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आदेश की एकता का सिद्धान्त | Principle of Unity of Command in Hindi

आदेश की एकता का सिद्धान्त | Principle of Unity of Command in Hindi
आदेश की एकता का सिद्धान्त | Principle of Unity of Command in Hindi

आदेश की एकता सिद्धान्त की सीमाएँ

आदेश की एकता का सिद्धान्त लोक प्रशासन की सफलता के लिए एक अनिवार्य सिद्धान्त है परन्तु इसकी कुछ सीमाएँ हैं, जिन्हें निम्नलिखित रूप में रखा जा सकता है-

प्रथम- लोक प्रशासन के अन्तर्गत कभी-कभी तकनीकी कार्यों में आदेश की भिन्नता आवश्यक होती है, जिसकी पूर्ति आदेश की एकता से सम्भव नहीं है, क्योंकि सामान्य कार्यों में तो आदेश की एकता एक महत्वपूर्ण गुण होता है कि उसमें एकरूपता होती है। स्पष्टतः तकनीकी प्रशासन में आदेश की एकता के कारण तकनीकी कार्य सम्पासदित नहीं हो सकते हैं। एक ताप बिजली परियोजना में विद्युत इंजीनियर, सिविल इंजीनियर, मैकेनिकल इंजीनियर तीनों ही प्रकार के विशेषज्ञों की आज्ञा का पालन करना होता है। मिलेट ने बिल्कुल ठीक कहा है कि “आदेश की एकता के विचार के साथ-साथ यह भी मान लेना चाहिए कि कुछ कार्यों में दोहरे नियंत्रण- प्राविधिक व सामान्य प्रशासन की आवश्यकता पड़ती है।”

द्वितीय- लोक प्रशासन के अन्तर्गत जिस रूप में शक्तियों के विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्ति बढ़ती चली जा रही है, आदेश की एकता का सिद्धान्त अपनी प्रभावशीलता खोता जा रहा है। सैनिक प्रशासन में तो इस पर अधिक जोर देना ठीक है, परन्तु असैनिक प्रशासन यानी लोक – प्रशासन में इस सिद्धान्त पर अधिक जोर देना सही नहीं कहा जा सकता है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में विकास के साथ-साथ इस बात को स्वीकार किया जाने लगा कि सभी लोगों के परामर्श, निर्देश व विवेक से निर्णय लिए जाने चाहिए। पंचायती राज की स्थापना के लिए आदेश की भिन्नता एक आवश्यक तत्व बन गया है। स्पष्टतः आदेश की एकता से सैनिक शासन का जन्म होता है तथा प्रजातंत्र के लिए यह सही नहीं है।

तृतीय- लोक प्रशासन के अन्तर्गत यदि विशिष्टीकरण को आधार बनाया जाय तो आदेश की एकता का सिद्धान्त अनावश्यक प्रतीत होता है तथा विशिष्टीकरण के द्वारा इसका प्रबल विरोध किया जाता है। जब असैनिक प्रशासन पर ही समाज निर्भर हो गया है तब आदेश की एकता के सिद्धान्त का औचित्य समाप्त गया है। एक इमारत में कार्य करने वाले कारीगर अपने-अपने क्षेत्र में सिद्धहस्त होते हैं। जिस कार्य में वह विशेष ज्ञान रखते हैं उनके सम्बन्ध में आदेश की एकता को मान्यता नहीं दी जा सकती है। सैकलर हडसन ने अपने शब्दों में इस बात को इस प्रकार स्पष्ट किया है- “ प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक अधिकारी की पुरानी अवधारणा जटिल सरकारी स्थितियों में शायद ही वास्तविक तौर पर सच पायी जाती है। समादेश की सीधी रेखा के बाहर अनेक अन्तःसम्बन्ध विद्यमान रहते हैं, जिनके लिए अनेक लोगों को प्रतिवेदन देना एवं उनके साथ कार्य करना आवश्यक होता है, जिससे कार्य व्यवस्थित रूप से एवं प्रभावशाली तरीके से सम्पन्न किया जा सके। शासन में स्थित प्रशासक के कई अधिकारी रहते हैं और वह उनमें से किसी की भी उपेक्षा नहीं कर सकता। एक से वह नीति सम्बन्धी आदेश प्राप्त करता है, दूसरे से कर्मचारी सम्बन्धी, तीसरे से बजट सम्बन्धी और चौथे से प्रदाय एवं उपकरण सम्बन्धी।”

द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् विशिष्टीकरण का महत्व इतना अधिक बढ़ा कि आदेश की एकता के सिद्धान्त की उपेक्षा होने लगी। आज पंचायती राज या स्थानीय शासन की स्थापना के बाद इतनी अधिक जटिलता बढ़ गई है कि अधिकारी को अनेक दिशाओं से आदेश प्राप्त होते हैं। उन सब आदेशों का पालन उसके लिए आवश्यक होता है। एक डॉक्टर को एक तरफ स्वास्थ्य अधिकारी तथा अनेक क्षेत्रों के विशेषज्ञों के आदेश का ध्यान रखना पड़ता है तो दूसरी ओर कलेक्टर व आयुक्त के आदेश को भी स्वीकार करना आवश्यक होता है।

आदेश की एकता की कुछ सीमाएँ हैं तथा यह सैनिक प्रशासन के लिए ही सर्वोत्तम प्रतीत होता है, हालांकि असैनिक प्रशासन में भी इसका महत्व है। आदेश की एकता के सिद्धान्त पर गम्भीर रूप से मनन करने वाला विद्वान हर्बर्ट ए. साइमन का मानना है कि “विशिष्टीकरण व तकनीकी प्रशासन के विकास के उपरान्त भी आदेश की एकता का सिद्धान्त अमान्य नहीं किया जा सकता है।” निष्कर्षः सैनिक प्रशासन के साथ असैनिक प्रशासन के लिए भी आदेश की एकता एक आवश्यक सिद्धान्त है।

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Anjali Yadav

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