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वैज्ञानिक प्रबन्ध क्या है? टेलर के द्वारा प्रतिपादित विचारों का प्रबन्ध क्षेत्र में क्या योगदान है?
विद्वानों ने वैज्ञानिक प्रबन्ध की परिभाषा अपने-अपने ढंग से दिया है- प्रो. मार्शल के अनुसार, “वैज्ञानिक प्रबन्ध मुख्य रूप से एक बड़े व्यवसाय के कर्मचारी व्यवस्था की एक विधि है जिसका उद्देश्य अपने अधिकांश कर्मचारियों के दायित्वों की सीमा को घटाकर उनकी कार्यकुशलता बढ़ाना है तथा साधारण शारीरिक क्रियाओं के सम्बन्ध में दिये गये आदेश पर विवेकपूर्ण अध्ययन करना है।”
लायड डंड एवं लिंच के अनुसार, “विस्तृत अर्थ में वैज्ञानिक प्रबन्ध की कार्य प्रणाली श्रमिकों, कच्चे मालों, मशीनों एवं पूँजी के प्रयोग से अधिकतम लाभ प्राप्त करना है और इसके द्वारा उत्पादन की समस्त क्रियाओं पर कारखाने के स्थानीयकरण एवं संरचना से लेकर वस्तुओं के अन्तिम वितरण तक नियंत्रण करती है।”
एफ.डब्ल्यू. टेलर के अनुसार, “वैज्ञानिक प्रबन्ध ये मान कर चलता है कि दोनों के वास्तविक हित अर्थात् श्रमिक एवं मालिक के वास्तविक हित एक सामान हैं क्योंकि मालिकों की सम्पन्नता लम्बे समय तक बिना श्रमिकों की सम्पन्नता के चल ही नहीं सकतीं। इसलिए यह सम्भव है कि श्रमिकों को जो वह चाहता है ऊँची मजदूरी दी जानी चाहिए एवं मालिक को जो वह चाहता है निम्न श्रम लागत दी जानी चाहिए।”
उपर्युक्त सभी परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि “वैज्ञानिक प्रबन्ध, प्रबन्ध व्यवस्था का वह मानवीय दृष्टिकोण है जिसमें कम-से-कम लागत पर अधिक-से-अधिक उत्पादन तथा श्रमिक एवं नियोक्ता के मध्य सहयोगपूर्ण सम्बन्ध हो। इसमें वैज्ञानिक अनुसंधान एवं विश्लेषण के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं।”
प्रबन्ध में टेलर का योगदान
प्रबन्ध विज्ञान और प्रशासन में टेलर के योगदान को देखकर ही इन्हें ‘वैज्ञानिक प्रबन्ध का पिता’ कहा जाता है। टेलर का योगदान इस प्रकार है-
(1) प्रबन्ध को विज्ञान बनाना – “प्रबन्ध एक विज्ञान है।” इस तथ्य को साबित करने के लिए समय अध्ययन, गति अध्ययन तथा थकान अध्ययन का प्रयोग किया और इस प्रयोग के आधार पर कुछ निश्चित निष्कर्ष निकाला जाता है। उसी तरह प्रबन्ध में भी कुछ अध्ययनों द्वारा निश्चित निष्कर्ष निकाल कर यह साबित कर दिया गया है कि प्रबन्ध एक विज्ञान है।
(2) प्रबन्ध संगठन का निर्माण- संगठन पर टेलर ने काफी बल दिया है। टेलर के अनुसार संगठन एक यंत्र है जो प्रबन्ध के विकास हेतु साधन और साध्य दोनों हैं। संगठन रूपी प्रबन्धकीय यंत्र का निर्माण कई तत्त्वों से होता है- जैसे- समय अध्ययन, क्रियात्मक फोरमैन-शिप, प्रमाणकारी, नियोजन आदि।
(3) प्रबन्ध के सिद्धान्त- टेलर ने श्रमिक तथा प्रबन्ध के दोनों पक्षों को न्याय दिलाने के उद्देश्य से प्रबन्ध के कुछ सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। जैसे- कार्य नियोजन का सिद्धान्त, वैज्ञानिक चयन एवं प्रशिक्षण का सिद्धान्त, कार्य के वैज्ञानिक आवंटन, आधुनिक उपकरणों के उपयोग का सिद्धान्त, प्रेरणात्मक मजदूरी का सिद्धान्त तथा संतोषजनक कार्य दशाओं का सिद्धान्त ।
(4) प्रबन्धकों के दायित्व- टेलर ने प्रबन्धकों के दायित्व के अन्तर्गत निम्न चार नये दायित्वों का प्रतिपादन किया है-
(i) कर्मचारियों के कार्य के प्रत्येक तत्त्व के लिए विज्ञान का विकास करें जिससे कि परम्परागत ‘अनूठा नियम को बदला जा सके।
(ii) कर्मचारियों के अधिकतम विकास हेतु उनका वैज्ञानिक चयन एवं प्रशिक्षण की व्यवस्था किया जाय।
(iii) प्रबन्धकों का कर्मचारियों के साथ इतना मधुर सम्बन्ध हो जिससे कि विज्ञान के सिद्धान्तों के अनुसार कार्य किया जा सके।
(iv) प्रबन्धकों एवं कर्मचारियों के मध्य कार्य एवं उत्तरदायित्व का समान विभाजन होना चाहिए।
(5) प्रबन्ध का उद्देश्य लोक कल्याण- टेलर के अनुसार वैज्ञानिक प्रबन्ध का उद्देश्य न केवल समृद्धि में वृद्धि करना है बल्कि श्रमिकों एवं समूचे समाज में निर्धनता को समाप्त करना है। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु प्रबन्ध जगत में निम्नलिखित परिस्थितियाँ उत्पन्न करनी होंगी-
- श्रमिकों को योग्यतानुसार कार्य दिया जाय।
- संतोषप्रद कार्य की दशाएँ प्रदान की जायें।
- प्रेरणात्मक एवं प्रतियोगितात्मक मजदूरी पद्धति को अपनाया जाए।
- समय गति एवं थकान अध्ययन द्वारा उच्च मजदूरी एवं निम्न श्रम लागत के उद्देश्य को प्राप्त करना।
(6) क्रियात्मक संगठन पद्धति- टेलर ने वैज्ञानिक प्रबन्ध में इस पद्धति का प्रतिपादन करके एक क्रान्तिकारी कदम उठाया है। फोरमैन के कार्य करने के भार को समाप्त कर इसके स्थान पर विशेषज्ञों की नियुक्तियाँ की है। इससे फोरमैन का कार्य भार कम हो जायेगा तथा वह अन्य कार्यों में अपना समय अधिक लगा सकेगा। इसके अन्तर्गत कारखाना स्तर पर टोलीनायक, गति नायक, मरम्मत नायक एवं निरीक्षक नियुक्त किये गये तथा कार्यालय स्तर पर कार्यक्रम लिपिक, निर्देशन पत्र लिपिक, समय और लागत लिपिक तथा अनुशासन लिपिक की नियुक्ति की गयी है। विशेषज्ञों का सीधा सम्बन्ध श्रमिकों से होता है।
( 7 ) मानसिक क्रान्ति- वैज्ञानिक प्रबन्ध की सफलता हेतु टेलर ने कर्मचारियों एवं प्रबन्धकों में मानसिक क्रान्ति उत्पन्न करने पर जोर दिया है। श्रमिकों एवं मालिकों को अपने हितों को एक-दूसरे का विरोधी नहीं समझना चाहिए। श्रमिकों को कार्य की अच्छी दशाएँ, प्रेरणात्मक मजदूरी तथा योग्यतानुसार कार्य का आवंटन किया जाना चाहिए।
इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रबन्ध विज्ञान में टेलर का महत्वपूर्ण योगदान है। टेलरवाद ने प्रशासकीय सुधार और प्रबन्ध व्यवहार को बहुत अधिक प्रभावित किया है। विश्व के अधिकांश विकसित तथा विकासशील देशों में टेलर के सिद्धान्तों एवं तरीकों को बड़े पैमाने पर लागू किया गया है। अमेरिकी उद्योगों एवं पश्चिमी यूरोप के उद्योगों पर वैज्ञानिक प्रबन्ध का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।
20वीं शताब्दी तक यह अहसास किया जाने लगा कि किसी भी उद्यम को कुशल प्रबन्ध एवं संचालन हेतु परम्परागत विधियों के स्थान पर अर्थात् प्रगतिवादी एवं आधुनिक तकनीकी पर आधारित वैज्ञानिक पद्धतियों को अपनाया जाए। वैज्ञानिक प्रबन्ध एक ऐसा प्रबन्ध है जो परम्परागत अन्तर्ज्ञान, अन्धविश्वास पर आधारित न होकर विज्ञान पर आधारित है।
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