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पाठ्यचर्या में सुधार हेतु सामान्य सुझाव (General Suggestions for Improving Curriculum)
पाठ्यचर्या में सुधार हेतु सामान्य सुझाव निम्नलिखित हैं-
1) प्राथमिक स्तर की पाठ्यचर्या शिक्षक की देख-रेख में बनाना चाहिए एवं बाल केन्द्रित शिक्षा को बढ़ावा देने वाला होना चाहिए।
2) पाठ्यचर्या में बालकों की रुचि, योग्यता व बौद्धिक स्तर के अनुसार विषयों व पाठ्य-वस्तु को स्थान मिलना चाहिए।
3) पाठ्यचर्या की विषयवस्तु एक दूसरे से अन्तःसम्बन्धित होनी चाहिए।
4) पाठ्यचर्या के विषय तथा अन्तर्वस्तु जीवनोपयोगी तथा जीवन से सम्बन्धित हो तथा वह भविष्य में बालकों के हित में हो तथा जीवनयापन का साधन बने।
5) पाठ्यचर्या में सामाजिक जीवन के लिए उपयोगी विषयों को ही सम्मिलित करना चाहिए।
6) पाठ्यचर्या में पुस्तकीय तथा सैद्धान्तिक विषयों के अतिरिक्त व्यावहारिकता के ज्ञान को स्थान देना चाहिए।
7) पाठ्यचर्या में ऐसे विषय तथा पाठ्य-वस्तु हो जिससे बालक का चहुमुखी विकास हो।
8) पाठ्यचर्या में अवकाश के समय का सदुपयोग करने के कौशलों को भी स्थान मिलना चाहिए।
9) पाठ्यचर्या में भाषा, मातृभाषा, क्षेत्रीय भाषा, व्यावहारिक विषय, सामाजिक शिक्षा, मानववाद की शिक्षा, प्रयोजनवाद की शिक्षा, व्यावसायिक विषय, हस्तकला, तकनीकी विषयों, कृषि, बागवानी, क्षेत्रीय कार्य, विज्ञान की शिक्षा, नैतिक मूल्य शिक्षा, सम्प्रेषण शिक्षा, प्रबन्धन शिक्षा, आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा, कार्यानुभव, साहित्य, विदेशी साहित्य, अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की शिक्षा, विश्वबन्धुत्व की शिक्षा, राजनीति के विषय, अर्थशास्त्र, गृहप्रबन्धन, गृहविज्ञान, गृहसज्जा और संगीत विषय को भी शिक्षा में ऐच्छिक अथवा अनिवार्य रूप से रखा जाना चाहिए।
10) पाठ्यचर्या के चरणों / पदों में परिवर्तन करते रहना चाहिए।
11) पाठ्यचर्या निर्माण का कार्य शिक्षाविदों, विषय विशेषज्ञों तथा सम्बन्धित क्षेत्र के शिक्षकों को देना चाहिए।
12) पाठ्यचर्या में औपचारिक तथा अनौपचारिक, अभिक्रियाओं, शिक्षण कौशलों, अधिगम युक्तियों को सम्मिलित करना चाहिए।
13) पाठ्यचर्या में पाठ्य सहगामी क्रियाओं का समावेश करना चाहिए।
14) पाठ्यचर्या निर्माण के पूर्व पाठ्यचर्या नियोजन पर भरपूर प्रयासों द्वारा कार्य करना चाहिए।
15) पाठ्यचर्या में अनुसंधानों को विशेष स्थान दिया जाना चाहिए।
16) पाठ्यचर्या में से अनुपयोगी तथा जीवन से असम्बन्धित तत्त्वों को हटा देना चाहिए।
17) पाठ्यचर्या में समय-समय पर परिवर्तन करना चाहिए।
18) पाठ्यचर्या में अधिक से अधिक तकनीकी तथा व्यावसायिक विषयों को स्थान देना चाहिए।
19) पाठ्यचर्या में ऐसी पाठ्य-वस्तुओं तथा प्रकरणों का समावेश किया जाना चाहिए जिससे विद्यालय, साधारण विद्यालय न रहकर प्रयोगात्मक एवं क्रियाशील विद्यालय बन जाए।
20) पाठ्यचर्या में सैद्धान्तिक ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक विषयों का भी अभ्यास कराया जाना चाहिए। व्यावहारिक विषयों के अभ्यास के लिए उसी स्थान को उपलब्ध कराया जाए जिसकी आवश्यकता बालक को वास्तविक ज्ञान से परिचित कराती है।
अतः उपरोक्त विचारों द्वारा पाठ्यचर्या में सुधार हेतु आवश्यक सुझाव दिए गए हैं जिनके कारण शिक्षा का स्तर बढ़ेगा तथा बालकों का सर्वांगीण विकास होगा तथा वे अच्छे नागरिक के रूप में समाज में स्थापित हो सकेंगे। उपर्युक्त सुझावों को व्यावहारिकता के रूप में प्रयोग किया जाए तो पाठ्य-पुस्तकों एवं पाठ्यचर्या को एक नयी दिशा प्राप्त होगी जिससे देश के प्रत्येक बालक के प्रत्येक पक्ष के विकास के साथ-साथ देश को भी एक समृद्ध, सुसंस्कृत एवं बुद्धिशाली पीढ़ी मिलेगी जिससे देश का नाम अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर प्रकाशित होगा तथा इन बालकों में से पुनः कोई गाँधी, अब्दुल कलाम, महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, कालिदास, भारतेन्दु, शरत चन्द्र, चाणक्य आदि कोई सामने आएगा तथा देश को एक नवीन भविष्य की संकल्पना प्रदान करेगा। पाठ्यचर्या की रचना इस प्रकार की जाए कि विद्यार्थी केवल कार्य करना ही न सीखे, अपितु अवकाश के समय का सदुपयोग करना भी सीखे।
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