विद्यालय संगठन / SCHOOL ORGANISATION

निरीक्षण से आपका क्या अभिप्राय है ? इसके आधारभूत तथ्य तथा उद्देश्य

निरीक्षण से आपका क्या अभिप्राय है ? इसके आधारभूत तथ्य तथा उद्देश्य
निरीक्षण से आपका क्या अभिप्राय है ? इसके आधारभूत तथ्य तथा उद्देश्य

निरीक्षण से आपका क्या अभिप्राय है ? इसके आधारभूत तथ्य तथा उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।

निरीक्षण (Inspection)

सामान्यतः विद्यालय पर्यवेक्षण और निरीक्षण एक ही अर्थ में प्रयुक्त किए जाते हैं, परन्तु दोनों में अन्तर है। निरीक्षण का कार्य आलोचनात्मक अधिक है, जबकि पर्यवेक्षण का कार्य रचनात्मक अधिक है। यह शिक्षा प्रशासन की सहायक प्रणाली के रूप में कार्य करता है। इसके अन्तर्गत जिला विद्यालय निरीक्षक, विद्यालयों के लिए निरीक्षकों को नियुक्त करता है तथा विद्यालयी हेतु निरीक्षण की तिथियों का निर्धारण करता है। विद्यालय निरीक्षण की तैयारी करते हैं। निरीक्षकगण, शिक्षण कार्यालय से सम्बन्धित आलेखों, वित्तीय मामलों की समीक्षा करते हैं। उसके बाद वे रिपोर्ट तैयार करते हैं। रिपोर्ट की प्रतिलिपियाँ जिला विद्यालय निरीक्षक और अन्य उच्च अधिकारियों और विद्यालयों को भेजी जाती हैं। विद्यालय में सफाई, पुताई आदि निरीक्षण के समय ही की जाती है। निरीक्षण परिस्थितियाँ बढ़ा-चढ़ाकर निरीक्षकों के सामने प्रस्तुत की जाती हैं। इसमें औपचारिकता अधिक होती है। निरीक्षण का लक्ष्य व्यवस्था को सुव्यवस्थित करना और अनियमितताओं को सामने लाना होता है, लेकिन आजकल निरीक्षण की केवल खानापूर्ति होती है, इससे कोई परिणाम नहीं निकलता है।

मीकलेमन आर्थर के अनुसार- “चूँकि प्रबन्ध संस्थान शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने का साधन है, प्रत्येक कार्य को उनके प्रभाव के सन्दर्भ में ही नहीं, अपितु उसके सहयोग तथा शिक्षण प्रक्रिया के सन्दर्भ में भी जानना चाहिए।”

(Since organisation is purely a means in the achievement of educational objectives each aspect operation must be of continually judged not only in terms of how effectively it operates as an activity, but also with respect to its contribution to the facilitation and improvement of the instructional process.)

कोठारी कमीशन ने विद्यालय शिक्षा के विकास को महत्वपूर्ण स्थान दिया है। कोठारी कमीशन ने इसके महत्व पर विचार करते हुए कहा है-“प्रशासन आवश्यक रूप से दूरदर्शिता एवं विन्यास का मामला है।” इसमें निर्भय एवं साहसी नेतृत्व चाहिए एवं मानव सम्बन्धों के साथ भली प्रकार का व्यवहार अनिवार्य है।

आधारभूत तथ्य (Basic Points)

कोठारी कमीशन ने इसीलिए विद्यालयी शिक्षा को प्रभावशाली बनाने के लिए कुछ आधारभूत तथ्यों की ओर संकेत किया है। इनमें से कुछ तथ्यों का विवरण निम्न प्रकार है-

  1. विद्यालयी शिक्षा को प्रभावशाली बनाने के लिए कार्यक्रम का विकास एवं उनका कार्यान्वयन ।
  2. स्तर का निर्धारण एवं उसका क्रियान्वयन ।
  3. शिक्षक प्रशिक्षण।
  4. प्रसार सेवाओं की व्यवस्था ।
  5. निरीक्षण एवं पर्यवेक्षण ।
  6. राजकीय शिक्षा प्रशासन संस्थान की स्थापना ।

अब हम इन आधारभूत तथ्यों पर विचार करते हैं। ये तथ्य हैं— विद्यालयों को निरीक्षण के लिए दो प्रकार की आवश्यकता है-

  1. राज्य स्तर पर विभागीय संगठन में पुनर्गठन
  2. जिला स्तर पर प्रशासनिक गठन।

राज्य-स्तर पर निरीक्षण- जिला आयोग ने इसे स्वीकार किया है-“हमारी दृष्टि में शिक्षा स्थानीय राज्य साझेदारी है।” (In our view school education is essentially a local-state partnership.)

राज्य स्तर पर विद्यालय निरीक्षण से हमारा तात्पर्य यह है कि राज्य का दायित्व राज्य-क्षेत्र में शिक्षा के न्यूनतम मानदण्डों का निर्धारण करता है और ये मानदण्ड जिला शिक्षा परिषद् तथा जिला शिक्षा अधिकारी एवं उसके अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा समय-समय पर निरीक्षण करके उपलब्ध कराए जाने चाहिएँ।

हमारे यहाँ अभी तक प्रशासनिक एवं निरीक्षण अधिकारियों का कार्य विभाजन नहीं हुआ है। बहुत-से राज्यों में एक ही व्यक्ति दोनों प्रकार के कार्यों का सम्पादन करता है। अतः निरीक्षण कार्यों में पूर्वाग्रहों का पाया जाना स्वाभाविक है। इसीलिए आज निरीक्षण कार्यक्रम उतनी सफलता प्राप्त नहीं कर पा रहा है, जितनी उसे करनी चाहिए थी।

नव-निरीक्षण (New Inspection)

निरीक्षण शिक्षा सुधार की रीढ़ है। दुर्भाग्य से भारत के विभिन्न राज्यों में इसकी स्थिति अच्छी नहीं है। इसके अनेक कारण हैं, जिनका विवरण निम्नलिखित है-

  1. विद्यालयों की संस्था निरन्तर गति से बढ़ती जा रही है और उस अनुपात में निरीक्षण अधिकारियों की संस्था नहीं बढ़ी है।
  2. निरीक्षण तथा प्रशासन अधिकारी एक ही व्यक्ति है और इसीलिए निरीक्षण का कार्य निष्पक्षता से नहीं हो सकता।
  3. निरीक्षण की रूढ़िवादी प्रणाली अपनाई जाती रही है।
  4. निरीक्षण अधिकारी जबकि शैक्षिक कार्यों से सम्बन्धित होते हैं, वे शैक्षणिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह भली-भाँति नहीं कर पाते।
  5. निरीक्षण कर्मचारियों की संख्या कम है।

निरीक्षण के उद्देश्य (Aims of Inspection)

निरीक्षण के उद्देश्य निम्न प्रकार हैं-

  1. विद्यालय का कार्य व्यवस्थापूर्वक चलता रहे।
  2. दोषों का परिहार किया जाए।
  3. ईमानदार तथा कमजोर अध्यापकों को अपने-अपने कार्य का पुरस्कार तथा दण्ड मिले।
  4. विद्यालय के कर्मचारियों में अनुशासन रहे।
  5. विद्यालय के कार्य में श्रेष्ठता आए ।

वास्तविकता यह है कि निरीक्षण का मुख्य उद्देश्य कमियों, दोषों और होने वाली अनियमितताओं को रोकना है, जिससे शिक्षा का कार्यक्रम प्रभावशाली ढंग से चल सके।

रायबर्न (Ryburn) के अनुसार-

  1. निरीक्षण का पद अत्यधिक निरंकुश होता है। इससे निर्णय स्वातन्त्र्य में बाधा रहती है।
  2. शिक्षा की उन्नति के लिए निरीक्षक का पद महत्वपूर्ण है।
  3. निरीक्षक के हाथ में हर बात की कुँजी होती है। वह अलग-अलग भागों को एक सम्बन्ध में लाने वाली हो सकती है।
  4. प्रयोग के लिए निरीक्षण ही सहायता दे सकता है

निरीक्षण के प्रकार (Types of Inspection)

आयोग ने निरीक्षणों के प्रकारों का अध्ययन करते हुए कहा है-आजकल सभी प्रकार के निरीक्षणों में एक सामान्य पद्धति अपनाई जाती है जो वार्षिक निरीक्षण के लिए विस्तार चाहती है और मासिक त्रैमासिक निरीक्षणों के लिए केवल विचार मात्र प्रस्तुत करती है। आयोग ने भविष्य में विद्यालयों के लिए दो प्रकार के निरीक्षण सुझाए हैं-

1. वार्षिक निरीक्षण- इस प्रकार का निरीक्षण शिक्षा विभाग के मामलों को लेकर प्राथमिक विद्यालयों के लिए जिला विद्यालय अधिकारी एवं माध्यमिक विद्यालयों का राज्य शिक्षा विभागों के अधिकारियों द्वारा होना चाहिए।

2. त्रैमासिक निरीक्षण- हर विद्यालय में एक निरीक्षण त्रैमासिक हो, इसमें पूरी तरह से सभी तथ्यों का निरीक्षण किया जाए। प्राथमिक पाठशालाओं में जिला शिक्षा अधिकारी एवं माध्यमिक विद्यालयों में राज्य की विद्यालय शिक्षा परिषद् द्वारा होना चाहिए। पहले में जिला शिक्षा अधिकारी के साथ दो या तीन अध्यापक एवं प्रधानाध्यापक प्राथमिक एवं माध्यमिक पाठशालाओं में हों। इस प्रकार के निरीक्षण में भी अध्यापकों, प्रधानाध्यापकों एवं शिक्षा-शास्त्रियों का एक समूह (Panel) कार्य करे।

लोच- आयोग ने निरीक्षण कार्यक्रम को प्रभावशाली बनाने के लिए लोच के सिद्धान्त का आश्रय लिया है।

1. विभिन्न विद्यालयों के निरीक्षण के लिए लोच के सिद्धान्त का अनुसरण करना इसकी विशेषता है। इसके अन्तर्गत कमजोर विद्यालयों को-

  1. मार्ग प्रदर्शन एवं सहायता,
  2. सामान्य विद्यालयों के लिए प्रगति के सुझाव,
  3. अच्छे विद्यालयों को प्रयोग करने की स्वतन्त्रता प्रदान की जानी चाहिए।

2. इस कार्यक्रम के अन्तर्गत पाठ्यक्रम को विद्यालय-दर-विद्यालय भिन्नता प्रदान करनी होगी एवं अधीन शिक्षण पद्धतियों को अपनाना होगा।

3. निर्देशन कार्यक्रम आदि के लिए जिला शिक्षा अधिकारियों को प्रमुखता में कार्य करना चाहिए।

आयोग की मुख्य सिफारिशें (Main Recommendations of Commission)

निरीक्षण कार्यक्रम को प्रभावशाली बनाने के लिए आयोग ने प्रमुख सिफारिशें इस प्रकार दी हैं—

  1. प्रशासन तथा निरीक्षण अलग-अलग हों। जिला विद्यालय परिषद् पहले को तथा जिला शिक्षा अधिकारी बाद वाले कार्य को करें। इन दोनों का कार्य आपसी सहयोग से हो ।
  2. मान्यता अधिकार नहीं हो। जो विद्यालय स्तर से नीचे कार्य करते हैं उनकी मान्यता कर दी जाए।
  3. हर विद्यालय में दो प्रकार के निरीक्षण हों- (i) वार्षिक, (ii) त्रैमासिक ।
  4. मार्ग-प्रदर्शन एवं परामर्श सेवा के लिए प्रयत्न करना नव-निरीक्षण का प्रमुख उद्देश्य हो ।
  5. सेवा-कालीन निरीक्षण प्रशिक्षण एवं प्रशासन अधिकारियों के लिए आयोजित किया जाए।

अतः हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि आयोग के नव-निरीक्षण कार्यक्रम में तथ्यों को उत्तरदायी बनाया है।

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Anjali Yadav

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