शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर व्यक्तिगत निर्देशन के स्वरूप का वर्णन कीजिये।
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व्यक्तिगत निर्देशन के आधारभूत सिद्धान्त (Basic Principles of Personal Guidance)
1. व्यक्ति की अनेक समस्याओं में अन्तर्सम्बन्ध विद्यमान रहता है।
2. व्यक्ति की समस्या तथा समस्या के समाधान के प्रति अपनी निजी धारणा का समस्या के समाधान का हल ढूँढने में महत्वपूर्ण स्थान है।
3. व्यक्तित्व अखंडित तथा जटिल होता है।
4. व्यक्ति की अपनी समस्या के समाधान के लिए अपनी अन्तदृष्टि का विकास करना चाहिये।
5. वैयक्तिक समस्यायें प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष कारणों से उत्पन्न होती हैं। परामर्शदाता को केवल लक्षणों पर ही अपना ध्यान केन्द्रित नहीं करना चाहिये, बल्कि समस्या के मूल कारणों को ज्ञात करके निर्देशन प्रदान करना चाहिये।
6. वैयक्तिक समस्याओं के साथ संवेगात्मक पहलू भी होता है।
7. व्यक्ति के विशिष्ट पक्ष पर ध्यान देना।
8. व्यक्ति की प्रतिष्ठा तथा महत्व को स्वीकार करना।
9. वैयक्तिक भिन्नताओं के आधार पर निर्देशन प्रदान करना।
10. यह आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है।
11. निर्देशन सेवाओं में लगे व्यक्तियों को विशिष्ट प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये।
12. निर्देशन प्रक्रिया में कार्यकर्ता द्वारा किये जाने वाले कार्यों में सामंजस्य होना चाहिये।
13. अधिक से अधिक व्यक्तियों को सामान्य मानकर निर्देशन प्रदान किया जाना चाहिये।
14. निर्देशनकर्त्ता द्वारा निर्देशन के नैतिक आचरण तथा संहिता का पालन करना चाहिये।
15. निर्देशक को समकालीन सामाजिक तथा राजनीतिक स्थितियों का ज्ञान होना चाहिये।
शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर व्यक्तिगत निर्देशन का स्वरूप (Nature of Personal Guidance at Different Levels of Education)
प्राथमिक स्तर पर प्राथमिक स्तर पर व्यक्तिगत निर्देशन का रूप विद्यार्थियों की आवश्यकता को दृष्टिगत रखकर. निर्धारित किया जा सकता है। क़ो और क्रो के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के कैलीफोर्निया राज्य के माटेबेलों के स्कूलों में चलने वाले निर्देशन कार्यक्रमों में विद्यार्थियों की निम्नलिखित आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयत्न किया जाता है—
1. अनुशासन – स्नेहपूर्ण तथा दृढ आत्मानुशासन की ओर उन्नति ।
2. सुरक्षा तथा भरोसे की भावना – घर, विद्यालय तथा विद्यालय की सम्पूर्ण क्रियाओं में।
3. अच्छा स्वास्थ्य – सन्तुलित तथा पर्याप्त भोजन, अपेक्षित निद्रा तथा विश्राम ।
4. व्यावसायिक कौशल – संसार के कार्यों का सामान्य ज्ञान ।
5. आधारभूत कौशलों का ज्ञान – सीखने तथा समझने की योग्यता के अनुसार।
6. अवकाश के समय के क्रिया-कलाप – वैयक्तिक रुचियों तथा मनोरंजन की इच्छा, विद्यार्थियों के बीच में और प्रौढ़ के मध्य के सन्दर्भ में मित्रों तथा सामाजिक स्वीकृति
7. जूनियर स्तर पर – वैयक्तिक निर्देशन का प्रयोजन यह है कि विद्यार्थियों के नेतृत्व के गुणों का विकास तथा अनुमान करने का गुण उनमें विकसित किया जा सके। वे एक समूह में एकता की भावना से कार्य कर सकें। उनकी शैक्षिक, व्यावसायिक तथा वैयक्तिक समस्याओं का अन्तर्सम्बन्ध इस स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन प्रदान करते हुये ध्यान में रखा जाना चाहिये।
क्रो और क्रो के अनुसार, जूनियर स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन की व्यवस्था करते समय निम्नलिखित बातों को दृष्टिगत रखा जाये-
1. विद्यार्थियों को इस तथ्य से परिचित कराना कि वैयक्तिक सामंजस्य की कुछ समस्यायें विकास के प्रक्रम में सामान्य रूप से आती रहती हैं।
2. श्रम के महत्व तथा जीविकोपार्जन के विभिन्न प्रकारों से उन्हें परिचित कराना।
3. उन गुणों का विकास करने की प्रेरणा देना जो रचनात्मक जीवन के लिए आवश्यक हैं।
4. आवश्यकता पड़ने पर, वैयक्तिक परामर्श के लिए निःसंकोच प्रस्तुत होना।
5. उनको अपने तथा दूसरों के हित के लिए उत्तरोत्तर अधिक उत्तरदायित्व के निर्वाह की प्रेरणा प्रदान करना।
6. आगे की शिक्षा के प्रति उन्हें उत्साहित करना तथा क्रियाशील बनाना ।
7. विद्यार्थियों के विभिन्न व्यवसायों के प्रारम्भिक अध्ययन में उन्हें निर्देशन देना। अपनी योग्यता तथा रुचि के अनुसार व्यवसाय की धारणा का विकास करना।
8. जीवन की वर्तमान तथा भावी योजनाओं के विषय में अपने माता-पिता, शिक्षक, परामर्शदाता के बीच सह-चिन्तन की आवश्यकता पर जोर देना।
9. उन्हें कतिपय व्यावसायिक सस्याओं से परिचित कराना, जिनका साक्षात्कार उन्हें बाद में हो सकता है।
माध्यमिक स्तर पर – हाई स्कूल स्तर पर विद्यार्थियों की आवश्यकताओं, रुचियों को ध्यान में रखते हुये इस स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन का स्वरूप निर्धारित किया जा सकता है। हाई स्कूल स्तर पर विद्यार्थियों में इस भावना को विकसित किया जाना चाहिये कि समस्यायें सभी के सम्मुख आती हैं। समस्याओं की प्रकृति को समझना तथा उनका हल खोजने की प्रवृत्ति विद्यार्थियों में विकसित करने में वैयक्तिक निर्देशन विद्यार्थियों की सहायता करता है। किशोरों के लिए स्वस्थ मनोरंजन की व्यवस्था की जा सकती है, उनमें उचित निर्देशन से परिपक्वता तथा अच्छी नागरिकता के गुणों को विकसित किया जाना चाहिये। उन्हें आत्मविश्वास उत्पन्न करने तथा अपने स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए उत्साहित किया जाये।
विद्यार्थियों के नैतिक तथा सामाजिक विकास की दृष्टि से माध्यमिक स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है। सामुदायिक सेवा कार्यों तथा सामाजिक जिम्मेदारी की भावना के विकास के लिए उन्हें जन सेवा के कार्यों में लगाया जाना चाहिये। इस स्तर पर विद्यार्थियों की समस्यायें बहुमुखी होती हैं। इसलिए उन्हें व्यापक निर्देशन सेवायें भी सुलभ की जायें। उनकी शैक्षिक, व्यावसायिक तथा सामाजिक सम्बन्धों की समस्याओं के अन्तर्सम्बन्ध पर ध्यान रखते हुये अभिभावकों, शिक्षकों तथा निर्देशन कर्मचारियों को सहयोगपूर्वक माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों को प्रदान करने की व्यवस्था की जानी चाहिये ।
कॉलेज तथा विश्वविद्यालय स्तर पर – माध्यमिक स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन का प्रक्रम यदि सन्तोषजनक रहा होता है। तो इस स्तर तक आते-आते सामंजस्य की समस्या का सुविधाजनक हल प्राप्त होता है, परन्तु फिर भी कॉलेज स्तर के विद्यार्थियों को वैयक्तिक तथा सामाजिक सामंजस्य के लिए वैयक्तिक निर्देशन की आवश्यकता होती है। हमारी संस्कृति तथा सामाजिक मूल्य पाश्चात्य संस्कृति और मूल्यों के अन्तर्घात में विघटित और परिवर्तित हुए हैं। इस स्तर पर विवाह की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है। बदलती सामाजिक परिस्थितियों में प्रेम विवाह, अन्तर्जातीय विवाह, विधवा विवाह आदि समस्यायें विद्यार्थियों के सम्मुख होती है, ऐसी समस्याओं में निर्देशन कार्य में सहानुभूति, समझदारी और सावधानी की अपेक्षा होती है। भारत जैसे देश के गरीब विद्यार्थी इस क्षेत्र में निर्देशन की अपेक्षा करते हैं। अंशकालिक कार्यों को पूरा करके वे अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए आर्थिक साधन जुटा सकते हैं। सरकार के द्वारा प्रदत्त आर्थिक सुविधाओं के सम्बन्ध में निर्देशन के माध्यम से जानकारी प्रदान की जा सकती है। समाज तथा निर्देशन कर्मचारियों की सहायता से विद्यार्थियों की आर्थिक समस्या का हल खोजने में सहायता मिल सकती है। विज्ञान तथा कला के नवीन समय में परम्परागत धार्मिक मूल्य तथा विश्वास परिवर्तित हो रहे हैं। धार्मिक संकीर्णता आज के धर्मनिरपेक्ष युग में अस्वीकृत हो रही है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थी को मानवता और धर्म के शाश्वत मूल्यों को पहचानने के कार्य में निर्देशन उनकी सहायता कर सकता है। दूसरे शब्दों में, उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश करने वाले विद्यार्थी समुदाय को स्वस्थ, सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक दृष्टि से विकास करने में सहायता देना वैयक्तिक निर्देशन का कार्य है।
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