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प्रयोजनवाद के सिद्धांत | Principles of Pragmatism in Hindi

प्रयोजनवाद के सिद्धांत | Principles of Pragmatism in Hindi
प्रयोजनवाद के सिद्धांत | Principles of Pragmatism in Hindi

प्रयोजनवाद से आप क्या समझते हैं? प्रयोजनवाद के प्रमुख सिद्धांतों की विवेचना कीजिए। 

प्रयोजनवाद के सिद्धांत (Principles of Pragmatism)

प्रयोजनवाद के प्रमुख सिद्धान्त निम्न हैं-

1. परिवर्तनशीलता का सिद्धान्त- प्रयोजनवाद सभी सत्य, मूल्य, आदर्श को परिवर्तनशील मानता है। देश, काल तथा परिस्थिति के अनुसार मनुष्य मूल्य, आदर्श, सत्य को धारण करता है।

2. बहुतत्ववादी सिद्धान्त – प्रयोजनवाद का मानना है कि जगत का निर्माण बहुत से तत्त्वों के द्वारा हुआ है। इन विभिन्न प्रकार की क्रियाएँ होती है और इसके परिणामस्वरूप यह संसार प्रकट होता है। निर्माण की क्रिया हमेशा होती रहती है।

3. विकास का सिद्धान्त – प्रयोजनवाद के अनुसार मनुष्य अपने सामाजिक पर्यावरण में विकास करता है। उसके विकास का कारण उसकी आत्मा या प्रकृति नहीं है। सामाजिक क्रियाओं में भाग लेकर मनुष्य आगे बढ़ता है।

4. सुखवादी सिद्धान्त – प्रयोजनवादियों के अनुसार मानव जीवन का उद्देश्य सुखपूर्वक जीना है। इसके लिए परिस्थिति के साथ समायोजन की आवश्यकता पड़ती है और इससे समस्या का समाधान होता है तथा सुख की प्राप्ति होती है।

5. भौतिकवादी सिद्धान्त – जगत् का निर्माण भौतिक तत्त्वों से हुआ है और ये भौतिक तत्व अपने आप में पूर्ण, वास्तविक और सत्य हैं। इनके अलावा अन्य कोई तत्त्व नहीं है और वास्तविकता नहीं है। इस कारण आध्यात्मिकता की अवहेलना की जाती है।

6. उपयोगिता का सिद्धान्त – प्रयोजनवाद का विश्वास है कि संसार की हरेक वस्तु उपयोगी होने के कारण ही सत्य होती है, स्वीकृत होती है। जीवन में सुख, सन्तोष और अच्छा फल देने वाला कार्य ही मनुष्य करता है। यही उसकी उपयोगिता का प्रमाण है।

7. सामाजिक कुशलता का सिद्धान्त – प्रयोजनवादी लोगों का विश्वास है कि प्रत्येक सदस्य को अपने समाज में रहकर उसके उद्योग, उत्पादन, व्यवसाय आदि का विकास करना ज़रूरी है। इस प्रकार से कार्य करने से मानव में कुशलता आती है, वह समाज का उपयोगी सदस्य बनता है।

8. प्रगतिशीलता का सिद्धान्त – प्रयोजनवाद के मानने वालों का कहना है कि मनुष्य के द्वारा सत्यान्वेषण होता है। इस खोज के कारण यह प्रगति करता है। समाज की भाषा, उसका ज्ञान, कौशल, उद्योग, व्यवसाय सभी मानवीय प्रगति के परिणाम है। प्रगति निरन्तर होती रहती है।

9. जनतन्त्रीय सिद्धान्त – जहाँ प्रयोजनवाद मनुष्य को महत्त्व देता है वहाँ वह उसके द्वारा बनाये गये समाज और जगतन्त्र में भी विश्वास करता है और इन पर बल देता है। इससे समानता, स्वतन्त्रता एवं भ्रातृत्व और सामाजिक न्याय के ऊपर प्रयोजनवाद जोर देता है। यह जनतन्त्रीय सिद्धान्त के कारण होता है।

10. राज्य निर्माण का समाजवादी सिद्धान्त – प्रयोजनवादियों का विचार तथा विश्वास है कि मनुष्य अपनी प्रगति एवं उन्नति के लिए राज्य का निर्माण करता है। यह एक सामाजिक संस्था है और एक वास्तविक न कि कृत्रिम संस्था है। इसलिए पूरे समाज का हित राज्य के ध्यान में रहता है। इसी आधारभूत सिद्धान्त पर अमरीका में लोकतन्त्र की रचना हुई है।

11. क्रियाशीलता का सिद्धान्त – संसार में सभी वस्तुएँ स्थिर नहीं होती हैं वे क्रियाशील होती है। मनुष्य की आत्मा भी क्रियाशील होती है। ईश्वर या बहम जैसी कोई सार्वभौमिक सत्ता भी नहीं होती है। प्राकृतिक एवं सामाजिक पर्यावरण की उत्तेजना से मनुष्य की आत्मा क्रियाशील होती है। विचार क्रिया के परिणाम होते हैं।

12. मानवीय श्रेष्ठता का सिद्धांत – आदर्शवाद तथा प्रयोजनवादी दोनों मानव को सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानते हैं। मानव के पास विचार करने और क्रिया करने तथा निर्माण करने की क्षमता होती है। ऐसी क्षमता अन्य प्राणियों में नहीं पाई जाती अतएव मनुष्य सभी प्राणियों में श्रेष्ठ होता है। मानव शक्ति पर प्रयोजनवाद इसी कारण बल देता है। मनुष्य ही सत्य का निर्माता हैं।

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Anjali Yadav

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