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समायोजन का अर्थ | समायोजन की प्रक्रिया | सुसमायोजित व्यक्ति के लक्षण | समायोजन के खतरे या कठिनाइयाँ | अधिगमकर्त्ता की व्यावहारिक समस्याएँ

समायोजन का अर्थ | समायोजन की प्रक्रिया | सुसमायोजित व्यक्ति के लक्षण | समायोजन के खतरे या कठिनाइयाँ | अधिगमकर्त्ता की व्यावहारिक समस्याएँ
समायोजन का अर्थ | समायोजन की प्रक्रिया | सुसमायोजित व्यक्ति के लक्षण | समायोजन के खतरे या कठिनाइयाँ | अधिगमकर्त्ता की व्यावहारिक समस्याएँ

समायोजन से आप क्या समझते हैं ? समायोजन की प्रक्रिया की विवेचना कीजिए। सुसमायोजित व्यक्ति के लक्षणों का वर्णन कीजिए। 

समायोजन का अर्थ (Meaning of Adjustment )

समायोजन को सामंजस्य, व्यवस्थापन अथवा अनुकूलन भी कहा जाता है। समायोजन शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है-“सम” और “आयोजन”। “सम” का तात्पर्य है-भली भाँति, अच्छी तरह अथवा समान रूप से और “आयोजन” का तात्पर्य है-व्यवस्था अर्थात् अच्छी तरह से व्यवस्था करना। इस तरह समायोजन का अर्थ हुआ-सुव्यवस्था अथवा अच्छे ढंग से परिस्थितियों को अनुकूल बनाने की प्रक्रिया जिससे कि व्यक्ति की आवश्यकताएँ पूरी हो जायें और उसमें मानसिक द्वन्द्व न उत्पन्न होने पावे। विभिन्न विद्वानों ने समायोजन की परिभाषा विभिन्न प्रकार से दी है। यहाँ प्रमुख परिभाषाएँ प्रस्तुत की जा रही हैं-

(1) कोलमैन- “समायोजन, व्यक्ति की अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति तथा कठिनाइयों के निराकरण के प्रयासों का परिणाम है।”

(2) स्किनर- “समायोजन शीर्षक के अन्तर्गत हमारा अभिप्राय इन बातों से है। सामूहिक क्रिया-कलापों में स्वस्थ तथा उत्साहमय ढंग से भाग लेना, समय पड़ने पर नेतृत्व का भार उठाने की सीमा तक उत्तरदायित्व वहन करना तथा सबसे बढ़कर समायोजन में अपने को किसी भी प्रकार का धोखा देने से बचने की कोशिश करना। “

(3) स्मिथ- “अच्छा समायोजन वह है जो यथार्थ पर आधारित तथा सन्तोष देने वाला होता है।”

(4) गेट्स एवं अन्य – “समायोजन शब्द के दो अर्थ होते हैं प्रथम अर्थ में यह एक जीवन में लगातार चलने वाली एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति अपने एवं पर्यावरण के मध्य सन्तुलन बनाये रखने के लिए अपने व्यवहार में परिवर्तन करता है द्वितीय अर्थ में समायोजन एक अवस्था है अर्थात् व्यक्ति की एक सन्तुलित दशा है जिसे हम सुसामंजस्ययुक्त व्यक्ति कहते हैं।”

संक्षेप में कहा जा सकता है कि समायोजन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन में सुख एवं सफलता ओर अग्रसर होता है। समाज में कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जैसे-अपंग, गूंगे, बहरे, अन्धे, पागल एवं अन्य शारीरिक एवं मानसिक विकारों से पीड़ित, जिनको समायोजन एक समस्या होती है। समाज में इनका समायोजन आसानी से नहीं हो पाता है। इस प्रकार के व्यक्ति अन्य गुण अथवा विशेषता रखते हुए भी समाज में अपने को समायोजित नहीं कर पाते। इसके फलस्वरूप उनकी पीड़ा और भी अधिक बढ़ जाती है। ऐसे व्यक्तियों में इतनी क्षमता नहीं होती कि वे सभी समस्याओं का हल निकाल सकें। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जो आई हुई परिस्थिति का जब सामना नहीं कर पाते तो अपने दोषों को छिपाने की चेष्टा करते हुए दूसरों पर थोप देते हैं।

समायोजन की प्रक्रिया (Process of Adjustment )

समायोजन के स्वरूप को समझने के बाद हमारे लिए यह आवश्यक है कि हम समायोजन की प्रक्रिया को समझ लें। इसके अध्ययन के बाद हम कुसमायोजित व्यक्तियों को शिक्षा की सहायता से उत्पन्न करने में समर्थ हो सकेंगे।

समायोजन अविराम गति से चलने वाली प्रक्रिया है जिसकी सहायता से व्यक्ति का जीवन अपने आप पर्यावरण के मध्य अधिक समरस सम्बन्ध बनाने का प्रयास करता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति या सन्तुष्टि के लिए प्रयत्न करता है। इस प्रकार व्यक्ति जिसकी कुछ आवश्यकताएँ हैं और जो पर्यावरण में रहता है, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयत्नशील होगा।

व्यक्ति आवश्यकताओं के अनुरूप ही अपने लक्ष्य निर्धारित करता है। यह लक्ष्य उसके पर्यावरण या व्यक्तित्व, दोनों से सम्बद्ध हो सकता है। लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में कुछ बाधाएँ भी दूर आती हैं जो व्यक्तिगत या पर्यावरण में स्थित हो सकती हैं, जैसे- स्वभाव, आदतें, चिन्तन प्रणाली, सामाजिक, आर्थिक स्थिति तथा पारिवारिक स्थिति आदि। व्यक्ति बाधाओं को कर विभिन्न प्रयत्न अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए करता है। यदि वह प्रयत्नों के फलस्वरूप लक्ष्य प्राप्त कर लेता है तो प्रसन्न और सन्तुष्ट हो जाता है और समायोजित कहलाता है। यदि लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती और उसके फलस्वरूप व्यक्ति में भग्नाशा अथवा कुण्ठा विकसित हो जाती है तो उसे असमायोजित व्यक्ति की संज्ञा प्रदान की जाती है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि समायोजन की प्रक्रिया में निम्न बातों का होना आवश्यक है-

  1. व्यक्ति में आवश्यकताओं, इच्छाओं तथा लक्ष्यों का होना।
  2. बाधाएँ जो व्यक्ति को भग्नाशा की ओर उन्मुख करती हैं।
  3. व्यक्ति की विभिन्न अनुक्रियाएँ अथवा व्यवहार
  4. लक्ष्य की प्राप्ति या तनाव का कम होना।

सुसमायोजित व्यक्ति के लक्षण (Characteristics of well adjusted Person)

समायोजन की विभिन्न परिभाषाओं और प्रक्रिया के अनुसार व्यक्ति के व्यवहारों के निरीक्षण से सुसमायोजित व्यक्ति के निम्नलिखित लक्षण परिलक्षित होते हैं-

  1. सुसमायोजित व्यक्ति वातावरण और परिस्थितियों का ज्ञान और नियन्त्रण रखने वाला और उन्हीं के अनुसार आचरण करने वाला होता है।
  2. वह स्वयं और पर्यावरण के मध्य सन्तुलन बनाये रखता है।
  3. वह अपनी आवश्यकता और इच्छा के अनुसार पर्यावरण एवं वस्तुओं का लाभ उठाता है।
  4. वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समाज के अन्य लोगों को बाधा नहीं पहुँचाता।
  5. वह साधारण परिस्थितियों में सन्तुष्ट और सुखी रहकर अपनी कार्यकुशलता को बनाये रखता है।
  6. वह सामाजिकता की भावना से युक्त आदर्श चरित्र वाला, संवेगात्मक रूप से सन्तुलित और उत्तरदायित्व को स्वीकार करने वाला होता है।
  7. उसके स्पष्ट उद्देश्य होते हैं और वह साहसपूर्वक एवं ठीक ढंग से कठिनाइयों एवं समस्याओं का सामना करता है।

गेट्स और अन्य विद्वानों के शब्दों में हम कह सकते हैं कि, “संक्षेप में सुसमायोजित व्यक्ति वह है जिसकी आवश्यकताएँ और तृप्ति, सामाजिक दृष्टिकोण और सामाजिक दायित्व की स्वीकृति के साथ संगठित हों।”

समायोजन के खतरे या कठिनाइयाँ (Threats of Adjustment)

जब व्यक्ति का व्यक्तित्व पर्यावरण से अन्तःक्रिया में असफल हो जाता है तो वह समाज से अपने को समायोजित नहीं कर पाता। व्यक्ति के जीवन की कुछ विशेष आवश्यकताएँ एवं आकांक्षाएँ होती हैं जिनमें से सब पूरी नहीं हो पाती हैं, जो आकांक्षाएँ पूरी नहीं होती हैं वे अचेतन मन में चली जाती हैं और इस प्रकार अनेक अपूर्ण आवश्यकताओं का मस्तिष्क में बाहुल्य हो जाता है जिससे मस्तिष्क विकारों से भर जाता है। ऐसे व्यक्तियों में से कुछ ऐसे होते से हैं जो अपनी असफलताओं के होते हुए भी, समाज के साथ तन-मन से समायोजन में प्रय नशील हो जाते हैं और अन्त में वे अपने को समायोजित कर लेते हैं।

साथ ही कुछ ऐसे व्यक्ति भी होते हैं जो असफलताओं से हतोत्साहित हो जाते हैं। परिणामस्वरूप वे अपने को सन्तुलित नहीं रख पाते और समाज में अपना समायोजन नहीं कर पाते। ऐसे व्यक्तियों के मस्तिष्क में एक द्वन्द्व मचा रहता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति के व्यक्तित्व में निम्न लक्षण प्रदर्शित होते हैं-

(1) शारीरिक लक्षण- अत्यधिक बेचैनी तथा आवेगशीलता, बोलते समय हकलाना आदि।

(2) सांवेगिक लक्षण– विभिन्न संवेगों की असन्तुलित अभिव्यक्तियाँ, जैसे- क्रोध, भय, प्रेम तथा ईर्ष्या आदि का बहुत अधिक अथवा बहुत कम मात्रा में प्रदर्शन।

(3) मानसिक लक्षण – विभिन्न आक्रोश एवं मानसिक अशान्ति, मनस्ताप, की प्रवृत्ति तथा आत्मविश्वास की कमी आदि। पराश्रयता

अधिगमकर्त्ता की व्यावहारिक समस्याएँ (Behavioural Problems of Learners)

अधिगमकर्त्ता की व्यावहारिक समस्याएँ निम्नलिखित हैं-

(1) शारीरिक- प्रथम शारीरिक तत्त्व जो अधिगम क्रिया में निहित है, वे ज्ञानेन्द्रियाँ हैं। ज्ञानेन्द्रियों के पाँच प्रकार हैं- दृष्टि, श्रवण, स्वाद, सुगन्ध और स्पर्श। यदि हमारा कोई संवेदन अंग दोषपूर्ण है तो इस अंग से सम्बन्धित ज्ञान प्राप्त करना कठिन हो जाता है। उसी प्रकार स्वार ठीक न रहने पर एवं अधिगमकर्ता की अधिगम प्रक्रिया में परिपक्वता न होने पर विषय का उचित रूप से अधिगम नहीं कर पाता है।

(2) मनोवैज्ञानिक- अधिगमकर्ता को अधिगम प्रक्रिया निहित प्रेरणा की अत्यन्त आवश्यकता है, अधिगम में प्रेरकों का होना आवश्यक है। प्रेरक एक आन्तरिक शक्ति है जो अधिगमकर्त्ता को सीखने की प्रक्रिया हेतु बाध्य करती है। आन्तरिक प्रेरणा से जो कार्य किया जाता है उसमें अधिक शीघ्रता एवं उत्साह दिखाई देता है। आवश्यकता, प्रयोजन और प्रोत्साहन प्रेरणा से सम्बन्धित है। कुछ विषयों में अधिगमकर्त्ता को रुचि और रुझान का लोप हो जाता है जिसके कारण अधिगम प्रक्रिया में व्यावहारिक समस्या उत्पन्न हो जाती है, शिक्षक को चाहिए कि अधिगमकर्त्ता के रुचि अनुरूप ही विषय विशेष की शिक्षा प्रदान करे।

(3) पर्यावरणीय समस्या- अधिगमकर्त्ता की एक व्यावहारिक पर्यावरणीय समस्या भी है। प्रतिकूल परिस्थितियों में अधिगम का कार्य सफलतापूर्वक नहीं हो सकता। कक्षा का मनोवैज्ञानिक वातावरण अधिगमकर्ता को प्रभावित करता है। अध्ययन का स्थान स्वच्छ वायु और प्रकाश युक्त होना चाहिए जिससे की अधिगमकर्त्ता का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहे।

(4) अन्य समस्याएँ- यदि सीखने वाले की विषय-सामग्री जटिल होती है तो सीखने की प्रक्रिया में समस्याएँ उत्पन्न होती है अर्थरहित विषय सामग्री की अपेक्षा अर्थपूर्ण विषय सामग्री को अधिगम करने में सरलता होती है। यदि अधिगमकर्त्ता को अधिगम में गलतियाँ एवं असफलता प्राप्त होती है तो भी अधिगमकर्ता को इसका ज्ञान कराना चाहिए।

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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