भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के सशक्तिकरण पर टिप्पणी कीजिए।
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भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक
भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की व्यवस्था की व्याख्या संविधान के भाग-5 में की गई है (संविधान में नियंत्रक – महालेखा परीक्षक का पद भारत शासन अधिनियम, 1935 के अधीन महालेखा परीक्षक के नमूने के आधार पर बनाया गया है। अनुच्छेद-148 के अनुसार,. भारत के नियंत्रक – महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। इसकी कार्यविधि 6 वर्ष है। इसको पदच्युत करने के लिए दोनों सदनों के समावेदन की आवश्यकता पड़ती है। यह पद उस नियम का अपवाद है जिसमें संघ के सभी लोक सेवक राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करते हैं। भारत का नियंत्रक महालेखा परीक्षक पदत्याग के पश्चात् भारत सरकार अथवा किसी राज्य सरकार के अधीन लाभ के किसी पद को ग्रहण नहीं कर सकता। नियंत्रक-महालेखा परीक्षक अधिनियम, 1971 को संशोधित करके 1976 में इस अधिनियम द्वारा नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के लिए निर्धारित की गई सेवा की शर्तों के संबंध में उपबंध इस प्रकार हैं-
1. 65 वर्ष की आयु तक ही नियंत्रक-महालेखा परीक्षक अपने पद पर कार्य कर सकता है।
2, वह किसी भी समय राष्ट्रपति को संबोधित करके अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा पद त्याग कर सकता है।
3. अनुच्छेद [ 148(1), और 124 (4)] के अनुसार उसे महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है।
4. उसका वेतन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के समतुल्य होगा।
5. अन्य विषयों में उसकी सेवा की शर्तें उन्हीं नियमों से अवधारित होंगी जो भारत सरकार के सचिव की पंक्ति के भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्यों के लिए लागू हैं।
6. नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के कार्यपालिका प्रशासनिक व्यय, कर्मचारियों के वेतन आदि भारत की संचित निधि पर भारित होंगे।
7. भारत का नियंत्रक – महालेखा परीक्षक देश की सम्पूर्ण वित्तीय प्रणाली को नियंत्रित करता है (भाग-v)।
8. 6 वर्ष की अवधि हेतु इसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। इससे पूर्व इसे केवल संसद द्वारा महाभियोग लगाकर ही हटाया जा सकता है
कार्य एवं शक्तियाँ
भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के कार्यों और शक्तियों के प्रयोग में स्वतंत्रता के उद्देश्य से 1971 में एक अधिनियम पारित किया गया, जिसे 1976 में संशोधित करके नियंत्रक – महालेखा परीक्षक के कर्त्तव्यों के परिप्रेक्ष्य में कुछ उपबंध निश्चित किए गए, जो इस प्रकार हैं-
1. भारत और प्रत्येक राज्य तथा विधान सभा या प्रत्येक संघ राज्यक्षेत्र की संचित निधि से सभी प्रकार के व्यय की संपरीक्षा और उन पर यह प्रतिवेदन कि क्या ऐसा व्यय विधि के अनुसार है।
2. संघ और राज्यों की आकस्मिकता निधि और लोक लेखाओं से हुए सभी व्ययों की संपरीक्षा और उन पर प्रतिवेदन।
3. संघ या राज्य के विभाग द्वारा किए गए सभी व्यापार तथा विनिर्माण के हानि और लाभ लेखाओं की संपरीक्षा और उन पर प्रतिवेदन ।
4. संघ और प्रत्येक राज्य की आय और व्यय की संपरीक्षा जिससे कि उसका यह समाधान हो जाए की राजस्व के निर्धारण, संग्रहण और उचित आबंटन के लिए पर्याप्त परीक्षण करने के उपरांत नियम और प्रक्रियाएं बनाई गई हैं।
5. संघ और राज्य के राजस्वों द्वारा पर्याप्त रूप से वित्त पोषित सभी निकायों और प्राधिकारियों की, सरकारी कंपनियों की, अन्य निगमों या निकायों की, जब ऐसे निगमों या निकायों से संबंधित विधि द्वारा इस प्रकार अपेक्षित हो, प्राप्ति और व्यय की संपरीक्षा और उस पर प्रतिवेदन ।
6. नियंत्रक – महालेखा परीक्षक द्वारा संघीय लेखाओं से सम्बद्ध प्रतिवेदन राष्ट्रपति को तथा राज्यों से सम्बद्ध लेखाओं संबंधी प्रतिवेदन सम्बन्धित राज्यों के राज्यपालों के समक्ष प्रस्तुत किए जाते हैं, जो इन्हें क्रमशः संसद एवं राज्यों के विधानमण्डलों के पटल पर रखते हैं।
7. वह राष्ट्रीय वित्त का संरक्षक होता है।
8. भारत में नियंत्रक – महालेखा परीक्षक का भारत की संचित निधि से धन के निर्गम पर कोई नियंत्रण नहीं होता।
भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक का सशक्तिकरण
नियंत्रक महालेखा परीक्षक राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है, हालांकि यह एक संवैधानिक पद है एवं जिसका उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 में बखूबी किया गया है। इसका कार्य संघ एवं राज्य सरकार के लेखाओं का परीक्षण एवं अंकेक्षण करना है ताकि वित्त संबंधी नियमितता एवं अनियमितता सामने आ सके अर्थात इसे लोक वित्त का संरक्षक कहा जा सकता है। महत्वपूर्ण हैं। कि इतने संवेदनशील कार्य के लिए क्या महालेखा परीक्षक को पर्याप्त शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। यदि नहीं तो इसे किस प्रकार सशक्त किया जाए? वस्तुतः भारत में कैग जनता की आवाज का प्रतिनिधित्व कर सकता है, सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकता है एवं अक्षमता और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ सकता है, बशर्ते इसे न्यायिक एवं दण्डात्मक शक्तियों के साथ- साथ उदीयमान नए क्षेत्रों में इसकी भूमिका को बढ़ाया जाए जिससे कैग वास्तविक रूप से नागरिकों के लिए कार्य करने वाले औम्बुडसमैन की भूमिका निभा सके। निम्न सुझावों के माध्यम से भारत में कैग का सशक्त किया जा सकता है-
1. कैग को अधिक शक्ति एवं कोष आबंटित किया जाना चाहिए ताकि वह अपने कर्मचारीवृंद एवं क्षेत्र को बढ़ा सके।
2. लेखा महानिरीक्षक अधिनियम 1971 में संशोधन कर महालेखा निरीक्षक को सम्मन एवं दण्डात्मक कार्रवाई की न्यायिक शक्तियाँ ऐसे अधिकारियों के विरुद्ध दी जानी चाहिए जो उसे संबंधित सूचना 15 दिनों के भीतर देने से मना करते हैं या अक्षम होते हैं।
3. यदि सम्बद्ध अधिकारी के वित्तीय व्यय में जानबूझकर गड़बड़ी पायी जाती है तो कैग की शक्ति होनी चाहिए कि वह अधिकारी के वेतन में से ऐसी राशि ले सके।
4. प्रत्येक जिले में कैग के क्षेत्रीय कार्यालय हेतु उसे धन आबंटित किया जाना चाहिए।
5. सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल के अंतर्गत सार्वजनिक प्रोजेक्ट में भागीदार निजी कंपनी के लेखाओं की जांच करने का अधिकार कैग को दिया जाना चाहिए।
6. सरकारी वित्त द्वारा संचालित गैर-सरकारी संगठनों के विकास संबंधी प्रोजेक्ट की जांच का अधिकार कैग को दिया जाना चाहिए।
7. लेखाओं में अनियमितता से सम्बद्ध कार्यालयों एवं कागजातों को सील एवं जब्त करने तथा सम्बद्ध अधिकारियों की संपत्ति एवं बैंक खातों संबंधी सूचना प्राप्त करने का अधिकार कैग को दिया जाना चाहिए।
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