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हिन्दी गद्य शिक्षण की विधियाँ | Methods of Teaching Hindi Prose in Hindi

हिन्दी गद्य शिक्षण की विधियाँ | Methods of Teaching Hindi Prose in Hindi
हिन्दी गद्य शिक्षण की विधियाँ | Methods of Teaching Hindi Prose in Hindi
हिन्दी गद्य की आधुनिक शिक्षण विधियों की व्याख्या कीजिए। गद्य शिक्षण में विचार विश्लेषण की क्या उपयोगिताएँ हैं ?

हिन्दी गद्य शिक्षण की विधियाँ

गद्य साहित्य का सर्वोत्तम रूप है। इसमें विचारों को प्रभावशाली ढंग से व्याकरणसम्मत सर्वमान्य भाषा में प्रयुक्त किया जाता है। लेखक तथ्यों को प्रस्तुत करते हुए उन्हें सत्य सिद्ध करने के लिए उदाहरण एवं उद्धरण भी प्रयुक्त करता है। इसके अध्ययन से बच्चों के शब्द, सूक्ति, लोकोक्ति एवं मुहावरों के कोष में वृद्धि होती है, उन्हें सर्वमान्य एवं व्याकरणसम्मत भाषा का ज्ञान होता है, उनकी बोध, निरीक्षण एवं विवेचना शक्ति का विकास होता है, उनके विचारों में क्रमबद्धता आती है, साहित्य में उनकी रुचि विकसित होती है और वृत्तियों का समाजीकरण होता है। परन्तु ये सभी लाभ तभी प्राप्त हो सकते हैं जबकि बच्चों को गद्य पाठों की शिक्षा रोचक ढंग से दी जाए। गद्य की शिक्षा देने के लिए जिन विधियों को विकसित किया गया है, वे निम्न हैं-

(1) अर्थकथन-विधि- विद्यालय में हिन्दी गद्य की शिक्षा देने की यह परम्परागत विधि है। इस विधि में अध्यापक सर्वप्रथम गद्यांशों का क्रमिक रूप से मौखिक पठन करता है और इसके बाद गद्यांश में आए कठिन शब्दों का अर्थ बताता है और बाद में सभी वाक्य के सरलार्थ बताता हुआ सम्पूर्ण गद्यांश का अर्थ स्पष्ट कर देता है। इस विधि में सभी कार्य शिक्षक को ही करना पड़ता है। छात्र निष्क्रिय श्रोता बने रहते थे। अतः यह विधि अमनोवैज्ञानिक मानी जाती है। इसमें छात्रों को स्वयं सोचने-विचारने के अवसर प्राप्त न होने के कारण, छात्रों में न तो पढ़कर अर्थ ग्रहण करने की क्षमता का विकास होता है और न अपने विचारों को उचित रूप से व्यक्त करने की क्षमता का विकास हो पाता है। इस विधि से अध्ययन करने से गद्य-शिक्षण के उद्देश्यों को भी पूरी तरह से प्राप्त करना असम्भव है।

(2) व्याख्या-विधि- व्याख्या-विधि अर्थकथन-विधि का ही विकसित रूप है। इस विधि में अध्यापक मौखिक पठन करने के उपरान्त कठिन शब्दों का अर्थ व गद्यांश का सरलार्थ कराते हुए शब्दों और भावों की व्याख्या भी करता है। शब्दों की व्याख्या करते हुए शब्दों में उपसर्ग, प्रत्यय, सन्धि व समास आदि की व्याख्या करता है, शब्दों के पर्यायवाची व विपरीतार्थक स्पष्ट करता है, शब्दों का विस्तार करता है, उनमे छिपे प्रसंगों या कथानकों को स्पष्ट करता है और भावों को स्पष्ट करने के लिए उनकी विस्तृत व्याख्या भी करता है। इस प्रणाली में भी अधिकांश कार्य अध्यापक को करना पड़ता है। छात्र निष्क्रिय श्रोता ही बने रहते हैं। इस विधि के सही प्रयोग के लिए छात्रों का सक्रिय सहयोग लेने का प्रयास करना चाहिए।

(3) प्रश्नोत्तर-विधि – इस विधि को विश्लेषण-विधि भी कहा जाता है। यह व्याख्या प्रणाली ही परिमार्जित रूप है। इस विधि में व्याख्या-विधि तरह ही शब्दों और भावों की व्याख्या की जाती है, अन्तर इतना है कि इसमें शब्दों और भावों की व्याख्या करने के लिए प्रश्न व उत्तर की सहायता ली जाती है। अध्यापक बच्चों के पूर्व-ज्ञान के आधार पर प्रश्न पूछता हुआ उन्हें नवीन ज्ञान की तरफ अग्रसर करता है। छात्रों को प्रश्न सुनकर स्वयं सोचने व उत्तर देने का अवसर प्रदान करता हुआ बराबर सक्रिय रखने का प्रयास करता है। माध्यमिक स्तर पर गद्य की शिक्षा के लिए यह विधि सर्वोत्तम मानी जाती है। इसके सफल प्रयोग के लिए यह आवश्यक है कि छात्रों के उत्तर में पूर्णता न होने पर अध्यापक को स्वयं अपने कथन द्वारा शब्द व भाव की व्याख्या करनी चाहिए। इस विधि से शिक्षा देने से शिक्षण में रोचकता बनी रहती है।

(4) समीक्षा-विधि- इस विधि का प्रयोग उच्च माध्यमिक या उच्च कक्षाओं में किया जाता है। इस विधि का प्रयोग तभी करना चाहिए जब बच्चों को निबन्ध के तत्त्वों का ज्ञान, और भाषायी कौशलों में विकास पूरी तरह से हो जाए। इस विधि में पाठ्य वस्तु का पठन कर भाषायी तत्त्वों के आधार पर उसके गुण-दोषों की परख की जाती है। इसके पहले गद्य पाठ के अर्थ एवं भाव का स्पष्टीकरण अत्यन्त आवश्यक है। इसमें अध्यापक छात्रों को पाठ्य वस्तु का भाव स्पष्ट कर उसके भाषायी तत्त्वों का ज्ञान प्रदान करता है और उनके आधार पर छात्रों से पाठ्य वस्तु के गुण-दोषों की परख अर्थात् समीक्षा करने के लिए कहता है। साथ ही आवश्यक सन्दर्भ ग्रन्थों एवं रचनाओं के बारे में भी बताता है जिनका अध्ययन कर छात्र पाठ्य वस्तु के गुण-दोषों का विवेचन कर सकें। के इस विधि में छात्रों को स्वयं काफी कार्य करना पड़ता है, अध्यापक तो उनका मार्गदर्शन करता है। बच्चों में स्वाध्याय की आदत विकसित करने में यह विधि विशेष रूप से सहायक होती है।

(5) संयुक्त विधि- माध्यमिक स्तर पर इन सभी प्रणालियों को आवश्यकतानुसार मिश्रित रूप से प्रयोग करके भी हम गद्य-शिक्षण को प्रभावशाली बना सकते हैं। भाषायी कौशल एवं ज्ञान प्रदान करने के लिए व्याख्या एवं विश्लेषण प्रणाली को संयुक्त रूप से अपनाया जाए। साथ में, भाषायी तत्त्वों का शास्त्रीय विवेचन करने के लिए समीक्षा प्रणाली को अपनाया जाए। इस संयुक्त प्रयोग से बच्चों को गद्य पाठों की शिक्षा बहुत ही रोचक, आकर्षक एवं प्रभावशाली ढंग से दी जा सकेगी। इस प्रकार अध्यापक गद्य पाठ की शिक्षा देने के लिए अपनी आवश्यकतानुसार किसी एक विधि का अलग से या सभी विधियों का संयुक्त रूप से प्रयोग कर सकता है।

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Anjali Yadav

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