शिक्षा दर्शन का अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
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शिक्षा दर्शन का अर्थ (Meaning of Educational Philosophy )
शिक्षा दर्शन, दर्शन की वह शाखा है जिसमें हम शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं पर दार्शनिक दृष्टिकोण से विचार करते हैं। यह एक प्रयुक्त दर्शन हैं। जब हम विशुद्ध दर्शन के आधारभूत प्रत्ययों तथा सिद्धान्तों का प्रयोग शिक्षा के क्षेत्र में करते हैं तो हम उसे शिक्षा दर्शन कहते हैं।
शिक्षा दर्शन अध्ययन का एक नया क्षेत्र है। दर्शन एवं शिक्षा ने सामाजिक समस्या के सन्दर्भ में चिन्तन करके जोन समाधान दिया, उस पाठ्यवस्तु को शिक्षा दर्शन की संज्ञा दी जा सकती है
दर्शन जीवन की समस्याओं को दार्शनिक दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करता है और उसके लिए जो समाधान दिया जाता है, शिक्षा उसको व्यावहारिक रूप देती है।
शिक्षा दर्शन की परिभाषाएँ (Definitions of Educational Philosophy)
शिक्षा दार्शनिकों ने शिक्षा दर्शन की परिभाषाएँ इस प्रकार दी हैं-
1. जॉन डीवी— “शिक्षा दर्शन सामान्य दर्शन का एक साधारण सम्बन्ध ही नहीं, अपितु दार्शनिकों ने अब तक सही माना कि वह दर्शन का महत्त्वपूर्ण पक्ष है, क्योंकि शिक्षा प्रक्रिया द्वारा ही ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।”
“The philosophy of education is not a poor relation of general philosophy, though it is so treated even by philosophers. It is ultimately the most significant phase of philosophy, for it is through the process of education that knowledge is obtained.” –John Dewey
2. हैण्डरसन – “शिक्षा दर्शन, शिक्षा की समस्याओं के अध्ययन में दर्शन का प्रयोग है।”
“Philosophy of education is the application of philosophy to than study of the problems of education.” -Henderson
3. टी. ई० शील्ड्स – “शिक्षा दर्शन का कार्य शुद्ध दर्शन द्वारा प्रतिपादित सत्यों एवं सिद्धान्तों को शैक्षिक प्रक्रिया के संचालन में प्रयोग करना है। “
“Its business is to apply the truths and principles established by pure philosophy to the practical conduct of the educative process.” –T. E. Shields
शिक्षा दर्शन की आवश्यकता ( Need of Educational Philosophy )
शिक्षा दर्शन के अध्ययन की आवश्यकता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। मनुष्य के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है। जीवन को उन्नत बनाने के लिए शिक्षा का अन्तिम ज्ञान अत्यन्त आवश्यक हैं और इसी कारण शिक्षा दर्शन के अध्ययन की आवश्यकता अनुभव की जाती है।
जीवन की ज्वलन्त समस्याओं पर दर्शन चिन्तन, मन्थन एवं मनन करता है। इस दृष्टि से चिन्तन के लिए दर्शन के विचारार्थ शिक्षा तथा जीवन के अन्य पक्षों से विचार सामग्री उपलब्ध की जाती है। ‘शिक्षा दर्शन उन आदर्शों और मूल्यों को प्रस्तुत करता है, जिनका अनुसरण करके व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र के जीवन को ऊँचा उठा सकते हैं।
शिक्षा दर्शन की आवश्यकता निम्न दृष्टिकोणों से अनुभव की जाती है –
(1) दर्शन शिक्षा को आधार प्रदान करता है। दर्शन की सहायता के बिना शिक्षण प्रक्रिया पूर्ण नहीं हो सकती।
(2) शिक्षा दर्शन का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। शिक्षा के अन्तर्गत अपनाये जाने वाले सिद्धान्त, विधियाँ, विश्लेषण इत्यादि सभी दर्शन के विषय हैं।
(3) प्रत्येक शिक्षक का अपना एक दार्शनिक दृष्टिकोण होता है। शिक्षक के दृष्टिकोण का प्रभाव वालकों के दृष्टिकोण पर भी पड़ता है। बालकों के प्रति शिक्षक की भूमिका, कर्त्तव्यों एवं कार्यों का विवरण तैयार करने में शिक्षा दर्शन की आवश्यकता पड़ती है।
(4) शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं को हल करने में शिक्षा दर्शन सहायता करता है। शिक्षा के उद्देश्यों का प्रतिपादन करना, शिक्षा के पाठ्यक्रम का समाज और राष्ट्र की दृष्टि से विकास करना एवं शिक्षण विधियों एवं उसकी उपादेयता एवं प्रक्रिया का ज्ञान प्रदान करना, ये सब शिक्षा दर्शन के कार्य हैं।
(5) शिक्षा प्रक्रिया को सार्थक बनाने के लिए शिक्षा दर्शन का अध्ययन आवश्यक है। इसके लिए शिक्षा संस्थाओं का उचित प्रबन्धन एवं प्रशासन के स्वरूप को विकसित किया जा सकता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि शिक्षा दर्शन के अध्ययन की आवश्यकता का सभी अनुभव करते हैं, क्योंकि शिक्षा दर्शन को शिक्षा का सिद्धान्त कहा जाता है। दर्शन शिक्षा का सैद्धान्तिक पक्ष माना जाता है तथा यह दर्शन सिद्धान्तों की व्याख्या भी करता है। यह सिद्धान्त शिक्षा की भी देन होते हैं। शिक्षा में अभ्यास एवं व्यवहार से भी सिद्धान्तों का निर्माण होता है। शिक्षा की व्यवस्था के व्यावहारिक पक्ष का प्रेरणास्त्रोत ‘शिक्षा दर्शन’ ही है। यही कारण है कि आधुनिक युग में ‘शिक्षा दर्शन’ के अध्ययन की विशेष आवश्यकता है।
शिक्षा दर्शन का महत्त्व
शिक्षा दर्शन अध्ययन का एक ऐसा विषय है, जो शिक्षा की विविध प्रकार की समस्याओं को दार्शनिक चिन्तन के आधार पर सुलझाने का प्रयास करता है। शिक्षा दर्शन की उपयोगिता एवं महत्त्व को निम्नलिखित रूप से क्रमबद्ध किया जा सकता है-
(1) शिक्षा दर्शन के माध्यम से शिक्षा की समस्याओं का दार्शनिक हल प्रस्तुत किया जाता है।
(2) शिक्षा दर्शन के अध्ययन से मानव जीवन के स्वरूप और उसके उद्देश्यों का विस्तृत ज्ञान प्राप्त होता है। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के उपायों का ज्ञान और उसके आधार पर सही मार्ग को चुनना शिक्षा दर्शन के अध्ययन से ही सम्भव है।
(3) शिक्षा दर्शन शिक्षा के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक पक्ष को प्रस्तुत करता है।
(4) शिक्षा दर्शन के अध्ययन से भिन्न-भिन्न दर्शन के भिन्न-भिन्न उद्देश्यों का ज्ञान प्राप्त करके उन्हें समाज और राष्ट्र की आवश्यकताओं एवं भावनाओं के अनुरूप प्रतिपादित किया जाता है।
(5) इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए पाठ्यचर्या निर्माण के सिद्धान्तों से परिचित होने के लिए शिक्षा दर्शन के अध्ययन की आवश्यकता होती है।
(6) शिक्षा दर्शन ही शिक्षणशास्त्र का विकास करता है, जिससे शिक्षण की प्रक्रियाओं के सम्पादन हेतु विधियों, प्रविधियों तथा सूत्रों का विकास किया जाता है।
(7) नियोजित शिक्षा प्रक्रिया को चलाने के लिए विद्यालय के प्रशासन और प्रबन्धन के स्वरूप को शिक्षा दर्शन के अध्ययन द्वारा ही निश्चित किया जा सकता है।
(8) शिक्षा दर्शन के अध्ययन से शिक्षक अपने कर्तव्यों को सुनिश्चित करने में सफल होता है। शिक्षण की सफलता के लिए शिक्षक को एक दार्शनिक बनना होता है और शिक्षण प्रतिबद्धता का भाव विकसित करना होता है।
इस प्रकार शिक्षा दर्शन के माध्यम से शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं का वास्तविक हल ढूँढ़ा जा सकता है।
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