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मैक ग्रिगौर द्वारा प्रतिपादित X तथा Y सिद्धान्त को समझाइये। X तथा Y सिद्धान्त की प्रमुख मान्यताएँ क्या हैं ? वर्तमान में X सिद्धान्त की उपयुक्तता समझाइये।
‘X’ सिद्धान्त से आशय (Meaning of ‘X’ Theory)
X सिद्धान्त परम्परावादी दृष्टिकोण के आधार पर निर्मित हुआ है। इसके अन्तर्गत यह धारणाएँ मानी जाती हैं कि श्रमिक सुस्त कमजोर तथा अनुत्तरदायी होते हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार सत्ताहीन व्यक्ति ही पूर्णरूप से नियन्त्रण करने में सफल हो सकता है। प्रबन्धक इस मत को मानते हैं कि श्रमिक डर, कड़े अनुशासन, दण्ड तथा प्रताड़ना द्वारा ही ठीक तरह से कार्य कर सकते हैं। इसके अन्तर्गत प्रबन्धक जब चाहे, तब उसे कार्य से पृथक कर सकता है।
‘X’ सिद्धान्त की मान्यताएँ (Assumptions of ‘X’ theory)
X सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है-
(1) अधिकांश व्यक्ति कार्य को रुचिकर मानते हैं।
(2) व्यक्ति पर प्रत्यक्ष रूप से डर, धमकी, प्रताड़ना द्वारा बनाये रखना आवश्यक है।
(3) व्यक्ति अनुत्तरदायी होने से कार्य टालने की प्रकृति रखता है।
(4) अधिकांश व्यक्तियों में महत्वाकांक्षा की कमी होती है।
(5) अनेक व्यक्तियों में प्रबन्धकीय समस्याओं को सुलझाने हेतु सृजनात्मक क्षमता का अभाव होता है।
(6) कुछ व्यक्ति शारीरिक एवं सुरक्षात्मक स्तर द्वारा ही अभिप्रेरण पा लेते हैं।
(7) अधिकांश व्यक्ति कड़े नियन्त्रण की उपस्थिति में कार्य करते हैं।
(8) कर्मचारी वित्तीय प्रलोभन के आधार पर ही कार्य करते हैं।
(9) प्रबन्धक के सामने श्रमिक मशीन का एक पुर्जा होता है तथा उसे महत्व नहीं दिया जाता है।
(10) इस सिद्धान्त में सत्ता को सर्वोपरि माना गया है।
(11) व्यक्ति के कार्य करने के ढंग को परम्परागत माना गया है।
‘X’ सिद्धान्त की उपयुक्तता (Suitability of ‘X’ Theory)
X सिद्धान्त की मान्यताओं का अध्ययन करने पर हमें इस सिद्धान्त की प्रकृति का पता चलता है। हम इन मान्यताओं का अध्ययन करने पर कह सकते हैं कि X सिद्धान्त अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है। यह सिद्धान्त उत्पादन के मुख्य साधन श्रमिक को मशीन के एक पुर्जे की भाँति महत्व देता है। यह श्रमिकों को निर्देशों पर चलने वाला बना देता है, उन्हें अपनी बुद्धि का प्रयोग करने का तनिक भी अवसर प्रदान नहीं करता है। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि यह सिद्धान्त केवल निराशावादी सिद्धान्त ही है। इस सिद्धान्त में मानवीय मूल्यों का कोई स्थान नहीं दिया गया है। अतः निष्कर्ष रूप में हम यह कह सकते हैं कि वर्तमान में जबकि उद्योगों में श्रमिकों की योगदान क्षमता के कारण उनकी माँग बढ़ती जा रही है और उद्योगों में मानवीय मूल्यों को विकसित करने के लिए अभिप्रेरणा को नवीनतम योजनाएँ लागू की जा रही हैं, X सिद्धान्त महत्वहीन एवं परिस्थितियों के प्रतिकूल है।
इस विचारधारा की प्रमुख कमियाँ निम्नानुसार हैं-
(1) यह मानवीय आवश्यकताओं व भावनाओं को नकारती है।
(2) यह साधनों को उपयोग में लाने का उत्तरदायित्व प्रबन्धकों पर डालती है।
(3) यह मनुष्य को केवल आर्थिक मनुष्य ही मानती है।
(4) यह भय एवं दण्ड के आधार पर कर्मचारी से काम लेती है।
(5) यह प्रबन्धकों को निरंकुश बनाने की प्रेरणा देती है ।
Y सिद्धान्त से आशय (Meaning of ‘Y’ theory)
प्रबन्ध दर्शन के विचारकों को श्री मैक ग्रिगौर ने X तथा Y सिद्धान्तों में विभाजित किया । Y सिद्धान्तों को आधुनिक सिद्धान्त भी कहा जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार श्रमिकों में सहयोग से कार्य करना ही सर्वोपरि है। इसके अन्तर्गत श्रमिकों को प्रबन्ध में भागीदार माना जाता है। यह सिद्धान्त यह बतलाता है कि श्रमिकों से कार्य कराने के लिये भय और डन्डे के स्थान पर सहयोग और विश्वास के तत्वों की आवश्यकता होती है। इस सिद्धान्त में सृजनात्मक पद्धति पर अधिक महत्व दिया गया है। Y सिद्धान्त को प्रजातान्त्रिक सिद्धान्त माना जाता है। इसके अन्तर्गत प्रबन्ध कर्मचारियों को समान स्तर पर विचार-विमर्श करने योग्य समझता है। इसमें श्रमिक को सन्तोष मिलता है और उसे उन्नति के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं।
‘Y’ सिद्धान्त की मान्यताएँ (Assumptions of ‘Y’ theory)
Y सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है—
(1) कार्य पूरा करने के लिये उसे पुरस्कार देने के साथ-साथ उसकी कार्य उपलब्धियों को मान्यता भी देनी चाहिये। कार्य को मान्यता देना भी श्रमिक के लिये एक पुरस्कार है।
(2) प्रत्येक कार्य रुचि वाला नहीं होता। खेल या आराम की तरह बार-बार कार्य करने पर भी सन्तोष मिलता है। दूसरे शब्दों में, शारीरिक एवं मानसिक शक्ति का व्यय उतना ही आवश्यक है, जितना आराम करना या खेलना।
(3) सामान्यतः व्यक्ति केवल वित्तीय प्रलोभनों से ही कार्य करने हेतु प्रेरित नहीं होता, बल्कि अवित्तीय प्रलोभन, जैसे—सामाजिक स्वाभिमान, आत्म-सम्मान भी उसे कार्य करने की प्रेरणा देते हैं।
(4) श्रमिकों द्वारा भी संगठन की समस्याओं का समाधान किया जा सकता है, क्योंकि कल्पना शक्ति, चातुर्य एवं सृजनात्मक गुण सभी में पाया जाता है, यह अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग (कम या ज्यादा) हो सकता है।
(5) मनुष्य केवल भय, बाह्य नियन्त्रण अथवा कठोर अनुशासन से ही कार्य करने हेतु प्रेरित नहीं होता, वह स्वयं निर्देशित एवं नियन्त्रण होता है। जिस कार्य के निष्पादन हेतु उसको नियुक्त किया गया है, उसको निष्पादित करना वह अपना उत्तरदायित्व समझता है। इसलिये यह आवश्यक है कि उसे कार्य करने के लिए उचित वातावरण की उपलब्धि हो ।
(6) व्यक्ति केवल उत्तरदायित्व स्वीकार करने हेतु कार्य नहीं सीखता, बल्कि उत्तरदायित्व का निर्वाह करने की दृष्टि से कार्य सीखता है। उत्तरदायित्व से बचने की प्रवृत्ति, महत्वाकांक्षा की कमी तथा सुरक्षा के अत्यधिक बल से निर्मित होती है, यह स्वाभाविक प्रवृत्ति नहीं है।
(7) यह सिद्धान्त प्रजातान्त्रिक मूल्यों पर आधारित है, जिसके अन्तर्गत सभी व्यक्तियों को एक समान अवसर मिलते हैं।
(8) आधुनिक औद्योगिक प्रणाली में मानव की योग्यता एवं क्षमता का पूर्ण विकास नहीं किया जा रहा (Utility of ‘Y’ theory in India)
भारत में ‘Y’ सिद्धान्त का प्रयोग
भारत में नियोक्ता व कर्मचारी के दृष्टिकोणों में परिवर्तन न होने के कारण प्रबन्ध का विकास बहुत धीमी गति से हुआ है। भारत के नियोक्ता व कर्मचारी के बीच आज भी स्वामी दास की विचारधारा उपस्थित है। इसके कारण श्रमिक यह सोचता है कि उसे अपने मालिक की आज्ञा, फिर चाहे वह कैसी भी हो, का पालन करना है और नियोक्ता यह सोचता है कि श्रमिक से अधिक से अधिक कार्य लेना व उसकी कोई बात न मानना ही उसका अधिकार है। इसी कारण भारत में Y सिद्धान्त के आधार पर अधिकतर प्रबन्ध में कार्य नहीं किया जाता है। फिलहाल वैधानिक प्रावधानों, श्रम संघों में जागरुकता के आने से इस सिद्धान्त के उपयोग में कुछ विकास दिखाई देता है। अब श्रमिक अपने अधिकारों की मांग करने लगा है। इस प्रकार कुछ प्रबन्धक भी लाभ विभाजन एवं प्रबन्ध में सहभागिता आदि के विचार को अमल में ला रहे हैं। ये Y सिद्धान्त के अन्तर्गत ही आते हैं। Y सिद्धान्त की मान्यताओं को भारत में अभी पूर्ण रूप से स्वीकार नहीं किया गया है, लेकिन इसके सम्बन्ध में श्रम-संघों तथा सरकार द्वारा प्रयास किये जा रहे हैं। श्रमिकों के अकुशल एवं अप्रशिक्षित होने के कारण भी इस सिद्धान्त को लागू करने में कठिनाई उपस्थित हुई है। श्रमिकों को धीरे-धीरे प्रशिक्षण एवं औद्योगिक शिक्षा के माध्यम से उद्योग में उनके महत्व एवं प्रबन्धकों सहयोग देने के तत्वों को सिखाया जा सकता है।
उपरोक्त विवेचन से हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि भारत में Y सिद्धान्त की मान्यताओं का अभी विकास तो नहीं हुआ है, परन्तु यह अवश्य ही आशा की जा सकती है कि जल्दी ही इन मान्यताओं को सहारा मिलेगा तथा भारत में भी सेविवर्गीय प्रशासन का तेजी से विकास होगा।
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