लेखन से आप क्या समझते हैं ? मातृभाषा शिक्षण में इसका महत्त्व बताइए। यह भी बताइए कि लेखन की शिक्षा का प्रारम्भ कब करना चाहिए ?
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लेखन
लेखन आत्माभिव्यक्ति का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। पाठन के माध्यम से छात्र लिखित भाषा का अर्थ ग्रहण करता है तथा लेखन द्वारा वह अपने विचारों और भावों का प्रकाशन करता है। इस प्रकार पठन एवं लेखन की संयुक्त योग्यता ही भाषा ज्ञान को पूर्ण करती है। कहा भी जाता है कि ‘पठन व्यक्ति को सक्रिय बनाता है किन्तु लेखन उसे पूर्ण बना देता है।’
भाषा के दो रूप सर्वविदित हैं- मौखिक एवं लिखित मौखिक रूप के अन्तर्गत छात्र भावों की अभिव्यक्ति के लिए ध्वन्यात्मक संकेतों का प्रयोग करता है। इन्हीं ध्वनियों को लिपिबद्ध करके जब को स्थायित्व प्रदान किया जाता है, तब वह उसका लिखित रूप कहलाता है। भाषा के इस लिखित रूप की शिक्षा ही लेखन अथवा लिपि की शिक्षा कही जाती है।
भाषा-शिक्षण के अन्तर्गत ‘लेखन’ का तात्पर्य केवल लिखना ही नहीं होता बल्कि अक्षरों की सुडीलता एवं सुन्दरता इसके महत्त्वपूर्ण अंग होते हैं। कहा जा सकता है कि ‘चित्र खींचना’ एवं ‘चित्र लिखना’ पर्यायवाची प्रयोग है। प्राचीन एवं मध्यकाल में सुन्दर लेखन पर पर्याप्त जोर दिया जाता था लेकिन आधुनिक काल में बॉल पैन, मुद्रण यन्त्रों एवं टाइपराइटरों के प्रयोग से लेखन में सुन्दरता का तत्त्व कुछ उपेक्षित होने लगा है।
लिखित भाषा के तत्त्व
लिखित भाषा के निम्नलिखित तत्त्व हैं-
(1) लिपि- यह लिखित भाषा का मूल तत्त्व है। लिपि का स्पष्ट ज्ञान होने पर ही लेखक अपनी भाषा को लिखित स्वरूप प्रदान कर सकता है। अतः आवश्यक है कि लेखक को सबसे पहले प्रत्येक वर्ण के लिए प्रयोग किये जाने वाले विशेष चिन्हों की स्पष्ट जानकारी हो। हिन्दी भाषा में स्वतन्त्र ध्वनियों के अतिरिक्त कुछ संयुक्त ध्वनियाँ भी हैं जिन्हें भिन्न-भिन्न चिन्हो के संयुक्त में प्रकट किया जाता है।
(2) शब्द- शब्द-ज्ञान के अन्तर्गत दो बातें सम्मिलित होती हैं- शब्द का शुद्ध उच्चारण एवं शुद्ध लेखन तथा उसका सही अर्थ लगाना। हिन्दी भाषा में शब्दों की वर्तनी उनके शुद्ध उच्चारण पर निर्भर करती है। अतः जब तक लेखक शब्दों का शुद्ध उच्चारण नहीं करेगा, वह उन्हें शुद्ध रूप में लिख भी नहीं सकता। हिन्दी भाषा में पर्याय शब्द अत्यधिक पाये जाते हैं तथा इन शब्दों के अर्थों में कुछ न कुछ भेद अवश्य होता है। अतः यह आवश्यक है कि लेखक शब्दों के सही अर्थ से ही परिचित हो।
( 3 ) वाक्य- वाक्य अभिव्यक्ति की इकाई होते हैं। लेखक भाषा में निपुण उसी दशा में हो सकता है जब वह सर्वमान्य वाक्य रचना अर्थात् व्याकरणसम्मत वाक्य रचना का ही प्रयोग करे। वाक्य रचना के विषय में दो बातें ध्यान देने योग्य होती हैं- प्रथम, लेखक वाक्य में शब्दों को उनके उचित क्रम में रखे और द्वितीय, वह विराम चिन्हों का ठीक प्रयोग करे।
‘रोको मत, जाने दो’ वाक्य में यदि हम अर्द्ध-विराम बदलकर ‘रोको, मत जाने दो’ लिख दें तो उसका अर्थ बदल जायेगा।
(4) तार्किक क्रम में विचार प्रस्तुत करना- लिखने के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि लेखक को विचारों की गहनतम अनुभूति हो तथा वह उन्हें पाठकों के सम्मुख तार्किक क्रम में प्रस्तुत करे।
(5) विषयानुकूल भाषा-शैली- अपने भाव व विचार व्यक्त करने हेतु लेखक को विषय के अनुकूल भाषा व शैली प्रयुक्त करनी चाहिए। उदाहरणार्थ, शौर्य का वर्णन कविता में, नीति की बात दोहों में तथा भक्ति और शृंगार का वर्णन गेय पदों में करना अधिक प्रभावशाली होता है। इसी प्रकार किसी घटना का वर्णन वर्णनात्मक शैली में, गम्भीर विषय की व्याख्या गवेषणात्मक शैली में तथा पाखण्डी लोगों को सही रास्ते पर लाने के लिए व्यंग्यात्मक शैली में लिखना अधिक संगत होता है।
(6) लोकोक्ति एवं मुहावरे- लोकोक्ति एवं मुहावरे विशेष शब्द-समूह होते हैं। ये न तो शब्द होते हैं और न ही वाक्य लेकिन इनके प्रयोग से अभिव्यक्ति चमत्कारिक हो जाती है। अतः लेखकों को शब्दों के साथ-साथ लोकोक्तियाँ एवं मुहावरों का ज्ञान होना चाहिए तथा लेखन में उनको प्रयुक्त भी करना चाहिए।
(7) सुन्दर लेख- जहाँ तक सम्भव हो लेख सुन्दर होना चाहिए। सुन्दर लेख से तात्पर्य यह है कि अक्षरों का रूप एवं आकार सही हो. प्रत्येक अक्षर की ऊँचाई समान हो तथा उनका आकार सुडौल हो। दो शब्दों के बीच एक अक्षर तथा दो पंक्तियों के बीच एक अक्षर की ऊँचाई छोड़ी जाये। शब्दों के ऊपर शीर्ष रेखा खींची जाए तथा मात्राओं को उनके नियत स्थान पर लगाया जाये।
भाषा शिक्षण में लेखन का महत्त्व
वास्तव में लेखन आत्माभिव्यक्ति का एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण साधन है। वैसे भी व्यक्ति को अपने घरेलू एवं सामाजिक जीवन में अनेक बातों एवं विचारों को लिखना पड़ता है। वस्तुतः लिखना अब कला न रहकर आत्माभिव्यक्ति का आवश्यक माध्यम बन गया है। वास्तव में लिखना वह साधन है जो विद्यार्थियों के विचारों को मूर्त रूप प्रदान कर सकता है, उन विचारों को अमर बना सकता है। लेखन के महत्त्व को निम्न प्रकार से प्रस्तुत किया जा सकता है-
(1) लेखन साक्षरता का पर्याय है।
(2) यह सन्देश भेजने का एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
(3) लेखक अपने भावों की अभिव्यक्ति लेखन द्वारा ही करता है।
(4) लेखन के कारण ही आज समय तथा दूरी पर विजय पाई जा सकती है।
(5) लेखन के अभाव में शिक्षा की कल्पना भी नहीं की जा सकती। पाठ्य पुस्तकें कक्षा कार्य, गृहकार्य, परीक्षाएँ एवं मूल्यांकन आदि का कार्य लेखन द्वारा ही सम्भव है।
(6) अनौपचारिक शिक्षा तथा प्रौढ़ शिक्षा का ध्येय लोगों को इतना लिखने योग्य बनाना है। जिससे उनकी कार्यक्षमता में पर्याप्त वृद्धि हो सके और एक उपयोगी नागरिक बन सकें।
(7) आधुनिक युग में लेखन अनेक लोगों का व्यवसाय भी बन गया है।
लेखन-शिक्षण प्रारम्भ करने का समय- वास्तव में शिक्षाशास्त्रियों का इस बात पर मतभेद है कि पहले पढ़ना सिखाया जाये या लिखना। फ्रोबेल ने सुझाव दिया कि पढ़ने की क्रिया पहले की जानी चाहिए तथा लेखन की बाद में, लेकिन मॉण्टेसरी ने लिखने की क्रिया को पहले और पढ़ने की क्रिया को बाद में रखने का सुझाव दिया है। वस्तुतः पढ़ने की क्रिया लिखने की अपेक्षा आसान है। बालक भाषा पर पहले मौखिक रूप से अधिकार करता है, इसके बाद वह प्रतीकों या वर्ण-चिन्हों को पहचान कर लिखने योग्य बन पाता है। इन दोनों मतों से अलग एक तीसरा मत भी है जिसमें दोनों मतों का समन्वय हो जाता है। तीसरा मत यह है कि पढ़ना और लिखना साथ-साथ चलना चाहिए। विद्वानों की यह मान्यता है कि पाँच-छह वर्ष की आयु के बालक का इतना विकास हो जाता है कि वह लिखना सीख सके, लेकिन लिखना सिखाने से पहले बालक को कुछ रेखाओं के खींचने का अभ्यास होना चाहिए, जिससे बाद में उसे अक्षर बनाने में किसी कठिनाई का अनुभव न हो।
लिखित भाषा-शिक्षण के उद्देश्य
लिखित भाषा शिक्षण का मुख्य उद्देश्य होता है कि बालक अपने भाव, विचार तथा अनुभवों को लिखित भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त कर सके और दूसरों द्वारा लिखित भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त विचारों को समझ सके। लिखित भाषा शिक्षण के उद्देश्य क्रमबद्ध रूप से निम्न प्रकार से प्रस्तुत किये जा सकते हैं-
ज्ञान-
- विद्यार्थियों को लिपि, शब्द, लोकोक्तियों, सूक्तियों एवं मुहावरों का ज्ञान कराना।
- छात्रों को शब्दों की शुद्ध वर्तनी, वाक्य रचना के नियम एवं विराम-चिन्हों के प्रयोग से अवगत कराना।
- छात्रों को साहित्य की विभिन्न विधाओं एवं विभिन्न लेखन शैलियों का ज्ञान प्रदान करना।
कौशल
- विद्यार्थियों को शुद्ध उच्चारण तथा कुशलतापूर्वक सस्वर पाठन तथा मौन पाठन में दक्ष बनाना।
- छात्रों में पठित अंश के केन्द्रीय भाव को समझने की योग्यता विकसित करना।
- छात्रों को सुलेख लिखने, शब्दों की शुद्ध वर्तनी लिखने एवं व्याकरणसम्मत वाक्य रचना करने में दक्ष बनाना।
- छात्रों को अपने विचारों को तार्किक क्रम में अभिव्यक्त करने एवं विषयानुकूल भाषा-शैली का प्रयोग करने में दक्ष बनाना।
रुचि
- विद्यार्थियों में अपने विचारों तथा भावों को लेखबद्ध करने की रूचि उत्पन्न करना।
- छात्रों में स्वाध्याय के प्रति रुचि उत्पन्न करना।
अभिवृत्ति
- विद्यार्थियों की रचनात्मक शक्तियों का विकास करके उन्हें मौलिक रचना करने के लिए प्रेरित करना।
- छात्रों को समाज, जाति व देश के प्रति संवेदनशील बनाना।
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