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भारत में नियोजन पद्धति का परिचय | Introduction to Planning Method in India in Hindi

भारत में नियोजन पद्धति का परिचय | Introduction to Planning Method in India in Hindi
भारत में नियोजन पद्धति का परिचय | Introduction to Planning Method in India in Hindi

भारत में नियोजन पद्धति का परिचय दीजिए।

भारत में नियोजन पद्धति का परिचय

 नियोजन से आशय है किसी कार्य को करने के लिए योजना बनाना। भारत में नियोजन पद्धति को विकास 1930 के दशक में एम. विश्वैसरैय्या के ग्रन्थ “भारत की नियोजित अर्थव्यवस्था” के साथ माना जाता है। सन् 1938 में कांग्रेस के हरिपुरा में जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में योजना समिति का गठन हुआ। 1944- 45 में प्रस्तुत ‘बाम्बे योजना’ इसके विकास के लिए क्रांतिकारी साबित हुआ।

ध्यातव्य रहे कि भारत में नियोजन का ध्येय आर्थिक एवं राष्ट्रीय में वृद्धि रहा है। इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए भारत सरकार ने सन् 1950 में एक कैबिनेट आदेश के माध्यम से योजना आयोग का गठन किया। शक्ति और कार्यप्रणाली के आधार पर इस आयोग ने 1950 से आज तक सभी क्षेत्रों में और विशेष रूप से केन्द्र-राज्यों के सम्बन्ध के क्षेत्र में विभिन्न परम्पराओं के माध्यम से स्वयं को विकसित किया है।

योजना आयोग इस आयोग का गठन मार्च, 1950 में किया गया। उसके बाद समय- समय पर इसके संगठन में अपेक्षित परिवर्तन भी किये गये हैं। जनवरी, 1985 में केन्द्र सरकार ने योजना आयोग का पुनर्गठन किया। भारतीय रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर डॉ. मनमोहन सिंह को इसका उपाध्यक्ष बनाया। इससे पूर्व तक योजना आयोग मंत्री ही इसका उपाध्यक्ष होता था। योजना आयोग में आवश्यक परिवर्तन इसके बाद भी होते रहे हैं। जनवरी, 2015 से इसका नाम बदलकर ‘नीति आयोग’ कर दिया गया।

भारत का योजना आयोग अपने कार्यों को संचालित विभिन्न प्रकार के विभागों और प्रभागों के द्वारा करता है। उनका वर्णन निम्नलिखित है-

(A) समन्वय विभाग (Co-ordination Department) – जब योजना आयोग को विभिन्न विभागों में सहयोग की आवश्यकता अनुभव होती है तो समन्वय विभाग अपनी भूमिका समन्वय विभाग के दायित्व वार्षिक और पंचवर्षीय योजनाओं में समन्वय, अविकसित क्षेत्रों का पता लगाना, प्रदेशों को केन्द्रीय सहायता के उपायों तथा योजना को कुशल प्रभावपूर्ण ढंग से कार्यान्वित करने के सम्बन्ध में परामर्श देना आदि है।

(B) साधारण विभाग – योजना से सम्बन्धित विभिन्न कार्यों के लिये अनेक साधारण विभाग हैं। मुख्य साधारण विभाग हैं- दीर्घकालीन योजना विभाग, आर्थिक विभाग, श्रम एवं रोजगार विभाग, प्राकृतिक एवं वैज्ञानिक अनुसन्धान विभाग, सांख्यिकीय तथा सर्वेक्षण विभाग, प्रबन्ध एवं प्रशासन विभाग ।

(C) विषय विभाग – आर्थिक गतिविधि के विभिन्न क्षेत्रों के लिये अलग-अलग विषय विभाग हैं। ये अपने-अपने विषय से सम्बन्धित योजना के कार्य और शोध करते हैं।

(D) विशिष्ट विकास कार्यक्रम विभाग – कुछ विशिष्ट कार्यक्रमों को गतिशीलता प्रदान करने के लिये विशिष्ट विकास कार्यक्रम विभाग बनाये गये हैं, जो ग्रामीण और सहकारिता क्षेत्र में कार्य करते हैं।

योजना आयोग के प्रभाग (Division of planning commission) – योजना आयोग के अनेक प्रभाग, योजना को तैयार करने से सम्बन्धित कार्य और अपने कार्य-कलापों से सम्बन्धित विशेष अध्ययन करते रहते हैं। ये प्रभाग वार्षिक योजना की समीक्षा करते हैं और अगली वार्षिक योजना को तैयार करने में लगे रहते हैं।

योजना आयोग के महत्वपूर्ण प्रभाग है- भावी योजना प्रभाग, आर्थिक प्रभाग, अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रभाग, वित्तीय संसाधन प्रभाग, परियोजना मूल्यांकन प्रभाग, प्रबंधन और सूचना प्रभाग, कृषि प्रभाग तथा ग्रामीण विकास और सहकारिता प्रभाग।

कार्यक्रम मूल्यांकन संगठन का गठन 1952 में एक स्वतन्त्र संगठन के रूप में स्थापित किया गया था। इसका उद्देश्य देश में सामुदायिक विकास कार्यक्रम का मूल्यांकन करना था। बाद में इसके कार्य का क्षेत्र व्यापक बनाकर इसमें कृषि, ग्रामीण उद्योग, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, ग्रामीण रोजगार आदि से सम्बन्धित अन्य योजना के कार्यक्रमों को सम्मिलित कर लिया गया।

योजना आयोग के प्रमुख दायित्व

इसके दायित्वों का वर्णन निम्नलिखित हैं –

(i) इसका महत्वपूर्ण कार्य देश के संसाधनों का अनुमान लगाना है। योजना आयोग देश के भौतिक, पूँजी सम्बन्धी और मानवीय साधनों का अनुमान लगाता है।

(ii) योजना आयोग का कार्य योजना निर्माण करना है। योजना आयोग देश के संसाधनों के सर्वाधिक प्रभावी और संतुलित उपयोग के लिये योजना निर्माण करता है।

(iii) योजना आयोग को पूरा किये जाने की अवस्थाओं को परिभाषित करता है।

(iv) प्राथमिकताओं के आधार पर योजना आयोग देश के संसाधनों का समुचित आवंटन करता है।

(v) योजना आयोग योजनातन्त्र का निर्धारण करता है। आयोग योजना की प्रत्येक अवस्था के सभी पहलुओं में सफल क्रियान्विति के लिये योजनतन्त्र की प्रवृत्ति को निर्धारित करता है।

(vi) योजना आयोग समय-समय पर योजना की प्रत्येक अवस्था के क्रियान्वयन में की गई प्रकृति का मूल्यांकन करता है।

(vii) योजना आयोग का कार्य सुझाव और दिशा-निर्देश देना भी है।

(viii) सामग्री, पूँजी, मानवीय संसाधनों का मूल्यांकन, संरक्षण और उनमें वृद्धि की सम्भावनाओं का पता लगाना है।

(ix) योजना आयोग, योजनाओं की सफलता के लिये, सामाजिक परिवर्तनों का अध्ययन करता है।

(x) योजना आयोग, आर्थिक और अन्य नीतियों का सामयिक मूल्यांकन करता है और आवश्यकतानुसार उन पर कार्यान्वयन का सिफारिश करता है।

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Anjali Yadav

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