उसका सारांश लिखाया जा सकता है। पाठ को मुख्यतः तीन अन्वितियों में बाँटकर पढ़ाना चाहिए। यदि छोटा है तो एक ही अन्विति में पढ़ाया जा सकता है। अन्य पाठों के शिक्षण के समान पुनरावृत्ति भी की जानी चाहिए।
इस प्रकार द्रुत पाठ शिक्षण का महत्त्वपूर्ण स्थान है। पाठ को रोचक व वातावरण को मनोरंजक बनाने हेतु अध्यापक समय पर दूसरे माध्यम से कथा के वातावरण को सरस बना सकता है।
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