वंशानुक्रम एवं वातावरण से आप क्या समझते हैं? बाल विकास में वंशानुक्रम एवं वातावरण के महत्त्व की विवेचना कीजिए।
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वंशानुक्रम का अर्थ (Meaning of Heredity)
वैज्ञानिक संदर्भ में वंशानुक्रम एक जैविकीय प्रत्यय (biological concept) है जो आनुवंशिकी (Genetics) के सिद्धान्तों पर आधारित है। प्राणिशास्त्रीय नियमों के अनुसार एक पीढ़ी, दूसरी पीढ़ी को कुछ विशिष्ट गुण अथवा लक्षण (traits) हस्तांतरित करती है। इस हस्तान्तरण को प्राणिशास्त्रीय या जैविकीय विरासत (biological heritage) कहते हैं। इसके कारण ही समान से समान (Like begets like) जीव ही उत्पन्न होता है।
बालक अपने माता-पिता तथा पूर्वजों से गर्भाधान के समय प्राप्त अनेक शारीरिक तथा मानसिक गुणों का मिश्रण है। इसे वंशानुक्रम अथवा वंश परम्परा कहते हैं। प्राणिशास्त्र के अनुसार “सम्भवतः निषिक्त अण्ड में विद्यमान विशिष्ट गुणों का योग ही वंशानुक्रम है।”
निषिक्त अण्ड में प्राणी के विकास सम्बन्धी समस्त गुण विद्यमान रहते हैं। आनुवांशिक गुण जन्मजात होते हैं।
वंशानुक्रम की परिभाषाएँ (Definitions of Heredity)
विभिन्न विद्वानों ने वंशानुक्रम को अपने मतानुसार परिभाषित किया है। इनमें से कुछ मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
वुडवर्थ के अनुसार, “वंशानुक्रम उन समस्त तत्त्वों का समावेश है जो प्राणी में गर्भाधान के समय जीवन प्रारम्भ करते समय विद्यमान होते हैं।”
रूथ बैनेडिक्ट के अनुसार, “गुणों का माता-पिता से सन्तानों में स्थानान्तरण वंशानुक्रम है।”
जेम्स ड्रेवर के अनुसार, “माता-पिता की शारीरिक एवं मानसिक विशेषताओं का सन्तानों में अवतरण वंशानुक्रम है।”
बी० एन० झा के अनुसार, “प्राणी की जन्मजात विशेषताओं का योग वंशानुक्रम है।”
रास के अनुसार, “एक सन्तति से भावी सन्ततियों में परम्परागत विशेषताओं का हस्तान्तरण वंशानुक्रम है।”
बिल्स तथा होजर के अनुसार, “अपनी सन्तति (जाति) के समान ही वस्तुओं की पुनः सृजनात्मक प्रवृत्ति का अर्थ ही वंशानुक्रम है।” इस प्रकार वंशानुक्रम माता-पिता तथा पूर्वजों की शारीरिक, मानसिक तथा व्यावहारिक विशेषताओं का वर्तमान सन्ततियों में हस्तान्तरण है।
वातावरण क्या है ? (What is Environment ?)
वातावरण का समानान्तरण पर्यावरण है। पर्यावरण, अर्थात् परि + आवरण, अर्थात् चारों ओर से घिरा हुआ। संसार का प्रत्येक जीव, प्रत्येक पदार्थ अपने चारों ओर किन्हीं न किन्हीं तत्वों से घिरा हुआ है। वह स्वयं भी दूसरों के हेतु वातावरण बनाता है। यदि वातावरण अनुकूल है तो व्यक्ति का विकास प्रभावित होता है परन्तु यदि वातावरण प्रतिकूल है तो व्यक्ति है का विकास कुण्ठित हो जायेगा। सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक वातावरण मानव के विकास को उनके सामाजिक सम्बन्धों और परिवेश के सन्दर्भ में प्रभावित करता है। एनास्टसी ने वातावरण की परिभाषा देते हुए लिखा है- “वातावरण वह हर वस्तु है जो व्यक्ति के जीन्स के अतिरिक्त प्रत्येक वस्तु को प्रभावित करता है।” वास्तव में वंशानुक्रम के तत्वों का विकास करने में वातावरण का विशेष योगदान रहता है। वातावरण को विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया है। यहाँ इसकी कुछ परिभाषाएँ दी जा रही हैं-
(1) टी. डी. इलियट- “चेतन वस्तु की किसी इकाई के प्रभावशाली उत्तेजक तथा अन्तर्क्रिया के क्षेत्र को वातावरण कहा जाता है।”
(2) पी. जिसबर्ट- “पर्यावरण एक वस्तु है जो एक वस्तु को चारों तरफ से घेरे हुए हैं तथा उसे प्रत्यक्ष रूप से तुरन्त प्रभावित करती है।”
(3) रॉस- “पर्यावरण एक बाह्य शक्ति है जो हम सब पर प्रभाव डालती है।”
(4) लैंगफील्ड एवं वील्ड- “एक मनुष्य के पर्यावरण में उन सभी उत्तेजनाओं का योग होता है, जो वह अपने गर्भ धारण से लेकर मृत्यु तक प्राप्त करता है।”
वास्तव में पर्यावरण का मानव विकास से वही योग होता है जो उसके अस्तित्व को प्रकट करने में उसके वंशानुक्रम का है। व्यक्ति के विकास के सम्बन्ध में आर. एस. वुडवर्थ ने लिखा है- “वैयक्तिक भिन्नता वातावरण के कारण पाई जाती है। समान वंशानुक्रम के होते हुए भी व्यक्ति भिन्न वातावरण में रहते हैं। वंशानुक्रम में भिन्न व्यक्ति समान नहीं होते, परन्तु समान वातावरण उन्हें समान बना देता है।”
व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक वाट्सन ने तो यह भी कह दिया है कि, “मुझे नवजात शिशु दे दो, मैं उसे डॉक्टर, वकील, चोर जो चाहे बना सकता हूँ।” वातावरण की में विश्वास करने वाले अधिकतर विद्वान वंशानुक्रम के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते। उनका कहना है कि वंशानुक्रम का बालक के विकास पर प्रभाव नहीं पड़ता। वंशानुक्रम स्वयं ही वातावरण से विकसित होता है। जॉन लॉक तो बालक के मस्तिष्क को कोरी स्लेट मानता है और कहता है कि कोरी स्लेट पर कुछ भी लिखा जा सकता है। मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभावों से ही वैयक्तिक भिन्नता विकसित होती है।
बालक के विकास में वंशानुक्रम तथा वातावरण का सापेक्षिक महत्त्व (Relative Importance of Heredity and Environment in the Development of the Child)
बालक के विकास में वंशानुक्रम तथा पर्यावरण की मुख्य भूमिका है। दोनों में से किसी एक को अधिक तथा दूसरे को कम महत्त्व नहीं दिया जा सकता। बालक की विकास प्रक्रिया में वंशानुक्रम तथा वातावरण का संयुक्त रूप से सक्रिय योगदान है। बालक का व्यक्तित्व वंशानुक्रम तथा व्यवहार दोनों का मिश्रित स्वरूप है। वंशानुक्रम बीज है तो वातावरण बीज से उगे अंकुर का पोषक समुचित व्यवस्था तथा वातावरण के अभाव में अंकुर का विकसित होना असम्भव है। इस प्रकार वातावरण तथा वंशानुक्रम एक-दूसरे के अभिन्न कारक हैं, परन्तु कौन, किस सीमा तक बालक के विकास को प्रभावित करता है, यह अभी भी विवादास्पद है। फिर भी आधुनिक मनोवैज्ञानिक अधिकांशतः बालक के विकास में विद्यालयी पर्यावरण के सुन्दर तथा आकर्षक सृजन की महत्ता को प्रमुखता से स्वीकार करते हैं। शारीरिक तथा मानसिक लक्षण यदि वंशानुक्रम की उपज हैं तो वातावरण इस उपज का विकास है। दोनों की सापेक्षिक महत्ता बिन्दुवार निम्नवत् वर्णित है-
(1) वंशानुक्रम तथा वातावरण अविभाज्य तत्त्व (Heredity & Environment Undividable Elements)— वास्तव में बालक के विकास में वंशानुक्रम तथा वातावरण दोनों ही अनिवार्य कारक तथा अविभाज्य तत्त्व हैं। वंशानुक्रम का अन्तिम प्रभाव बिन्दु कहाँ होता है। तथा वातावरण का प्रभाव कहाँ से प्रारम्भ होता है ? यह अभी भी अनिश्चित साक्ष्य है। मैकाइवर (MacIver) तथा पेज (Page) ने सत्य कहा है कि “जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम है। दोनों ही आवश्यक तत्त्व हैं तथा न तो किसी समाप्त ही किया जा सकता है और न ही अलग किया जा सकता है।” ब्राउन (Brown) ने भी कहा है, “वंशानुक्रम वातावरण के अभाव में तथा वातावरण वंशानुक्रम के अभाव में व्यर्थ है।”
(2) वंशानुक्रम तथा वातावरण की सापेक्ष महत्ता (Relative Importance of Heredity and Environment)– शिक्षाविदों तथा मनोवैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों ने यह सिद्ध कर दिया है कि व्यक्ति के विकास क्रम में वंशानुक्रम तथा पर्यावरण दोनों का विशिष्ट योगदान है। एक के बिना दूसरा अधूरा है तथा व्यक्तित्व विकास भी अर्द्धसत्य है। वंशानुक्रम द्वारा प्राप्त गुणों का विकास वातावरण द्वारा ही सम्भव है। व्यक्ति का निर्माण दोनों के सहयोग पर निर्भर है। दोनों एक-दूसरे के पूरक की भूमिका निर्वाह करके मानव की शारीरिक, बौद्धिक, नैतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक क्षमताओं को विकसित होने का अवसर प्रदान करते हैं। इस सम्बन्ध में लैंडिस तथा लैंडिस (Landis & Landis) का कथन महत्त्वपूर्ण है, “वंशानुक्रम से हम विकसित होने के लिए क्षमताएँ प्राप्त करते हैं, परन्तु क्षमताओं के विकास हेतु वातावरण द्वारा अवसर प्रदान करना अनिवार्यता है। वंशानुक्रम हमें कार्यपूँजी प्रदान करता है जबकि वातावरण इस पूँजी के विनियोग का अवसर।” वंशानुक्रम तथा पर्यावरण दोनों ही मानव विकास में महत्त्वपूर्ण अंग तथा मुख्य साधन हैं।
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