शिक्षाशास्त्र / Education

दत्त और सांख्यिकी में क्या सम्बन्ध है? दत्तों के विभिन्न वर्गीकरण

दत्त और सांख्यिकी में क्या सम्बन्ध है? दत्तों के विभिन्न वर्गीकरणों का विस्तार से उल्लेख कीजिए।

दत्त या प्रदत्त से तात्पर्य उस तथ्य या सूचना से है जिसके आधार पर निष्कर्ष निकाला जा सकता है, अर्थात् किसी परीक्षण के प्राप्तांकों को प्रदत्तों की संख्या दी जाती है। यह परीक्षा उनके व्यवहार के किसी पहलू से सम्बन्धित हो सकती है। प्रयोगों, सर्वेक्षणों एवं अनुसंधान मैं जो आंकड़े या सूचनाएँ एकत्र की जाती हैं उन्हें भी प्रदत्तों की संज्ञा दी गयी है।

सांख्यिकी से तात्पर्य – सांख्यिकी वह विज्ञान है जो सामग्री के संग्रह वर्गीकरण एवं सारणीयन से सम्बन्धित घटनाओं की व्याख्या वर्णन और तुलना करने के लिए आधार मानकर उन पर विचार करता है।

लौविट के अनुसार- “सांख्यिकी वह विज्ञान है जो घटनाओं की व्याख्या, उनका वर्णन तथा उनकी तुलना के लिए आवश्यक आंकिक तथ्यों के संग्रह वर्गीकरण एवं सारणीयन’ से सम्बन्ध रखता है। “

ब्राउली के शब्दों में- ” सांख्यिकी का अर्थ अनुसंधान के किसी विभाग में ऐसे तथ्यों का संख्यात्मक कथन है जो एक दूसरे से सम्बन्धित होते हैं।”

इस प्रकार सांख्यिकी वैज्ञानिक विधि यंत्र की वह शाखा है जिसका सम्बन्ध सर्वेक्षणों एवं प्रयोगों के आधार पर प्राप्त आंकड़ों के संकलन, वर्गीकरण, विवरण तथा विवेचना से है। इसका मुख्य उद्देश्य जनसंख्या सम्बन्धी संख्यात्मक विशेषताओं का वर्णन करना व इस विषय के सम्बन्ध में अनुमान लगाना है।

दत्त और सांख्यिकी में सम्बन्ध

दत्त और सांख्यिकी परस्पर एक दूसरे पर आश्रित हैं। सांख्यिकी विश्लेषण दत्तों के बिना असम्भव है और प्रदत्तों का उपयोग सांख्यिकीय गणना के बिना असम्भव है।

दत्तों का संकलन, वर्गीकरण, प्रस्तुतीकरण तुलना व व्याख्या करने में सांख्यिकी की आवश्यकता पड़ती है, जबकि सांख्यिकी कार्य को सम्भव बनाने के लिए प्राप्तांक रूपी दत्तों की आवश्यकता पड़ती है।

अतः उपरोक्त से स्पष्ट है कि प्रदत्त व सांख्यिकी एक दूसरे के कार्य का आधार बनते हैं प्रदत्तों की व्याख्या सांख्यिकी द्वारा ही सम्भव है और यदि आँकड़े ही नहीं होंगे तो सांख्यिकी विश्लेषण कैसे होगा? अतः दोनों ही एक दूसरे का आवास में अटूट सम्बन्ध है ।

प्रदत्तों का वर्गीकरण

छात्रों के प्राप्तांक उनकी आयु वजन ऊंचाई आदि के माप सांख्यिकीय आँकड़ कहे जाते हैं। इसके अतिरिक्त प्रदत्त या आँकड़े किसी प्राकृतिक अथवा सामजिक घटना के माप भी हो सकते हैं दूसरे शब्दों में- “मानव व्यवहार के किसी भी पहलू से सम्बन्धित परीक्षा के प्राप्तांकों को प्रदत्त कहा जाता है। यह प्रदत्त अंकों अर्थात् संख्यात्मक होते हैं-

(अ) जी. पी. गिलफोर्ड के अनुसार- “अंकात्मक दत्त के दो प्रकार हैं-

1. अंकात्मक प्रदत्त जो गणना पर निर्भर हो- जिन वस्तुओं को हम गिन सकते हैं तो उनसे जो प्राप्त आंकड़े होते हैं उनको गणनाश्रित प्रदत्त कहा जाता है जैसे- दस (10) पाँच (छात्र) पन्द्रह (15) छात्राएँ, चालीस (40) किताबें, नौ (9) कलमें आदि।

2. अंकात्मक प्रदत्त जो मापे जा सकते हों- जिन प्रदत्तों को हम गिन नहीं सकते वरन् माप सकते हैं, उस प्रकार के दत्तों को मीट्रिक डेटा कहते हैं, जैसे- 20मीटर रस्सी, 40 मीटर कपड़ा, 30 किलो चावल, 80 किलो मक्का, 5 लीटर दूध ।

(ब) दत्तों का वर्गीकरण समानता या सजातीयता के आधार पर भी किया जा सकता है। जैसे- (1) लिंग के आधार पर (2) धर्म के आधार पर (3) सामाजिक स्तर के आधार ।

(स) वर्गीकृत तथा अवर्गीकृत प्रदत्त या आँकड़े-

(1) वर्गीकृत आँकड़े- जब अवर्गीकृत आँकड़ों या तथ्यों को वर्गों या विभागों में वर्गीकृत कर देते हैं तो वे वर्गीकृत आँकड़े कहे जाते हैं।

जैसे- 30-39,40-49, 50-59, 60-69, 70-79

(2) अवर्गीकृत आंकड़े- किसी अनुसंधान अथवा अध्ययन से जो मौलिक तथ्य या आँकड़े प्राप्त होते हैं वे अवर्गीकृत आंकड़े कहे जाते हैं।

जैसे- 50,55, 70, 65,60, 45, 40, 48, 53, 49, 35, आदि।

(द) वास्तविक दत्तों अथवा मूल आँकड़ों का व्यवस्थापन- मनोविज्ञान एवं शिक्षा क्षेत्र में अध्ययनों एवं अनुसंधानों के आधार पर प्राप्त आँकड़े अधिक विस्तृत एवं संख्या से अधिक होते हैं। इन आँकड़ों को स्पष्ट एवं सार्थक बनाने के लिए कई प्रकार की प्रक्रियाएँ करनी पड़ती हैं। इनमें से व्यवस्थापन भी एक प्रक्रिया है। आँकड़ों का व्यवस्थापन तीन प्रकार से किया जा सकता है-

(1) आवृत्ति वितरण रूपी वर्गीकरण- किसी प्राप्तांक के पुनरावृत्ति को आवृत्ति कहा जाता है। जैसे- यदि कोई प्राप्तांक पाँच बार आता है, तब उसकी आवृत्ति पाँच बार होगी। भिन्न-भिन्न वर्गों – में वितरित या प्रदर्शित करने की विधि को आवृत्ति वितरण रूपी वर्गीकरण कहा जाता है।

(2) आवृत्ति व्यवस्था या वर्गीकरण- आवृत्ति व्यवस्था में प्राप्तांकों का वर्गीकरण आवृत्तियों के आधार पर किया जाता है जिससे प्राप्तांकों की प्रकृति अधिक स्पष्ट हो जाती है। यह व्यवस्था पहली व्यवस्था से अधिक उत्तम है परन्तु प्राप्तांकों में यह प्रयोग नहीं करना चाहिए।

(3) साधारण व्यवस्था या वर्गीकरण- मापन द्वारा प्राप्त प्राप्तांकों को वर्गीकृत करने की एक सरलतम विधि है। इसमें प्राप्त दत्तों को घटते क्रम में व्यवस्थित करते हैं। प्राप्तांकों को एक क्रम देने से उनकी प्राकृति स्पष्ट हो जाती है। इस विधि का प्रयोग उस समय करना चाहिए जब प्राप्तांकों की संख्या कम हो ।

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Anjali Yadav

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