संवेगात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
संवेगात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Influencing Emotional Development)
व्यक्ति के संवेगात्मक विकास को अनेकानेक कारक प्रभावित करते हैं। यहाँ प्रमुख कारकों का उल्लेख किया जा रहा है-
(1) स्वास्थ्य- व्यक्ति के स्वास्थ्य का उसके संवेगात्मक विकास से अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। स्वस्थ व्यक्ति की अपेक्षा रोगग्रस्त अथवा बीमार रहने वाले व्यक्तियों के संवेगों में अधिक अस्थिरता होती है।
(2) थकान- संवेगात्मक विकास में थकान का भी अपना स्थान है। क्रो एवं क्रो ने लिखा है- “जब बालक थका हुआ होता है तब उसमें क्रोध या चिड़चिड़ेपन के समान अवांछनीय संवेगात्मक व्यवहार की प्रवृत्ति होती है।”
(3) बुद्धि तथा मानसिक योग्यता- बालक के संवेगात्मक विकास पर बुद्धि और मानसिक योग्यता का भी प्रभाव पड़ता है। हरलॉक का विचार है- “साधारणतः निम्नतर मानसिक स्तरों के बालकों में उसी आयु के प्रतिभाशाली बालकों की अपेक्षा नियन्त्रण कम होता है।”
(4) वंशानुक्रम- वंशानुक्रम से शारीरिक और मानसिक गुण और योग्यताएँ प्राप्त होती हैं और उनका बालक के संवेगात्मक विकास पर प्रभाव पड़ता है।
(5) परिवार- परिवार के वातावरण तथा परिवार के सदस्यों के व्यवहार का भी बालक के संवेगात्मक विकास पर प्रभाव पड़ता है। यदि परिवार का वातावरण आनन्दमय, शान्तिपूर्ण और सुरक्षायुक्त है तो बालक का संवेगात्मक व्यवहार सन्तुलित होता है। यदि परिवार के अन्तर्गत अशान्ति और कलह का वातावरण रहता है, अथवा परिवार में मिलने-जुलने वाले मेहमानों का आना-जाना लगा रहता है या मनोरंजन के कार्य अधिक होते हैं तो बालक में संवेगात्मक उत्तेजना उत्पन्न हो जाती है। यदि परिवार के अन्य सदस्य अधिक संवेदनशील होते हैं तो बालक भी उसी प्रकार का बन जाता है।
(6) माता-पिता का दृष्टिकोण- संवेगात्मक विकास पर माता-पिता के दृष्टिकोण का भी प्रभाव पड़ता है। क्रो एव क्रो ने लिखा है- “बच्चों की उपेक्षा करना बहुत कम समय तक घर से बाहर रहना, बच्चों के बारे में आवश्यकता से अधिक चिन्तित रहना, बच्चों के सामने उनके रोगों के बारे में बातचीत करना, बच्चों की आवश्यकता से अधिक रक्षा करना, बच्चों को अपनी इच्छा के अनुसार कोई भी कार्य करने की आज्ञा न देना, बच्चों को प्रौढ़ों के समान नये अनुभव न देना और बच्चों को सम्पूर्ण घर के प्रेम का पात्र बनाना, माता-पिता की ये समस्त बातें बच्चों के अवांछनीय संवेगात्मक व्यवहार के विकास में योग देती हैं।”
(7) सामाजिक स्थिति- सामाजिक स्थिति भी बालक के संवेगात्मक विकास को प्रभावित करती है। सामाजिक स्थिति का संवेगात्मक स्थिरता से अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। क्रो एवं क्रो का मत है- “निम्न सामाजिक स्थिति के बालकों में उच्च सामाजिक स्थिति के बालकों की अपेक्षा अधिक असन्तुलन और अधिक संवेगात्मक अस्थिरता होती है।”
(8) आर्थिक स्थिति- परिवार की आर्थिक स्थिति भी बालक के संवेगात्मक विकास को प्रभावित करती है। धनवान परिवार के बालकों और निर्धन परिवार के बालकों के संवेगात्मक व्यवहार में भिन्नता दिखाई पड़ती है। उनमें कई कारणों से ईर्ष्या द्वेष की भावना उत्पन्न हो जाती है।
(9) सामाजिक स्वीकृति- बाल्यावस्था में बालक अपने कार्यों की प्रशंसा का इच्छुक होता है। यदि उसकी यह इच्छा पूरी नहीं होती तो उसमें संवेगात्मक तनाव उत्पन्न हो जाता है। क्रो एवं क्रो ने लिखा है- “यदि बालक को अपने कार्यों की सामाजिक स्वीकृति नहीं मिलती तो उसके संवेगात्मक व्यवहार में उग्रता या शिथिलता आ जाती है।”
(10) विद्यालय – विद्यालय का अच्छा वातावरण, पाठ्यक्रम और कार्यक्रम, बालक के संवेगों को सन्तुष्ट करता है और उसे आनन्द प्रदान करता है। अच्छे वातावरण में संवेग का स्वस्थ विकास होता है। यदि बालक परीक्षा में असफल जाता है या विद्यालय की पाठ्यक्रमेत्तर क्रियाओं में भाग नहीं ले पाता अथवा अपने किसी दुश्मन के प्रकट होने का उसे भय रहता है। तो उसमें अवांछनीय संवेग, जैसे- भय, क्रोध, घृणा आदि के भाव उत्पन हो जाते हैं।
(11) शिक्षक- शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक और बालक दोनों का ही योगदान रहता है। शिक्षक अपने आदर्शों, शिक्षण विधियों और व्यवहार के द्वारा बालक को अच्छा अथवा बुरा बना सकता है। शिक्षक बालक में अच्छी आदतों का निर्माण कर सकता है और उसमें स्वस्थ और सुखद संवेगों को विकसित करने में योगदान दे सकता है।
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