प्रदत्तों के रेखीय प्रदर्शन का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा इसकी उपयोगिता व सीमाओं को बताइए।
प्रदत्तों के रेखीय प्रदर्शन का अर्थ- सांख्यिकी में जो तथ्य एकत्रित किये जाते हैं वे अंकों के रूप में होते हैं जिनको समझना साधारण व्यक्ति के लिए कठिन होता है अतः वह उनका उपयोग करने में असमर्थ होता है। इनको अंको को उपयोगी बनाने के लिए यह आवश्यक है कि इन्हें चित्रों के रूप में प्रदर्शित किया जाय। यह ग्राफ केवल आँकड़ों को समझने में ही सहायक नहीं होते हैं बल्कि उनके सहायता से निष्कर्ष भी सुविधा पूर्वक निकाले जाते हैं।
इस प्रकार हम कह सकते हैं- “दो या दो से अधिक चल राशियों को ग्राफ पर प्रदर्शित करने को ही रेखाचित्रण कहा जता है।
जैसे- थार्नडाइक के प्रयोग में यदि प्रयास एवं त्रुटियों को ग्राफ पर प्रदर्शित किया जाय तो इस प्रकार बने ग्राफ को रेखाचित्र तथा इस प्रक्रिया को रेखाचित्रण कहेंगे।
दूसरे शब्दों मे- ” प्रदत्तों के रेखीय प्रदर्शन से आशय प्राप्त होने वाले आँकड़ों को रेखाओं द्वारा प्रदर्शित करना है। इसे ग्राफ पेपर पर किया जाता है यह पेपर सामान्य तौर पर एक सेमी. के वर्ग बने होते हैं प्रत्येक वर्ग के समान हिस्सों में मिमी. विभाजित होता है। यह एक वर्ग सेमी. से ज्यादा बड़े हो सकते हैं तथा छोटे भी हो सकते हैं। इसमें दो रेखाएँ होती हैं। क्षैतिज रेखा को अक्षत रेखा कहते हैं।
इसमें पैमाना मान कर वर्गों के खानों में बिन्दुओं का अंकन करके तथा मिलाकर एक रेखाचित्र बनाया जाता है।
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आँकड़ों के रेखीय चित्रण के गुण या उपयोगिता
बिन्दु रेखीय प्रदर्शन के गुण वा महत्व / उपयोगिता इस प्रकार हैं महत्व-
- प्रदत्तों को ग्राफ पेपर पर चित्रित करने से प्रदत्तों के सम्बन्ध में निष्कर्ष सरलता से निकाले जा सकते हैं।
- प्रदत्तों को स्मरणीय बनाने का कार्य भी ग्राफ द्वारा किया जा सकता है।
- ग्राफ पर चित्रित करने से आँकड़े सरस व रुचिपूर्ण हो जाते हैं।
- ग्राफ पर चल राशियों की तुलना सरलता से हो जाती है।
- ग्राफ पर विभिन्न रंगों का उपयोग करने से आँकड़े आकर्षक हो जाते हैं। इनका उपयोग विज्ञापन और प्रचार करने में किया जाता है।
कुछ गुण या उपयेगिता इस प्रकार भी हैं-
- तुलनात्मक अध्ययन में सुविधा
- आवृत्ति बंटन का प्रदर्शन
- विभिन्न मदों के समंकों का अध्ययन
- आकर्षक एवं प्रभावशाली
- भूयिष्ठिक एवं मध्यांक का अध्ययन
- आनुपातिक परिवर्तनों का अध्ययन
आलेखीय चित्रण की सीमाएँ
- शुद्धता की जाँच का होना।
- तर्क पूर्णता का अभाव।
- सभी आँकड़ों में प्रयोग सम्भव नहीं।
चित्रण के सामान्य सिद्धान्त
चित्रण के सामान्य सिद्धान्त निम्न हैं-
(1) रेखाचित्र ग्राफ पेपर के मध्य में किया जाता है एवं कुछ स्थान खाली छोड़ दिया जाता है, जहाँ आवश्यक विवरण अंकित किया जाता है।
(2) रेखाचित्र पैमाने Scale के अनुसार बनाना चाहिए।
(3) किसी भी समंक के लिये वही रेखाचित्र बनाना चाहिए। जो उसे सर्वाधिक रूप से स्पष्ट कर सके। रेखाचित्र को नामांकित करना चाहिए।
(4) रेखाचित्र दो भुजाओं के आधार पर किया जाता है। क्षैतिज रेखा (Horizontal Line) जिसे एक्स अक्ष (x-axis) कहा जाता है तथा लम्बवत् रेखा (Vertical Line) जिसे y अक्ष (y axis) कहा जाता है। जिस बिन्दु पर ये दोनों भुजाएं मिलती है। उसे मूल बिन्दु (Point of Origin) कहा जाता है। जिसे शून्य से व्यक्त करते हैं।
(5) Dlv (k (x-axis) वाई अक्ष (y-axis) से अधिक बड़ा होता है। इनका अनुपात 4:3 का होना चाहिए। यदि x अक्ष की लम्बाई 4 इंच है तो y अक्ष की लम्बाई 3 इंच होनी चाहिए।
(6) रेखाचित्रण में भी बीजगणित के समान धनात्मक (+) ऋणात्मक (-) चिन्ह अंकित किये जाते हैं। मूल बिन्दु (0) के दायीं ओर धनात्मक और बाई और ऋणात्मक चिन्ह होते हैं।
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