राष्ट्रीय एकता तथा विद्यालय पाठ्यक्रम पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
राष्ट्रीय एकता एवं विद्यालय पाठ्यक्रम (National Integration and School Curriculum)
शिक्षा एक महान् शक्ति है तथा राष्ट्रीय एकता का प्रभावशाली साधन है। शिक्षा का मुख्य साधन विद्यालय का पाठ्यक्रम है। पाठ्यक्रम का निर्मा ण प्रायः परीक्षा के दृष्टिकोण से किया जाता है। राष्ट्र के व्यापक हितों को ध्यान में रखते हुये, इन विषयों की विषयवस्तु को पुनः व्यवस्थित करने की आवश्यकता है। विभिन्न विषयों को पढ़ाते समय अग्रलिखित ढंग से स्कूल पाठ्यक्रम की सहायता से राष्ट्रीय दृष्टिकोण का विकास करके एकता स्थापित की जा सकती है-
1. सामाजिक विज्ञान का शिक्षण (Instruction in Social Sciences) – वर्तमान युग की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता यह है कि सामाजिक विज्ञान के अन्तर्गत विषयों की पुनर्व्यवस्था की जाए। इतिहास, भूगोल, सामाजिक अध्ययन, नागरिकशास्त्र विषयों को राष्ट्रीय दृष्टिकोण एवं राष्ट्रीय आवश्यकताओं तथा उपलब्धियों की दृष्टि से पढ़ाया जाये। ‘इतिहास’ के माध्यम से भारत की धार्मिक भाषाई तथा जातीय विभिन्नताओं में एकता प्रकट होनी चाहिये। बालकों को इतिहास के माध्यम से यह अनुभव करना चाहिये कि जब भी लोगों में एकता का अभाव रहा भारत आसानी से विदेशों के दबाव में आता रहा। भूगोल की शिक्षा के माध्यम से विभिन्न जातियों के जीवन विधियों एवं उनके भोजन आदि का ज्ञान मिलता है। ‘भूगोल’ के अध्ययन से लोगों के रहन-सहन, भोजन, पहनावे आदि के ज्ञान छात्रों में एक-दूसरे के प्रान्त के लोगों के बारे में जानकारी मिलती है। यह भी ज्ञात होता है कि किस प्रकार विभिन्न क्षेत्र एक-दूसरे पर निर्भर हैं। सामाजिक अध्ययन’ भी राष्ट्रीय दृष्टिकोण से पढ़ाया जाना चाहिये। ‘नागरिकशास्त्र’ छात्रों में राष्ट्रीय तथा भावात्मक एकता के प्रति वांछित दृष्टिकोण उत्पन्न करने के लिये पढ़ाया जाना चाहिये।
स्पष्ट रूप में ऐसा कहा जा सकता है कि भारतीय इतिहास का महान् युग था, जब भारत के विभिन्न क्षेत्रों में एकता के कारण भारत एक शक्तिशाली एवं सुदृढ़ देश था और पारिवारिक झगड़ों के कारण यहाँ के लोगों, सम्प्रदायों, साधनों आदि को बहुत हानि उठानी पड़ी। आधुनिक लोकतन्त्रात्मक राज्य में एकता स्थापित करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।
2. कला, साहित्य और संगीत का योगदान (Contribution of Art, Literature and Music)- राष्ट्रीय भावना के विकास में कला, साहित्य तथा संगीत का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। पं० नेहरू के शब्दों में, किसी भी नगर की कला दीर्घायें (Art galleries) तथा संग्रहालय (Museum) खिड़कियों के समान होते हैं, जहाँ से जीवन के व्यापक समृद्ध तथा गम्भीर तत्वों को देखा जा सकता है। कला में संस्कृति प्रतिबिम्बित होती है, भावनाओं पर उसका प्रभाव पड़ता है, इसलिए इससे राष्ट्रीय एकता का लक्ष्य भी प्राप्त किया जा सकता है। इसी प्रकार संगीत भी भावात्मक समन्वय का शक्तिशाली साधन है। साहित्य राष्ट्रीय आत्मा को लिखित अभिव्यक्ति है। इसलिए इसे राष्ट्रीय एकता एवं व्यापक राष्ट्रीय चेतनता के निर्माण में प्रयोग किया जा सकता है।
३. विभिन्न भाषाओं का शिक्षण (Teaching of Different Languages)- यह ऐतिहासिक तथ्य है कि भाषा ही लोगों को संगठित करती है तथा भाषा के नाम पर अनेकों बार दंगे हुए हैं। इस अवस्था में विभिन्न भाषाओं को सीखने की आवश्यकता पर बल दिया जाना चाहिए। राष्ट्रीय एकता के लिए यह आवश्यक है कि हम राष्ट्र भाषा को अनिवार्य रूप से बालकों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें। राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक है कि देश की भाषा एक हो । यदि भाषा एक नहीं है तो विचार-विमर्श नहीं हो सकता। मातृ भाषा के साथ राष्ट्र भाषा का सीखना अनिवार्य करने से राष्ट्रीयता की भावना को बल मिलेगा।
4. विज्ञान का शिक्षण (Teaching of Science) – विज्ञान का विषय भी बालकों में राष्ट्रीय एकता की भावना उत्पन्न करने में पर्याप्त सहायता प्रदान कर सकता है। वर्तमान युग में विज्ञान का महत्त्व बहुत अधिक बढ़ गया है। विज्ञान के विषय के माध्यम से हम बालकों को यह अनुभव दे सकते हैं कि विज्ञान के क्षेत्र में भारत में हुई उपलब्धियाँ किसी एक व्यक्ति की निजी सम्पत्ति नहीं है वरन् यह सम्पूर्ण देश की धरोहर है। विज्ञान का प्रयोग देश की समृद्धि के लिए किया जाना चाहिए। इस प्रकार छात्र बड़े होकर वैज्ञानिक बनने पर राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखेंगे।
5. पाठ्य पुस्तकों का पुनर्निर्माण (Redesigning Text Books)- पाठ्य पुस्तकें भी शिक्षा पद्धति का एक अभिन्न अंग हैं। इनमें जो कुछ भी दिया जाएगा छात्र उन्हीं का अनुसरण करने का प्रयास करेंगे। राष्ट्रीय एकता को ध्यान में रखते हुए पाठ्य पुस्तकों की सामग्री में संशोधन किया जाना चाहिए। जो बातें एकता के मार्ग में बाधा डालने वाली हों उन्हें हटाया जाना चाहिए तथा एकता करने वाली बातों को शामिल किया जाना चाहिए। प्रत्येक स्तर पर पाठ्य पुस्तकों का मूल्यांकन होना चाहिए तथा जो सामग्री छात्र को राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास करने में सहायता प्रदान करती हो, उसको पाठ्य पुस्तक में उचित स्थान दिया जाना चाहिए।
6. पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा को उचित स्थान (Place of Moral Education in School Curriculum)- राष्ट्रीय एकता के लिए पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा को भी उचित स्थान प्रदान किया जाना चाहिए। छात्रों को इस बात से परिचित कराया जाना चाहिए कि देश की प्रगति केवल भौतिक समृद्धि से नहीं, बल्कि नागरिकों के चरित्र से होती है। आज भारत के नागरिक का नैतिक पतन हो चुका है। आवश्यकता यह है कि नैतिक शिक्षा के शिक्षण द्वारा छात्रों में नैतिक मूल्यों के प्रति विश्वास उत्पन्न किया जाए तथा देश को एक सुदृढ़ राष्ट्रीय चरित्र प्रदान करके राष्ट्रीय एकता को दृढ़ बनाएँ।
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