गृहकार्य पर एक लेख लिखिये।
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गृह-कार्य का अर्थ
बालक का अधिकांश समय घर पर व्यतीत होता है। चौबीस घण्टों में से बालक विद्यालय में केवल पाँच या छः घण्टे रहता है। घर पर बालक अपने समय को सृजनात्मक एवं उपयोगी कार्यों में लगाये तथा अवकाश के समय का सदुपयोग करे; इस तथ्य को ध्यान में रखकर गृहकार्य दिया जाता है। गृह-कार्य देने के पीछे दूसरा प्रमुख उद्देश्य शैक्षिक होता है। विद्यालय में बालक शैक्षिक क्रियाएँ अध्यापकों की देखरेख में करता है। वहाँ वह अपने सहपाठियों की सहायता भी ले लेता है, परन्तु यह विषय-वस्तु को ठीक से समझ पाया है अथवा नहीं, यह तभी ज्ञात होता है, जब वह कार्य को स्वतन्त्रापूर्वक बिना किसी की देखरेख में करे। गृहकार्य के पीछे तीसरा उद्देश्य ज्ञान को स्थायी करना भी है। गृह-कार्य के रूप में विद्यालय में पढ़ाई गई विषय-वस्तु की बालक पुनरावृत्ति करता है। इससे उसके कौशल एवं अवबोध में वृद्धि होती है।
गृह-कार्य का सामान्य अर्थ अध्यापक द्वारा आदेशित किसी विषय के सम्बन्ध में कुछ लिखित कार्य घर पर करने से है। व्यापक अर्थ में गृह कार्य से अभिप्राय बालक द्वारा पढ़े जाने वाले समस्त विषयों से सम्बन्धित लिखित तथा मौखिक कार्य से है, जिसे बालक घर पर करता है।
गृह-कार्य के उद्देश्य
गृह-कार्य प्रदान करने के नीचे लिखे उद्देश्य होते हैं-
- शिक्षण-कार्य में शिक्षक को पृष्ठ-पोषण प्रदान करना।
- पढ़ी हुई विषय-वस्तु को आत्मसात कराना तथा उसके विषय में सम्बन्ध तथा कौशल विकसित करना।
- छात्रों में स्वाध्याय की आदत का विकास करना।
- छात्रों के लिए निदानात्मक तथा उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था करना।
- छात्रों के अभिभावकों की छात्रों की शिक्षा में रुचि जाग्रत करना।
- विद्यालय के अलावा घर के समय में छात्र आवारागर्दी तथा असामाजिक कार्य न करें, इससे बचाये रखने के लिए उन्हें उपयोगी, शैक्षिक तथा सृजनात्मक कार्यों में लिप्त रखना।
- पढ़ी हुई विषय-वस्तु की पुनरावृत्ति करना।
- छात्रों को नियमित रूप से अध्ययन करने की प्रेरणा देना।
- गृह तथा विद्यालय के मध्य सम्पर्क स्थापित करना।
- छात्रों में स्वतन्त्र रूप से अध्ययन करने की आदत का विकास करना।
- छात्रों को पाठ्य-पुस्तक के अतिरिक्त अन्य सहयोगी पुस्तकें, सन्दर्भ पुस्तकें तथा साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करना ।
- घर पर अवकाश के क्षणों का सदुपयोग करने की शिक्षा में रुचि जाग्रत करना।
गृह-कार्य के महत्व
1. बालक चौबीस घण्टे में से बहुत कम घण्टे विद्यालय में व्यतीत करता है, फलतः विद्यालय में पर्याप्त शिक्षा नहीं हो पाती है। विद्यालय के समय की अपर्याप्तता की पूर्ति हेतु भी गृहकार्य अच्छा साधन है।
2. छात्रों में स्वाध्याय तथा स्वतन्त्रतापूर्वक अध्ययन करने की आदत का विकास होता है।
3. घर पर विषय-वस्तु के विषय में बालक को अकेले स्वयं ही चिन्तन करना पड़ता है। इससे बालक में चिन्तन तथा तर्क शक्ति का विकास होता है।
4. गृह-कार्य बालक में आत्म-निर्भरता तथा आत्म-विश्वास जाग्रत करता है।
5. गृह-कार्य बालकों के अवकाश के समय का सदुपयोग करने का सृजनात्मक साधन है। गृहकार्य अवकाश के समय में बालक इधर-उधर आवारागर्दी करे, इससे बचाने का साधन है।
6. गृह-कार्य सामूहिक शिक्षण के दोषों को दूर करता है। गृह कार्य व्यक्तिगत रूप से होता है और शिक्षक व्यक्तिगत रूप से ही गृह-कार्य की जाँच करता है। सामूहिक शिक्षण के कारण बालक में जो कमी रह जाती है, गृह-कार्य द्वारा उसका पता लग जाता है तथा गृहकार्य द्वारा वह दूर हो जाती है।
7. गृह-कार्य अभ्यास तथा पुनरावृत्ति करने का अच्छा साधन है। इससे ज्ञान में स्थायित्व आता है तथा अवबोध तथा कौशल का विकास होता है।
8. गृह-कार्य घर तथा विद्यालय के मध्य सुन्दर सम्बन्ध स्थापित करता है। गृहकार्य के द्वारा अभिभावक बालक की शैक्षिक प्रगति से अवगत होते रहते हैं।
9. गृह-कार्य बालक को नियमित बनाता है।
गृह-कार्य से सम्बन्धित विचारधाराएँ
गृह-कार्य से सम्बन्धित दो विचारधाराएँ प्रचलित हैं। एक विचारधारा के अनुसार गृह-कार्य दिया जाना चाहिये और दूसरी विचारधारा गृह-कार्य देने का विरोध करती है। जो लोग गृह-कार्य देने के पक्षपाती हैं, वे गृह-कार्य देने के समर्थन में गृह-कार्य के उपर्युक्त महत्वों का उल्लेख करते हैं। दूसरी विचारधारा के लोग जो गृहकार्य न देने के पक्ष में हैं, अपनी विचारधाराओं के लिए निम्नलिखित तर्क देते हैं-
1. छोटे-छोटे बालक इतने योग्यं तथा दक्ष नहीं होते हैं कि वे बिना किसी के निर्देशन तथा देखरेख के ही अध्ययन कर सकें। घर पर उन्हें व्यवस्थित करने के लिए उपयुक्त निर्देशन तथा पथ-प्रदर्शन प्राप्त नहीं हो पाता है।
2. गृह-कार्य के कारण बालकों को खेल के लिए आवश्यक समय नहीं मिल पाता है।
3. सभी शिक्षक अलग-अलग विषयों से सम्बन्धित गृहकार्य देते हैं। इससे विभिन्न विषयों से सम्बन्धित उन पर इतना गृहकार्य हो जाता है, जो उनके स्वस्थ विकास पर बुरा प्रभाव डालता है।
4. प्रत्येक अध्यापक को इतने अधिक छात्रों के गृह-कार्य की जाँच करनी पड़ती है कि वे जाँच में पर्याप्त समय तथा ध्यान नहीं दे पाते हैं। फलतः वे छात्रों की कमियों का ठीक से मूल्यांकन नहीं कर पाते हैं।
5. बालक विद्यालय में लगातार 5-6 घण्टे पढ़ता रहता है। इतने लम्बे समय तक लगातार मानसिक कार्य करते रहने से वह थक जाता है। उसमें इतनी शक्ति नहीं रहती है कि वह घर पर आकर भी पढ़े। इससे उसके शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
6. गृह कार्य सभी छात्रों को समान रूप से दिया जाता है। इसमें व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ध्यान नहीं रखा जाता है। कमजोर छात्र गृहकार्य समान कुशलता से नहीं कर पाते हैं।
7. अधिकांश घरों का वातावरण इस योग्य नहीं होता है कि इस वातावरण में बालक अध्ययन कर सकें। अधिकांश परिवारों में अध्ययन हेतु आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होती हैं। इन कारणों से बालक घर पर पढ़ नहीं सकता है।
8. जो विषय-वस्तु विद्यालय में बालक की समझ में नहीं आई है, उससे सम्बन्धित गृह-कार्य बालक घर पर स्वतन्त्रतापूर्वक नहीं कर सकते हैं।
9. कुछ परिवारों की आर्थिक स्थिति खराब होती है। वहाँ बालकों को घर की आर्थिक क्रियाओं में हाथ बटाना पड़ता है। इसी प्रकार कुछ घरों में बालिकाओं को घरेलू कार्यों में हाथ बँटाना पड़ता है।
गृह-कार्य के प्रकार
भारतीय विद्यालयों में दिया जाने वाला गृहकार्य सामान्यतः निम्नलिखित रूपों में पाया जाता है-
1. मौखिक कार्य- इस रूप में शिक्षक बालक को विषय-वस्तु को मौखिक रूप से याद करके लाने को कहता है। किसी प्रश्न का उत्तर, कोई पद्य, अर्थ अथवा अन्य कोई विषय-वस्तु याद करके लाने को गृहकार्य के रूप में दी जा सकती है।
2. लिखित कार्य- गृह-कार्य का यह रूप सर्वाधिक प्रचलित है। इस प्रकार के अन्तर्गत शिक्षक बालकों को कुछ प्रश्नों का उत्तर लिखकर लाने को कहता है अथवा किसी पाठ का सारांश, निबन्ध, किसी विषय पर अपने विचार अथवा आलोचना लिखकर लाने को कहता है।
3. क्रियात्मक कार्य- गृहकार्य के रूप में क्रियात्मक या रचनात्मक कार्य दिया जा सकता है। कोई चार्ट बनाना, यन्त्र, प्रारूप इत्यादि बनाकर लाने के रूप में कोई क्रियात्मक गृहकार्य दिया जा सकता है।
गृह-कार्य के सिद्धान्त
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि गृहकार्य एक महत्वपूर्ण शैक्षिक क्रिया है, अतः इसका उपयोग बड़ी सावधानी से करना चाहिये। गृह-कार्य देते समय अध्यापकों को निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिये-
1. गृह-कार्य देते समय शिक्षक को बालकों की रुचि, शक्ति तथा व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ध्यान रखना चाहिये। मेधावी तथा शारीरिक रूप से स्वस्थ बालकों को अपेक्षाकृत अधिक कार्य दिया जाये तथा शेष छात्रों को उनकी सुविधानुसार गृह-कार्य दिया जाये।
2. गृह-कार्य देते समय बालकों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति तथा पारिवारिक स्थिति को भी ध्यान में रखना चाहिये। जिन परिवारों का वातावरण अध्ययन करने के लिए उपयुक्त न हो, वहाँ बालकों को अपेक्षाकृत कम गृह कार्य दिया जाये।
3. गृह-कार्य कक्षा में पढ़ाये गये पाठ की विषय-वस्तु में से ही दिया जाये।
4. गृह-कार्य में सरसता तथा विभिन्नता होनी चाहिये। सदैव एक जैसा कार्य न दिया जाये। कभी लिखित कार्य दिया जाये तो कभी मौखिक और कभी क्रियात्मक कुशल अध्यापक विभिन्न प्रकार से गृहकार्य में सरसता तथा विभिन्नता ला सकते हैं।
5. गृह-कार्य के लिए अभिभावकों का सहयोग प्राप्त किया जाये। इसके लिए छात्रों को छोटी-छोटी डायरियाँ दी जा सकती हैं। सारा गृह-कार्य इस डायरी में लिखा जाये, जिसे देखकर अभिभावक यह जान लें कि विद्यालय में क्या गृह-कार्य दिया गया है।
6. गृह-कार्य बालकों के शारीरिक और मानसिक स्तर के अनुकूल दिया जाये जो कुछ भी गृह-कार्य दिया जाये बालकों की आयु तथा मानसिक योग्यता के अनुसार हो। इस सिद्धान्त के अनुसार छोटे-छोटे बालकों को बहुत कम गृहकार्य दिया जाये, जिसे वह सुविधापूर्वक कर सकें तथा खेलकूद तथा पारिवारिक कार्यों के लिए भी समय बचा सकें।
7. गृह कार्य का उद्देश्य परीक्षोत्तीर्णता न होकर आत्म-शिक्षण शक्ति का विकास करना होना चाहिये।
8. दिए गये गृहकार्य की आवश्यक रूप से नियमित विधिवत् जाँच करनी चाहिये तथा जाँच के उपरान्त छात्रों को आवश्यक तथा पर्याप्त पथ-निर्देशन दिया जाये।
9. सभी शिक्षकों द्वारा दिए गये गृहकार्यों के बीच समन्वय होना चाहिये, जिससे कभी-कभी यह न हो कि सभी शिक्षक इतना कार्य दे दें, जिसे बालक कर न पाये। शिक्षक को सदैव यह ध्यान रखना चाहिये कि गृहकार्य देने को अन्य शिक्षक भी हैं।
10. गृह कार्य ऐसा हो जो छात्रों में स्वाध्याय की आदत का विकास करे।
अच्छे कार्य की विशेषताएँ- गृह-कार्य देने के अपने शैक्षिक उद्देश्य होते हैं। इन उद्देश्यों की प्राप्ति बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करती है कि दिया गया गृहकार्य किस प्रकार का है। वास्तव में, जो भी गृह कार्य दिया जाये, वह कक्षा-पाठ के उद्देश्यों का परिपूरक तथा शैक्षिक दृष्टिकोण से उत्तम होना चाहिये। उत्तम गृह-कार्य में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
- गृह कार्य में विविधता व सरसता होनी आवश्यक है।
- गृह-कार्य ऐसा हो जिसे छात्र बिना अन्य के निर्देशन के भी सम्पादित कर सके।
- अच्छा गृह कार्य अतिरिक्त साहित्य के ऊपर आधारित नहीं होता, क्योंकि घर पर सामान्यतः अतिरिक्त साहित्य उपलब्ध नहीं होता है।
- गृह-कार्य छात्रों के शारीरिक व मानसिक स्तर के अनुकूल होना चाहिये।
- गृह-कार्य कक्षा कार्य का परिपूरक हो
- गृहकार्य स्वयं में सरस, उत्प्रेरक तथा रुचिकर हो।
- गृह-कार्य व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुरूप हो। कमजोर छात्रों को स्थूल प्रकार का तथा उच्च बौद्धिक क्षमता वाले छात्रों को सूक्ष्म प्रकार का गृह-कार्य दिया जा सकता है
- गृह-कार्य कक्षा कार्य पर आधारित हो। सामान्यतः यह कक्षा कार्य के विस्तार के रूप में हो।
- बहुत अधिक गृहकार्य न दिया जाये। गृहकार्य देते समय ध्यान रखा जाये कि अन्य अध्यापक भी गृह कार्य देंगे।
- गृह-कार्य देते समय छात्र की कतिपय समस्याओं को ध्यान में रखा जाये। छात्र की इन समस्याओं का संक्षिप्त परिचय नीचे दिया गया है।
- गृह-कार्य सम्पादन के लिए आवश्यक मात्रा में संकेत तथा निर्देशन दिए जा सकते हैं।
गृह-कार्य से सम्बन्धित समस्याएँ
छात्र गृह-कार्य करके नहीं लाते हैं, यह समस्या प्रायः प्रत्येक अध्यापक के सामने आती है और प्रायः प्रत्येक अध्यापक इस कारण छात्रों को दण्ड देते देखे जाते हैं। जिन कारणों से छात्र गृहकार्य करके नहीं ला पाते हैं, उन्हें हम कई वर्गों में विभक्त कर सकते हैं— (1) व्यक्तिगत कारण, (2) विद्यालयी कारण, (3) सामाजिक कारण, (4) पारिवारिक कारण। नीचे इन चारों क्षेत्रों के विकास में सामान्य बिन्दु दिए गये हैं।
I. व्यक्तिगत कारण
नीचे कतिपय उन समस्याओं का उल्लेख है कि जिनके कारण छात्र गृह कार्य नहीं कर पाते हैं-
1. शारीरिक व मानसिक थकान गृहकार्य सम्पादन में बाधा उत्पन्न करती है। छात्र पूरे दिन विद्यालय में अनेकानेक शारीरिक व शैक्षिक क्रियाओं में भाग लेने के कारण थकान का अनुभव करता है।
2. प्रायः प्रत्येक अध्यापक गृहकार्य देता है। इससे छात्र पर गृहकार्य का बोझ इतना बढ़ जाता है कि वह समस्त गृह-कार्य पूरा नहीं कर पाता है।
3. शारीरिक व मानसिक अस्वस्थता छात्रों को गृहकार्य नहीं करने देती है।
4. गृह कार्य सम्पादन को छात्र की व्यक्तिगत पसन्द प्रभावित करती है, जो विषय या विषयाध्यापक छात्र को पसन्द होते हैं, छात्र उनका गृह कार्य कर लेते हैं।
II. विद्यालयी कारण
गृह-कार्य न करके लाने के कुछ कारण विद्यालय से सम्बन्धित होते हैं। इसी प्रकार के कुछ कारणों का उल्लेख निम्न प्रकार है-
1. कक्षा में अधिक छात्र होने के कारण अध्यापक प्रत्येक छात्र के गृह-कार्य की जाँच नहीं कर पाते हैं। अतः छात्र भी गृह-कार्य के प्रति उदासीनता दिखाने लगते हैं।
2. गृह-कार्य प्रदान करने के सम्बन्ध में सभी विषयों के अध्यापकों में किसी भी प्रकार का समन्वय स्थापित नहीं हो पाता है। फलतः किसी दिन अधिक और किसी दिन कम गृह-कार्य भार छात्र को मिल जाता है।
3. विद्यालय में कुछ विषय-विशेष के गृह-कार्यों पर अधिक बल दिया जाता है। जिन विषयों को कम महत्व दिया जाता है, छात्र भी उन विषयों की उपेक्षा कर देता है।
4. गृह-कार्य देते समय अध्यापक गृहकार्य के अनेकानेक मनोवैज्ञानिक पहलुओं को भूल जाते हैं।”
III. सामाजिक कारण
कुछ सामाजिक कारणों के फलस्वरूप भी बालक गृह-कार्य नहीं कर पाते हैं। इन कारणों में निम्न कारण प्रमुख हैं-
1. छात्र की मित्रमण्डली व आस-पड़ौस का खराब वातावरण होने के कारण बालक आवारागर्दी में समय बरबाद कर देता है।
2. समाज की कुप्रथायें, जैसे- बालक-विवाह, स्त्री-शिक्षा की उपेक्षा आदि बालक के गृह-कार्य सम्पादन में बाधा पैदा करती है।
IV पारिवारिक कारण
1. परिवार के व्यक्ति छात्रों को गृहकार्य कराने में आवश्यक सहायता नहीं दे पाते हैं।
2. परिवार की आर्थिक दुस्थिति बालक को अनेक प्रकार की आर्थिक क्रियायें करने को बाध्य कर देती है। फलतः गृह-कार्य करने के लिए उसे पर्याप्त समय नहीं मिलता है।
3. परिवार में बालक को अनेक प्रकार के पारिवारिक कार्य करने पड़ते हैं, जिससे विद्यालय के गृह-कार्य को करने के लिए उसके पास समय नहीं बचता है।
4. परिवार में गृहकार्य सम्पादित करने हेतु आवश्यक साधन व वातावरण नहीं रहता है।
अनेक अवसरों पर ऐसा भी देखा गया है कि छात्र गृह-कार्य कर तो लाते हैं, किन्तु उससे वांछित उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो पाती है, उदाहरण के लिए कभी-कभी एक छात्र अन्य छात्र की नकल करके ले आता है या कोई ट्यूटर या घर का बड़ा सदस्य गृह-कार्य करा देता है अथवा फिर अध्यापक किये हुये गृहकार्य की जाँच विधिपूर्वक नहीं करते। इन जैसे कारणों से गृह-कार्य अपने उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर पाते हैं। अध्यापक को चाहिये कि गृहकार्य के सम्बन्ध में इन तथ्यों को भी ध्यान में रखे।
गृह-कार्य की जाँच
गृह-कार्य जितना आवश्यक तथा महत्वपूर्ण है, उतना ही आवश्यक उसकी विधिवत जाँच करना है। यदि गृह-कार्य की भली प्रकार तथा उद्देश्यपूर्ण ढंग से जाँच न की जाये तो गृह-कार्य देने के उद्देश्य तथा लाभ ही समाप्त हो जाते हैं। अतः प्रत्येक शिक्षक को गृहकार्य की नियमित तथा पूर्ण जाँच करनी चाहिये तथा जाँच के पश्चात् आवश्यक आदेश, सुझाव तथा निर्देश दिए जाएँ।
गृहकार्य करने में छात्र जो कुछ भी गलतियाँ करता है, उनके निराकरण हेतु आवश्यक प्रयास किये जाएँ। गृह-कार्य से दो प्रकार की गलतियाँ प्रकट होती हैं—व्यक्तिगत तथा सामूहिक । व्यक्तिगत गलतियों का निराकरण व्यक्तिगत रूप से होना चाहिये और सामूहिक गलतियों का निराकरण सम्पूर्ण कक्षा में किया जाना चाहिये। छात्र जो गृहकार्य करके लाया है, उसके स्तर तथा उसके सुधार हेतु पर्याप्त तथा स्पष्ट सुझाव दिए जाने आवश्यक हैं। जाँच में केवल काट देना (x) अथवा सही का चिन्ह (√) लगा देना ही काफी नहीं है। व्यक्तिगत गलतियों का निराकरण व्यक्तिगत ढंग से किया जाये तथा सामूहिक गलतियों के लिए सम्पूर्ण कक्षा को पुनः शिक्षण प्रदान किया जाये।
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Disclaimer
बहुत अच्छा था आप गृह कार्य तथा कक्षा कार्य दोनों में अंतर आवश्यकता और कक्षा कार्य के महत्व के विषय में और अधिक लिख दें तो बहुत से लोगों को लाभप्रद होगा
thanks… mai kosis krungi