रूसों के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालिए।
रूसो को प्रकृतिवाद का जनक कहा जाता है, किन्तु उसका प्रकृतिवाद अन्य प्रकृतिवादियों से भिन्न है। वह अन्य प्रकृतिवादियों की भाँति धर्म और ईश्वर विरोधी नहीं था। धर्म और ईश्वर में वह पूर्ण विश्वास रखता था। वस्तुतः प्रकृतिवाद दर्शन की वह शाखा है जो प्रकृति में ही चिरन्तन सत्ता को निहित मानता है। रूसो ने प्रकृति के दो अर्थ बताये हैं-
(1) भौतिक प्रकृति (Physical Nature) (2) बालक की प्रकृति (Nature of the Child)
भौतिक प्रकृति बाह्य प्रकृति है तथा बालक की प्रकृति आन्तरिक प्रकृति है। बालक की आन्तरिक प्रकृति से अर्थ बालक की उन मूलप्रवृत्तियों तथा क्षमताओं से है जिनको लेकर बालक जन्म लेता है। रूसो के अनुसार, बालक को स्वाभाविक रूप से विकसित करने के लिए बाह्य प्रकृति के नियमों को बालक की आन्तरिक प्रकृति के अनुसार प्रयोग में लाना चाहिए। रूसो के प्रकृतिवाद में निम्नलिखित बातें विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं-
1. रूसो का नारा था- “मनुष्य तू प्रकृति की ओर लौटे तो तेरा कल्याण होगा।” उनका प्रकृति की ओर लौटने का अर्थ व्यक्ति को प्राकृतिक स्वभाव के अनुसार प्रकृति के सम्पर्क में रहकर वैयक्तिक विकास का अवसर देना था। रूसो के अनुसार मनुष्य की सहज भावनाओं और आवेगों का सभ्यता के नाम पर दमन न किया जाये। मनुष्य एक भावनाशील प्राणी है जो अपने अन्तःकरण द्वारा निर्देशित होता है।
2. रूसो के अनुसार- “सभी अवयवों तथा शक्तियों का नैसर्गिक विकास ही शिक्षा है तथा शिक्षा का अर्थ केवल आदत है एवं नैसर्गिक प्रेरणा के अनुसार व्यवहार करने की आदत ही शिक्षा है।”
“Education is nothing but habit. The only habit that the child should be allowed to form is to contract no habit whatsoever.”
3. बच्चा वयस्क की अनुकृति नहीं है तथा उसका सही विकास उसकी मूल प्रवृत्तियों के आधार पर ही हो सकता है। वह उसे पूर्ण स्वतन्त्रता देने का भी समर्थक है। रूसो के अनुसार जब तक बालक को स्वतन्त्र वातावरण में नहीं रखा जायेगा, उसका स्वाभाविक विकास नहीं हो सकता। बालक के स्वाभाविक विकास में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप हानिप्रद है। रूसो के अनुसार, “प्रकृति की यह कामना है कि बालक को बालक ही रहने दो।”
4. रूसो बालक में कोई भी आदत डालना ठीक नहीं मानता। वस्तुतः ‘कोई भी आदत न डालने की आदत’ ही बालक के विकास की दृष्टि से उचित है। यह जो भी मन में आये, वही कार्य करे, इसी में व्यक्ति का सुख निहित है।
5. रूसो के अनुसार, “प्रकृति एक भव्य पुस्तक है और नैसर्गिक वातावरण में बालक उत्तम रीति से सीखता है।” “Nature is a grand book and child learns best in natural setting”.
उसके अनुसार प्रकृति ही बालक की महान शिक्षिका है। अतः बालक को उसकी प्रकृति के अनुसार विकसित होने के लिए प्राकृतिक वातावरण प्रस्तुत करना चाहिए। रूसो के अनुसार वर्तमान शिक्षण संस्थाओं का वातावरण इतना दूषित है कि उसमें बालक का विकास सर्वथा असम्भव है।
रूसो के अनुसार-“प्रकृति के निर्माता के हाथों में सभी वस्तुएँ अच्छे रूप में मिलती हैं, परन्तु मानव के हाथों में आते ही वे सब दूषित हो जाती हैं।”
“All things are good as they come from the hands of the creator of nature, but everything degenerates in the hands of man.”
6. रूसो ने पुस्तकीय ज्ञान का विरोध किया। उसने इसकी अपेक्षा बालकों को क्रियाशील बनाने पर बल दिया। प्रत्येक बालक को ‘करके सीखना’ (Learning by doing), ‘निरीक्षण’ (Observation) तथा ‘अनुभव के द्वारा’ (Learning by experience) शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। उनके ऊपर अपने विचार लादना उचित नहीं है क्योंकि इससे बालकों की जन्मजात शक्तियों का पूर्ण विकास सम्भव नहीं होता।
7. रूसो के अनुसार अन्य लोगों या समाज के विचारों और अनुभवों पर निर्भर रहकर विकास करना मूर्खता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी प्रकृति, अपने स्वभाव के आधार पर ही कार्य करना चाहिए, क्योंकि दूसरों के अनुभव अप्राकृतिक व अस्वाभाविक होते हैं।
8. रूसो के अनुसार “मनुष्य स्वतन्त्र पैदा होता है किन्तु यह बाद में सब ओर से जंजीर से बांध दिया जाता है। “
“Man is born free but everywhere he is found in chains.”
धर्म, राजनीतिक तथा सामाजिक सभी क्षेत्रों में उसका व्यापक रूप से शोषण होता है। सामाजिक क्षेत्र में तो रूढ़ियों और परम्पराओं का इतना वर्चस्व था कि व्यक्ति की स्वतन्त्रता के लिए कोई गुंजाइश ही नहीं थी। इसलिए रूसो को कहना पड़ा कि….. “सामाजिक रूढ़ियों के विरुद्ध व्यवहार करने का अर्थ है अच्छा व्यवहार करना। ” “Take the reverse of the accepted practice and you will always do the right.”
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