यथार्थवादी शिक्षा के उद्देश्य एवं पाठ्यक्रम का वर्णन कीजिए।
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शिक्षा के उद्देश्य
यथार्थवादी जीवन के किसी अन्तिम उद्देश्य में विश्वास नहीं करते। वे मनुष्य को इस संसार का एक पदार्थ मानते हैं और उसके जीवन को एक प्रक्रिया। उनके अनुसार शिक्षा द्वारा हमें मनुष्य को इस योग्य बनाना चाहिए कि वह अपने प्राकृतिक एवं सामाजिक पर्यावरण में समायोजन कर सके और सुखपूर्वक जी सके। इसके लिए वे शारीरिक विकास इन्द्रियों के प्रशिक्षण, मानसिक विकास, सामाजिक विकास और व्यावसायिक शिक्षा पर बल देते हैं। यही उनके अनुसार शिक्षा के उद्देश्य होने चाहिए। हम इन उद्देश्यों को निम्नलिखित शीर्षकों में अभिव्यक्त कर सकते हैं-
(1) शारीरिक विकास और इन्द्रिय प्रशिक्षण- यथार्थवादियों के अनुसार मनुष्य एक मनोशारीरिक प्राणी है; उसका मन भी शरीर का ही एक अंग है। मनुष्य सुखपूर्वक तभी रह सकता है जब वह शारीरिक एवं मानसिक दोनों रूपों में स्वस्थ हो, इसलिए ये शिक्षा के द्वारा मनुष्य के शारीरिक विकास करने पर बल देते हैं। कमेनियस का स्पष्टीकरण है कि मनुष्य के पास पाँच कर्मेन्द्रियाँ (हाथ, पैर, कण्ठ, गुदा और उपस्थ) और पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ (आँख, कान, नाक, त्वचा और जिह्वा) हैं। कर्मेन्द्रियों से वह कार्य का सम्पादन करता है और ज्ञानेन्द्रियों से ज्ञान प्राप्त करता है। उनका स्पष्टीकरण है कि जब तक मनुष्य की इन इन्द्रियों का विकास कर इन्हें अपने कार्यों में प्रशिक्षित नहीं किया जाता तब तक मनुष्य न तो कोई कार्य कर सकता है और न ही ज्ञान प्राप्त कर सकता है। इसलिए शिक्षा द्वारा सर्वप्रथम मनुष्य की इन्द्रियों का विकास और फिर उनका प्रशिक्षण होना चाहिए।
(2) मानसिक शक्तियों का विकास- यथार्थवादी शक्ति मनोविज्ञान में विश्वास करते हैं इसलिए ये शिक्षा द्वारा बच्चों की मानसिक शक्तियों-स्मरण, विवेक और निर्णय आदि का विकास करने पर बल देते हैं। इनका स्पष्टीकरण है कि वस्तुओं और क्रियाओं के जिस ज्ञान को हम ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त करते हैं उसकी अनुभूति मन (मस्तिष्क) से होती है। यदि इन्द्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान को मन स्वीकार न करे और उसे सुरक्षित न रखे तो वह हमारे लिए निरर्थक ही होता है इसलिए मनुष्य की मानसिक शक्तियों का विकास आवश्यक है।
(3) वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास- यथार्थवादियों ने स्पष्ट किया कि प्राकृतिक पर्यावरण का स्पष्ट ज्ञान भौतिक विज्ञानों के अध्ययन और वैज्ञानिक विधि (अवलोकन, सामान्यीकरण, नियमीकरण और प्रयोग) द्वारा ही किया जा सकता है। अतः आवश्यक है कि शिक्षा द्वारा बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास किया जाए।
( 4 ) व्यावसायिक उन्नति- यह विचारधारा मनुष्य के भौतिक जीवन को सुखमय की बात सोचती हैं, हम जानते हैं कि जीवन को सुखमय बनाने के लिए विभिन्न उपयोगी वस्तुओं के उत्पादन की बड़ो आवश्यकता होती है। यही कारण है कि यथार्थवादी सबसे अधिक बल व्यावसायिक शिक्षा पर देते हैं। इनके अनुसार शिक्षा का सबसे महत्त्वपूर्ण उद्देश्य बच्चों को कृषि अथवा उद्योग अथवा व्यापार में प्रशिक्षित करना होना चाहिए। इसके लिए इन्होंने शारीरिक, मानसिक एवं नैतिक विकास की बात भी कही है, पर यह सम्पूर्ण विकास मानव के ऐहिक जीवन से सम्बन्धित होगा।
(5) बालक को भौतिकवादी संसार के लिए तैयार करना- यथार्थवादी, शिक्षा द्वारा बालक को इस भौतिकवादी संसार हेतु वास्तविक और आनन्ददायक जीवन जीने के लिए तैयार करना चाहते हैं। यथार्थवादी इन्द्रियग्राह्य भौतिक पदार्थों के ज्ञान को ही वास्तविक ज्ञान मानते हैं।
( 6 ) मनुष्य को सुखी बनाना— यथार्थवादियों के अनुसार, शिक्षा द्वारा हमें मनुष्य को इस योग्य बनाना चाहिए कि वह अपने प्राकृतिक एवं सामाजिक पर्यावरण में समायोजन कर सके, ताकि वह अपने जीवन को सुखी एवं सामाजिक पर्यावरण में समायोजन कर सके, ताकि वह अपने जीवन को सुखी एवं सफल बना सके। अतः शिक्षा ऐसी होनी चाहिए कि बालक समाज में रहते हुए अपने व्यावहारिक जीवन की समस्त आवश्यकताओं को पूरा कर सके।
(7) बालक को प्रकृति एवं सामाजिक पर्यावरण से परिचित कराना- सामाजिक एवं प्राकृतिक वातावरण के साथ अनुकूलन स्थापित करने के लिए शारीरिक और मानसिक विकास तथा इन्द्रिय प्रशिक्षण के साथ सामाजिक सोच का होना भी आवश्यक है। अतः शिक्षा द्वारा बालकों को सामाजिक परिस्थितियों एवं सामाजिक संगठनों से परिचित कराया जाना आवश्यक है।
शिक्षण विधि— यथार्थवादियों ने शिक्षा में इन्द्रियों को माध्यम स्वीकार किया है। वे स्वानुभव व स्वनिरीक्षण को अधिक महत्व प्रदान करते हैं। आगमन पद्धति का उन्होंने समर्थन किया है। यात्रा के द्वारा प्राप्त शिक्षा को वे आदर की दृष्टि से देखते हैं। संक्षेप में यथार्थवादी शिक्षण विधि निम्नलिखित हैं-
(1) वस्तु विधि (2) निरीक्षण विधि (3) विश्लेषण-संश्लेषण विधि |
एडम्स का विचार है- “शिक्षा के सैद्धान्तिक क्षेत्र में यथार्थ न तो विद्वतावाद करता है, इसका प्रमुख कार्य शाब्दिकता का विरोध करना है।”
यथार्थवादी शिक्षा के गुण-दोष
यथार्थवाद के गुण (अथवा विशेषतायें)
1. यथार्थवादी शिक्षा दर्शन के अनुसार शिक्षा व्यावहारिक होनी चाहिए, क्योंकि अव्यावहारिक शिक्षा निरर्थक है।
2. यथार्थवादी शिक्षा के अन्तर्गत शिक्षा के पाठ्यक्रम में वैज्ञानिक विषयों को प्रमुखता प्रदान की गयी है। आधुनिक वैज्ञानिक युग ने यह सिद्ध कर दिया है कि विज्ञान के अभाव में कोई भी देश उन्नति नहीं कर सकता।
3. यथार्थवाद के अनुसार जो आज यहाँ और इस समय विद्यमान है, वही सत्य तथा वास्तविक है। इनके अनुसार क्या है पर बल देता है क्या होना चाहिए पर नहीं।
4. यथार्थवाद के प्रभाव स्वरूप आज वैज्ञानिक विधि को ही सर्वोत्तम विधि माना जाता है. और आगमन विधि को प्रयुक्त किया जाता है। आज शिक्षा के अन्तर्गत सह-सम्बन्ध प्रयोगात्मक एवं ह्यूरिस्टिक विधि को महत्व प्रदान किया गया है।
5. यथार्थवाद वस्तुनिष्ठता पर बल देता है, जिसके फलस्वरूप आज अध्यापक छात्रों को वस्तुनिष्ठ ढंग से तथ्यों का ज्ञान प्रदान करता है। शिक्षक अपनी इच्छाओं व भावनाओं को पृथक् रखकर छात्रों के समक्ष तथ्यों का विश्लेषण करता है।
6. यथार्थवाद विचारधारा के कारण शिक्षालयी व्यवस्था से सम्बन्धित दृष्टिकोण परिवर्तित हुआ है। अब विद्यालय प्रेम एवं सहानुभूति एवं मानवीय गुणों के विकास के स्थान माने जाते हैं।
7. यथार्थवादी दृष्टिकोण के कारण ही उदार शिक्षा को और अधिक व्यापक बनाया गया है। अब शिक्षा के अन्तर्गत व्यावसायिक एवं पशविधिक शिक्षा को भी समाविष्ट किया गया है।
8. यथार्थवादी दृष्टिकोण ने वैयक्तिक शिक्षा पर बल दिया और व्यक्ति के महत्व को स्वीकार किया।
यथार्थवादी शिक्षा के दोष अथवा कमियाँ
1. यथार्थवाद शिक्षा दर्शन का कोई शाश्वत मूल्य नहीं है, क्योंकि वह पूर्णतः भौतिक है। यह इस शिक्षा की सबसे बड़ी कमी है।
2. यथार्थवाद में धर्म और नैतिकता के विषयों का कोई महत्व नहीं है।
3. विज्ञान के महत्व को स्वीकार करने के समक्ष साहित्य, कला, इत्यादि विषयों की उपेक्षा यथार्थवाद में की गयी है।
4. यथार्थवाद शिक्षा दर्शन दैनिक जीवन के तथ्यों में आस्था रखता है, परिणामस्वरूप अध्यापकों व छात्रों में निराशा उत्पन्न होती है तथा वे अपने जीवन में कोई उन्नति नहीं कर पाते।
5. यथार्थवाद आत्मा, ईश्वर आदि के अस्तित्व को अस्वीकार करता है परन्तु इस सत्ता के अस्तित्व का ज्ञान किस प्रकार हुआ इसका उत्तर यथार्थवाद के पास नहीं है।
पाठ्यचर्या
यथार्थवादी शिक्षा द्वारा मनुष्य को इस जीवन के लिए तैयार करना चाह । इनका मत है कि पाठ्यचर्या में वे ही विषय रखे जाएँ जिनका इस जीवन से सीधा सम्बन्ध है और जो मनुष्य के लिए उपयोगी हैं। चूंकि प्रायः सभी विषयों की कुछ न कुछ उपयोगिता है इसलिए यथार्थवादी स्कूली शिक्षा की पाठ्यचर्या में सभी विषयों को स्थान देते हैं। इनके द्वारा निश्चित पाठ्यचर्या बहुत विस्तृत है। लेकिन सबसे अधिक बल ये व्यावसायिक शिक्षा (कृषि आदि) पर देते हैं। इनके द्वारा निश्चित् पाठ्यचर्या में व्यावसायिक विषयों एवं विज्ञान को प्रमुख, इतिहास, भूगोल, कानून को गौण और साहित्य, कला, संगीत आदि को गौणतम स्थान दिया गया है। बेकन पाठ्यचर्या में सबसे प्रमुख स्थान विज्ञान को देते थे और उसके बाद साहित्य और दर्शन को कमेनियस चूँकि एक धार्मिक व्यक्ति थे, चर्च में पादरी थे, इसलिए वे स्कूली पाठ्यचर्या में धर्म शिक्षा को भी स्थान देते थे। पर वे धर्म के इस जीवन में उपयोग करने पर बल देते थे, लोगों को सदाचारी और सेवक बनाने पर बल देते थे।
यहाँ यह शंका उठ सकती है कि बच्चों पर इतने अधिक विषयों को लाद कर यथार्थवादियों ने मनोवैज्ञानिक तथ्यों की अवहेलना की है, परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं हैं। यथार्थवादी बच्चों को अपनी रुचि, रुझान, योग्यता और आवश्यकतानुसार विषयों के चयन की छूट देते हैं, पर हाँ मातृभाषा और किसी व्यवसाय की शिक्षा को ये अनिवार्य मानते हैं।
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