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लोकपाल क्या है?
लोकपाल- लोकपाल उच्च सरकार पदों पर आसीन व्यक्तियों द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार की शिकायतें सुनने एवं उस पर कार्यवाही करने के निमित्त पद है।
संयुक्त राष्ट्र के एक सेमिनार में राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों के आचरण तथा कर्त्तव्य पालन की विश्वनीयता तथा पारदर्शिता को लेकर दुनिया की विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों में उपलब्ध संस्थाओं की जांच की गई। स्टॉकहोम में हुए इस सम्मेलन में वर्षों पूर्व आद आदमी की प्रशासन के प्रति विश्वनीयता तथा प्रशासन के माध्यम से आम आदमी के प्रति सत्तासीन व्यक्तियों की जवाबदेही बनाए रखने के संबंध में विचार-विमर्श हुआ। लोक सेवकों के आचरण की जांच और प्रशासन के स्वस्थ मानदंडों को प्रासंगिक बनाए रखने के संदर्भों की पड़ताल भी की गई।
इस सेमिनार ने पांच मुख्य संस्थाओं की जांच की जो पूरी दुनिया में जांच एजेंसियों के रूप में उस समय लागू थीं। इनमें संसदीय जांच समितियां, रूप की प्रोक्यूरेसी, अंग्रेजी विधि व्यवस्था में वर्णित न्यायिक अनुतोष, फ्रांसीसी पद्धति की जांच व्यवस्थाएं तथा स्कैण्डिनेवियन देशों में प्रचलित अंबुड्समान भी शामिल रहे हैं।
इनमें अंबुड्समान नामक संस्था ने प्रशासन के प्रहरी बने रहने में अंतर्राष्ट्रीय सफलता प्राप्त की है। स्वीडन को इस बात का श्रेय है। वहां वर्ष 1713 में किंग चाल्य बारहवे ने अपने एक सभासद को उन अधिकारियों को दंडित करने के लिए नियुक्त किया जो कानून का उल्लंघन करते थे। स्वीडन में नया संविधान बनने पर संविधान सभा के सदस्यों ने जिद की कि उनका ही एक अधिकार जांच का कार्य करेगा। वह सरकारी अधिकारी नहीं हो सकता। तब 1809 में स्वीडन के संविधान में अंबुड्समान की व्यवस्था हुई जो अदालतों और लोकसेवकों द्वारा कानूनों तथा विनियमों के उल्लंघन के प्रकरण की जांच करेगा।
लोकपाल का ऐतिहासिक विकास
भ्रष्टाचार राष्ट्र को कोढ़ है। भ्रष्टाचार प्रशासन की एक प्रमुख समस्या बन गया है। भ्रष्टाचार को मिटाने और दूर करने के लिए विभिन्न देशों में समय-समय पर अनेक कदम उठाये गये है। स्वीडन में सर्वप्रथम 1809 में संविधान के अन्तर्गत ‘ओम्बुड्समैन’ की स्थापना की गयी। भारत में आम्बुड्समैन को लोकपाल के नाम से जाना जाता है। फिनलैण्ड में 1918 में, डेनमार्क में 1945 में, नार्वे में 1961 में व ब्रिटेन में 1967 में ओम्बुड्समैन (लोकपाल) की स्थापना भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए की गई। विभिन्न देशों में ओम्बुड्स को विभिन्न नामों से जाना जाता है। इंग्लैण्ड में इसे संसदीय आयुक्त, सेवियत संघ में ‘वक्ता’ अथवा प्रोसिक्यूटर व डेनमार्क एवं न्यूजीलैण्ड की तरह संसदीय आयुक्त के नाम से जानते है एवं भारत में इसे लोकपाल के नाम से जाना जाता है।
सन् 1967 के मध्य एक ओम्बुड्समैन (लोकपाल) संस्था 12 देशों में फैल गई थी। भारत में भारतीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने प्रशासन के विरूद्ध नागरिकों की शिकायतो को सुनने एवं प्रशासनिक भ्रष्टाचार रोकने के लिए सर्वप्रथम लोकपाल संस्था की स्थापना का विचार रखा था जिसे स्वीकार नहीं किया गया। भारत में सन् 1971 में लोकपाल विधेयक प्रस्तुत किया गया जो पाँचवी लोकसभा के भंग हो जाने से पारित न हो सका। राजीव गाँधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद लोकपाल विधेयक 26 अगस्त, 1985 को संसद में प्रस्तुत किया गया और 30 अगस्त, 1985 को संसद में इस विधेयक के प्रारूप को पुनर्विचार के लिए संयुक्त प्रवर समिती को सौंप दिया, जो पारित न हो सका।
वर्तमान में समाजसेवी अन्ना हजारे लोकपाल बिल लाने के लिए देशवासियों को प्रेरित कर रहे है एवं रानीतिज्ञों से मिल रहे है लेकिन अन्ना हजारे व कपिल सिब्बल के बीच आम सहमति न बन पाने के कारण यह विधेयक चर्चा के घेरे में है। प्रश्न यह है कि भारत में लोकपाल विधेयक के दायरे में राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केन्द्रीय मंत्रीयो, शीर्ष न्यायपालिका व लोकसभा अध्यक्ष आदि को रखा जाए। इसके लिए हमें विभिन्न देशों में विधमान ओम्बुड्समैन (लोकपाल) के दायरे में आने वाले मंत्रियो, लोकसेवकों व न्यायपालिका के सन्दर्भ की परिस्थितियों का अध्ययन करके भारतीय संविधान का आदर करते हुए, भारतीय परिस्थितयों के अनुकूल लोकपाल के दायरे में लोकसेवकों व मंत्रीयो आदि को रखा जाए।
विदेशों में प्राप्त लोकपाल के कार्यक्षेत्र में आने वाले अधिकारियों, मंत्रियों आदि के बारे में ज्ञान प्राप्त करके भारत में भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए विभिन्न अधिकारियों को इसके दायरे में लाना चाहिए। स्वीडन के लोकपाल के जांच के दायरे से असैनिक प्रशासनिक कर्मचारियों के अलावा न्यायाधीशों तथा पादरियों को भी रखा गया है किन्तु मन्त्रीगण उनके क्षेत्राधिकार से बाहर होते है ताकि संसदीय उत्तरदायित्व विभाजित न हो जाए। डेमार्क में लोकपाल मंत्रियों तथा लोक कर्मचारियों की तो जांच कर सकता है परन्तु न्यायाधीशों के कार्य और व्यवहार पर टिप्पड़ी नहीं कर सकता। न्यूजीलैण्ड में लोकपाल को मंत्री पर प्रत्यक्ष नियन्त्रण रखने का अधिकार नहीं है। विदेशी सम्बंध, अन्तर्देशीय राजस्व और प्रधानमंत्रीय विभाग भी उसके क्षेत्र के बाहर है। जबकि ब्रिटेन में लोकपाल की जांच के दायरे में सभी मंत्रालय, विभाग, सिविल सेवा आयोग, केन्द्रीय सूचना कार्यालय आदि आते हैं। विदेश सम्बन्ध, सुरक्षा, कर्मचारी प्रशासन, पुलिस क्रिया, निगम, सरकारी ठेके आदि को लोकपाल की जांच के दायरे से बाहर रखा गया है।
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