विद्यालय संगठन / SCHOOL ORGANISATION

शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं ? इसकी आवश्यकता

शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं ? इसकी आवश्यकता
शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं ? इसकी आवश्यकता

शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं ? इसकी आवश्यकता को स्पष्ट कीजिये। 

शैक्षिक निर्देशन का अर्थ (Meaning of Educational Guidance)

कुछ विद्वान निर्देशन को शिक्षा मानते हैं, परन्तु सभी प्रकार की शिक्षा निर्देशन नहीं है। अतएव शैक्षिक निर्देशन का अपना अलग महत्व है। शैक्षिक निर्देशन के अन्तर्गत शिक्षण, अनुशासन एवं दूसरे विद्यालय कार्यक्रमों में सभी क्रियायें सम्मिलित होती हैं।

दूसरी ओर शिक्षा के क्षेत्र में अपव्यय तथा अवरोधन भी हो रहा है। परीक्षाओं में असफल होने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है। विभिन्न योग्यताओं, क्षमताओं एवं रुचियों वाले छात्रों का उचित विकास नहीं हो पा रहा है। अतएव निर्देशन का अत्यधिक महत्व है। विभिन्न विद्वानों एवं शिक्षाशास्त्रियों के निर्देशन का अर्थ स्पष्ट करने के लिए भिन्न-भिन्न परिभाषायें दी हैं, जिनका विवरण निम्न प्रकार है-

1. ब्रूअर (Brewer) के अनुसार, “शैक्षिक निर्देशन की परिभाषा व्यक्ति के मानसिक विकास में सहायता देने के लिए सचेत प्रयास के रूप में दी जा सकती है। कोई भी बात जिसका सम्बन्ध सीखने या शिक्षा से है, शैक्षिक निर्देशन शब्द के अन्तर्गत है।”

“Educational guidance may be defined as a conscious effort to assist in the intellectual growth of the individual. Anything that has to do with instruction or with learning may come under the term educational guidance”. – Brewer

2. ट्रैक्सलर (Traxler) के अनुसार- “शैक्षिक निर्देशन का सम्बन्ध स्कूल के प्रत्येक पहलू से है, जैसे कि पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियाँ, पढ़ाई के निरीक्षण अनुशासन विधियाँ, उपस्थिति, योजनाबद्ध की समस्यायें, पाठ्यातिरिक्त क्रियायें, स्वास्थ्य तथा शारीरिक योग्यता कार्यक्रम तथा घर और समुदाय सम्बन्ध ।”

“Educational guidance is witally related to every aspect of instruction, disciplinary procedures, attendance, problems of scheduling, the extra curricular, the health and physical fitness programmes and home and community relations.” – Traxler

3. मायर्स (Myers) के विचारों में, “शैक्षिक निर्देशन एक ऐसी प्रक्रिया है जो एक ओर तो विशिष्ट गुणों वाले छात्र में और दूसरी ओर अवसरों और आवश्यकताओं के विभिन्न समूहों में ऐसा सम्बन्ध स्थापित करती है, जिससे व्यक्ति के विकास और उसकी शिक्षा के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण हो जाता है।”

“Educational guidance is a process concerned with bringing about, between an individual pupil, his distinctive characteristics on the one hand and differing groups of opporunities and requirements on the other and favourable setting for the individual’s development or education”. – Myers

4. जोन्स (Jones) के विचारों में, “शैक्षिक निर्देशन का सम्बन्ध उस सहायता से है, जो विद्यार्थियों की विषयों के चुनाव तथा विद्यालयों, पाठ्यक्रम, पाठ्य पुस्तकों तथा स्कूल के साथ समंजन प्राप्ति में दी जाती है। “

शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता (Need of Educational Guidance)

बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में नवीन प्रवृत्तियों ने शिक्षा के क्षेत्र में पदार्पण किया, जिनके कारण से विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रमों (Subject-curriculum) के स्थान पर बाल-केन्द्रित पाठ्यक्रमों का शिक्षा के क्षेत्र में प्रसार हुआ। इसी सम्प्रत्यय (Concept) के फलस्वरूप पाठ्यक्रमों का चयन, पाठ्य-सामग्री एवं साधनों तथा शिक्षा अधिगम में विभिन्न विधियों (Technique) और कौशलों (Strategies) की आवश्यकता अनुभव की गई। अतः शिक्षा के विभिन्न माध्यमों औपचारिक (Formal) तथा अनौपचारिक (Non-Formal) में शैक्षिक निर्देशन का प्रयोग आवश्यक हो गया है, जोकि निम्नलिखित दृष्टियों से अनुभव किया जा सकता है-

1. पाठ्यक्रम का चयन (Choice of Curriculum)- पाठ्यक्रम सभी छात्रों के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता। विद्यालय में भिन्न-भिन्न प्रकार के पाठ्यक्रम की व्यवस्था होती है। शैक्षिक निर्देशन के माध्यम से बालक की रुचियों, योग्यताओं, प्रतिभाओं और क्षमताओं को ध्यान में रखते हुये एक विशिष्ट प्रकार के पाठ्यक्रम को अपनाने में सहायता करनी चाहिये। शिक्षा आयोगों ने विद्यालयों में विज्ञान, कृषि, वाणिज्य, मानवीय, गृहविज्ञान, ललित कलाओं आदि के पाठ्यक्रम की सिफारिश की है। पाठ्यक्रम की विविधता को सम्मुख रखते हुये शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता है।

2. अपव्यय तथा अवरोधन (Wastage and Stagnation) – बहुत-से छात्र विभिन्न परीक्षाओं में ‘असफल’ रहते हैं. या जो शिक्षा को बीच में छोड़ देते हैं। हमारी शिक्षा संस्थायें ऐसे बालकों को जन्म दे रही हैं, जो अपराधी एवं समस्या बालक बन जाते हैं। अतः शिक्षा के क्षेत्र में शक्ति का, समय का तथा धन का अपव्यय होता है। इस अपव्यय तथा अवरोधन को रोकने के लिए शैक्षिक निर्देशन अत्यन्त आवश्यक है।

3. व्यवसाय के लिए तैयारी (Preparation for Vocation) – प्रत्येक छात्र को अपने भावी जीवन में आजीविका कमाने के लिए कोई न कोई व्यवसाय अपनाना होता है। भावी व्यवसाय की दृष्टि से बालक को अपनी रुचि, प्रतिभा तथा क्षमता के अनुरूप पाठ्यक्रम चुनकर उस व्यवसाय के लिए तैयार करना होता है। यह तभी सम्भव है, जब बालक को निर्देशन के द्वारा सही पाठ्यक्रम चयन करने में सहायता दी जाये। विद्यालय रोजगार के विभिन्न अवसरों तथा उनके अपेक्षित तैयारी के सम्बन्ध में जानकारी देकर भी बालकों को सभी प्रकार का निर्देशन प्राप्त हो जाता है।

4. पाठ्य-सहायक क्रियाओं को संगठित करना (Organising Co-curricular Activities) – विद्यालय में पाठ्य सहायक गतिविधियों को संगठित करने के लिए शैक्षिक निर्देशन आवश्यक है। यह पाठ्यगामी क्रियायें शिक्षा में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। इन क्रियाओं के माध्यम से बालकों की विभिन्न प्रतिभाओं का विकास किया जाता है। इन क्रियाओं के उचित संगठन में शैक्षिक निर्देशन का बहुत योगदान है।

5. व्यक्तिगत विभिन्नतायें (Individual differences) – कोई दो बालक एक जैसे नहीं होते। उनमें अनेक प्रकार की शारीरिक, मानसिक तथा भावात्मक भिन्नतायें पाई जाती हैं। उनको उचित पाठ्यक्रम चुनने में सहायता देने के लिए शैक्षिक निर्देशन अत्यन्त आवश्यक है।

6. शैक्षिक संस्थाओं के वातावरण में छात्रों का समंजन (Adjustment of Students in Educational Environment)- विद्वानों तथा शिक्षाशास्त्रियों का मत है कि यदि विद्यार्थी को विद्यालय या महाविद्यालय के लिए तैयार न किया जाये तो उसका कुसमंजन हो जाता है। विद्यालय में नया प्रवेश लेते समय, विद्यालय बदलते समय विद्यार्थी के साथ यदि उचित व्यवहार न हो तो कई प्रकार की कठिनाइयाँ उत्पन्न हो जाती हैं। कुछ विद्यार्थियों को नये वातावरण के अनुकूल ढालने में शैक्षिक निर्देशन उनकी सहायता करता है, खोया सा रहता है और इस अवस्था में शैक्षिक निर्देशन उनकी सहायता करता है।

7. प्रौढ़ शिक्षा (Adult Education)- प्रौढ़ शिक्षा के विभिन्न कार्यों में छात्र द्वारा सहयोग निर्देशन द्वारा प्राप्त हो सकता है एवं अनवरत (सतत) शिक्षा में उनकी सहभागिता आवश्यक है।

8. प्रदत्त कार्यों (Assignments) – प्रदत्त कार्यों में विद्यार्थियों का भली प्रकार से मार्ग-दर्शन (Direction) देने के लिए निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है।

9. विद्यार्थियों की विशेष समस्याओं का समाधान (Helping Students with Specific Problems)– कई बार विद्यार्थी विशेष प्रकार की व्यक्तिगत समस्याओं का शिकार हो जाता है। उदाहरण के लिए, उसमें खराब अध्ययन स्वयमेव सीखने की दोषपूर्ण विधि, एक या अधिक स्कूल विषयों में न्यूनता, उत्प्रेरण की कमी तथा योग्यता और उपलब्धि में सम्बन्ध की कमी। ऐसी स्थिति में इन विशेष समस्याओं के निराकरण में शैक्षिक निर्देशन की अत्यधिक आवश्यकता है।

10. आगामी शिक्षा के लिए निर्णय (Decision for Further Education)- छात्र स्वयं आगामी शिक्षा को प्राप्त करने का निर्णय नहीं ले सकता। वह नहीं जानता कि उसके लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण या दूसरी शिक्षा लाभदायक है या नहीं। सही निर्देशन के बिना वह आगामी शिक्षा के बारे में निर्णय नहीं ले सकता है। ऐसी स्थिति में शैक्षिक निर्देशन की अत्यधिक आवश्यकता है।

 विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance at Various Stages)

निर्देशन एक विकासशील एवं गतिशील प्रक्रिया है। विद्यार्थियों की उचित प्रगति के लिए विद्यालय के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन की अत्यधिक आवश्यकता है। किण्डरगार्टन विद्यालयों से लेकर उच्च शिक्षा तक शैक्षिक निर्देशन विद्यार्थी की सहायता करता है।

प्राथमिक स्तर पर शैक्षिक निर्देशन के कार्य (Educational Functions of Guidance at Elementary Stage)

  1. विवेकपूर्वक योजना बनाने में सहायता करना।
  2. छात्रों को शैक्षिक जीवन की अच्छी शुरुआत करने में सहायता प्रदान करना।
  3. शिक्षा से अधिक से अधिक लाभ उठाने में छात्रों को सहायता देना।
  4. उच्च माध्यमिक विद्यालयों में प्रवेश के लिए छात्रों को तैयार करने में सहयोग देना।

माध्यमिक स्तर पर शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance at Secondary Stage)

  1. अध्ययन के प्रति समुचित उत्साह उत्पन्न करने में छात्रों की सहायता करना
  2. छात्रों में अध्ययन की अच्छी आदतों का विकास तथा विषयगत कठिनाइयों को दूर करने तथा उनकी शैक्षिक प्रगति में सहायता करना।
  3. छात्रों को शिक्षा के उद्देश्यों की ओर उन्मुख होने में सहायता करना।
  4. छात्रों को पाठ्यचर्चा तथा पाठ्यक्रम के चयन में सहायता देना।

उच्च माध्यमिक स्तर पर शैक्षिक निर्देशन (Guidance at Higher Secondary Stage)

  1. छात्रों को उस पाठ्यक्रम के चयन करने में सहायता करना, जो उनकी रुचियों, योग्यताओं तथा क्षमताओं के अनुरूप हों।
  2. उच्च शिक्षा के लक्ष्यों से छात्रों को अवगत कराना।
  3. प्रवेश के समय छात्रों को लाभदायक शैक्षिक मार्गों के लिए निर्देश देना ।
  4. संगठित कार्यक्रमों के माध्यम से छात्रों की अध्ययन में रुचि उत्पन्न करना ।

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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