रचना शिक्षण के उद्देश्य बताइए एवं इसकी विधियाँ एवं महत्त्व स्पष्ट कीजिए। अथवा “रचना शिक्षण, मातृभाषा शिक्षण महत्त्वपूर्ण किन्तु उपेक्षित नहीं है।” विवेचना कीजिए।
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रचना शिक्षण
रचना का अर्थ- रचना का अर्थ है सजाना, बनाना या क्रमबद्ध करना। शिक्षा में रचना शिक्षण के अन्तर्गत प्रारम्भिक कक्षाओं में वाक्य रचना का विशेष महत्त्व है। छात्र जब तक शुद्ध वाक्य में रचना करना नहीं सीखेंगे, तब तक निबन्ध नहीं लिख सकेंगे। हम अपने विचारों को वाक्यों में व्यक्त करते हैं। किसी भी विषय-वस्तु या घटना के विषय में अपना विचार वाक्यों में व्यक्त करते हैं और वाक्यों में परस्पर शृंखलाबद्ध सम्बन्ध होता जाता है। जब हम किसी विषय-वस्तु या घटना का थोड़ा विस्तार के साथ वर्णन करते हैं तब उसके सभी बिन्दुओं पर विचार करते हैं और प्रत्येक बिन्दु से सम्बन्धित विचारों को एक-एक अनुच्छेद में विभक्त करते जाते हैं। वाक्यों से अनुच्छेद बनते हैं और सभी अनुच्छेद मिलकर एक निबन्ध बन जाते हैं।
प्रारम्भ में हम बच्चों को शुद्ध एवं सरल वाक्य रचना का अभ्यास कराते हैं। पुनः किसी वस्तु या घटना के विषय में कुछ वाक्य-रचना करने के लिए अभ्यास कराते हैं। पुनः किसी वस्तु या घटना के विषय में कुछ वाक्य रचना करने के लिए अभ्यास कराते हैं। उत्तरोत्तर इसी तरह के अभ्यास द्वारा हम उनमें जटिल वाक्य रचना करने एवं सूक्ष्म विचारों को व्यक्त करने की क्षमता के विकास की ओर बढ़ते हैं और वे उच्च कक्षाओं तक आते-जाते अच्छा खासा प्रभावशाली निबन्ध लिखने लगते हैं।
रचना व शिक्षण के उद्देश्य
लिखित रचना-शिक्षण के तीन सोपान होते हैं-
(1) लिपि का ज्ञान, (2) शब्द एवं वाक्य रचना, और (3) क्रमबद्ध भाषा-रचना।
लिपि के ज्ञान के बाद हम छात्रों को शब्द एवं वाक्य-रचना का अभ्यास कराते हैं और जब वे वाक्य-रचना में निपुण हो जाते हैं तब क्रमबद्ध भाषा में वाक्य-रचना करने का अभ्यास करते हैं। संक्षेप में, वाक्य रचना के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
1. छात्रों को संवेदनशील बनाना और उनकी अवलोकन तर्क, कल्पना एवं निर्णयादि शक्तियों का विकास करना जिससे उनके विचारों में क्रमबद्धता आ सके और वे उन्हें तार्किक क्रम में प्रस्तुत कर सकें।
2. छात्रों को शुद्ध वर्तनी लिखने, शुद्ध वाक्य-रचना करने, विराम-चिन्हों का सही प्रयोग करने, अपने भाव-विचार या अनुभवों को तार्किक क्रम में उचित अनुच्छेदों में सजाने और कम-से-कम भाषा में अधिक-से-अधिक भाव व्यक्त करने में निपुण बनाना।
3. छात्रों को साहित्य की विभिन्न विधाओं और उनको लिखने की विभिन्न शैलियों का ज्ञान एवं स्व-रचनाओं से उनका प्रयोग करने के योग्य बनाना।
4. छात्रों को अवसर एवं प्रसंगानुकूल भाषा-शैली के प्रयोग करने एवं सामान्य पत्र तथा लेख एवं साहित्यिक रचनाएँ-कहानी, जीवनी, निबन्ध, नाटक एवं कविता आदि लिखने योग्य बनाना।
5. छात्रों में अधिकाधिक अवलोकन, अध्ययन-चिन्तन और मनन करने की रुचि उत्पन्न करना।
रचना शिक्षण की विधि एवं महत्त्व
रचना शिक्षण की विधियाँ- रचना शिक्षण की अनेक विधियाँ प्रचलित हैं। अतएव कक्षा में छात्रों को रचना की शिक्षा देने के लिए उनका उपयोग किया जाना चाहिए। ये विधियाँ निम्नलिखित हैं-
1. चित्र-वर्णन प्रणाली- चित्र-वर्णन प्रणाली द्वारा रचना की शिक्षा देने के लिए अध्यापक छात्रों के सामने कोई चित्र टाँग देता है। वह चित्र से सम्बन्धित प्रश्न भी करता है। छात्र प्रश्नों के उत्तर देते हैं। तदुपरान्त अध्यापक छात्रों को रचना लिखने का आदेश देता है। छात्र स्वतन्त्रतापूर्वक रचना-कार्य करते हैं और अध्यापक कक्षा-कार्य को घूम-घूमकर निरीक्षण करता है। छात्रों को व्यक्तिगत सहायता भी देता है।
2. उद्बोध प्रणाली- उद्बोध प्रणाली द्वारा रचना की शिक्षा देने के लिए अध्यापक वर्णनात्मक लेख लिखवाता है। छात्रों ने जिन मेलों, फसलों अथवा ऐतिहासिक भवनों को देखा है उसका वर्णन रचना के रूप में कक्षा में करते हैं। लिखने के लिए विचार उन्हें स्वयं सोचना पड़ता है। इन विचारों का आधार देखे हुए दृश्य अथवा निरीक्षण होता है।
3. खेल-विधि- खेल-विधि से शिक्षा देना अब मनोवैज्ञानिक माना जाता है। अतएव विभिन्न विषयों की शिक्षा खेल-विधि से ही प्रदान की जाती है। खेल-विधि से छात्र रचना की शिक्षा भी प्राप्त करते हैं, वे खेल खेलने में आनन्द भी प्राप्त करते हैं और रचना भी करते हैं। मॉण्टेसरी पद्धति में रचना की शिक्षा खेल-विधि से ही दी जाती है।
4. प्रश्नोत्तर विधि- प्रश्नोत्तर प्रणाली का प्रयोग आज लगभग प्रत्येक विषय की शिक्षा में किया जाता है। रचना की शिक्षा भी प्रश्नोत्तर विधि से दी जाती है। जिस विषय पर बच्चों से रचना करायी जाती है उस पर अध्यापक बच्चों से ढेर से प्रश्न करता है। इन प्रश्नों को क्रमबद्ध तरीके से श्यामपट्ट पर लिखता जाता है। छात्र इस क्रम को अपने मस्तिष्क में बिठा लेते हैं। अध्यापक इन शीर्षकों के आधार पर छात्रों को रचना करने के लिए आदेश दे देता है। छात्र रचना करते हैं और वह घूम-घूमकर कक्षा का निरीक्षण करने के साथ-साथ छात्रों को व्यक्तिगत सहायता प्रदान करता है।
5. अनुकरण विधि- अनुकरण विधि के रचना की शिक्षा देने के लिए अध्यापक छात्रों को एक आदर्श रचना दे देता है। इस आदर्श रचना को छात्र खूब अच्छी तरह पढ़ते हैं। इस आदर्श रचना से मिलती-जुलती कोई नयी रचना उन्हें लिखने को कही जाती है। इसी आदर्श रचना की सहायता से छात्र अन्य रचना करते हैं। भाषा के क्षेत्र में इस रचना से सहायता अवश्य लेते हैं, पर लिखने की शैली उनकी अपनी होती है।
6. रूपरेखा- रूपरेखा विधि से रचना की शिक्षा देने के लिए अध्यापक किसी एक विषय को चुन लेता है। इस विषय पर वह छात्रों से प्रश्न करता है। प्रश्नोत्तर द्वारा रचना की गयी रूपरेखा बनायी जाती है। इस रेखा को श्यामपट्ट पर लिख दिया जाता है। इसी रूपरेखा के आधार पर रचना करने के लिए छात्रों को आदेश दिया जाता है। आधुनिक विद्यालयों में रचना की शिक्षा देने के लिए कक्षा 6, 7 और 8 में अध्यापक लगभग इसी विधि का प्रयोग करते हैं। इस विधि प्रबोधन, प्रश्नोत्तर और उद्बोधन प्रणालियों का मिश्रित रूप कही जाती है। वैसे यह रचना की शिक्षा की एक अच्छी विधि है।
माध्यमिक स्तर पर रचना शिक्षण
इस स्तर पर रचना शिक्षण सम्बन्धी मुख्य बातें निम्नलिखित हैं-
(1) पत्र लेखन- विभिन्न प्रकार के पत्रों को लिखने का अभ्यास।
(2) शुद्ध लेखन- अशुद्ध वर्तनी वाले शब्दों की वर्तनी को शुद्ध करने का अभ्यास।
(3) पर्यायवाची शब्द लिखना- एक शब्द और उनके पर्यायवाची शब्दों को ढूँढ़ने एवं उसको याद कर पुनः स्मरण करने का अभ्यास।
(4) अनेकार्थवाची शब्दों के अर्थ लिखना- ऐसे शब्द जिनके अनेक अर्थ होते हैं। छात्र उनके अर्थों को ढूँढ़ने और याद कर लिखने का अभ्यास करते हैं।
(5) समानवाची शब्दों का प्रयोग करना।
(6) मुहावरों के सही अर्थ को समझने एवं उनको सही वाक्यों में सही अर्थों में प्रयोग करने का अभ्यास करना।
(7) अपठित गद्यांश का अभ्यास कार्य- गद्यांश के नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर गद्यांश से निकालने का अभ्यास, गद्यांश की कुछ पंक्तियों की व्याख्या करने का अभ्यास, गद्यांश का सारांश लिखने का अभ्यास, गद्यांश को समझकर उसके लिए सही शीर्षक चुनने का अभ्यास आदि ।
(8) अपठित पद्यांश पर कार्य- पद्यांश के नीचे दिये गये प्रश्नों के सही उत्तर ढूँढ़कर लिखने का अभ्यास, पद्यांश का सारांश लिखने का अभ्यास, पद्यांश के लिए सही शीर्षक का चुनाव ।
(9) किसी महापुरुष की जीवनी लिखने का अभ्यास।
(10) दी गयी घटना, वस्तु या समस्या पर विस्तार के साथ निबन्ध लिखने का अभ्यास।
(11) कहानी लिखने का अभ्यास।
(12) अन्तर्कथा लिखने का अभ्यास।
(13) गद्य अवतरणों का अनुकरण करने का अभ्यास।
(14) संवाद रचना का अभ्यास।
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