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प्रशासनिक पाठ्यचर्या मॉडल (Administrative Curriculum Model)
सेलर एवं उनके सहयोगियों सेलर, एलेक्जेण्डर एवं लेविस ने सन् 1981 में प्रशासकीय दृष्टिकोण से पाठ्यचर्या विकास को निर्मित किया। उन्होंने पाठ्यचर्या योजना का वर्णन एवं विश्लेषण का सम्बन्ध साध्य एवं साधन, आवश्यक, सुसंगत तथ्यों एवं आँकड़ों एवं गतिविधियों की सक्रियता या प्रक्रियाओं का आरम्भ एवं अन्त के रूप में किया। इसे हम एक अवधारणात्मक मॉडल के द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं-
जैसा कि उपर्युक्त चित्र में दर्शाया गया है कि शैक्षिक लक्ष्यों एवं उद्देश्यों पर बाह्य ताकतों, वैध आवश्यकताओं, व्यावसायिक संगठन आदि का प्रभाव पड़ता है। उसी प्रकार से पाठ्यचर्या का आधार समाज, छात्र एवं ज्ञान का प्रभाव भी इन पर पड़ता है। तत्पश्चात् पाठ्यचर्या निर्माणकर्त्ता पाठ्यचर्या प्रारूप का चुनाव या निर्धारण, कार्यान्वयन की रणनीतियाँ एवं मूल्यांकन प्रक्रियाओं के माध्यम से लक्ष्यों की अधिकतम प्राप्ति, दिशानिर्देशों के अनुसार योजना के निर्माण पर पृष्ठपोषण (Feedback) प्राप्त करते हैं यदि ये तथ्य उन्हें उचित रूप में प्राप्त नहीं होते हैं तो वे पुनः पाठ्यचर्या में बदलाव कर उसका विकास करते हैं।
पाठ्यचर्या प्रारूप के निर्धारण में एक जिम्मेदार पाठ्यचर्या योजना समूह को सम्मिलित किया जाता है जो एक विशेष विद्यालय एवं छात्रों की संख्या को अपने केन्द्र में रखता है। वहाँ से वह आवश्यक आँकड़े प्राप्त कर उनका विश्लेषण करता है और फिर लक्ष्यों एवं उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है। पाठ्यचर्या योजनाकर्त्ता (Planners) एक सामान्य पैटर्न का निर्धारण करता है जिससे छात्रों को अधिगम कराया जा सके।
पाठ्यचर्या कार्यान्वयन में आवश्यक दिशा-निर्देशों का विशेष ध्यान रखा जाता है। विभिन्न रणनीतियों को पाठ्यचर्या योजना में शामिल किया जाता है जिससे शिक्षकों को अध्यापन के लिए विकल्प रहे। पाठ्यचर्या योजना अपनी प्रकृति, दिशा-निर्देश का प्रयास एवं छात्र की प्रकृति एवं गुणों के अनुसार अवसर प्रदान करती है। वे समस्त पाठ्यचर्या योजनाएँ बेकार है जब तक वे विद्यालय में छात्रों के द्वारा किए जाने वाले कार्यों को प्रभावित न करें।
पाठ्यचर्या मूल्यांकन में मूल्यांकन प्रक्रिया के तहत अधिगम परिणाम एवं सम्पूर्ण पाठ्यचर्या योजना को सम्मिलित किया जाता है। सेलर एवं उनके सहयोगियों ने संरचनात्मक एवं संयोगात्मक दोनों मूल्यांकन को पहचाना। संरचनात्मक प्रक्रिया के तहत प्राप्त पृष्ठपोषण के आधार पर प्रत्येक स्तर पर पाठ्यचर्या विकास- लक्ष्य एवं उद्देश्य, पाठ्यचर्या विकास एवं कार्यान्वयन आदि तथ्यों को सम्मिलित करते हुए मूल्यांकन किया जाता है। वही दूसरी ओर संयोगात्मक मूल्यांकन प्रक्रिया अन्त में आती है और सम्पूर्ण पाठ्यचर्या का मूल्यांकन करती है। ये मूल्यांकन पाठ्यचर्या निर्माणकर्ताओं को पाठ्यचर्या निर्धारण करने का अवसर प्रदान करती है कि पाठ्यचर्या लगातार जारी रखी जाए, बदलाव किया जाए या सम्पूर्ण योजना ही समाप्त कर नए सिरे से निर्माण किया जाए। इस मॉडल में पृष्ठपोषण को प्राप्त करने एवं प्रत्येक स्तर पर पाठ्यचर्या का मूल्यांकन, छात्रों को निर्देश आदि ऐसे तत्त्व हैं जो इस मॉडल को एक विशिष्ट स्थिति प्रदान करते हैं।
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