फ्रेरा के अनुसार पाठ्यक्रम का वर्णन कीजिए |
फ्रेरा ने पाठ्यक्रम में आमूलचूल परिवर्तन की बात की है। वे पहले ईसा मसीह से प्रभावित थे और यह धार्मिक पुस्तकों के पठन-पाठन को आवश्यक समझते थे। बाद में वे मार्क्स की ओर आकर्षित हुए किन्तु मार्क्स के सिद्धान्तों को वे आँख मूंदकर नहीं स्वीकार कर पाये। मार्क्स बातों से फेरा असहमत थे और उनकी आलोचना भी उन्होंने की। मार्क्स से वे प्रेरित हुए और उन्होंने सभी छात्रों को मार्क्स के अनुसार सामाजिक अन्तर्विरोधों को समझने का परामर्श दिया।
फ्रेरा सर्ज, एरिक फ्रॉम, माओ, मार्टिन लूथर किंग के विचारों को पाठ्यक्रम का अंग बनाना चाहते थे। फ्रांज फ्रैनल की पुस्तक ‘संसार के अभागे लोग’ (द रैचिड ऑफ द अर्थ ) से वे बहुत प्रभावित थे।
गणित, इतिहास, भूगोल को पढ़ाना है किन्तु प्रायः बालक इनमें फेल हो जाते हैं। हमें इनको सरल करके पढ़ाना है।
फ्रेरा पाठ्यक्रम को पुनर्गठित करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने कहा कि दार्शनिकों, कला शिक्षकों, भौतिक विज्ञानियों, समाजशास्त्रियों की सहायता की जरूरत है। पाठ्यक्रम को विस्तृत और उपयोगी बनाने के लिए इनकी सहायता कारगर सिद्ध होगी। शिक्षा, कला, नीतिशास्त्र, कामवासना, मानव अधिकार, खेल, सामाजिक वर्ग, भाषा, दार्शनिक विचारधारा जैसी ज्ञान की शाखाओं पर चर्चा होनी चाहिए जिससे पाठ्यक्रम की पुनर्रचना ठीक से हो सके। पाठ्यचर्या में अल्पसंख्यकों के मूल्यों को भी शामिल करना चाहिए।
फ्रेरा कहते हैं कि पाठ्यचर्या को जड़, असंवेदनशील एवं अनुपयोगी नहीं होना चाहिए। प्रायः यह देखा जाता है कि पाठ्यक्रम इसके निर्माताओं के लाभ के लिए गठित किया जाता है न कि छात्र के लाभ के लिए।
सामान्य वर्ग के लिए जो पाठ्यक्रम आवश्यक होता है, सम्भव है प्रभुत्वसम्पन्न लोगों के लिए वह हितकारी न हो ।
पाठ्यक्रम में समाजवाद व साम्यवाद के विचारों को आदरणीय स्थान देना चाहिए। फेरा लोकतन्त्र के वास्तविक स्वरूप को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहते थे न कि उसके वर्तमान विकृत रूप को ।
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