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सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन की विशेषताएँ (Characteristics of CCE)
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
1) सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के अभिन्न अंग के रूप में समझा जा सकता है।
2) सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन में अधिगमकर्ता के सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास पर ध्यान देता है। अर्थात् सतत् और व्यापक मूल्यांकन में बालक के व्यक्तित्व का चहुमुखी विकास, शैक्षिक और सहपाठ्यचारी पक्षों का विकास करना सम्मिलित हैं।
3) सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के अन्तर्गत सत्र में चलने वाली शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के समय अधिगम कठिनाइयों का निदान तथा उसके प्रभावी उपचार को सम्मिलित किया जाता है।
4) सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन योजना, परम्परागत शिक्षण एवं परीक्षा, प्रभावशाली शिक्षा, विधिशास्त्र की ओर स्थानान्तरण है।
5) सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के द्वारा विद्यार्थियों की प्रतिपुष्टि के साथ शिक्षकों को भी अपनी योजना में सुधार करने के लिए प्रोत्साहन प्राप्त होता है।
6) सतत् और व्यापक मूल्यांकन अधिक मान्य है। यह बाहरी परीक्षाओं की अपेक्षा अधिक वैध है क्योंकि इसमें प्रत्येक माह पाठ्यचर्या विश्लेषण के सभी विषयों को शामिल किया गया हैं।
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के उद्देश्य (Objectives of CCE)
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
1) छात्रों की नियमित तथा बहुआयामी जाँच करना।
2) शैक्षिक एवं सहशैक्षिक क्षेत्रों में सामंजस्य (सन्तुलन) रखना।
3) विषय एवं पाठ्यक्रम पर आधारित सामूहिक कार्य करना।
4) छात्रों में उत्तम आदतों एवं सकारात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना।
5) छात्रों की प्रगति के विषय में उनके माता-पिता के साथ सूचना का आदान प्रदान करना एवं एक दूसरे का सहयोग करना।
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के सम्प्रत्यय को समझने हेतु आवश्यक तत्त्व (Key Elements to Understand the meaning of Continuous and Comprehensive Elements)
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के आवश्यक तत्त्व निम्नलिखित हैं-
1) सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के अभिन्न अंग के रूप में समझा जा सकता है।
2) सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन में अधिगमकर्ता के सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास पर ध्यान दिया जाता है।
3) सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के अन्तर्गत सत्र में चलने वाली शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के समय अधिगम कठिनाइयों का निदान तथा उसके प्रभावी उपचार को सम्मिलित किया जाता है।
4) सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन योजना, परम्परागत शिक्षण एवं परीक्षा, प्रभावशाली शिक्षा, विधिशास्त्र की ओर स्थानान्तरण है।
5) सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के द्वारा विद्यार्थियों की प्रतिपुष्टि के साथ शिक्षकों को भी अपनी योजना में सुधार करने के लिए प्रोत्साहन प्राप्त होता है।
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन की आवश्यकता एवं महत्त्व (Need and Importance of CCE)
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के अन्तर्गत शैक्षिक तथा गैर – शैक्षिक पहलुओं पर ध्यान दिया जाना अपेक्षित होता है। यदि छात्र किसी विषय में कमजोर है तो नैदानिक मूल्यांकन एवं उपचारी प्रयास किया जाना चाहिए। सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन का महत्त्व शिक्षण अधिगम की व्यवस्थाओं में आपेक्षित संवेदनशीलता, गुणवत्ता, सार्थकता व सजगता लाने की दृष्टि से विशेष प्रकार के साधक तत्त्व के रूप में सहज ही आंका जा सकता है। इससे छात्र की शैक्षिक प्रगति का चित्रण करने, उसे छात्र के स्तरानुकूल बनाने एवं छात्र तथा उसके अभिभावक में उसकी अधिगम आवश्यकताओं के अनुरूप व्यवस्था रचने में आपेक्षित सहयोग की सम्भावना शामिल होती है। सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन की आवश्यकता एवं महत्त्व निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट है-
1) शैक्षिक पक्ष में पाठ्यक्षेत्र या विषय विशेष के क्षेत्र सम्मलित होते हैं, जबकि सहपाठ्यचारी पक्ष में सह-पाठ्य और व्यक्तित्व विशेषताएं, रुचियाँ, मनोवृतियाँ और मूल्य सम्मलित होते हैं।
2) छात्रों को नियमित और समयबद्ध करने के लिए सतत् और व्यापक मूल्यांकन की आवश्यकता होती है।
3) छात्र के गृह कार्य और कक्षा कार्य का मूल्यांकन करने के लिए सतत् और व्यापक मूल्यांकन महत्त्वपूर्ण है।
4) अनुशासन की समस्या को कम करने के लिए सतत् और व्यापक मूल्यांकन की आवश्यकता होती है।
5) छात्रों को नियमित और अच्छी तरह से काम करने के लिए प्रेरित करने के लिए सतत् और व्यापक मूल्यांकन की आवश्यकता होती है।
6) छात्रों की कठिनाइयों का निदान करने के लिए सतत् और व्यापक मूल्यांकन की आवश्यकता होती है।
7) मूल्यांकन विद्यार्थियों की आवश्यकताओं, हितों, क्षमताओं एवं योग्यताओं को खोजने के अवसर प्रदान करता हैं और उनके विकास के लिए पथ प्रदर्शित करता है।
8) छात्रों को तनाव मुक्त रखने के लिए सतत् और व्यापक मूल्यांकन महत्त्वपूर्ण होता है।
9) सतत् मूल्यांकन से छात्रों को अपनी शक्ति एवं कमजोरियों का पता चलता है। इससे छात्रों को उसके अध्ययन के सम्बन्ध में स्पष्ट रूप से वास्तविक जानकारी मिलती है। परिणामस्वरूप छात्रों को अपनी अच्छी अध्ययन आदतें विकसित करने, गलतियों को सुधारने एवं अपेक्षित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरणा मिलती है।
इस प्रकार हम कह सकते है कि परीक्षा की वर्तमान पद्धति छात्रों में भय व तनाव को जन्म देती है। विषय की सम्पूर्ण जानकारी रखने वाले छात्र भी इस तनाव से बच नहीं पाते हैं। दीर्घ अवधि में यही तनाव कई प्रकार की कुंठाओं को जन्म देता है जिससे छात्रों के व्यक्तित्व के विकास में बाधा पहुँचती है। सतत् मूल्यांकन छात्रों की इन कठिनाईयों का निवारण करके उनमें आत्मविश्वास विकसित करता है। इससे सीखने की प्रक्रिया सुगम हो जाती है। इस क्रम में शिक्षक व छात्र में जो संवाद तथा आत्मीयता पनपती है उसके परिणामस्वरूप विद्यालय छोड़ने वाले छात्रों की संख्या भी कम हो जाती है।
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