बौद्ध दर्शन की शिक्षा को देन का मूल्यांकन कीजिए।
बौद्ध दर्शन की शिक्षा को देन का मूल्यांकन- बौद्ध दर्शन न तो केवल भौतिकवादी है और न केवल आध्यात्मिक। इसने मध्यमा प्रतिपदा सिद्धान्त को अपनाया है। एक दर्शन के रूप में इसके कई सिद्धान्त उपनिषदीय दर्शन से बड़ा मेल खाते हैं; जैसे-भव प्रपञ्च के मूल में अविद्या का कारण होना, तृष्णा के नाश में राग, द्वेष आदि बन्धनों से मुक्त होना एवं कर्म सिद्धान्त की व्यापकता, परन्तु अनात्मवाद, क्षणिकवाद और शून्यवाद के सिद्धान्त एकदम उपनिषद् विरोधी हैं। अनात्मवादी होने के कारण ही यह भारत की भूमि पर अधिक दिन नहीं टिक सका। परन्तु एक शिक्षा दर्शन के रूप में उसने भारत के जनमानस को स्पर्श किया है और शिक्षा के क्षेत्र में जो कार्य भारत के अन्य दर्शन नहीं कर पाए वे कार्य इसने किए हैं।
शिक्षा प्रक्रिया के स्वरूप की चर्चा करने में बौद्ध दार्शनिकों ने शक्ति नहीं लगाई है परन्तु उसके मूल कार्य को स्पष्ट अवश्य किया है। उनके अनुसार शिक्षा का मूल कार्य मनुष्य को निर्वाण की प्राप्ति कराना है। बौद्धों की दृष्टि से निर्वाण का अर्थ है – दुःखों से छुटकारा। भला इस संसार में दुःखों से छुटकारा कौन नहीं चाहेगा। शिक्षा के जिन उद्देश्यों पर बौद्धों ने बल दिया है वे मनुष्य को लौकिक एवं पारलौकिक दोनों दृष्टियों से तैयार करते हैं। नैतिक विकास के उद्देश्यो पर बौद्धों ने सर्वाधिक बल दिया है। आज शिक्षा द्वारा नैतिक विकास की बात पुनः सोची जा रही है। हमारे देश में तो आज शिक्षा जगत् में दो ही विचार सर्वाधिक महत्त्व के हैं रोजगारपरक शिक्षा और नैतिक शिक्षा |
बौद्धों ने शिक्षा की पाठ्यचर्या में लौकिक एवं पारलौकिक दोनों प्रकार के विषयों एवं क्रियाओं को स्थान दिया है। उनकी यह बात सिद्धान्त रूप में तो अच्छी है परन्तु बौद्ध दर्शन और धर्म की शिक्षा पर सर्वाधिक बल देकर उन्होंने अपनी धर्म संकीर्णता का परिचय ही दिया है। आज के युग में शिक्षा के क्षेत्र में किसी दर्शन अथवा धर्म पर सर्वाधिक बल देने की बात किसी को स्वीकार नहीं हो सकतीं।
बौद्ध दार्शनिकों ने उचित शिक्षा के लिए अनेक प्रभावी शिक्षण विधियों का विकास किया है। व्यक्तिगत शिक्षण के लिए स्वाध्याय, मनन और चिन्तन तथा सामूहिक शिक्षण के लिए व्याख्यान, व्याख्या और चर्चा विधियाँ आज भी अच्छी विधियाँ मानी जाती हैं। वास्तविक ज्ञान के लिए आज कुछ विद्वान शास्त्रार्थ को आवश्यक भले ही न मानते हों परन्तु पर्यटन और सम्मेलन तो आज भी सभी को मान्य हैं।
बौद्धों ने सभी को नियमों के पालन करने का उपदेश दिया है और इसी को वे अनुशासन कहते हैं। बौद्धों की अनुशासन सम्बन्धी यह अवधारणा आज लोकतन्त्रीय जीवन के लिए बड़ी आवश्यक है। लोकतन्त्र की सफलता तो इसी बात पर निर्भर करती है कि सब अपने-अपने कर्तव्यों का पालन ईमानदारी और निष्ठा के साथ करें।
शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों को संयमी जीवन की सलाह देकर बौद्धों ने शिक्षा जगत को जो शुद्धता प्रदान की थी उसकी आवश्यकता आज भी समझी जा रही है। काश आज के शिक्षक एवं शिक्षार्थी संयमी जीवन जीना प्रारम्भ कर दें तो शिक्षा जगत की सारी समस्याएं स्वयं हल हो जाएँ।
बौद्धों का सबसे बड़ा कार्य था शिक्षा को ब्राह्मणों के एकाधिपत्य से निकाल कर मठों एवं विहारों को सौंपना। गुरुकुलों में गुरू विशेष का नियन्त्रण होता था, मठों एवं विहारों में संघ का नियन्त्रण होता था। इस प्रकार भारत में वैयक्तिक प्रशासन के स्थान पर संस्था प्रशासन का श्री गणेश करने का श्रेय बौद्धों को ही जाता है। यहीं से भारत में विद्यालयी शिक्षा का श्री गणेश माना जाता है। विद्यालय भी दो प्रकार के एक प्रारम्भिक शिक्षा हेतु और दूसरे उच्च शिक्षा हेतु । दोनों ही प्रकार के विद्यालयों में नियमों का कठोरता से पालन होता था, आज हम उसकी पुनः आवश्यकता अनुभव कर रहे है। संसार में विश्वविद्यालय जैसी संस्था की स्थापना बौद्धों की देन है। उनके द्वारा स्थापित तक्षशिला विश्वविद्यालय संसार का सर्वप्रथम विश्वविद्यालय था ।
बौद्ध दार्शनिक जन्म के आधार पर मनुष्य-मनुष्य में भेद नहीं करते इसलिए उन्होंने सबके लिए प्रारम्भिक शिक्षा का विधान किया है। स्पष्ट है कि वे जन शिक्षा के हामी हैं। परन्तु मानसिक व बौद्धिक दृष्टि से वे मनुष्य-मनुष्य में भेद करते हैं और उच्च शिक्षा की व्यवस्था केवल मेधावी एवं योग्य छात्रों के लिए ही करते हैं। काश आज हम भी उच्च शिक्षा के द्वारा केवल मेधावी एवं योग्य छात्रों के लिए ही खुले रक्खें तो निश्चित रूप से धन का दुरुपयोग रुकेगा, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों का पर्यावरण शैक्षिक बनेगा, तोड़-फोड़ और अनुशासनहीनता के स्थान पर व्यवस्था कायम होगी, शिक्षा का स्तर उठेगा और समाज को योग्यतम, चरित्रवान एवं निष्ठावान विशेषज्ञ प्राप्त होंगे। इस सबके साथ-साथ शिक्षित बेरोजगारी भी दूर होगी। हमें तो यह विश्वास है कि जिस लोकतान्त्रिक शिक्षा की व्यवस्था हम आज करना चाहते हैं उसकी स्थापना बौद्धों ने आज से पच्चीस सौ वर्ष पूर्व कर दी थी।
शिक्षा द्वारा मनुष्य को किसी कला-कौशल, उद्योग अथवा व्यवसाय में प्रशिक्षित करने की शुरुआत तो हमारे देश में वैदिक काल में हो गई थी परन्तु उसे व्यवस्थित रूप दिया बौद्ध दार्शनिकों ने। हाँ, धार्मिक शिक्षा के सम्बन्ध में इनके विचार आधुनिक दृष्टि से संकीर्ण ही कहे जाएँ।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भारत में शैक्षिक प्रशासन, शैक्षिक संगठन, विद्यालयी एवं विश्वविद्यालयी शिक्षा और समूह शिक्षण की शुरुआत कर बौद्धों ने वर्तमान शिक्षा की नींव रख दी थी। इसी के साथ उन्होंने जन शिक्षा, स्त्री शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा की भी नींव रख दी थी। यह बात दूसरी है कि वे उस समय जन शिक्षा एवं स्त्री शिक्षा की उचित व्यवस्था नहीं कर पाए। हमें उन नींव के पत्थरों को सदैव स्मरण रखना चाहिए।
IMPORTANT LINK
- संस्कृति का अर्थ | संस्कृति की विशेषताएँ | शिक्षा और संस्कृति में सम्बन्ध | सभ्यता और संस्कृति में अन्तर
- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi
- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi
- मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा शिक्षा का किस प्रकार प्रभावित किया?
- मानव अधिकार की अवधारणा के विकास | Development of the concept of human rights in Hindi
- पाठ्यक्रम का अर्थ एंव परिभाषा | Meaning and definitions of curriculum in Hindi
- वर्तमान पाठ्यक्रम के दोष | current course defects in Hindi
- मानव अधिकार क्या है? इसके प्रकार | what are human rights? its types
- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के लिए शिक्षा के उद्देश्य | Objectives of Education for International Goodwill in Hindi
- योग और शिक्षा के सम्बन्ध | Relationship between yoga and education in Hindi
- राज्य का शिक्षा से क्या सम्बन्ध है? राज्य का नियन्त्रण शिक्षा पर होना चाहिए या नहीं
- राज्य का क्या अर्थ है? शिक्षा के क्षेत्र में राज्य के कार्य बताइये।
- विद्यालय का अर्थ, आवश्यकता एवं विद्यालय को प्रभावशाली बनाने का सुझाव
- बालक के विकास में परिवार की शिक्षा का प्रभाव
- शिक्षा के साधन के रूप में परिवार का महत्व | Importance of family as a means of education
- शिक्षा के अभिकरण की परिभाषा एवं आवश्यकता | Definition and need of agency of education in Hindi
- शिक्षा का चरित्र निर्माण का उद्देश्य | Character Formation Aim of Education in Hindi
- शिक्षा के ज्ञानात्मक उद्देश्य | पक्ष और विपक्ष में तर्क | ज्ञानात्मक उद्देश्य के विपक्ष में तर्क
- शिक्षा के जीविकोपार्जन के उद्देश्य | objectives of education in Hindi
- मध्यांक या मध्यिका (Median) की परिभाषा | अवर्गीकृत एवं वर्गीकृत आंकड़ों से मध्यांक ज्ञात करने की विधि
- बहुलांक (Mode) का अर्थ | अवर्गीकृत एवं वर्गीकृत आंकड़ों से बहुलांक ज्ञात करने की विधि
- मध्यमान, मध्यांक एवं बहुलक के गुण-दोष एवं उपयोगिता | Merits and demerits of mean, median and mode
- सहसम्बन्ध का अर्थ एवं प्रकार | सहसम्बन्ध का गुणांक एवं महत्व | सहसम्बन्ध को प्रभावित करने वाले तत्व एवं विधियाँ
- शिक्षा का अर्थ, परिभाषा एंव विशेषताएँ | Meaning, Definition and Characteristics of Education in Hindi
- शिक्षा के समाजशास्त्रीय उपागम का अर्थ एंव विशेषताएँ
- दार्शनिक उपागम का क्या तात्पर्य है? शिक्षा में इस उपागम की भूमिका
- औपचारिकेत्तर (निरौपचारिक) शिक्षा का अर्थ | निरौपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ | निरौपचारिक शिक्षा के उद्देश्य
- औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा क्या है? दोनों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- शिक्षा का महत्व, आवश्यकता एवं उपयोगिता | Importance, need and utility of education
- शिक्षा के संकुचित एवं व्यापक अर्थ | narrow and broad meaning of education in Hindi
Disclaimer