हिन्दी शिक्षण में मूल्यांकन की विधियों की विवेचना कीजिए। अथवा हिन्दी भाषा शिक्षण में प्रयुक्त होने वाली मूल्यांकन प्रक्रियाओं को समझाइए । हिन्दी भाषा का मूल्यांकन अन्य विषयों के मूल्यांकन से किस प्रकार भिन्न है ?
हिन्दी भाषा शिक्षण में मूल्यांकन प्रक्रियाएँ अथवा विधियाँ
हिन्दी भाषा शिक्षण में मूल्यांकन की निम्न प्रक्रियाओं को अपनाया जाता है-
(1) श्रवण-कौशल का मूल्यांकन- साहित्य की विभिन्न विधाओं का शिक्षण करते समय अध्यापक उनसे सम्बन्धित विषयवस्तु की चर्चा छात्रों के सम्मुख करता है। छात्रों ने उसे सुनकर समझा है या नहीं, इसके लिए पाठ का सार, विषयवस्तु से सम्बन्धित प्रश्न आदि पूछकर अर्थात् मौखिक परीक्षा द्वारा अध्यापक छात्रों के श्रवण-कौशल की जाँच कर सकता है। इसी कहानी को सुनाकर छात्रों को अपने शब्दों में कहने के लिए कहा जा सकता है। किसी विषय पर संक्षिप्त भाषण देकर या कहानी सुनाकर उसे संक्षेप में अपने शब्दों में लिखने को भी कहा जा सकता है। इसके लिए गृहकार्य एवं कक्षाकार्य के पर्यवेक्षण की सहायता ली जा सकती है।
(2) सृजनात्मक योग्यता का मूल्यांकन- साहित्य की सभी विधाएँ छात्रों की सृजनात्मक योग्यताओं को विकसित करने के लिए प्रयत्नशील होती हैं। सृजनात्मक योग्यता ही साहित्य के भण्डार को विकसित करने का प्रमुख एवं एकमात्र साधन है। अतः छात्रों की सृजनात्मक योग्यता की जाँच करने के लिए, निबन्धात्मक परीक्षा का प्रयोग किया जाना चाहिए। निबन्ध, कहानी, पात्र आदि के पात्रों का चरित्र चित्रण लिखवाकर एवं उद्देश्य आदि लिखवाकर छात्रों की सृजनात्मक योग्यता का मूल्यांकन किया जा सकता है।
(3) उच्चारण-कौशल का मूल्यांकन- मौखिक अभिव्यक्ति कौशल के विकास में शुद्ध उच्चारण का महत्त्वपूर्ण स्थान है। बिना शुद्ध उच्चारण के मौखिक अभिव्यक्ति प्रभावशाली हो ही नहीं सकती है। उच्चारण-कौशल की जाँच करने के लिए मौखिक परीक्षा ही सर्वोत्तम विधि ा है। शब्दों को श्यामपट्ट पर लिखकर उनका उच्चारण करने के लिए कहा जा सकता है। पाठ्य-पुस्तक का कोई परिच्छेद पढ़वाकर और सामान्य ज्ञान या पुस्तक की विषयवस्तु से सम्बन्धि त प्रश्न का उत्तर पूछकर उच्चारण – कौशल का मूल्यांकन किया जा सकता है।
(4) व्याकरण-ज्ञान का मूल्यांकन- गद्य साहित्य का अध्ययन कराते हुए छात्रों को व्याकरण के विभिन्न नियमों की व्यावहारिक एवं सैद्धान्तिक जानकारी दी जाती है। व्याकरण भाषा के शुद्ध प्रयोग में सहायक होती है। बच्चे व्याकरण का कितना ज्ञान रखते हैं, व्याकरण की दृष्टि से भाषा का शुद्ध प्रयोग कर सकते है या नहीं, इसकी जाँच करने के लिए वस्तुनिष्ठ लिखित परीक्षा का प्रयोग करते हुए स्मृति-परख, युगलीकरण-परख, रिक्त स्थान पूर्ति, शुद्ध-अशुद्ध, व्यवस्थीकरण आदि प्रकार के प्रश्नों का प्रयोग किया जा सकता है। लघु उत्तर परीक्षा रूप में विभिन्न नियमों एवं उपनियमों की परिभाषा आदि पूछी जा सकती है।
(5) विषयवस्तु के ज्ञान का मूल्यांकन- हिन्दी-शिक्षण में विभिन्न शिक्षण-उद्देश्यों का विकास करने के लिए निश्चित पाठ्यपुस्तक के माध्यम से विभिन्न विषयों एवं तथ्यों का ज्ञान दिया जाता है। साहित्य की विभिन्न विधाओं से सम्बन्धित पाठ इस पाठ्यपुस्तक में संकलित होते हैं। इनके माध्यम से छात्रों को मानव जीवन के विविध पक्षों से परिचित कराया जाता है। छात्रों को इस विषयवस्तु का कितना ज्ञान प्राप्त हुआ है इसकी जाँच के लिए निबन्धात्मक, वस्तुनिष्ठ एवं लघु उत्तर परीक्षाओं का प्रयोग किया जा सकता है।
(6) साहित्य में रुचि के विकास का मूल्यांकन- साहित्य की विभिन्न विधाओं के शिक्षण का एक उद्देश्य साहित्य के विभिन्न रूपों के अध्ययन में छात्रों की रुचि जाग्रत करना भी है। छात्रों में इस साहित्यिक रूचि का विकास हुआ है या नहीं, इसके लिए मूल्यांकन की पर्यवेक्षण तकनीक का प्रयोग करना चाहिए। विद्यालय की साहित्यिक क्रियाओं में छात्रों की क्रियाशीलता पुस्तकालय से पुस्तकों का अध्ययन, पुस्तकों के रुचिकर अंशों के संग्रह का परीक्षण एवं विभिन्न साहित्यिक संगठनों में छात्रों की सदस्यता आदि की जाँच कर छात्रों की साहित्यिक रुचि का मूल्यांकन किया जा सकता है।
(7) पठन-कौशल का मूल्यांकन दूसरों के विचारों को एक तो सुनकर ग्रहण किया जाता है और दूसरे पढ़कर। भाषा साहित्य की सभी विधाएँ छात्रों में वाचन-कौशल को विकसित करने की उत्तम माध्यम होती हैं। छात्र गद्य, पद्य, कहानी, नाटक आदि विधाओं को पढ़कर उनमें व्यक्त विचारों से परिचित होते हैं। अतः भाषा की शिक्षा में छात्रों में पठन-योग्यता का विकास करना भी आवश्यक होता है। छात्रों को उचित गति के साथ शुद्ध वाचन का अभ्याय कराया जाता है। छात्रों में वाचन-कौशल का विकास किस सीमा तक हुआ है इसका मूल्यांकन भी मौखिक एवं प्रायोगिक परीक्षा के द्वारा ही किया जाता है।
(8) मौखिक अभिव्यक्ति कौशल का मूल्यांकन छात्रों में अपने भावों, विचारों एवं अनुभवों को मौखिक रूप से अभिव्यक्त करने की योग्यता का विकास करना भाषा की विभिन्न विधाओं के शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य है। छात्रों में मौखिक अभिव्यक्ति की योग्यता का विकास किस स्तर तक हुआ है, इस बात की जाँच मौखिक परीक्षा एवं प्रायोगिक परीक्षा के द्वारा की जा सकती है। पठित विषयवस्तु पर प्रश्न पूछकर उनके उत्तर देने के ढंग से कहानी आदि सुनाने के ढंग से, विभिन्न साहित्यिक क्रियाओं जैसे भाषण, वाद-विवाद, नाटक, कविता-पाठ आदि में छात्रों की सहभागिता के स्तर आदि की जाँच करके इस बात का पता लगाया जा सकता है कि छात्र-मौखिक रूप से अपने विचारों को किस तरह व्यक्त करता । साक्षात्कार आदि से भी मौखिक अभिव्यक्ति-कौशल की जाँच की जा सकती है।
(9) शब्द, सूक्ति, मुहावरे एवं लोकोक्ति ज्ञान का मूल्यांकन- साहित्य की विभिन्न विधाओं, निबन्ध, कहानी, नाटक, एकांकी, जीवनी आदि के शिक्षण द्वारा छात्रों को विभिन्न शब्दों, सूक्तियों, मुहावरों एवं लोकोक्तियों का ज्ञान कराकर उनके शब्द, सूक्ति, मुहावरे एवं लोकोक्ति भण्डार में वृद्धि हो जाती है। छात्रों में इस शब्द-भण्डार का विकास कहाँ तक हुआ है, इसका मूल्यांकन करने के लिए कक्षाकार्य एवं गृहकार्य के पर्यवेक्षण के साथ-साथ मौखि परीक्षा तथा वस्तुनिष्ठ परीक्षा की सहायता ली जा सकती है। शब्दों के अर्थ, पर्यायवाची, विपरीतार्थक शब्द आदि तथा सूक्तियों, मुहावरों, लोकोक्तियों का अर्थ पूछकर मौखिक परीक्षा हो सकती है और सत्यासत्य, युगलीकरण, स्मृति परीक्षा, रिक्त स्थान पूर्ति व्यवस्थीकरण आदि विभिन्न प्रकार के प्रश्नों के निर्माण द्वारा वस्तुनिष्ठ परीक्षा का आयोजन कर शब्दावली आदि के ज्ञान की परीक्षा ली जा सकती है।
(10) साहित्य के रसास्वादन की योग्यता का मूल्यांकन- हिन्दी-शिक्षण में साहित्य की विभिन्न विधाओं के अध्ययन के साथ कविता भी पढ़ाई जाती है। कविता-शिक्षण का मुख्य उद्देश्य छात्रों की रसास्वादन एवं सौन्दर्यानुभूति को विकसित करना है। इनका मूल्यांकन करने के लिए मौखिक परीक्षा, लघु उत्तर परीक्षा एवं निबन्धात्मक परीक्षा का आयोजन किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त कविता-पाठ साहित्यिक क्रिया रसास्वादन की जाँच करने का सर्वोत्तम साधन है। उचित स्वर, लय, प्रवाह एवं गति से किए गए कविता-पाठ से रसास्वादन-योग्यता की जाँच हो सकती है। अर्थबोध के लिए निबन्धात्मक, शैली-बोध एवं काव्य-तत्वों के बोध की जाँच के लिए निबन्धात्मक एवं लघु उत्तर परीक्षा का प्रयोग किया जा सकता है।
(11) बोधशक्ति का मूल्यांकन- छात्रों ने दूसरों के विचारों को सुनकर या पढ़कर कितना ग्रहण किया है, इस बात की जाँच करना ही बोधशक्ति का मूल्यांकन कहलाता है। साहित्य की विभिन्न विधाओं में जो भी विचार व्यक्त किये गये हैं उनको समझने के योग्य बनाना भाषा-शिक्षण का एक प्रमुख उद्देश्य है। मौखिक परीक्षा द्वारा अर्थात् मौखिक रूप से प्रश्न पूछकर एवं लिखित परीक्षा द्वारा अर्थात् किसी अनुच्छेद को प्रश्न-पत्र में छापकर, उस पर कुछ प्रश्न पूछकर उनका उत्तर लिखित रूप में देने का निर्देश देकर छात्रों की बोधशक्ति की परीक्षा ली जाती है। प्रश्नों के मौखिक व लिखित उत्तरों में प्राप्त अंकों के आधार पर छात्रों की बोधशक्ति के स्तर का मूल्यांकन किया जाता है।
(12) समीक्षात्मक योग्यताओं का मूल्यांकन- विभिन्न साहित्यिक विधाओं के स्वरूप को शुद्ध बनाये रखने एवं भाषा के शुद्ध प्रयोग की दृष्टि से छात्रों की समीक्षात्मक योग्यता को विकसित करना भी भाषा शिक्षण का उद्देश्य है। किसी भी चीज के गुण-दोषों को परखने की योग्यता रखने वाला व्यक्ति जीवन के हर मोड़ पर गुण-दोषों को परखकर सही दिशा-निर्धारण करने में समर्थ होता है। छात्रों की समीक्षात्मक योग्यता का मूल्यांकन करने के लिए लघु उत्तर एवं निबन्धात्मक परीक्षा का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए विषयवस्तु, भाषा एवं शैली के गुण-दोषों की परख करने से सम्बन्धित प्रश्नों का निर्माण करना चाहिए।
(13) अभिवृत्तियों के विकास का मूल्यांकन- साहित्य की विभिन्न विधाओं के अध्यापन के द्वारा छात्रों की मनावृत्तियों को परिमार्जित कर उनमें सद्वृत्तियों को विकसित करने का प्रयास भी किया जाता है। छात्रों ने इन अभिवृत्तियों को कितना ग्रहण किया है इसके लिए निबन्धात्मक परीक्षा एवं पर्यवेक्षण का प्रयोग किया जा सकता है। किसी कहानी या नाटक से क्या शिक्षा मिलती इ आदि प्रश्नों का उत्तर लिखवाकर या छात्रों के दैनिक व्यवहार का निरीक्षण कर उनमें विकसित अभिवृत्तियों का मूल्यांकन करना चाहिए।
इस प्रकार साहित्य की विभिन्न विधाओं और उनमें निहित विभिन्न शिक्षण-उद्देश्यों प्राप्ति का मूल्यांकन करने के लिए मौखिक, लिखित एवं प्रायोगिक परीक्षा तथा पर्यवेक्षण आदि का प्रयोग कर हम मूल्यांकन प्रक्रिया को सोद्देश्य, सार्थक एवं प्रभावशाली बना सकते हैं।
हिन्दी भाषा का मूल्यांकन अन्य विषयों से भिन्न है-
हिन्दी केवल एक विषय ही नहीं है वरन् विभिन्न विषयों को सीखने का एक माध्यम भी है। अतः विद्यालय में हिन्दी की शिक्षा देते समय छात्रों को केवल विषयवस्तु का ज्ञान ही नहीं या जाता अपितु शुद्ध मौखिक अभिव्यक्ति एवं शुद्ध लिखित अभिव्यक्ति के कौशल को विकसित करने का प्रयास भी किया जाता है। छात्रों की साहित्य में रुचि जाग्रत कर उनकी सृजनात्मक शक्तियों को वितसित करने की ओर भी ध्यान दिया जाता है। इन सभी उद्देश्यों को प्राप्त करने अर्थात् छात्रों में इन योग्यताओं को विकसित करने के लिए बच्चों को भाषा एवं साहित्य के दोनों रूप गद्य एवं पद्य का अध्ययन कराया जाता है। गद्य शिक्षण में गद्य की विभिन्न विधाओं को हिन्दी पाठ्यचर्चा में सम्मिलित किया जाता है। जैसे-निबन्ध, कहानी, नाटक उपन्यास, एकांकी, जीवनी, आत्मकथा, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, डायरी एवं साक्षात्कार आदि। प्राथमिक स्तर पर केवल निबन्ध, कहानी और एकांकी का अध्ययन कराया जाता है तो माध्यमिक स्तर पर निबन्ध, एकांकी नाटक, कहानी, जीवनी, आत्मकथा आदि गद्यविधाओं का ज्ञान छात्रों को कराया जाता है। छात्रों के मानसिक स्तर के अनुरूप हर शिक्षण स्तर पर कविताओं का अध्ययन भी कराया जाता है। इन सभी विधाओं का शिक्षण करने से पूर्व अलग-अलग इनके शिक्षण उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है और इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए ही शिक्षण अधिगम प्रक्रिया क्रियान्वित की जाती है। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के फलस्वरूप छात्रों में उन पूर्वनिर्धारित योग्यताओं का विकास कहाँ तक हुआ है, विभिन्न कौशलों को छात्रों ने किस स्तर तक अर्जित किया है एवं छात्रों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन किस सीमा तक आये हैं, इस बात की जानकारी प्राप्त करने के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है।
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