गोखले बिल, 1910 की विवेचना कीजिए इसकी प्रमुख संस्तुतियाँ बताइए।
गोखले बिल (Gokhle Bill, 1910) लार्ड कर्जन की शिक्षा नीति और शिक्षा सुधारों के फलस्वरूप भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति हुई, परन्तु भारतवासियों ने यह समझा कि उसके सुधार राजनीति से प्रेरित हैं। 1906 ई. में जब स्वयं सरकार ने जापान की शिक्षा प्रणाली नामक एक रिपोर्ट प्रकाशित की तो भारतीयों में शिक्षा सुधार की बड़ी तेजी से माँग होने लगी। भारतीय जन- शिक्षा का महत्त्व भलीभाँति समझने लगे। भारतीयों का विचार था कि अंग्रेजी शासन की स्थापना के बाद भारत में अशिक्षा घटने के स्थान पर बढ़ी है और सरकार जन-शिक्षा के कार्य की अवहेलना कर रही है। ऐसे समय में गोपालकृष्ण गोखले ने केन्द्रीय धारा सभा में आवाज उठायी।
गोखले का प्रस्ताव — 19 मार्च, 1910 ई. को गोखले ने केन्द्रीय धारा सभा में सदस्यों के समक्ष एक प्रस्ताव रखा जिसमें यह कहा गया था कि सम्पूर्ण देश में प्राथमिक शिक्षा को निःशुल्क और अनिवार्य बनाने का कार्य प्रारम्भ किया जाय और इस सम्बन्ध में एक संयुक्त आयोग की नियुक्ति की जाय। उन्होंने अपने प्रस्ताव में कहा कि जिन क्षेत्रों में 33 प्रतिशत बालक शिक्षा प्राप्त नहीं कर रहे हैं वहाँ 6 से 10 वर्ष तक के आयु के बालकों के हेतु प्राथमिक शिक्षा निःशुल्क और अनिवार्य हो। प्राथमिक शिक्षा पर स्थानीय संस्थायें और प्रान्तीय सरकारें 1: 2 के अनुपात में व्यय करें। प्राथमिक शिक्षा की देखभाल के हेतु एक सचिव की नियुक्ति की जाय। उन्होंने अपने प्रस्ताव में यह भी कहा कि शिक्षा के प्रचार की योजना के निर्माण के लिए केन्द्र में एक अलग विभाग की स्थापना हो और सरकार अपने वार्षिक बजट में शिक्षा की प्रगति का उल्लेख करे।
गोखले के प्रस्ताव पर सरकार ने आश्वासन दिया और 1913 ई. में केन्द्र के अन्तर्गत पृथक् शिक्षा विभाग की स्थापना की, परन्तु अनिवार्य और निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा के सम्बन्ध में कोई उत्तरदायित्व नहीं मिला। गोखले ने यद्यपि अपना प्रस्ताव वापस ले लिया परन्तु इसके बाद भी सरकार ने विशेष कदम नहीं उठाये।
गोखले का विधेयक–गोखले के प्रस्ताव पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया इससे जनता में बड़ी निराशा हुई। भारतीय जनता सरकार की चालों से परिचित थी। कांग्रेस ने भी गोखले के इस दिशा में शीघ्र ही कदम उठाने के लिए अनुरोध किया। अतः प्राथमिक शिक्षा के प्रति सरकार की उदासीनता को देखकर गोपालकृष्ण गोखले ने 16 मार्च, 1991 ई. को केन्द्रीय धारा सभा के समक्ष अपना प्रसिद्ध विधेयक प्रस्तुत किया। इस विधेयक के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए गोखले ने कहा – “इस विधेयक का उद्देश्य देश की प्राथमिक शिक्षा प्रणाली में अनिवार्यता के सिद्धान्त को क्रमशः लागू करना है।”
Contents
विधेयक की प्रमुख सिफारिशें (Various Recomendation of Bill)
अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा से सम्बन्धित गोखले विधेयक की प्रमुख सिफारिशें निम्नवत् थीं-
(1) अनिवार्य शिक्षा की यह योजना उन क्षेत्रों में लागू की जाय जहाँ बालकों का एक निश्चित प्रतिशत प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर रहा है। प्रतिशत को निर्धारित करने का अधिकार गवर्नर जनरल की परिषद को होगा।
(2) यदि सरकार स्वयं अनिवार्य शिक्षा के सिद्धान्त को लागू नहीं कर सकती तो इस उत्तरदायित्व को स्थानीय संस्थाओं के हाथों में छोड़ देना चाहिए।
(3) शीघ्रता में स्थानीय संस्थायें कोई गलत कदम न उठायें, अतः अनिवार्य शिक्षा के सिद्धान्त को लागू करने के पूर्व वे प्रान्तीय सरकार की अनुमति ले लें।
(4) जहाँ पर यह सिद्धान्त लागू किया जाय वहाँ के 6 से 10 वर्ष तक के बालकों को प्राथमिक स्कूलों में भेजना अनिवार्य कर दिया जाय। जो अभिभावक इस नियम का उल्लंघन करें उन्हें दण्डित किया जाय।
(5) पहले यह योजना बालकों पर लागू की जाय और बाद में क्रमशः बालिकाओं पर।
(6) अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का व्यय स्थानीय संस्थायें एवं प्रान्तीय सरकार 1:2 के अनुपात में वहन करें।
(7) स्थानीय संस्थाओं को अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा के व्यय के लिए शिक्षा कर लगाने का अधिकार दिया जाय।
(8) यदि किसी विद्यार्थी के अभिभावक की मासिक आय 10 रुपये से कम हो तो उस विद्यार्थी से शिक्षा शुल्क न लिया जाय।
विधेयक के विरोध में सरकार का तर्क
केन्द्रीय धारा सभा में विधेयक को प्रस्तुत करने के बाद प्रान्तीय सरकारों, विश्वविद्यालयों एवं स्थानीय संस्थाओं का मत जानने के लिए उनके पास भेजा गया। उसके बाद 16 मार्च, 1912 ई. को धारा सभा में विधेयक को बहस के लिए रखा गया। दो दिन तक उस पर गरमागरम बहस हुई। सरकार ने विधेयक को अस्वीकार करने की दृष्टि से उसके विरोध में ये तर्क प्रस्तुत किए-
- यह विधेयक समय से पूर्व अनावश्यक है,
- अनिवार्यता का सिद्धान्त शिक्षा सिद्धान्त के प्रतिकूल है,
- प्रान्तीय जनमत स्वयं अनिवार्यता के पक्ष में नहीं है,
- प्रान्तीय सरकारें भी अनिवार्य शिक्षा के विरुद्ध हैं,
- स्थानीय संस्थायें अनिवार्य शिक्षा के विरुद्ध हैं और
- सरकार के समक्ष प्रशासन सम्बन्धी अनेक अड़चनें आयेंगी।
विधेयक का रद्द किया जाना
गोखले ने सरकार के विरोध का खण्डन किया। अपने मत की पुष्टि के लिए उन्होंने बड़ौदा राज्य तथा पश्चिमी देशों के अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए जहाँ कि प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य थी। सरकारी प्रवक्ता हरकोर्ट बटलर ने इसके प्रत्युत्तर में कहा था— “अनिवार्य शिक्षा का पौधा पश्चिमी देशों का पौधा है, यह भारत की भूमि में नहीं पनप सकता।” मदन मोहन मालवीय और जिन्ना ने विधेयक का स्वागत किया। भारतीय रियासतों के प्रतिनिधि और जमींदार शिक्षा के मार्ग में रोड़ा बने। अन्त में विधेयक 13 वोटों के विरुद्ध 38 वोटों से रद्द कर दिया गया किन्तु कर्मनिष्ठ गोखले अपनी इस पराजय से हतोत्साहित नहीं हुए क्योंकि वे पहले से ही जानते थे और उन्होंने कहा था “मैं जानता हूँ कि मेरे विधेयक का दिन के समाप्त होने से पहले ही बंहिष्कार कर दिया जायेगा। मुझे कोई शिकायत नहीं है। मैं इससे हतोत्साहित नहीं होता। तो भी मैंने सदैव यह अनुभव किया है और करता हूँ कि आज की पीढ़ी के हम भारत के नागरिक अपने देश की सेवा केवल अपनी आवश्यकताओं द्वारा ही कर सकते हैं। “
गोखले विधेयक का प्रभाव
यद्यपि सरकार ने गोखले का विधेयक अस्वीकार कर दिया लेकिन उनके प्रयास असफल नहीं हुए। इस विधेयक ने सरकार और जनता दोनों का ध्यान जन-साधारण की शिक्षा की ओर आकृष्ट किया। दिसम्बर, 1911 ई. में सम्राट जार्ज पंचम ने दिल्ली दरबार में प्राथमिक शिक्षा के लिए पचास लाख रुपये की धनराशि प्रदान करने की घोषणा की। 6 जनवरी, 1912 ई. को कोलकाता विश्वविद्यालय में अपने भाषण में जार्ज पंचम ने भारत में शिक्षा के प्रसार के लिए अपनी रुचि व्यक्त करते हुए कहा ‘मेरी इच्छा है कि भारत में विश्वविद्यालयों का जाल सा बिछ जाय जिससे कृषि, व्यवसाय तथा अन्य क्षेत्रों में लोग लग सकें और राजभक्त, बहादुर एवं कुशल नागरिक बन सकें।”
गोखले के विधेयक से प्रभावित होकर भारत सरकार ने प्रान्तीय सरकारों को प्राथमिक शिक्षा की ओर ध्यान देने के लिए आदेश दिया जिसके परिणामस्वरूप देश के विभिन्न प्रान्तों में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाने के लिए “अनिवार्य शिक्षा अधिनियम” बनाये गये और तदनुकूल सभी बड़े प्रान्तों में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य कर दी गयी। शिक्षित वर्ग एवं राजनीतिक दलों पर भी गोखले के विधेयक का व्यापक प्रभाव पड़ा जिसके कारण उन्होंने अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा के प्रसार में रुचि ली। यद्यपि गोखले के विधेयक को सरकार ने अस्वीकार कर दिया लेकिन सरकार को अपनी शिक्षा नीति पर फिर से विचार करना पड़ा। सरकार ने 1913 ई. में अपने शिक्षा नीति सम्बन्धी सरकारी प्रस्ताव में अपनी नीति में आमूलचूल परिवर्तन करके शिक्षा के प्राथमिक तथा अन्य अंगों में सुधार करने की सिफारिश की। इसके परिणामस्वरूप ही देश के सभी प्रान्तों में स्थानीय संस्थाओं द्वारा प्राथमिक विद्यालयों का निर्माण हुआ।
IMPORTANT LINK
- हिन्दी भाषा का शिक्षण सिद्धान्त एवं शिक्षण सूत्र
- त्रि-भाषा सूत्र किसे कहते हैं? What is called the three-language formula?
- माध्यमिक विद्यालय के पाठ्यक्रम में हिन्दी का क्या स्थान होना चाहिए ?
- मातृभाषा का पाठ्यक्रम में क्या स्थान है ? What is the place of mother tongue in the curriculum?
- मातृभाषा शिक्षण के उद्देश्य | विद्यालयों के विभिन्न स्तरों के अनुसार उद्देश्य | उद्देश्यों की प्राप्ति के माध्यम
- माध्यमिक कक्षाओं के लिए हिन्दी शिक्षण का उद्देश्य एवं आवश्यकता
- विभिन्न स्तरों पर हिन्दी शिक्षण (मातृभाषा शिक्षण) के उद्देश्य
- मातृभाषा का अर्थ | हिन्दी शिक्षण के सामान्य उद्देश्य | उद्देश्यों का वर्गीकरण | सद्वृत्तियों का विकास करने के अर्थ
- हिन्दी शिक्षक के गुण, विशेषताएँ एवं व्यक्तित्व
- भाषा का अर्थ एवं परिभाषा | भाषा की प्रकृति एवं विशेषताएँ
- भाषा अथवा भाषाविज्ञान का अन्य विषयों से सह-सम्बन्ध
- मातृभाषा का उद्भव एवं विकास | हिन्दी- भाषा के इतिहास का काल-विभाजन
- भाषा के विविध रूप क्या हैं ?
- भाषा विकास की प्रकृति एवं विशेषताएँ
- भारतीय संस्कृति की विविधता में एकता | Unity in Diversity of Indian Culture in Hindi
Disclaimer